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| | आचार्य को विद्यार्थीप्रिय होना चाहिये लेकिन लाड़ करने के लिए प्रिय नहीं । आचार्य उसका चखित्रि निर्माण, उसके कल्याण की चिंता करने वाला होना चाहिये । छात्र को अनुशासन में रखना, सयम सिखाना भी आवश्यक है । | | आचार्य को विद्यार्थीप्रिय होना चाहिये लेकिन लाड़ करने के लिए प्रिय नहीं । आचार्य उसका चखित्रि निर्माण, उसके कल्याण की चिंता करने वाला होना चाहिये । छात्र को अनुशासन में रखना, सयम सिखाना भी आवश्यक है । |
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| − | आचार्य कभी विद्या का सौदा नहीं करता । पद, पैसा, मान, प्रतिष्ठा के लिए कभी कुपात्र को विद्यादान नहीं करता । | + | आचार्य कभी विद्या का सौदा नहीं करता । पद, पैसा, मान, प्रतिष्ठा के लिए कभी कुपात्र को विद्यादान नहीं करता । योग्य विद्यार्थी को ही आगे बढ़ाता है । |
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| − | योग्य विद्यार्थी को ही आगे बढ़ाता है ।
| + | आचार्य को भय, लालच, खुशामद या निंदा का स्पर्श भी नहीं होता । |
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| − | आचार्य को भय, लालच, खुशामद या निंदा का स्पर्श | |
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| − | भी नहीं होता । | |
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| | आचार्य धर्म का आचरण करने वाला होता है । | | आचार्य धर्म का आचरण करने वाला होता है । |
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| − | आचार्य सभ्य, गौरवशील, सुसंस्कृत व्यवहार करने | + | आचार्य सभ्य, गौरवशील, सुसंस्कृत व्यवहार करने वाला होता है । उसके व्यवहार में हलकापन, ओछापन नहीं होता । आचार्य कभी संतुलन नहीं खोता । मन के आवेगों पर नियंत्रण रखता है । धर्म को समझता है, कर्तव्य समझता है, सन्मार्ग पर चलता है । |
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| − | वाला होता है । उसके व्यवहार में हलकापन, ओछापन नहीं | |
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| − | होता । आचार्य कभी संतुलन नहीं खोता । मन के आवेगों | |
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| − | पर नियंत्रण रखता है । धर्म को समझता है, कर्तव्य समझता | |
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| − | है, सन्मार्ग पर चलता है । | |
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| − | आचार्य विद्यार्थी के साथ साथ समाज का मार्गदर्शन
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| − | करने को भी अपना कर्तव्य समझता है ।
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| − | आचार्य हमेशा प्रसन्न रहता है । शारीरिक रूप से
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| − | स्वस्थ रहता है । रोगी, संशयग्रस्त, पूर्वग्रहों से युक्त,
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| − | चिडचिड़ा, लालची, प्रमादी नहीं होता । ऐसी स्थिति में वह
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| − | भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
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| − | कभी छात्रों के सामने उपस्थित नहीं होता ।
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| − | व्यावहारिकता की बात तो यह है कि, शिशु, बाल,
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| − | किशोर छात्रों के लिए अपंग, अंध, अस्पष्ट उच्चार वाला, गंदे
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| − | दांतवाला आचार्य नहीं Gerd | Yes, सशक्त, प्रभावी
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| − | व्यक्तित्व वाला आचार्य ही विद्यार्थी को प्रेरणा दे सकता है ।
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| − | आचार्य की नियुक्ति उससे श्रेष्ठ आचार्य ही कर सकते
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| − | हैं । शेष लोग आचार्य का सम्मान करे और आचार्य अपने से
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| − | श्रेष्ठ आचार्य का आदर करे यही रीत है । आचार्य को
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| − | अनुशासन में उससे श्रेष्ठ आचार्य ही रख सकते हैं, अन्य कोई
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| − | नहीं ।
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| − | ऐसा आचार्य समाज का भूषण है । जो समाज आचार्य
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| − | को सम्मान नहीं देता उसका पतन होता है ।
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| − | आज के समय में ये बातें या तो हमने छोड दी हैं, या
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| − | बदल दी हैं । इसलिए शिक्षाक्षेत्र में अनवस्था निर्माण हुई
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| − | है । इस अनवस्था ने समग्र समाज को शिथिल और अस्थिर
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| − | कर दिया है ।
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| − | इस स्थिति को बदलने का प्रयास सबसे पहले आचार्यों
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| − | कस चाहिये और ~ समाज कस चाहिये
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| − | को करना चाहिये और बाद में समाज को करना चाहिये ।
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| − | विद्यालय को अच्छे शिक्षक कैसे मिलेंगे
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| − | जैसा शिक्षक वैसी शिक्षा
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| − | शिक्षक और शिक्षा का सम्बन्ध प्रतिमा और तत्त्व
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| − | जैसा है । जिस प्रकार विद्या का तत्त्व, विद्या की संकल्पना
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| − | मूर्त स्वरूप में सरस्वती की प्रतिमा बन गई उसी प्रकार से
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| − | शिक्षा मूर्तिमन्त स्वरूप धारण करती है तब वह शिक्षक
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| − | होती है । सीधा कहें तो जैसा शिक्षक वैसी शिक्षा ।
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| − | इसलिये अच्छी शिक्षा के लिये अच्छा शिक्षक
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| − | चाहिये ।
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| − | विभिन्न प्रकार के विद्यार्थी, अभिभावक, संचालक
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| − | और शासक किसे अच्छा शिक्षक कहते हैं इसकी चर्चा यहाँ
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| − | नहीं करेंगे । केवल इतना कथन पर्याप्त है कि भारतीय
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| − | शिक्षा भारतीय पद्धति से भारतीयता की प्रतिष्ठा हेतु समय देने
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| − | वाले शिक्षक होंगे तभी विद्यालय भी भारतीय होंगे ।
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| − | ऐसे शिक्षक कहाँ से मिलेंगे ?
