Difference between revisions of "Lagna (लग्न)"

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लग्न (संस्कृतः लग्नम्) समय में क्रान्तिवृत्त का जो प्रदेश-स्थान क्षितिजवृत्त में लगता है, वही लग्न कहलाता है अथवा दिन का उतना अंश जितने में किसी एक राशि का उदय होता है वह लग्न कहलाता है। अहोरात्र में १२ राशियों का उदय होता है। इसलिये एक दिन-रात में बारह लग्नों की कल्पना की गई है। एक राशि का जो उदय काल है उसे लग्न कहा गया। ज्योतिषशास्त्र में जिस प्रकार सिद्धान्त ज्योतिष का मूल - ग्रह गणित है उसी प्रकार फलित, जातक अथवा होरा ज्योतिष का मूलाधार लग्न है।
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लग्न (संस्कृतः लग्नम्) समय में क्रान्तिवृत्त (Ecliptic) का जो प्रदेश-स्थान क्षितिजवृत्त (Horizon) में लगता है, वही लग्न कहलाता है अथवा दिन का उतना अंश जितने में किसी एक राशि का उदय होता है वह लग्न कहलाता है। अहोरात्र में १२ राशियों का उदय होता है। इसलिये एक दिन-रात में बारह लग्नों की कल्पना की गई है। एक राशि का जो उदय काल है उसे लग्न कहा गया। ज्योतिषशास्त्र में जिस प्रकार सिद्धान्त ज्योतिष का मूल - ग्रह गणित है उसी प्रकार फलित, जातक अथवा होरा ज्योतिष का मूलाधार लग्न है।
  
 
==परिचय॥ Introduction==
 
==परिचय॥ Introduction==
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[[File:लग्न-उदयास्त.jpg|thumb|363x363px|लग्न - उदयास्त]]
 
सूर्योदय के समय सूर्य जिस राशि में हो वही राशि लग्न होती है। लग्न शब्द से ही प्रतीत होता है कि एक वस्तु का दूसरे वस्तु में लगना। इसीलिए कहा गया है कि - लगतीति लग्नम्। वस्तुतः लग्न में भी यही होता है क्योंकि इष्टकाल में क्रान्तिवृत्त का जो स्थान उदयक्षितिज में जहाँ लगता है, वही राश्यादि (राशि, अंश, कला, विकला) लग्न होता है।<ref>जितेंद्र कुमार दुबे, [https://egyankosh.ac.in/bitstream/123456789/81133/1/Unit-2.pdf लग्न साधन], सन् २०२१, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, नई दिल्ली (पृ० ९३)।</ref> जिस समय लग्न जानना हो उस समय जिस राशि के सूर्य होंगे ठीक सूर्योदय के समय उसी राशि से लग्न आरम्भ होता है -<ref>नेमिचन्द्र शास्त्री, [https://ia601501.us.archive.org/30/items/in.ernet.dli.2015.350217/2015.350217.Bhartiya-Jyotish.pdf भारतीय ज्योतिष], सन १९६६, भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन, वाराणसी (पृ० ३५१)।</ref>   
 
सूर्योदय के समय सूर्य जिस राशि में हो वही राशि लग्न होती है। लग्न शब्द से ही प्रतीत होता है कि एक वस्तु का दूसरे वस्तु में लगना। इसीलिए कहा गया है कि - लगतीति लग्नम्। वस्तुतः लग्न में भी यही होता है क्योंकि इष्टकाल में क्रान्तिवृत्त का जो स्थान उदयक्षितिज में जहाँ लगता है, वही राश्यादि (राशि, अंश, कला, विकला) लग्न होता है।<ref>जितेंद्र कुमार दुबे, [https://egyankosh.ac.in/bitstream/123456789/81133/1/Unit-2.pdf लग्न साधन], सन् २०२१, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, नई दिल्ली (पृ० ९३)।</ref> जिस समय लग्न जानना हो उस समय जिस राशि के सूर्य होंगे ठीक सूर्योदय के समय उसी राशि से लग्न आरम्भ होता है -<ref>नेमिचन्द्र शास्त्री, [https://ia601501.us.archive.org/30/items/in.ernet.dli.2015.350217/2015.350217.Bhartiya-Jyotish.pdf भारतीय ज्योतिष], सन १९६६, भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन, वाराणसी (पृ० ३५१)।</ref>   
  
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*याम्योत्तरवृत्त का ऊर्ध्वभाग का क्रान्तिवृत्त से जहां स्पर्श करता है, उसे दशम या मध्य लग्न कहते है।
 
*याम्योत्तरवृत्त का ऊर्ध्वभाग का क्रान्तिवृत्त से जहां स्पर्श करता है, उसे दशम या मध्य लग्न कहते है।
 
*अधः याम्योत्तर और क्रान्तिवृत्त का स्पर्श प्रदेश चतुर्थ लग्न कहलाता है।
 
*अधः याम्योत्तर और क्रान्तिवृत्त का स्पर्श प्रदेश चतुर्थ लग्न कहलाता है।
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परंपरागत रूप से, लग्न की गणना निम्नलिखित खगोलीय कारकों के आधार पर की जाती है -
  
जैसा कि गोलपरिभाषा में कहा गया है - <blockquote>भवृत्तं प्राक्कुजे यत्र लग्नं लग्नं तदुच्यते। पश्चात् कुजेऽस्त लग्नं स्यात् तुर्यं याम्योत्तरे त्वधः॥
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#'''स्थान विशेष का देशांतर (Longitude) एवं अक्षांश (Latitude)'''
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#'''सूर्य एवं अन्य ग्रहों की स्थिति'''
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#'''ग्रहों की गतियाँ एवं उदयास्त समय'''
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#'''समय की शुद्धता (Precise Time Calculation)'''
  
