Difference between revisions of "Tatpurusha Samasa (तत्पुरुषसमासः)"
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Eg: मुहूर्तं सुखं => मुहूर्तसुखम् | Eg: मुहूर्तं सुखं => मुहूर्तसुखम् | ||
− | सर्वरात्रं कल्याणी, सर्वरात्रं शोभना | + | सर्वरात्रं कल्याणी, सर्वरात्रं शोभना<ref name=":0">Sridhar Subbanna, Samasa, Samskritadhyayana Karyashala, Vidyasvam.</ref> |
== तृतीया-तत्पुरुषः == | == तृतीया-तत्पुरुषः == | ||
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The तृतीया-विभक्ति-सुबन्त in the meaning of कर्तृ and करण can have समास with any समर्थ-सुबन्त which is a कृदन्त. | The तृतीया-विभक्ति-सुबन्त in the meaning of कर्तृ and करण can have समास with any समर्थ-सुबन्त which is a कृदन्त. | ||
− | Eg: अहिना हतः => अहिहतः | + | Eg: अहिना हतः => अहिहतः<ref name=":0" /> |
=== अभ्यास I === | === अभ्यास I === | ||
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Eg: कुण्डलाय हिरण्यम् => कुण्डलहिरण्यम् | Eg: कुण्डलाय हिरण्यम् => कुण्डलहिरण्यम् | ||
− | बालकाय पयः => बालकार्थं पयः | + | बालकाय पयः => बालकार्थं पयः<ref name=":0" /> |
=== अभ्यास I === | === अभ्यास I === | ||
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Eg: चोरात् भयम् => चोरभयम् | Eg: चोरात् भयम् => चोरभयम् | ||
− | सुखात् अपेतः => सुखापेतः | + | सुखात् अपेतः => सुखापेतः<ref name=":0" /> |
=== अभ्यास I === | === अभ्यास I === | ||
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Eg: राज्ञः पुरुषः => राजपुरुषः | Eg: राज्ञः पुरुषः => राजपुरुषः | ||
− | छात्रस्य पुस्तकम् => छात्रपुस्तकम् | + | छात्रस्य पुस्तकम् => छात्रपुस्तकम्<ref name=":0" /> |
=== अभ्यास I === | === अभ्यास I === | ||
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मम अध्यापकः - ? | मम अध्यापकः - ? | ||
− | ( अन्येन निवर्तितस्य पुनः प्रवृत्त्यभ्यनुज्ञानम् = प्रतिप्रसवः) | + | ( अन्येन निवर्तितस्य पुनः प्रवृत्त्यभ्यनुज्ञानम् = प्रतिप्रसवः)<ref name=":0" /> |
=== षष्ठी-समास-निषेधः === | === षष्ठी-समास-निषेधः === | ||
Line 360: | Line 360: | ||
Or any षष्ठी-विभक्ति-सुबन्त cannot get into समास, with the तृच/अक which is in the meaning of कर्तृकारक. | Or any षष्ठी-विभक्ति-सुबन्त cannot get into समास, with the तृच/अक which is in the meaning of कर्तृकारक. | ||
− | Eg: ओदनस्य पाचकः, पुरां भेत्ता, वज्रस्य भर्ता , सक्तूनां पायकः, ओदनस्य | + | Eg: ओदनस्य पाचकः, पुरां भेत्ता, वज्रस्य भर्ता , सक्तूनां पायकः, ओदनस्य<ref name=":0" /> |
== सप्तमी-तत्पुरुषः == | == सप्तमी-तत्पुरुषः == | ||
