Difference between revisions of "बन्दावीरः - महापुरुषकीर्तन श्रंखला"
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बन्दावीरः
विरक्तो यो वीरः, सकलखलनाशोद्धतकरः,
जहौ प्राणान् धर्मे न हि परमसौ धर्ममजहात्।
चकम्पे यच्छक्तेर्यवननिवहो जम्बुक इव,
नमामो बन्दाख्यं प्रथितमपि योगे सुकृतिनम्।।37॥।
जिस वीर ने वैराग्ययुक्त होकर भी दुष्टों के नाश के लिये हाथ
में तलवार पकड़ी, जिसने धर्म के लिये अपने प्राणों का परित्याग कर
दिया किन्तु धर्म को नहीं छोड़ा, जिस की शक्ति से यवनसमूह गीदड़
की तरह कांपता था, ऐसे प्रसिद्ध योगी पुण्यात्मा बन्दा वैरागी को हम
नमस्कार करते हैं।