उर्ध्वं याम्योत्तरे यत्र लग्नं तद्दशमाभिधम्। राश्याद्य जातकादौ तद् गृह्यते व्ययनांशकम्॥ (गोलपरिभाषा)</blockquote>'''भाषार्थ -''' अर्थात् क्रान्तिवृत्त उदयक्षितिज वृत्त में पूर्व दिशा में जहाँ स्पर्श करता है, उसे लग्न कहते है। पश्चिम दिशा में जहाँ स्पर्श करता है, उसे सप्तम लग्न तथा अधः दिशा में चतुर्थ लग्न और उर्ध्व दिशा में दशम लग्न होता है। लग्न की यह परिभाषा सैद्धान्तिक गोलीय रीति से कहा गया है। पंचांग में भी दैनिक लग्न सारिणी दिया होता है। उसमें एक लग्न 2 घण्टे का होता है। इस प्रकार से 24 घण्टे में कुल 12 लग्न होता है। यह लग्न पंचांग में मुहूर्तों के लिये दिया गया होता है। किस लग्न में कौन सा कार्य शुभ होता है तथा कौन अशुभ, इसका विवेचन पंचागोक्त लग्न के अनुसार ही किया जाता है।<ref>डॉ० नन्दन कुमार तिवारी, [https://uou.ac.in/sites/default/files/slm/MAJY-603.pdf ज्योतिष प्रबोध-०१], सन २०२१, उत्तराखण्ड मुक्त विश्वविद्यालय (पृ० ५०)।</ref>
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जैसा कि गोलपरिभाषा में कहा गया है -<blockquote>भवृत्तं प्राक्कुजे यत्र लग्नं लग्नं तदुच्यते। पश्चात् कुजेऽस्त लग्नं स्यात् तुर्यं याम्योत्तरे त्वधः॥
  
==परिभाषा॥ Definition==
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उर्ध्वं याम्योत्तरे यत्र लग्नं तद्दशमाभिधम्। राश्याद्य जातकादौ तद् गृह्यते व्ययनांशकम्॥ (गोलपरिभाषा)</blockquote>'''भाषार्थ -''' अर्थात क्रान्तिवृत्त उदयक्षितिज वृत्त में पूर्व दिशा में जहाँ स्पर्श करता है, उसे लग्न कहते है। पश्चिम दिशा में जहाँ स्पर्श करता है, उसे सप्तम लग्न तथा अधः दिशा में चतुर्थ लग्न और उर्ध्व दिशा में दशम लग्न होता है। लग्न की यह परिभाषा सैद्धान्तिक गोलीय रीति से कहा गया है। पंचांग में भी दैनिक लग्न सारिणी दिया होता है। उसमें एक लग्न 2 घण्टे का होता है। इस प्रकार से 24 घण्टे में कुल 12 लग्न होता है। यह लग्न पंचांग में मुहूर्तों के लिये दिया गया होता है। किस लग्न में कौन सा कार्य शुभ होता है तथा कौन अशुभ, इसका विवेचन पंचागोक्त लग्न के अनुसार ही किया जाता है।<ref>डॉ० नन्दन कुमार तिवारी, [https://uou.ac.in/sites/default/files/slm/MAJY-603.pdf ज्योतिष प्रबोध-०१], सन २०२१, उत्तराखण्ड मुक्त विश्वविद्यालय (पृ० ५०)।</ref>
"लग्न" संस्कृत धातु "लग्" से बना है, जिसका अर्थ "संलग्न होना" या "जुड़ना" होता है - <blockquote>राशीनामुदयो लग्नं ते तु मेषवृषादयः॥ (१.३.२९)</blockquote>खगोलीय दृष्टि से, यह वह राशि होती है, जो जन्मकालीन समय में पूर्व क्षितिज पर उदित होती है।
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==खगोलीय परिभाषा॥ Astronomical Definition==
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खगोलशास्त्र में, लग्न वह बिंदु है जहाँ क्रान्तिवृत्त (Ecliptic) और क्षितिज वृत्त (Horizon) का मिलन होता है। यह प्रत्येक स्थान और समय पर भिन्न होता है और पृथ्वी के घूर्णन के कारण निरंतर परिवर्तित होता रहता है। लग्न संस्कृत धातु "लग्" से बना है, जिसका अर्थ संलग्न होना या <nowiki>''</nowiki>जुड़ना<nowiki>''</nowiki> होता है -<blockquote>राशीनामुदयो लग्नं ते तु मेषवृषादयः॥ (१.३.२९)</blockquote>खगोलीय दृष्टि से, यह वह राशि होती है, जो जन्मकालीन समय में पूर्व क्षितिज पर उदित होती है।
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==लग्न की गणना॥ Calculation of Lagna==
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पृथ्वी 24 घंटे में 360° घूमती है, जिससे प्रत्येक 2 घंटे में एक नई राशि पूर्वी क्षितिज पर उदित होती है। इस आधार पर, 12 राशियाँ क्रमशः 24 घंटे में पूर्व क्षितिज पर प्रकट होती हैं। किसी स्थान विशेष के लिए किसी विशेष समय पर लग्न की गणना करने के लिए निम्नलिखित सूत्र प्रयुक्त किया जाता है -
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'''लग्न = (GMT समय + स्थानीय समयांतर)× 360/24 = 15°'''
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जैसे -
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*GMT समय = ग्रीनविच मीन टाइम
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*स्थानीय समयांतर = स्थानीय देशांतर के अनुसार समय का अंतर
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*360/24 = 15° प्रति घंटे की दर से पृथ्वी की गति
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'''उदाहरण -''' यदि कोई व्यक्ति वाराणसी (देशांतर: 83.0°E) में प्रातः 6:00 बजे जन्म लेता है, तो उसका लग्न समय स्थानीय समय और सूर्य स्थिति के आधार पर मेष या वृषभ में हो सकता है।
  