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| − | १... समाज में ऐसे अनेक लोग हैं जो शिक्षा को
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| − | चिन्तित हैं । इन के दो प्रकार हैं । एक ऐसे हैं जो
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| − | अपनी सन्तानों की शिक्षा को लेकर चिन्तित हैं और
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| − | Baa कहीं अच्छी शिक्षा नहीं है इसलिये स्वयं
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| − | सभी बच्चों की शिक्षा के लिये चिन्तित हैं और
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| − | अच्छी शिक्षा देना चाहते हैं । देश में सर्वत्र ऐसे लोग
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| − | हैं । ये सब शिक्षक बनने का प्रशिक्षण प्राप्त किये हुए
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| − | हैं अथवा सरकारमान्य शिक्षक हैं ऐसा नहीं होगा,
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| − | परन्तु ये भारतीय शिक्षा की सेवा करनेवाले अच्छे
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| − | शिक्षक हैं । इनकी सूची दस हजार से ऊपर की बन
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| − | सकती है ।
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| − | पर्व २ : विद्यार्थी, शिक्षक, विद्यालय, परिवार
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| − | इन स्वेच्छा से बने शिक्षकों को शिक्षाशास्त्रियों
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| − | ट्वारा समर्थन, सहयोग, मार्गदर्शन मिलना चाहिये ।
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| − | उनके प्रयोग को. fem और बढाने में
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| − | शिक्षाशाख्रियों का योगदान होना चाहिये क्योंकि ये
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| − | भारतीय शिक्षा हेतु आदर्श प्रयोग हैं । देशके शैक्षिक
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| − | संगठनों दट्वारा इन प्रयोगों को समर्थन और सुरक्षा की
| + | आचार्य विद्यार्थी के साथ साथ समाज का मार्गदर्शन करने को भी अपना कर्तव्य समझता है । |
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| − | सिद्धता होनी चाहिये ।
| + | आचार्य हमेशा प्रसन्न रहता है । शारीरिक रूप से स्वस्थ रहता है । रोगी, संशयग्रस्त, पूर्वग्रहों से युक्त, चिडचिड़ा, लालची, प्रमादी नहीं होता । ऐसी स्थिति में वह कभी छात्रों के सामने उपस्थित नहीं होता । |
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| − | विद्यालयों में आज तो ऐसी व्यवस्था या पद्धति नहीं
| + | व्यावहारिकता की बात तो यह है कि, शिशु, बाल, किशोर छात्रों के लिए अपंग, अंध, अस्पष्ट उच्चार वाला, गंदे दांतवाला आचार्य नहीं चलता। सुद्र्ढ, सशक्त, प्रभावी व्यक्तित्व वाला आचार्य ही विद्यार्थी को प्रेरणा दे सकता है । |
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| − | है कि वे स्वयं अपने विद्यालयों या महाविद्यालयों के | + | आचार्य की नियुक्ति उससे श्रेष्ठ आचार्य ही कर सकते हैं । शेष लोग आचार्य का सम्मान करे और आचार्य अपने से श्रेष्ठ आचार्य का आदर करे यही रीत है । आचार्य को अनुशासन में उससे श्रेष्ठ आचार्य ही रख सकते हैं, अन्य कोई नहीं । |
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| − | लिये स्वयं शिक्षक तैयार कर सर्के । इसका एक
| + | ऐसा आचार्य समाज का भूषण है । जो समाज आचार्य को सम्मान नहीं देता उसका पतन होता है । |
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| − | कारण यह भी है कि पूर्ण शिक्षा कहीं एक स्थान पर
| + | आज के समय में ये बातें या तो हमने छोड दी हैं, या बदल दी हैं । इसलिए शिक्षाक्षेत्र में अनवस्था निर्माण हुई है । इस अनवस्था ने समग्र समाज को शिथिल और अस्थिर कर दिया है । |
