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=== विद्यालय में भोजन की शिक्षा ===
 
=== विद्यालय में भोजन की शिक्षा ===
सामान्य विद्यालयों में और आवासीय विद्यालयों में
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सामान्य विद्यालयों में और आवासीय विद्यालयों में भोजन शिक्षा का बहुत बडा विषय है । आज जितना और जैसा ध्यान उसकी ओर दिया जाना चाहिये उतना नहीं दिया जाता । ध्यान दिया जाने लगता है तो विद्यार्थी की अध्ययन क्षमता के लिये भी वह लाभकारी है ।
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भोजन शिक्षा का बहुत बडा विषय है । आज जितना और
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भोजन के सम्बन्ध में व्यावहारिक विचार कुछ इस प्रकार किया जा सकता है...
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जैसा ध्यान उसकी ओर दिया जाना चाहिये उतना नहीं दिया
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==== १, क्या खायें ====
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जैसा अन्न वैसा मन, और आहार वैसे विचार ये बहुत प्रचलित उक्तियाँ हैं । विचारवान लोग इन्हें मानते भी हैं । इसका तात्पर्य यह है कि अन्न का प्रभाव मन पर होता है । इसलिये जो मन को अच्छा बनाये वह खाना चाहिये, मन को खराब करे उसका त्याग करना चाहिये ।
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जाता ध्यान दिया जाने लगता है तो विद्यार्थी की अध्ययन
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आहार से शरीर और प्राण पुष्ट होते हैं यह बात समझाने की आवश्यकता नहीं । पुष्ट और बलवान शरीर सबको चाहिये । अतः शरीर और प्राण के लिये अनुकूल आहार लेना चाहिये
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क्षमता के लिये भी वह लाभकारी है
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आहारशुद्धो सत्त्वशुद्धि : ऐसा शास्त्रवचन है । इसका अर्थ है शुद्ध आहार से सत्व शुद्ध बनता है । सत्व का अर्थ है अपना आन्तरिक व्यक्तित्व, अपना अन्तःकरण । सम्पूर्ण सृष्टि में केवल मनुष्य को ही सक्रिय अन्तःकरण मिला है । अन्तःकरण की शुद्धी करे ऐसा शुद्ध आहार लेना चाहिये । इस प्रकार आहार के तीन गुण हुए मन को अच्छा बनाने वाला सात्तिक आहार, शरीर और प्राण का पोषण करने वाला पौष्टिक आहार और अन्तःकरण को शुद्ध करनेवाला शुद्ध आहार |
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भोजन के सम्बन्ध में व्यावहारिक विचार कुछ इस
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वर्तमान समय की चर्चाओं में शुद्ध और पौष्टिक आहार की तो चर्चा होती है परन्तु सात्चिकता की संकल्पना नहीं है । यदि है भी तो वह नकारात्मक अर्थ में । सात्विक आहार रोगियों के लिये, योगियों के लिये, साधुओं के लिये होता है, सात्त्तिक आहार स्वाददहदीन और सादा होता है, सात्त्विक आहार वैविध्यपूर्ण नहीं होता, घास जैसा होता है आदि आदि बातें सात्तिक आहार के विषय में कही जाती हैं जो सर्वथा अज्ञानजनित हैं । हमें उसके सम्बन्ध में भी ठीक से समझना होगा ।
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प्रकार किया जा सकता है...
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==== सात्विक आहार के लक्षण ====
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सात्विक स्वभाव के मनुष्यों को जो प्रिय है वह सात्विक आहार है ऐसा श्रीमदू भगवदूगीता में कहा है । ऐसे आहार का वर्णन इस प्रकार किया गया है<blockquote>आयु सत्त्वबलारोग्य सुखप्रीति विवर्धना: ।</blockquote><blockquote>रस्या: स्निग्धा: तथा हृद्या: आहारा: सात्त्विकप्रिया ।। </blockquote>
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१, क्या खायें
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==== अर्थात्‌ ====
 
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जैसा अन्न वैसा मन, और आहार वैसे विचार ये बहुत
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प्रचलित उक्तियाँ हैं । विचारवान लोग इन्हें मानते भी हैं ।
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इसका तात्पर्य यह है कि अन्न का प्रभाव मन पर होता है ।
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इसलिये जो मन को अच्छा बनाये वह खाना चाहिये, मन
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को खराब करे उसका त्याग करना चाहिये ।
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आहार से शरीर और प्राण पुष्ट होते हैं यह बात
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समझाने की आवश्यकता नहीं । पुष्ट और बलवान शरीर
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सबको चाहिये । अतः शरीर और प्राण के लिये अनुकूल
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आहार लेना चाहिये ।
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आहारशुद्धो सत्त्वशुद्धि : ऐसा शास्त्रवचन है । इसका
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अर्थ है शुद्ध आहार से सत्व शुद्ध बनता है । सत्व का अर्थ
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है अपना आन्तरिक व्यक्तित्व, अपना अन्तःकरण । सम्पूर्ण
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श्घ्ढ
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सृष्टि में केवल मनुष्य को ही सक्रिय अन्तःकरण मिला है ।
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अन्तःकरण की शुद्धी करे ऐसा शुद्ध आहार लेना चाहिये ।
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इस प्रकार आहार के तीन गुण हुए । मन को अच्छा
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बनाने वाला सात्तिक आहार, शरीर और प्राण का पोषण
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करने वाला पौष्टिक आहार और अन्तःकरण को शुद्ध
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करनेवाला शुद्ध आहार |
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वर्तमान समय की चर्चाओं में शुद्ध और पौष्टिक
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आहार की तो चर्चा होती है परन्तु सात्चिकता की
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संकल्पना नहीं है । यदि है भी तो वह नकारात्मक अर्थ में ।
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सात्विक आहार रोगियों के लिये, योगियों के लिये, साधुओं
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के लिये होता है, सात्त्तिक आहार स्वाददहदीन और सादा
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होता है, सात्त्विक आहार वैविध्यपूर्ण नहीं होता, घास जैसा
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होता है आदि आदि बातें सात्तिक आहार के विषय में
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कही जाती हैं जो सर्वथा अज्ञानजनित हैं । हमें उसके
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सम्बन्ध में भी ठीक से समझना होगा ।
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सात्विक आहार के लक्षण
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सात्विक स्वभाव के मनुष्यों को जो प्रिय है वह
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सात्विक आहार है ऐसा श्रीमदू भगवदूगीता में कहा है । ऐसे
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आहार का वर्णन इस प्रकार किया गया है
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आयु सत्त्वबलारोग्य सुखप्रीति विवर्धना: ।
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पर्व ३ : विद्यालय की शैक्षिक व्यवस्थाएँ
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रस्या: स्निग्धा: तथा हृद्या: आहारा: सात्त्विकप्रिया ।। रस्य होना है ।
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अर्थात्‌ स्निग्ध आहार किसे कहते हैं ?
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==== स्निग्ध आहार किसे कहते हैं ? ====
 
सात्त्विक आहार क्या-क्या बढ़ाता है ? मोटे तौर पर जिसमें चिकनाई अधिक है उसे स्निग्ध
 
सात्त्विक आहार क्या-क्या बढ़ाता है ? मोटे तौर पर जिसमें चिकनाई अधिक है उसे स्निग्ध
  
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