==लग्न साधन॥ lagna Sadhana==
 
 
पृथ्वी की परिक्रमा राशिचक्र के सापेक्ष वामावर्त दिशा में होती है, इसलिए यह एक दिन में सभी 12 राशियों को पार करती है। जब कोई बच्चा किसी विशेष समय पर किसी विशेष स्थान पर जन्म लेता है, तो उस समय पूर्व दिशा में जो राशि उदय होती है, उसे उदित राशि कहते हैं, जिसे लग्न भी कहते हैं। इसे जन्म लग्न भी कहते हैं। उस राशि के उदय होने के सटीक देशांतर को लग्न बिंदु कहते हैं। यह जन्म के समय सूर्य के देशांतर को ध्यान में रखकर निकाला जाता है। यह लग्न व्यक्ति के लिए हृदय की तरह ही महत्वपूर्ण जीवन शक्ति है। इस लग्न के आधार पर ही भावों, ग्रहों के स्वामित्व का निर्धारण होता है। यदि इस लग्न की गणना सही तरीके से नहीं की गई है, तो ग्रहों की स्थिति, उनका स्वामित्व और उनकी शक्तियाँ बदल जाएँगी और इसलिए परिणाम भी भिन्न होंगे। इसलिए लग्न की गणना अत्यंत शुद्धता से की जानी चाहिए।<ref>नक्कीरर नटराजन, [https://www.scribd.com/document/293827031/Importance-of-Lagna-in-Jyotish-PDF इम्पोर्टैन्स ऑफ लग्न इन ज्योतिष]।</ref>
 
पृथ्वी की परिक्रमा राशिचक्र के सापेक्ष वामावर्त दिशा में होती है, इसलिए यह एक दिन में सभी 12 राशियों को पार करती है। जब कोई बच्चा किसी विशेष समय पर किसी विशेष स्थान पर जन्म लेता है, तो उस समय पूर्व दिशा में जो राशि उदय होती है, उसे उदित राशि कहते हैं, जिसे लग्न भी कहते हैं। इसे जन्म लग्न भी कहते हैं। उस राशि के उदय होने के सटीक देशांतर को लग्न बिंदु कहते हैं। यह जन्म के समय सूर्य के देशांतर को ध्यान में रखकर निकाला जाता है। यह लग्न व्यक्ति के लिए हृदय की तरह ही महत्वपूर्ण जीवन शक्ति है। इस लग्न के आधार पर ही भावों, ग्रहों के स्वामित्व का निर्धारण होता है। यदि इस लग्न की गणना सही तरीके से नहीं की गई है, तो ग्रहों की स्थिति, उनका स्वामित्व और उनकी शक्तियाँ बदल जाएँगी और इसलिए परिणाम भी भिन्न होंगे। इसलिए लग्न की गणना अत्यंत शुद्धता से की जानी चाहिए।<ref>नक्कीरर नटराजन, [https://www.scribd.com/document/293827031/Importance-of-Lagna-in-Jyotish-PDF इम्पोर्टैन्स ऑफ लग्न इन ज्योतिष]।</ref>
  
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==ज्योतिषीय महत्व॥ Astrological Significance==
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लग्न उस क्षण को कहते हैं जब पूर्वी क्षितिज पर जो राशि उदित हो रही होती, उसके कोण को लग्न कहते हैं। जन्म कुण्डली में बारह भाव होते प्रथम भाव को लग्न कहा जाता है। पंचांग के पाँच अंगों में भी लग्न को समाहित किया गया है -<ref>मीठालाल हिंमतराम ओझा, [https://archive.org/details/cmuJ_bharatiya-kundali-vigyan-mithalal-himmar-ram-ojha/page/n42/mode/1up भारतीय कुण्डली विज्ञान], सन् १९७२, वाराणसेय संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी (पृ० ३०)।</ref>  <blockquote>वर्ष मासो दिनं लग्नं मुहूर्तश्चेति पंचकम्। कालस्यांगानि मुख्यानि प्रबलान्युत्तरोत्तरम्॥ (बृहदवकहडाचक्रम् )<ref>शोधप्रज्ञा-पत्रिका, डॉ० रतन लाल, [https://www.slbsrsv.ac.in/sites/default/files/Articles/Dr_Rattanlal.pdf मानव जीवन में मुहूर्त की उपयोगिता], सन २०२१, उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय हरिद्वार, उत्तराखण्ड (पृ० ९९)।</ref> </blockquote>'''भाषार्थ -'''  वर्ष, मास, दिन, लग्न एवं मुहूर्त ये पंचाग के पाँच अंग हैं एवं क्रम से उत्तरोत्तर प्रबल होते हैं। अपने उदय क्षितिज में क्रान्तिवृत्त का जो प्रदेश जब भी स्पर्श करता है उसे लग्न कहते है। प्राचीन ग्रंथों में लग्न का महत्व इस प्रकार वर्णित है - 
  