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अक्षेषु शौण्डः => अक्षशौण्डः | अक्षेषु शौण्डः => अक्षशौण्डः | ||
− | शास्त्रेषु निपुणः => शास्त्रनिपुणः | + | शास्त्रेषु निपुणः => शास्त्रनिपुणः<ref name=":0" /> |
=== अभ्यास I === | === अभ्यास I === | ||
Line 406: | Line 406: | ||
4. चक्रे बन्धः 4. वेदे पण्डितः | 4. चक्रे बन्धः 4. वेदे पण्डितः | ||
+ | |||
+ | == सङ्क्षेपरामायणतः उदाहरणानि ॥ Examples from Sankshepa Ramayana == | ||
+ | |||
+ | === Example 1. === | ||
+ | आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसम्पदाम् । | ||
+ | |||
+ | लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम् ।। | ||
+ | |||
+ | => पदच्छेदः | ||
+ | |||
+ | आपदाम्, अपहर्तारम्, दातारम्, सर्वसम्पदाम्, | ||
+ | |||
+ | लोकाभिरामम् , श्रीरामम्, भूयः भूयः, नमामि, अहम् । | ||
+ | |||
+ | => तत्पुरुषसमासाः | ||
+ | |||
+ | '''लोकाभिरामम्''' | ||
+ | |||
+ | - विग्रहवाक्यम् किम्? प्रकारः कः? (Expansion/type?) | ||
+ | |||
+ | ==== Solution 1. ==== | ||
+ | समस्तपदम् = '''लोकाभिरामं'''(पुं. २,१) [=श्रीरामम्]। | ||
+ | |||
+ | प्रातिपदिके = लोक, अभिराम। | ||
+ | |||
+ | विग्रहवाक्यम् = लोकानाम् अभिरामः लोकाभिरामः ('''षष्ठीतत्पुरुषः''')। | ||
+ | |||
+ | तं '''लोकाभिरामम्'''। | ||
+ | |||
+ | === Example 2. === | ||
+ | तपस्स्वाध्यायनिरतं तपस्वी वाग्विदां वरम्। | ||
+ | |||
+ | नारदं परिपप्रच्छ वाल्मिकिर्मुनिपुङ्गवम् ||१|| | ||
+ | |||
+ | => पदच्छेद: | ||
+ | |||
+ | तपस्स्वाध्यायनिरतम्, तपस्वी, वाग्विदाम्, वरम्, | ||
+ | |||
+ | नारदम्, परिपप्रच्छ, वाल्मिकिः, मुनिपुङ्गवम्। | ||
+ | |||
+ | => तत्पुरुषसमासाः | ||
+ | |||
+ | '''तपस्स्वाध्यायनिरतम''' | ||
+ | |||
+ | – विग्रहवाक्यम् किम्? प्रकार कः? (Expansion/type?) | ||
+ | |||
+ | ==== Solution 2. ==== | ||
+ | समस्तपदम् = '''तपस्स्वाध्यायनिरतं'''(पुं. २, १) [=नारदम्]। | ||
+ | |||
+ | प्रातिपदिके = तपस्स्वाध्याय, निरत। | ||
+ | |||
+ | विग्रहवाक्यम् = तपस्स्वाध्याययोः निरतः तपस्स्वाध्यायनिरतः ('''सप्तमीतत्पुरुषः''')। | ||
+ | |||
+ | तं '''तपस्स्वाध्यायनिरतम्'''। | ||
+ | |||
+ | === Example 3. === | ||
+ | इक्ष्वाकुवंशप्रभवो रामो नाम जनैः श्रुतः | | ||
+ | |||
+ | नियतात्मा महावीर्यो द्युतिमान्धृतिमान्वशी ॥ ८॥ | ||
+ | |||
+ | => पदच्छेदः | ||
+ | |||
+ | इक्ष्वाकुवंशप्रभवः, रामः, नाम, जनैः, श्रुतः, | ||
+ | |||
+ | नियतात्मा, महावीर्यः, द्युतिमान्, धृतिमान्, वशी। | ||
+ | |||
+ | => तत्पुरुषसमासाः | ||
+ | |||
+ | इक्ष्वाकुवंशः – विग्रहवाक्यम् किम्? प्रकारः कः? (Expansion/type?) | ||