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| − | होती हो ऐसी व्यवस्था नहीं है । किसी एक संस्थामें
| + | इस स्थिति को बदलने का प्रयास सबसे पहले आचार्यों कस चाहिये को करना चाहिये और बाद में समाज को करना चाहिये । |
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| − | पूर्व प्राथमिक से महाविद्यालय स्तर तक की शिक्षा
| + | === विद्यालय को अच्छे शिक्षक कैसे मिलेंगे === |
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| − | होती हो तब भी वे सारे विभाग भिन्न भिन्न सरकारी | + | ==== जैसा शिक्षक वैसी शिक्षा ==== |
| | + | शिक्षक और शिक्षा का सम्बन्ध प्रतिमा और तत्त्व जैसा है । जिस प्रकार विद्या का तत्त्व, विद्या की संकल्पना मूर्त स्वरूप में सरस्वती की प्रतिमा बन गई उसी प्रकार से शिक्षा मूर्तिमन्त स्वरूप धारण करती है तब वह शिक्षक होती है । सीधा कहें तो जैसा शिक्षक वैसी शिक्षा । |
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| − | स्चनाओं के नियमन में चलते हैं । इसलिये कोई एक
| + | इसलिये अच्छी शिक्षा के लिये अच्छा शिक्षक चाहिये । |
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| − | विद्यालय स्वयं चाहे उस विद्यार्थी को या उस शिक्षक
| + | विभिन्न प्रकार के विद्यार्थी, अभिभावक, संचालक और शासक किसे अच्छा शिक्षक कहते हैं इसकी चर्चा यहाँ नहीं करेंगे । केवल इतना कथन पर्याप्त है कि भारतीय शिक्षा भारतीय पद्धति से भारतीयता की प्रतिष्ठा हेतु समय देने वाले शिक्षक होंगे तभी विद्यालय भी भारतीय होंगे । |
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| − | को अपने विद्यालय में नियुक्त नहीं कर सकता । | + | ==== ऐसे शिक्षक कहाँ से मिलेंगे ? ==== |
| | + | 1. समाज में ऐसे अनेक लोग हैं जो शिक्षा को चिन्तित हैं । इन के दो प्रकार हैं । एक ऐसे हैं जो अपनी सन्तानों की शिक्षा को लेकर चिन्तित हैं और अन्यत्र कहीं अच्छी शिक्षा नहीं है इसलिये स्वयं पढ़ना चाहते है। दुसरे ऐसे लोग हैं जो समाज के सभी बच्चों की शिक्षा के लिये चिन्तित हैं और अच्छी शिक्षा देना चाहते हैं । देश में सर्वत्र ऐसे लोग हैं । ये सब शिक्षक बनने का प्रशिक्षण प्राप्त किये हुए हैं अथवा सरकारमान्य शिक्षक हैं ऐसा नहीं होगा, परन्तु ये भारतीय शिक्षा की सेवा करनेवाले अच्छे शिक्षक हैं । इनकी सूची दस हजार से ऊपर की बन सकती है । |
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| − | अपने विद्यार्थी के साथ साथ उसे अन्य लोगों को भी
| + | इन स्वेच्छा से बने शिक्षकों को शिक्षाशास्त्रियों ट्वारा समर्थन, सहयोग, मार्गदर्शन मिलना चाहिये । उनके प्रयोग को. निखारने और बढाने में शिक्षाशाख्रियों का योगदान होना चाहिये क्योंकि ये भारतीय शिक्षा हेतु आदर्श प्रयोग हैं । देशके शैक्षिक संगठनों ट्वारा इन प्रयोगों को समर्थन और सुरक्षा की सिद्धता होनी चाहिए। |
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| − | चयनप्रक्रिया में समाविष्ट करना होता है । | + | 2. विद्यालयों में आज तो ऐसी व्यवस्था या पद्धति नहीं है कि वे स्वयं अपने विद्यालयों या महाविद्यालयों के लिये स्वयं शिक्षक तैयार कर सर्के । इसका एक कारण यह भी है कि पूर्ण शिक्षा कहीं एक स्थान पर होती हो ऐसी व्यवस्था नहीं है । किसी एक संस्थामें पूर्व प्राथमिक से महाविद्यालय स्तर तक की शिक्षा होती हो तब भी वे सारे विभाग भिन्न भिन्न सरकारी स्चनाओं के नियमन में चलते हैं । इसलिये कोई एक विद्यालय स्वयं चाहे उस विद्यार्थी को या उस शिक्षक को अपने विद्यालय में नियुक्त नहीं कर सकता । अपने विद्यार्थी के साथ साथ उसे अन्य लोगों को भी चयनप्रक्रिया में समाविष्ट करना होता है । |
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| | एक अच्छा विद्यार्थी जब तक शिक्षक प्रशिक्षण का | | एक अच्छा विद्यार्थी जब तक शिक्षक प्रशिक्षण का |