लग्न उस क्षण को कहते हैं जब पूर्वी क्षितिज पर जो राशि उदित हो रही होती, उसके कोण को लग्न कहते हैं। जन्म कुण्डली में बारह भाव होते प्रथम भाव को लग्न कहा जाता है। पंचांग के पाँच अंगों में भी लग्न को समाहित किया गया है -<ref>मीठालाल हिंमतराम ओझा, [https://archive.org/details/cmuJ_bharatiya-kundali-vigyan-mithalal-himmar-ram-ojha/page/n42/mode/1up भारतीय कुण्डली विज्ञान], सन् १९७२, वाराणसेय संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी (पृ० ३०)।</ref>  <blockquote>वर्ष मासो दिनं लग्नं मुहूर्तश्चेति पंचकम्। कालस्यांगानि मुख्यानि प्रबलान्युत्तरोत्तरम्॥ (बृहदवकहडाचक्रम् )<ref>शोधप्रज्ञा-पत्रिका, डॉ० रतन लाल, [https://www.slbsrsv.ac.in/sites/default/files/Articles/Dr_Rattanlal.pdf मानव जीवन में मुहूर्त की उपयोगिता], सन २०२१, उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय हरिद्वार, उत्तराखण्ड (पृ० ९९)।</ref> </blockquote>'''भाषार्थ -''' वर्ष, मास, दिन, लग्न एवं मुहूर्त ये पंचाग के पाँच अंग हैं एवं क्रम से उत्तरोत्तर प्रबल होते हैं। अपने उदय क्षितिज में क्रान्तिवृत्त का जो प्रदेश जब भी स्पर्श करता है उसे लग्न कहते है। प्राचीन ग्रंथों में लग्न का महत्व इस प्रकार वर्णित है - 
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*'''बृहत्पाराशरहोराशास्त्र -''' लग्ने स्थितो ग्रहः सर्वस्य फलदाता भवेत् अर्थात लग्न में स्थित ग्रह समस्त जीवन पर प्रभाव डालते हैं।
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*'''जातकपरिजात -''' "लग्नमेव शरीरस्य कारणं" यानी लग्न शरीर का मूल आधार है।
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*'''फलदीपिका -''' लग्नान्नवांशांशमवेक्ष्य नित्यं, कर्मादयो दृश्यफलानि चान्ये – लग्न एवं नवांश की स्थिति से कर्मफल ज्ञात किया जा सकता है।
  
* '''बृहत्पाराशरहोराशास्त्र''': "लग्ने स्थितो ग्रहः सर्वस्य फलदाता भवेत्" अर्थात लग्न में स्थित ग्रह समस्त जीवन पर प्रभाव डालते हैं।
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शुभे लग्न सुमुहूर्ते समागच्छतु सोंतिकम्। तदा दास्यामि तनयां भिक्षार्थं शंभवे विधे॥ (शिव पुराण)<ref>[https://sa.wikisource.org/wiki/%E0%A4%B6%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A3%E0%A4%AE%E0%A5%8D/%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A4%BE_%E0%A5%A8_(%E0%A4%B0%E0%A5%81%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A4%BE)/%E0%A4%96%E0%A4%A3%E0%A5%8D%E0%A4%A1%E0%A4%83_%E0%A5%A8_(%E0%A4%B8%E0%A4%A4%E0%A5%80%E0%A4%96%E0%A4%A3%E0%A5%8D%E0%A4%A1%E0%A4%83)/%E0%A4%85%E0%A4%A7%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%83_%E0%A5%A7%E0%A5%AE शिवपुराण], रुद्र संहिता, सती खण्ड, अध्याय-18, श्लोक-12।</ref>
* '''जातकपरिजात''': "लग्नमेव शरीरस्य कारणं" यानी लग्न शरीर का मूल आधार है।
 
* '''फलदीपिका''': "लग्नान्नवांशांशमवेक्ष्य नित्यं, कर्मादयो दृश्यफलानि चान्ये" – लग्न एवं नवांश की स्थिति से कर्मफल ज्ञात किया जा सकता है।
 
  
 
प्राचीन ज्योतिष ग्रंथों में लग्न को अत्यंत महत्वपूर्ण बताया गया है।
 
प्राचीन ज्योतिष ग्रंथों में लग्न को अत्यंत महत्वपूर्ण बताया गया है।
  
 
==द्रष्ट लग्न एवं भाव लग्न॥ Drashta Lagna and Bhava Lagna==
 
==द्रष्ट लग्न एवं भाव लग्न॥ Drashta Lagna and Bhava Lagna==
कोशकारों ने राशियोंके उदयको लग्न नाम कहा है, वे क्षितिजमें लगनेके कारण अन्वर्थसंज्ञक हैं। राशियोंके दो भेद होनेके कारण लग्न भी दो प्रकारके होते हैं - एक भबिम्बीय ( नक्षत्रबिम्बोदयवश), द्वितीय भवृत्तीय (क्रान्तिवृत्तीय स्थानोदयवश)। उन दोनों प्रकारके लग्नों में - जन्म-यात्रा-विवाह, यज्ञादि सत्कर्मों में भबिम्बीय लग्न फलप्रद होते हैं तथा ग्रहण आदि (ग्रह-नक्षत्र बिम्बोदयास्त) प्रत्यक्ष विषयके कालादि ज्ञानके लिए भवृत्तीय लग्नके प्रयोजन होते हैं। अतएव 'अदृष्टफल सिद्ध्यर्थ' विवाह-यात्रादि कार्यमें बिम्बीय लग्न और ग्रहणादि कालज्ञानार्थ स्थानीय लग्नको ग्रहण करना चाहिये।<ref>कल्याण पत्रिका, श्री वासुदेव, [https://archive.org/details/eJMM_kalyan-jyotish-tattva-ank-vol.-88-issue-no.-1-jan-2014-gita-press/page/n265/mode/1up प्रायौगिक विज्ञानसिद्ध-द्रष्टलग्न या भावलग्न], सन २०१२, गीताप्रेस गोरखपुर (पृ० २६५)।</ref>
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कोशकारों ने राशियोंके उदयको लग्न नाम कहा है, वे क्षितिजमें लगनेके कारण अन्वर्थसंज्ञक हैं। राशियोंके दो भेद होनेके कारण लग्न भी दो प्रकारके होते हैं - एक भबिम्बीय (नक्षत्रबिम्बोदयवश), द्वितीय भवृत्तीय (क्रान्तिवृत्तीय स्थानोदयवश)।
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#'''द्रष्ट लग्न''' - यह वह बिंदु है जहाँ किसी विशेष क्षण में क्रान्तिवृत्त क्षितिज से मिलता है।
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#'''भाव लग्न''' - यह किसी ग्रह या भाव विशेष के केंद्र को दर्शाने वाला बिंदु होता है।
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उन दोनों प्रकारके लग्नों में - जन्म-यात्रा-विवाह, यज्ञादि सत्कर्मों में भबिम्बीय लग्न फलप्रद होते हैं तथा ग्रहण आदि (ग्रह-नक्षत्र बिम्बोदयास्त) प्रत्यक्ष विषयके कालादि ज्ञानके लिए भवृत्तीय लग्नके प्रयोजन होते हैं। अतएव 'अदृष्टफल सिद्ध्यर्थ' विवाह-यात्रादि कार्यमें बिम्बीय लग्न और ग्रहणादि कालज्ञानार्थ स्थानीय लग्नको ग्रहण करना चाहिये।<ref>कल्याण पत्रिका, श्री वासुदेव, [https://archive.org/details/eJMM_kalyan-jyotish-tattva-ank-vol.-88-issue-no.-1-jan-2014-gita-press/page/n265/mode/1up प्रायौगिक विज्ञानसिद्ध-द्रष्टलग्न या भावलग्न], सन २०१२, गीताप्रेस गोरखपुर (पृ० २६५)।</ref>
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== लग्न की वैज्ञानिकता॥ Scientific Basis of Lagna==
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लग्न का खगोलीय आधार ज्योतिष को एक गणितीय और वैज्ञानिक दृष्टिकोण प्रदान करता है। यह निम्नलिखित सिद्धांतों पर आधारित है -
  