+ | |||
+ | ==== Solution 3. ==== | ||
+ | समस्तपदम् = '''इक्ष्वाकुवंशः'''(पुं. १,१) [=प्रभवः]। | ||
+ | |||
+ | प्रातिपदिके = इक्ष्वाकु, वंश। | ||
+ | |||
+ | विग्रहवाक्यम् = इक्ष्वाकोः वंशः '''इक्ष्वाकुवंशः (षष्ठीतत्पुरुषः''')। | ||
+ | |||
+ | === Example 4. === | ||
+ | रक्षिता जीवलोकस्य धर्मस्य परिरक्षिता। | ||
+ | |||
+ | रक्षिता स्वस्य धर्मस्य स्वजनस्य च रक्षिता ।।१३।। | ||
+ | |||
+ | => पदच्छेदः | ||
+ | |||
+ | रक्षिता, जीवलोकस्य, धर्मस्य, परिरक्षिता, | ||
+ | |||
+ | रक्षिता, स्वस्य, धर्मस्य, स्वजनस्य, च, रक्षिता। | ||
+ | |||
+ | => तत्पुरुषसमासाः | ||
+ | |||
+ | '''जीवलोकस्य, स्वजनस्य''' | ||
+ | |||
+ | - विग्रहवाक्यम् किम्? प्रकारः कः? (Expansion/type?) | ||
+ | |||
+ | ==== Solution 4. ==== | ||
+ | समस्तपदम् = '''जीवलोकस्य'''(पुं. ६, १) [रक्षिता]। | ||
+ | |||
+ | प्रातिपदिके = जीव, लोक। | ||
+ | |||
+ | विग्रहवाक्यम् = जीवानां लोकः जीवलोकः ('''षष्ठीतत्पुरुषः''')। | ||
+ | |||
+ | तस्य '''जीवलोकस्य'''। | ||
+ | |||
+ | समस्तपदम् = '''स्वजनस्य''' (पुं. ६, १) [रक्षिता]। | ||
+ | |||
+ | प्रातिपदिके = स्व, जन। | ||
+ | |||
+ | विग्रहवाक्यम् = स्वस्य जनः स्वजनः ('''षष्ठीतत्पुरुषः''')। | ||
+ | |||
+ | तस्य '''स्वजनस्य'''। | ||
+ | |||
+ | === Example 4. === | ||
+ | आर्यः सर्वसमश्चैव सदैकप्रियदर्शनः। | ||
+ | |||
+ | स च सर्वगुणोपेतः कौसल्यानन्दवर्धनः ।।१६।। | ||
+ | |||
+ | => पदच्छेदः | ||
+ | |||
+ | आर्यः, सर्वसमः, च, एव, सदा, एकप्रियदर्शनः, | ||
+ | |||
+ | स, च, सर्वगुणोपेतः, कौसल्यानन्दवर्धनः | | ||
+ | |||
+ | => तत्पुरुषसमासाः | ||
+ | |||
+ | सर्वगुणोपेतः, कौसल्यानन्दवर्धनः | ||
+ | |||
+ | - विग्रहवाक्यम् किम्? प्रकारः कः? (Expansion/type?) | ||
+ | |||
+ | ==== Solution 4. ==== | ||
+ | समस्तपदम् = '''सर्वगुणोपेतः''' (पुं. १, १) [=रामः]। | ||
+ | |||
+ | प्रातिपदिके = सर्वगुण, उपेत। | ||
+ | |||
+ | विग्रहवाक्यम् = सर्वगुणैः उपेतः '''सर्वगुणोपेतः''' ('''तृतीयातत्पुरुषः''')। | ||
+ | |||
+ | समस्तपदम् = '''कौसल्यानन्दवर्धनः ('''पुं. १, १) [=रामः]। | ||
+ | |||
+ | प्रातिपदिकानि = कौसल्या, आनन्द, वर्धन। | ||
+ | |||
+ | विग्रहवाक्यम् = कौसल्यायाः आनन्दः कौसल्यानन्दः ('''षष्ठीतत्पुरुषः''')। | ||
+ | |||
+ | कौसल्यानन्दस्य वर्धनः कौसल्यानन्दवर्धनः ('''षष्ठीतत्पुरुषः''')। | ||
+ | |||
+ | === Example 5. === | ||
+ | प्रहृष्टमुदितो लोकस्तुष्टः पुष्टः सुधार्मिकः । | ||
+ | |||
+ | निरामयो ह्यरोगश्च दुर्भिक्षभयवर्जितः ।।८८।। | ||
+ | |||
+ | => पदच्छेदः | ||
+ | |||
