− | यह व्रत कार्तिक कृष्ण पक्ष अष्टमी को मनाया जाता है, इस दिन पुत्रों की माता पूरे दिन व्रत करती हैं। इस दिन सायंकाल तारे निकलने के पश्चात् दीवार पर अहोई बनाकर उसको पूजा करें। व्रत रखने वाली माताएं कहानी सुनें, कहानी सुनते समय एक पत्ते पर | + | यह व्रत कार्तिक कृष्ण पक्ष अष्टमी को मनाया जाता है, इस दिन पुत्रों की माता पूरे दिन व्रत करती हैं। इस दिन सायंकाल तारे निकलने के पश्चात् दीवार पर अहोई बनाकर उसको पूजा करें। व्रत रखने वाली माताएं कहानी सुनें, कहानी सुनते समय एक पत्ते पर जल से भरा लौटा रखें। एक चाँदी की अहोई बनवायें और दो चाँदी के मोती एक डोरे में डलवायें जिस तरह हार में पेंडिल लगा होता है। उसकी जगह चाँदी की अहोई लगवाएं और डोरे, चांदी के मोती डलवा दें। फिर अहोई की रोली, चावल, दूध-भात से पूजा करें। जल के लौटे पर एक सतिया काढ़कर एक कटोरे में सीरी और रुपये का बायना निकालकर और हाथ में सात दाने गेहूं को लेकर कहानी सुनें। फिर अहोई को गले में पहन लें। जो बायना निकाला था उसे सासुजी को पांव छूकर अष्टमी के पश्चात् किसी अच्छे दिन अहोई गले में से उतारकर, जितने बेटे होवें उतनी बार और जितने बेटों का विवाह हुआ हो, उतनी बार दो चाँदी के दाने डालती जायें। जब अहोई उतारें उसको गुड़ से भोग लगाकर तथा जल के छीटें देकर रख दें। चन्द्रमा को अर्घ्य देकर भोजन करें। |
| + | मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हूं, तुम मुझसे कुछ भी वर मांग लो।" साहूकार अहोई देवी के दर्शन कर, बहुत प्रसन्न हुआ और कहा, मां! मेरे बच्चे कम उम्र में ही देवलोक को चले जाते हैं। इसलिए मां उनकी दीर्घायु होने का आशीर्वाद दीजिये। अहोई देवी बोलीं, ऐसा ही होगा। इतना कहकर देवी अन्तध्यान हो गयीं। |