'''लग्न का खगोलीय आधार'''
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#'''पृथ्वी का अक्षीय घूर्णन॥ Axial Rotation of Earth'''
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#*पृथ्वी अपनी धुरी पर लगभग 23.4° झुकी हुई है, जिससे अलग-अलग स्थानों पर लग्न परिवर्तन की गति अलग होती है।
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#*विषुवत् रेखा के समीप, लग्न परिवर्तन तेज गति से होता है, जबकि ध्रुवीय क्षेत्रों में यह गति अपेक्षाकृत धीमी होती है।
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#'''खगोलीय समन्वय॥ Celestial Coordinates'''
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#*लग्न की गणना के लिए भूमध्य रेखांशीय (Equatorial) एवं क्रान्तिवृत्तीय (Ecliptic) निर्देशांकों का उपयोग किया जाता है।
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#*जन्म समय में सूर्य की स्थिति और स्थानीय क्षितिज के बीच संबंध महत्वपूर्ण होता है।
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#'''ग्रहों का प्रभाव॥ Planetary Influence'''
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#*ग्रहों की स्थिति और उनकी गति लग्न के माध्यम से जातक के व्यक्तित्व और जीवन की घटनाओं को प्रभावित करती है।
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#*विशेषकर चंद्रमा और सूर्य की स्थिति का विशेष प्रभाव होता है।
  
खगोलशास्त्र के अनुसार, पृथ्वी अपनी धुरी पर 24 घंटे में 360° घूमती है, जिससे प्रत्येक 2 घंटे में एक नई राशि पूर्व क्षितिज पर उदित होती है। इस प्रकार, 12 राशियाँ 24 घंटे में एक बार चक्र पूरा करती हैं। जिस राशि का उदय जन्म के समय होता है, वही जातक का जन्म लग्न होता है -  
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==लग्न शुद्धि विचार॥ Lagna Accuracy and Precision==
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कुंडली की समस्त गणनाएँ लग्न पर आधारित होती हैं, इसलिए लग्न की गणना में त्रुटि नहीं होनी चाहिए। इसके लिए प्राचीन आचार्यों ने निम्नलिखित सिद्धांत दिए हैं -<ref>सुनयना भारती, [https://shodhganga.inflibnet.ac.in/handle/10603/31942 वेदाङ्गज्योतिष का समीक्षात्मक अध्ययन],सन् २०१२, दिल्ली विश्वविद्यालय, अध्याय ०३, (पृ०१००-१०५)।</ref>
  
*पृथ्वी 23.4° झुकी हुई है, जिससे विभिन्न स्थानों पर लग्न उदय की गति भिन्न होती है।
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#'''शुद्ध पंचांग का उपयोग करें।'''
*विषुवत् रेखा (Equator) के पास लग्न परिवर्तन तेज होता है, जबकि ध्रुवीय क्षेत्रों में इसकी गति धीमी होती है।
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#'''सटीक जन्म समय की गणना करें।'''
*ग्रहों की गति और सूर्य के उदय-अस्त की स्थिति भी लग्न पर प्रभाव डालती है।
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#'''स्थान विशेष के अक्षांश और देशांतर के आधार पर लग्न गणना करें।'''
  
==लग्न शुद्धि विचार॥ Lagna Shuddhi Vichara ==
 
 
जन्म कुण्डली के समस्त फल लग्न के ऊपर आश्रित है। यदि लग्न ठीक न बना हो तो उस कुण्डली का फल सत्य नहीं हो सकता यद्यपि शहरों में घडियां रहती हैं। परन्तु उन घड़ियां के समय का कुछ ठीक नहीं, कोई घड़ी तेज रहती है तो कोई सुस्त इसके अतिरिक्त जब लग्न एक राशि के अन्त और दूसरी के आदि में आता है उस समय उसमें सन्देह हो जाता है। प्राचीन आचार्यों ने लग्न के शुद्धाशुद्ध विचार के लिए निम्नलिखित नियम बताये हैं।
 