+ | प्रहृष्टमुदितः, लोकः, तुष्टः, पुष्टः, सुधार्मिकः, | ||
+ | |||
+ | निरामयः, हि, अरोगः, च, दुर्भिक्षभयवर्जितः। | ||
+ | |||
+ | => तत्पुरुषसमासाः | ||
+ | |||
+ | दुर्भिक्षभयवर्जितः | ||
+ | |||
+ | – विग्रहवाक्यम् किम्? प्रकारः कः? (Expansion/type?) | ||
+ | |||
+ | ==== Solution 5. ==== | ||
+ | समस्तपदम् = '''दुर्भिक्षभयवर्जितः''' (पुं. १, १) [=लोकः]। | ||
+ | |||
+ | प्रातिपदिकानि = दुर्भिक्ष, भय, वर्जित। | ||
+ | |||
+ | विग्रहवाक्यम् = दुर्भिक्षात् भयं दुर्भिक्षभयम् ('''पञ्चमीतत्पुरुषः''')। | ||
+ | |||
+ | दुर्भिक्षभयेन वर्जितः दुर्भिक्षभयवर्जितः ('''तृतीयातत्पुरुषः)'''।<ref>Amit Rao, Tatpurusha Samasa Review, Vidyasvam.</ref> | ||
+ | |||
+ | == References == | ||
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Latest revision as of 14:32, 13 September 2022
तत्पुरुषः
द्वितीया-तत्पुरुषः
० द्वितीया श्रितातीतपतितगतात्यस्तप्राप्तापन्नैः (२-१-२४)
श्रित-अतीत-पतित-गत-अत्यस्त-प्राप्त-आपन्न these सुबन्तऽ can have समास with any समर्थ-सुबन्त in द्वितीया-विभक्ति.
Eg: कृष्णं श्रितः =>कृष्णश्रितः,
आपदं आपन्नः => आपदापन्नः
० अत्यन्तसंयोगे च (२-१-२९)
काल-वाचक-द्वितीया-विभक्त्यन्त-सुबन्तऽ can have समास with any समर्थ-सुबन्त if अत्यन्तसंयोग is to be indicated.
Eg: मुहूर्तं सुखं => मुहूर्तसुखम्
सर्वरात्रं कल्याणी, सर्वरात्रं शोभना[1]
तृतीया-तत्पुरुषः
० पूर्व-सदृश-सम-ऊनार्थ-कलह्-निपुण-मिश्र-श्लक्ष्णैः (तृतीया) (२-१-३१)
पूर्व-सदृश-सम-ऊनार्थ-कलह-निपुण-मिश्र-श्लक्ष्ण these सुबन्तऽ can have समास with any समर्थ-सुबन्त in तृतीया-विभक्ति.
Eg: मासेन पूर्वः =>मासपूर्वः
० कर्तृकरणे कृता बहुलम् (तृतीया) (२-१-३२)
The तृतीया-विभक्ति-सुबन्त in the meaning of कर्तृ and करण can have समास with any समर्थ-सुबन्त which is a कृदन्त.
Eg: अहिना हतः => अहिहतः[1]
अभ्यास I
1. संवत्सरेण पूर्वः 1. मात्रा सदृशः
2. 2.
3. 3.
4. संवत्सरपूर्वः 4. मातृसदृशः
1. माषेण ऊनम् 1. गुडेन मिश्रः
2. 2.
3. 3.
4. माषोनम् 4. गुडमिश्रः
अभ्यास II
1. वाचा कलहः 1. आचारेण श्लक्ष्णः
2. 2.
3. 3.
4. वाक्कलहः 4. आचारश्लक्ष्णः
1. पितृसदृश : 1. कार्षापणोनम्
2. 2.
3. 3.
4. पित्रा सदृशः 4. कार्षापणेन ऊनम्
अभ्यास III
1. माषविकलम् 1. आचारनिपुणः
2. 2.
3. 3.
4. माषेण विकलम् 4. आचारेण निपुणः
1. वाङ्निपुणः 1. तिलमिश्रः
2. 2.
3. 3.
4. वाचा निपुणः 4.तिलेन मिश्र:
अभ्यास I
1. नखैः निर्भिन्नः 1. हरिणा त्रातः
2. 2.
3. 3.
4. नखनिर्भिन्न 4. हरित्रातः
1. परशुना छिन्नः 1. भगवता कृतम्
2. 2.
3. 3.
4. परशुछिन्नः (परशुच्छिन्नः) 4. भगवत्कृतम्
अभ्यास II
1. कालिदासेन रचितम् 1. तेन कृतम्
2. 2.
