Difference between revisions of "विद्यालय की शैक्षिक व्यवस्थाएँ - प्रस्तावना"
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− | शैक्षिक व्यवस्थाओं की छोटी छोटी बातों का भी जब धार्मिक जीवनदृष्टि के प्रकाश में विचार करते हैं तब ध्यान में आता है कि शिक्षा के पश्चिमीकरण की पैठ कितनी अन्दर तक गई है<ref>धार्मिक शिक्षा के व्यावहारिक आयाम (धार्मिक शिक्षा ग्रन्थमाला ३): पर्व ३, प्रकाशक: पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, लेखन एवं संपादन: श्रीमती इंदुमती काटदरे</ref>। | + | शैक्षिक व्यवस्थाओं की छोटी छोटी बातों का भी जब धार्मिक जीवनदृष्टि के प्रकाश में विचार करते हैं तब ध्यान में आता है कि शिक्षा के पश्चिमीकरण की पैठ कितनी अन्दर तक गई है<ref>धार्मिक शिक्षा के व्यावहारिक आयाम (धार्मिक शिक्षा ग्रन्थमाला ३): पर्व ३, प्रकाशक: पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, लेखन एवं संपादन: श्रीमती इंदुमती काटदरे</ref>। जड़़वादी, अनात्मवादी दृष्टि ने छोटी छोटी बातों का स्वरूप बदल दिया है। शिक्षा का धार्मिककरण करने हेतु हमें भी गहराई में जाकर परिवर्तन करना होगा। ऐसा परिवर्तन सरल तो नहीं होगा। वह केवल बाहरी स्वरूप का परिवर्तन नहीं होगा। इन व्यवस्थाओं के पीछे जो मानस है, उसका परिवर्तन किये बिना बाहरी परिवर्तन सम्भव नहीं है। अतः छोटी से छोटी बातों का पुनर्विचार करने का प्रयास इस पर्व में किया गया है। |
इसके पूर्व के पर्व में विद्यालय और परिवार का सम्बन्ध बताया गया था। भोजन और पानी, गणवेश और बस्ता, वाहन और अन्य सुविधाओं का विचार विद्यालय और परिवार दोनों मिलकर करेंगे तभी परिवर्तन सम्भव होगा, तभी वह सार्थक भी होगा। शिक्षा की समस्त प्रक्रियाओं में दोनों कितने अनिवार्य रूप से जुडे हुए हैं यही बताने का प्रयास इसमें किया गया है। | इसके पूर्व के पर्व में विद्यालय और परिवार का सम्बन्ध बताया गया था। भोजन और पानी, गणवेश और बस्ता, वाहन और अन्य सुविधाओं का विचार विद्यालय और परिवार दोनों मिलकर करेंगे तभी परिवर्तन सम्भव होगा, तभी वह सार्थक भी होगा। शिक्षा की समस्त प्रक्रियाओं में दोनों कितने अनिवार्य रूप से जुडे हुए हैं यही बताने का प्रयास इसमें किया गया है। |
Revision as of 20:28, 16 November 2020
शैक्षिक व्यवस्थाओं की छोटी छोटी बातों का भी जब धार्मिक जीवनदृष्टि के प्रकाश में विचार करते हैं तब ध्यान में आता है कि शिक्षा के पश्चिमीकरण की पैठ कितनी अन्दर तक गई है[1]। जड़़वादी, अनात्मवादी दृष्टि ने छोटी छोटी बातों का स्वरूप बदल दिया है। शिक्षा का धार्मिककरण करने हेतु हमें भी गहराई में जाकर परिवर्तन करना होगा। ऐसा परिवर्तन सरल तो नहीं होगा। वह केवल बाहरी स्वरूप का परिवर्तन नहीं होगा। इन व्यवस्थाओं के पीछे जो मानस है, उसका परिवर्तन किये बिना बाहरी परिवर्तन सम्भव नहीं है। अतः छोटी से छोटी बातों का पुनर्विचार करने का प्रयास इस पर्व में किया गया है।
इसके पूर्व के पर्व में विद्यालय और परिवार का सम्बन्ध बताया गया था। भोजन और पानी, गणवेश और बस्ता, वाहन और अन्य सुविधाओं का विचार विद्यालय और परिवार दोनों मिलकर करेंगे तभी परिवर्तन सम्भव होगा, तभी वह सार्थक भी होगा। शिक्षा की समस्त प्रक्रियाओं में दोनों कितने अनिवार्य रूप से जुडे हुए हैं यही बताने का प्रयास इसमें किया गया है।
खण्ड खण्ड में विचार करने से शिक्षा कितनी यान्त्रिक और निरर्थक बन जाती है । और संश्लेष्ट रूप में देखने से छोटी बातें भी कितनी महत्त्वपूर्ण बन जाती हैं यह भी इस चर्चा का निष्कर्ष है।
References
- ↑ धार्मिक शिक्षा के व्यावहारिक आयाम (धार्मिक शिक्षा ग्रन्थमाला ३): पर्व ३, प्रकाशक: पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, लेखन एवं संपादन: श्रीमती इंदुमती काटदरे