जन्म कुण्डली के समस्त फल लग्न के ऊपर आश्रित है। यदि लग्न ठीक न बना हो तो उस कुण्डली का फल सत्य नहीं हो सकता यद्यपि शहरों में घडियां रहती हैं। परन्तु उन घड़ियां के समय का कुछ ठीक नहीं, कोई घड़ी तेज रहती है तो कोई सुस्त इसके अतिरिक्त जब लग्न एक राशि के अन्त और दूसरी के आदि में आता है उस समय उसमें सन्देह हो जाता है। प्राचीन आचार्यों ने लग्न के शुद्धाशुद्ध विचार के लिए निम्नलिखित नियम बताये हैं।
  

Latest revision as of 14:48, 7 March 2025

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लग्न (संस्कृतः लग्नम्) समय में क्रान्तिवृत्त (Ecliptic) का जो प्रदेश-स्थान क्षितिजवृत्त (Horizon) में लगता है, वही लग्न कहलाता है अथवा दिन का उतना अंश जितने में किसी एक राशि का उदय होता है वह लग्न कहलाता है। अहोरात्र में १२ राशियों का उदय होता है। इसलिये एक दिन-रात में बारह लग्नों की कल्पना की गई है। एक राशि का जो उदय काल है उसे लग्न कहा गया। ज्योतिषशास्त्र में जिस प्रकार सिद्धान्त ज्योतिष का मूल - ग्रह गणित है उसी प्रकार फलित, जातक अथवा होरा ज्योतिष का मूलाधार लग्न है।

परिचय॥ Introduction

 
लग्न - उदयास्त

सूर्योदय के समय सूर्य जिस राशि में हो वही राशि लग्न होती है। लग्न शब्द से ही प्रतीत होता है कि एक वस्तु का दूसरे वस्तु में लगना। इसीलिए कहा गया है कि - लगतीति लग्नम्। वस्तुतः लग्न में भी यही होता है क्योंकि इष्टकाल में क्रान्तिवृत्त का जो स्थान उदयक्षितिज में जहाँ लगता है, वही राश्यादि (राशि, अंश, कला, विकला) लग्न होता है।[1] जिस समय लग्न जानना हो उस समय जिस राशि के सूर्य होंगे ठीक सूर्योदय के समय उसी राशि से लग्न आरम्भ होता है -[2]

  • अस्तक्षितिज और क्रान्तिवृत्त का योग प्रदेश सप्तमलग्न कहलाता है।
  • याम्योत्तरवृत्त का ऊर्ध्वभाग का क्रान्तिवृत्त से जहां स्पर्श करता है, उसे दशम या मध्य लग्न कहते है।
  • अधः याम्योत्तर और क्रान्तिवृत्त का स्पर्श प्रदेश चतुर्थ लग्न कहलाता है।

परंपरागत रूप से, लग्न की गणना निम्नलिखित खगोलीय कारकों के आधार पर की जाती है -

  1. स्थान विशेष का देशांतर (Longitude) एवं अक्षांश (Latitude)
  2. सूर्य एवं अन्य ग्रहों की स्थिति
  3. ग्रहों की गतियाँ एवं उदयास्त समय
  4. समय की शुद्धता (Precise Time Calculation)

जैसा कि गोलपरिभाषा में कहा गया है -

भवृत्तं प्राक्कुजे यत्र लग्नं लग्नं तदुच्यते। पश्चात् कुजेऽस्त लग्नं स्यात् तुर्यं याम्योत्तरे त्वधः॥ उर्ध्वं याम्योत्तरे यत्र लग्नं तद्दशमाभिधम्। राश्याद्य जातकादौ तद् गृह्यते व्ययनांशकम्॥ (गोलपरिभाषा)

भाषार्थ - अर्थात क्रान्तिवृत्त उदयक्षितिज वृत्त में पूर्व दिशा में जहाँ स्पर्श करता है, उसे लग्न कहते है। पश्चिम दिशा में जहाँ स्पर्श करता है, उसे सप्तम लग्न तथा अधः दिशा में चतुर्थ लग्न और उर्ध्व दिशा में दशम लग्न होता है। लग्न की यह परिभाषा सैद्धान्तिक गोलीय रीति से कहा गया है। पंचांग में भी दैनिक लग्न सारिणी दिया होता है। उसमें एक लग्न 2 घण्टे का होता है। इस प्रकार से 24 घण्टे में कुल 12 लग्न होता है। यह लग्न पंचांग में मुहूर्तों के लिये दिया गया होता है। किस लग्न में कौन सा कार्य शुभ होता है तथा कौन अशुभ, इसका विवेचन पंचागोक्त लग्न के अनुसार ही किया जाता है।[3]

खगोलीय परिभाषा॥ Astronomical Definition

खगोलशास्त्र में, लग्न वह बिंदु है जहाँ क्रान्तिवृत्त (Ecliptic) और क्षितिज वृत्त (Horizon) का मिलन होता है। यह प्रत्येक स्थान और समय पर भिन्न होता है और पृथ्वी के घूर्णन के कारण निरंतर परिवर्तित होता रहता है। लग्न संस्कृत धातु "लग्" से बना है, जिसका अर्थ संलग्न होना या ''जुड़ना'' होता है -

राशीनामुदयो लग्नं ते तु मेषवृषादयः॥ (१.३.२९)

खगोलीय दृष्टि से, यह वह राशि होती है, जो जन्मकालीन समय में पूर्व क्षितिज पर उदित होती है।

लग्न की गणना॥ Calculation of Lagna

पृथ्वी 24 घंटे में 360° घूमती है, जिससे प्रत्येक 2 घंटे में एक नई राशि पूर्वी क्षितिज पर उदित होती है। इस आधार पर, 12 राशियाँ क्रमशः 24 घंटे में पूर्व क्षितिज पर प्रकट होती हैं। किसी स्थान विशेष के लिए किसी विशेष समय पर लग्न की गणना करने के लिए निम्नलिखित सूत्र प्रयुक्त किया जाता है -