3. 3.
4. कालिदासरचितम् 4. तत्कृतम्
1. खड्गच्छिन्नः 1. रामकृतम्
2. 2.
3. 3.
4. खड्गेन छिन्नः 4. रामेण कृतम्
अभ्यास III
1.तन्निरूपितम् 1. चोरहृतम्
2. 2.
3. 3.
4. तेन निरूपितम् 4. चोरेण हृतम्
1.व्यासरचितम् 1. पितृत्रातम्
2. 2.
3. 3.
4. व्यासेन रचितम् 4. पित्रा त्रातम्
चतुर्थी-तत्पुरुषः
० चतुर्थी तदर्थार्थबलिहितसुखरक्षितैः(२-१-३६)
तदर्थ-अर्थ-बलि-हित-सुख-रक्षित these सुबन्तऽ can have समास with any समर्थ-सुबन्त in चतुर्थी-विभक्ति.
Eg: कुण्डलाय हिरण्यम् => कुण्डलहिरण्यम्
बालकाय पयः => बालकार्थं पयः[1]
अभ्यास I
1. बालकाय यवागूः 1. वृद्धाय मागः
2. 2.
3. 3.
4. बालकार्था यवागू: 4. वृद्धार्थः मार्गः
1. यूपाय दारु 1. गवे हितम्
2. 2.
3. 3.
4. यूपदारु 4. गोहितम्
अभ्यास II
1. भूतेभ्यो बलिः 1. शिशवे इदम्
2. 2.
3. 3.
4. भूतबलिः 4. शिश्वर्थम् ओदनम्
1. कुबेरबलिः 1. द्विजार्थः सूप
2. 2.
3. 3.
4. कुबेराय बलिः 4. द्विजाय सूपः
अभ्यास III
1.गोसुखम् 1. अश्वरक्षितम्
2. 2.
3. 3.
4. गवे सुखम् 4. अश्वाय रक्षितम्
1.छात्रार्थं पयः 1. अश्वसुखम्
2. 2.
3. 3.
4. छात्राय पयः 4. अश्वाय सुखम्
पञ्चमी-तत्पुरुषः
० पञ्चमी भयेन (२-१-३७) , अपेतापोढमुक्तपतितापत्रस्तैरल्पशः (२-१-३८)
भय, भीत, भीति, भी and अपेत-अपोढ-मुक्त-पतित-अपत्रस्त these सुबन्तऽ can have समास with any समर्थ-सुबन्त in पञ्चमी-विभक्ति.
Eg: चोरात् भयम् => चोरभयम्
सुखात् अपेतः => सुखापेतः[1]
अभ्यास I
1.वृकात् भीतः 1. वृश्चिकात् भीः
2. 2.
3. 3.
4. वृकभीतः 4. वृश्चिकभीः
1.स्वर्गात् पतितः 1. चक्रात् मुक्तः
2. 2.
3. 3.
4. स्वर्गपतितः 4. चक्रमुक्तः
अभ्यास II
1.व्याघ्रभीतिः 1. वृकभयम्
2. 2.
3. 3.
4. व्याघ्रत् भीतिः 4. वृकात् भयम्
1.तरङ्गापत्रस्तः 1. संसारमुक्तः
2. 2.
3. 3.
4. तरङ्गात् पत्रस्तः 4. संसारात् मुक्तः
षष्ठी-तत्पुरुषः
० षष्ठी (२-२-८)
The सुबन्तऽ in षष्ठी-विभक्ति can have समास with any समर्थ-सुबन्त.
Eg: राज्ञः पुरुषः => राजपुरुषः
छात्रस्य पुस्तकम् => छात्रपुस्तकम्[1]
अभ्यास I
1. बालकस्य लेखनी 1. अर्थस्य गौरवम्
2. 2.
3. 3.
4. बालकलेखनी 4. अर्थगौरवम्
1. तस्य उपरि 1. पलाशशातन:
2. 2.
3. 3.
4. तदुपरि 4. पलाशस्य शातनः
अभ्यास II
1. इक्षुच्छाया 1. मदध्ययनम्
2. 2.
3. 3.
