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| बलादाहरणं तेषां प्रत्याहारः स उच्यते । यत्पश्यति तु तत्सर्वं ब्रह्म पश्यन्समाहितः ॥२॥ | | बलादाहरणं तेषां प्रत्याहारः स उच्यते । यत्पश्यति तु तत्सर्वं ब्रह्म पश्यन्समाहितः ॥२॥ |
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− | प्रत्याहारोभवेदेष ब्रह्मविद्भिः पुरोदितः । यद्यच्छुद्धमशु | + | प्रत्याहारोभवेदेष ब्रह्मविद्भिः पुरोदितः । यद्यच्छुद्धमशुद्धं वा करोत्यामरणान्तिकम् ॥३॥ |
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| + | तत्सर्वं ब्रह्मणे कुर्यात् प्रत्याहारः स उच्यते । अथवा नित्यकर्माणि ब्रह्माराधनबुद्धितः ॥४॥ |
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| + | काम्यानि च तथा कुर्यात् प्रत्याहारः स उच्यते । अथवा वायुमाकृष्य स्थानात् स्थानं निरोधयेत् ॥५॥ |
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| + | दन्तमूलात्तथा कण्ठे कण्ठादुरसि मारुतम् । उरोदेशात् समाकृष्य नाभिदेशे निरोधयेत् ॥६॥ |
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| + | नाभिदेशात् समाकृष्य कुण्डल्यां तु निरोधयेत् । कुण्डलीदेशतो विद्वान् मूलाधारे निरोधयेत् ॥७॥ |
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| + | अथापानात् कटिद्वन्द्वे तथोरौ च सुमध्यमे । तस्माज्जानुद्वये जङ्घे पादाङ्गुष्ठे निरोधयेत् ॥८॥ |
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| + | प्रत्याहारोऽयमुक्तस्तु प्रत्याहारपरैः पुरा ।<ref name=":7">A. Mahadeva Sastri (1920), [https://archive.org/details/in.ernet.dli.2015.345354/page/n1/mode/1up?view=theater The Yoga Upanishads], Madras: The Adyar Library.</ref> |
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| + | Darshanopanishad ref: https://cloudup.com/casG3wXfwfC |
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| Pratyahara: In the Sandilya Upanisad and the Darsanopanisad | | Pratyahara: In the Sandilya Upanisad and the Darsanopanisad |
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− | * Forcible withdrawal of the sense organs from the objects of sensual pleasures with which they interact. | + | * Forcible withdrawal of the sense organs from the objects of sensual pleasures with which they interact. |
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− | * Looking upon everything as one sees as atman, the true self.
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− | * Giving up the desires to attain the fruits of one’s actions. | + | * Looking upon everything as one sees as atman, the true self. |
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− | Turning one’s attentions away from all material things and thoughts. | + | * Giving up the desires to attain the fruits of one’s actions. |
| + | * Turning one’s attentions away from all material things and thoughts. |
| + | * Projection of ''pranic'' (vital) energy and mind on the 18 vital regions of one’s body (''marmasthanas)'' by shifting attention from one point to another.<ref name=":6" /> |
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− | Projection of ''pranic'' (vital) energy and mind on the 18 vital regions of one’s body (''marmasthanas)'' by shifting attention from one point to another.
| + | प्रत्याहारफलम् - वायुधारणात्मकप्रत्याहारः - वदान्तसम्मतप्रत्याहारः ।<ref name=":7" /> |
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| == प्रत्याहारस्य महत्त्वम् ॥ Importance of Pratyahara == | | == प्रत्याहारस्य महत्त्वम् ॥ Importance of Pratyahara == |