लग्न = (GMT समय + स्थानीय समयांतर)× 360/24 = 15°

जैसे -

  • GMT समय = ग्रीनविच मीन टाइम
  • स्थानीय समयांतर = स्थानीय देशांतर के अनुसार समय का अंतर
  • 360/24 = 15° प्रति घंटे की दर से पृथ्वी की गति

उदाहरण - यदि कोई व्यक्ति वाराणसी (देशांतर: 83.0°E) में प्रातः 6:00 बजे जन्म लेता है, तो उसका लग्न समय स्थानीय समय और सूर्य स्थिति के आधार पर मेष या वृषभ में हो सकता है।

पृथ्वी की परिक्रमा राशिचक्र के सापेक्ष वामावर्त दिशा में होती है, इसलिए यह एक दिन में सभी 12 राशियों को पार करती है। जब कोई बच्चा किसी विशेष समय पर किसी विशेष स्थान पर जन्म लेता है, तो उस समय पूर्व दिशा में जो राशि उदय होती है, उसे उदित राशि कहते हैं, जिसे लग्न भी कहते हैं। इसे जन्म लग्न भी कहते हैं। उस राशि के उदय होने के सटीक देशांतर को लग्न बिंदु कहते हैं। यह जन्म के समय सूर्य के देशांतर को ध्यान में रखकर निकाला जाता है। यह लग्न व्यक्ति के लिए हृदय की तरह ही महत्वपूर्ण जीवन शक्ति है। इस लग्न के आधार पर ही भावों, ग्रहों के स्वामित्व का निर्धारण होता है। यदि इस लग्न की गणना सही तरीके से नहीं की गई है, तो ग्रहों की स्थिति, उनका स्वामित्व और उनकी शक्तियाँ बदल जाएँगी और इसलिए परिणाम भी भिन्न होंगे। इसलिए लग्न की गणना अत्यंत शुद्धता से की जानी चाहिए।[4]

ज्योतिषीय महत्व॥ Astrological Significance

लग्न उस क्षण को कहते हैं जब पूर्वी क्षितिज पर जो राशि उदित हो रही होती, उसके कोण को लग्न कहते हैं। जन्म कुण्डली में बारह भाव होते प्रथम भाव को लग्न कहा जाता है। पंचांग के पाँच अंगों में भी लग्न को समाहित किया गया है -[5]

वर्ष मासो दिनं लग्नं मुहूर्तश्चेति पंचकम्। कालस्यांगानि मुख्यानि प्रबलान्युत्तरोत्तरम्॥ (बृहदवकहडाचक्रम् )[6]

भाषार्थ - वर्ष, मास, दिन, लग्न एवं मुहूर्त ये पंचाग के पाँच अंग हैं एवं क्रम से उत्तरोत्तर प्रबल होते हैं। अपने उदय क्षितिज में क्रान्तिवृत्त का जो प्रदेश जब भी स्पर्श करता है उसे लग्न कहते है। प्राचीन ग्रंथों में लग्न का महत्व इस प्रकार वर्णित है -

  • बृहत्पाराशरहोराशास्त्र - लग्ने स्थितो ग्रहः सर्वस्य फलदाता भवेत् अर्थात लग्न में स्थित ग्रह समस्त जीवन पर प्रभाव डालते हैं।
  • जातकपरिजात - "लग्नमेव शरीरस्य कारणं" यानी लग्न शरीर का मूल आधार है।
  • फलदीपिका - लग्नान्नवांशांशमवेक्ष्य नित्यं, कर्मादयो दृश्यफलानि चान्ये – लग्न एवं नवांश की स्थिति से कर्मफल ज्ञात किया जा सकता है।

शुभे लग्न सुमुहूर्ते समागच्छतु सोंतिकम्। तदा दास्यामि तनयां भिक्षार्थं शंभवे विधे॥ (शिव पुराण)[7]

प्राचीन ज्योतिष ग्रंथों में लग्न को अत्यंत महत्वपूर्ण बताया गया है।

द्रष्ट लग्न एवं भाव लग्न॥ Drashta Lagna and Bhava Lagna

कोशकारों ने राशियोंके उदयको लग्न नाम कहा है, वे क्षितिजमें लगनेके कारण अन्वर्थसंज्ञक हैं। राशियोंके दो भेद होनेके कारण लग्न भी दो प्रकारके होते हैं - एक भबिम्बीय (नक्षत्रबिम्बोदयवश), द्वितीय भवृत्तीय (क्रान्तिवृत्तीय स्थानोदयवश)।

  1. द्रष्ट लग्न - यह वह बिंदु है जहाँ किसी विशेष क्षण में क्रान्तिवृत्त क्षितिज से मिलता है।
  2. भाव लग्न - यह किसी ग्रह या भाव विशेष के केंद्र को दर्शाने वाला बिंदु होता है।

उन दोनों प्रकारके लग्नों में - जन्म-यात्रा-विवाह, यज्ञादि सत्कर्मों में भबिम्बीय लग्न फलप्रद होते हैं तथा ग्रहण आदि (ग्रह-नक्षत्र बिम्बोदयास्त) प्रत्यक्ष विषयके कालादि ज्ञानके लिए भवृत्तीय लग्नके प्रयोजन होते हैं। अतएव 'अदृष्टफल सिद्ध्यर्थ' विवाह-यात्रादि कार्यमें बिम्बीय लग्न और ग्रहणादि कालज्ञानार्थ स्थानीय लग्नको ग्रहण करना चाहिये।[8]