4. इक्षूणां छाया 4. मम अध्ययनम्
० नित्यं क्रीडाजीविकयोः (२-२-१७)
The षष्ठी-विभक्ति-सुबन्त will get into समास mandatorily (नित्यं) with तृच्/अक प्रत्ययान्त-सुबन्त if the resultant is the name of a Game(क्रीडा) or Livelihood (जीविका).
Eg :
उद्दालकपुष्पभञ्जिका - उद्धालकपुष्पाणां भञ्जनं ,
वारणपुष्पप्रचारिका - वारणपुष्पाणां प्रचयनं,
दन्तलेखकः - दन्तानां लेखनेन जीवति,
नखलेखकः - नखानां लेखनेन जीवति ।
० याजकादिभ्यश्च (२-२-९)
The षष्ठी-विभक्ति-सुबन्त will get into समास with सुबन्तऽ in the याजकादि-गण.
The list is - याजक, पूजक, परिचारक, परिषेचक, स्नातक, अध्यापक, उत्सादक, उद्वर्तक, होतृ, पोतृ, भर्तृ, रथगणक, पत्तिगणक .
Eg :
देवस्य पूजकः देवपूजकः
राज्ञः परिचारकः राजपरिचारकः
मम अध्यापकः - ?
( अन्येन निवर्तितस्य पुनः प्रवृत्त्यभ्यनुज्ञानम् = प्रतिप्रसवः)[1]
षष्ठी-समास-निषेधः
० न निर्धारणे (२-२-१०)
In case where षष्ठी-विभक्ति is used in the meaning निर्धारण, then समास is prohibited.
निर्धारणं - (जाति-गुण-क्रिया)
Eg :
मनुष्याणां क्षत्रियः शूरतमः ।
गवां कृष्णा सम्पन्नक्षीरतमा ।
अध्वगानां धावन्तः शीघ्रतमाः ।
० पूरण-गुण-सुहितार्थ-सद्-अव्यय-तव्य-समानाधिकरणेन (२-२-११)
षष्ठी-सामास is prohibited with the सुबन्त, having the meanings of पूरण (Ordinal numbers), गुण (quality) , सुहित (content) and सद् (शतृ/शानच्), अव्यय, समानाधिकरण ।
Eg :
पूरण - छात्राणां पञ्चमः, विद्यार्थिनां दशमः
गुण - काकस्य कार्ष्ण्यम् , बलाकायाः शौक्ल्यम्
सुहित - फलानां सुहितः , फलानां तृप्तः
सत् - अध्यापकस्य कुर्वन् /कुर्वाणः
अव्यय - पितुः कृत्वा, वैद्यस्य हृत्वा
तव्य - गृहस्थस्य कर्तव्यम्, बालाकस्य कर्तव्यम्
समानाधिकरण - पाणिनेः सूत्रकारस्य, राज्ञः भारतस्य
० क्तेन च पूजायां (२-२-१२)
षष्ठी-सामास is prohibited with the सुबन्त which is a क्त-प्रत्ययान्त having the meaning of पूजा (पूजा is to be taken as उपलक्षण)
Eg :
राज्ञां पूजितः , राज्ञां मतः, राज्ञां बुद्धः ।
The क्त-प्रत्यय from the sutra मतिबुद्धिपूजाऽर्थेभ्यश्च (३-२-१८८) has to be taken. The क्त-प्रत्यय prescribed here is to indicate action in वत्तमान-काल. क्तस्य च वर्तमाने (२-३-६७) prescribes षष्ठी-विभक्ति for these cases. That is being prohibited here for the समास.
० कर्मणि च (२-२-१४)
The षष्ठी-विभक्ति-सुबन्त which is in the meaning of कर्मकारक, cannot get into समास
Eg : आश्चर्यः गवां दोहः अगोपालकेन । रोचते ओदनस्य भोजनं देवदत्तेन ।
० तृजकाभ्यां कर्तरि (२-२-१५) and कर्तरि च । (२-२-१६)
The षष्ठी-विभक्ति-सुबन्त which is in the meaning of कर्तृकारक, cannot get into समास with अक ending कृदन्त
Eg: भवतः शायिका, भवतः आसिका ।
Or any षष्ठी-विभक्ति-सुबन्त cannot get into समास, with the तृच/अक which is in the meaning of कर्तृकारक.