लग्न की वैज्ञानिकता॥ Scientific Basis of Lagna

लग्न का खगोलीय आधार ज्योतिष को एक गणितीय और वैज्ञानिक दृष्टिकोण प्रदान करता है। यह निम्नलिखित सिद्धांतों पर आधारित है -

  1. पृथ्वी का अक्षीय घूर्णन॥ Axial Rotation of Earth
    • पृथ्वी अपनी धुरी पर लगभग 23.4° झुकी हुई है, जिससे अलग-अलग स्थानों पर लग्न परिवर्तन की गति अलग होती है।
    • विषुवत् रेखा के समीप, लग्न परिवर्तन तेज गति से होता है, जबकि ध्रुवीय क्षेत्रों में यह गति अपेक्षाकृत धीमी होती है।
  2. खगोलीय समन्वय॥ Celestial Coordinates
    • लग्न की गणना के लिए भूमध्य रेखांशीय (Equatorial) एवं क्रान्तिवृत्तीय (Ecliptic) निर्देशांकों का उपयोग किया जाता है।
    • जन्म समय में सूर्य की स्थिति और स्थानीय क्षितिज के बीच संबंध महत्वपूर्ण होता है।
  3. ग्रहों का प्रभाव॥ Planetary Influence
    • ग्रहों की स्थिति और उनकी गति लग्न के माध्यम से जातक के व्यक्तित्व और जीवन की घटनाओं को प्रभावित करती है।
    • विशेषकर चंद्रमा और सूर्य की स्थिति का विशेष प्रभाव होता है।

लग्न शुद्धि विचार॥ Lagna Accuracy and Precision

कुंडली की समस्त गणनाएँ लग्न पर आधारित होती हैं, इसलिए लग्न की गणना में त्रुटि नहीं होनी चाहिए। इसके लिए प्राचीन आचार्यों ने निम्नलिखित सिद्धांत दिए हैं -[9]

  1. शुद्ध पंचांग का उपयोग करें।
  2. सटीक जन्म समय की गणना करें।
  3. स्थान विशेष के अक्षांश और देशांतर के आधार पर लग्न गणना करें।

जन्म कुण्डली के समस्त फल लग्न के ऊपर आश्रित है। यदि लग्न ठीक न बना हो तो उस कुण्डली का फल सत्य नहीं हो सकता यद्यपि शहरों में घडियां रहती हैं। परन्तु उन घड़ियां के समय का कुछ ठीक नहीं, कोई घड़ी तेज रहती है तो कोई सुस्त इसके अतिरिक्त जब लग्न एक राशि के अन्त और दूसरी के आदि में आता है उस समय उसमें सन्देह हो जाता है। प्राचीन आचार्यों ने लग्न के शुद्धाशुद्ध विचार के लिए निम्नलिखित नियम बताये हैं।

सारांश॥ Summary

लग्न न केवल किसी जातक की जन्मकुंडली का आधार होता है, बल्कि यह उसके संपूर्ण जीवन पर व्यापक प्रभाव डालता है। इसका सही आकलन एवं विश्लेषण ज्योतिषीय अध्ययन में अत्यंत महत्वपूर्ण है। किसी व्यक्ति के संबंध में ज्योतिषीय अध्ययन के लिए जन्म कुंडली के अतिरिक्त चंद्र कुंडली भी बनाई जाती है। उत्तर भारत में बहुधा जन्म के समय पृथ्वी जिस राशि में होती है उस राशि को उस व्यक्ति की 'लग्न राशि' या सक्षेप मे केवल 'लग्न' कहते हैं तथा जन्म के समय चद्रमा जिस राशि में हो उसे 'चद्र राशि' या सक्षेप में केवल 'राशि कहते हैं। किसी व्यक्ति की चंद्र कुंडली बनाने के लिए उसकी लग्न कुंडली में चंद्रमा जिस राशि में हो उस राशि को हम प्रथम भाव में लिख देते हैं तथा उसके आगे की राशियों द्वितीय आदि भाव में पूर्व में दी गई विधि से ही लिखते है।[10]

उद्धरण॥ References

  1. जितेंद्र कुमार दुबे, लग्न साधन, सन् २०२१, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, नई दिल्ली (पृ० ९३)।
  2. नेमिचन्द्र शास्त्री, भारतीय ज्योतिष, सन १९६६, भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन, वाराणसी (पृ० ३५१)।
  3. डॉ० नन्दन कुमार तिवारी, ज्योतिष प्रबोध-०१, सन २०२१, उत्तराखण्ड मुक्त विश्वविद्यालय (पृ० ५०)।
  4. नक्कीरर नटराजन, इम्पोर्टैन्स ऑफ लग्न इन ज्योतिष
  5. मीठालाल हिंमतराम ओझा, भारतीय कुण्डली विज्ञान, सन् १९७२, वाराणसेय संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी (पृ० ३०)।
  6. शोधप्रज्ञा-पत्रिका, डॉ० रतन लाल, मानव जीवन में मुहूर्त की उपयोगिता, सन २०२१, उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय हरिद्वार, उत्तराखण्ड (पृ० ९९)।
  7. शिवपुराण, रुद्र संहिता, सती खण्ड, अध्याय-18, श्लोक-12।
  8. कल्याण पत्रिका, श्री वासुदेव, प्रायौगिक विज्ञानसिद्ध-द्रष्टलग्न या भावलग्न, सन २०१२, गीताप्रेस गोरखपुर (पृ० २६५)।
  9. सुनयना भारती, वेदाङ्गज्योतिष का समीक्षात्मक अध्ययन,सन् २०१२, दिल्ली विश्वविद्यालय, अध्याय ०३, (पृ०१००-१०५)।
  10. रवींद्र कुमार दुबे, भारतीय ज्योतिष विज्ञान, सन २००२, प्रतिभा प्रतिष्ठान, दिल्ली (पृ० १७)।