Eg: ओदनस्य पाचकः, पुरां भेत्ता, वज्रस्य भर्ता , सक्तूनां पायकः, ओदनस्य[1]
सप्तमी-तत्पुरुषः
० सप्तमी शौण्डै: (२-१-४०), सिद्धशुष्कपक्वबन्धैश्च (२-१-४१)
The सुबन्तऽ in the list starting from शौण्ड can have समास with any समर्थ-सुबन्त in सप्तमी-विभक्ति. (List - शौण्ड। धूर्त। कितव। व्याड। प्रवीण। संवीत। अन्तर् । अन्तःशब्दस्त्वराधिकरनप्रधान एव पठ्यते। अधि। पटु। पण्डित। चपल। निपुण।) सिद्ध, शुष्क, पक्व, बन्ध)
Eg :
अक्षेषु शौण्डः => अक्षशौण्डः
शास्त्रेषु निपुणः => शास्त्रनिपुणः[1]
अभ्यास I
1. ईश्वरे अधीनः 1. कार्ये चपलः
2. 2.
3. 3.
4. ईश्वराधीनः 4. कार्यचपलः
1. काश्यां सिद्धः 1. अक्षेषु कितवः
2. 2.
3. 3.
4. काशीसिद्धः 4. अक्षकितवः
अभ्यास II
1.आतपशुष्कः 1. स्थालीपक्वः
2. 2.
3. 3.
4. आतपे शुष्कः 4. स्थाल्यां पक्वः
1.चक्रबन्धः 1. वेदपण्डितः
2. 2.
3. 3.
4. चक्रे बन्धः 4. वेदे पण्डितः
सङ्क्षेपरामायणतः उदाहरणानि ॥ Examples from Sankshepa Ramayana
Example 1.
आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसम्पदाम् ।
लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम् ।।
=> पदच्छेदः
आपदाम्, अपहर्तारम्, दातारम्, सर्वसम्पदाम्,
लोकाभिरामम् , श्रीरामम्, भूयः भूयः, नमामि, अहम् ।
=> तत्पुरुषसमासाः
लोकाभिरामम्
- विग्रहवाक्यम् किम्? प्रकारः कः? (Expansion/type?)
Solution 1.
समस्तपदम् = लोकाभिरामं(पुं. २,१) [=श्रीरामम्]।
प्रातिपदिके = लोक, अभिराम।
विग्रहवाक्यम् = लोकानाम् अभिरामः लोकाभिरामः (षष्ठीतत्पुरुषः)।
तं लोकाभिरामम्।
Example 2.
तपस्स्वाध्यायनिरतं तपस्वी वाग्विदां वरम्।
नारदं परिपप्रच्छ वाल्मिकिर्मुनिपुङ्गवम् ||१||
=> पदच्छेद:
तपस्स्वाध्यायनिरतम्, तपस्वी, वाग्विदाम्, वरम्,
नारदम्, परिपप्रच्छ, वाल्मिकिः, मुनिपुङ्गवम्।
=> तत्पुरुषसमासाः
तपस्स्वाध्यायनिरतम
– विग्रहवाक्यम् किम्? प्रकार कः? (Expansion/type?)
Solution 2.
समस्तपदम् = तपस्स्वाध्यायनिरतं(पुं. २, १) [=नारदम्]।
प्रातिपदिके = तपस्स्वाध्याय, निरत।
विग्रहवाक्यम् = तपस्स्वाध्याययोः निरतः तपस्स्वाध्यायनिरतः (सप्तमीतत्पुरुषः)।
तं तपस्स्वाध्यायनिरतम्।
Example 3.
इक्ष्वाकुवंशप्रभवो रामो नाम जनैः श्रुतः |
नियतात्मा महावीर्यो द्युतिमान्धृतिमान्वशी ॥ ८॥
=> पदच्छेदः
इक्ष्वाकुवंशप्रभवः, रामः, नाम, जनैः, श्रुतः,
नियतात्मा, महावीर्यः, द्युतिमान्, धृतिमान्, वशी।
=> तत्पुरुषसमासाः
इक्ष्वाकुवंशः – विग्रहवाक्यम् किम्? प्रकारः कः? (Expansion/type?)
Solution 3.
समस्तपदम् = इक्ष्वाकुवंशः(पुं. १,१) [=प्रभवः]।
प्रातिपदिके = इक्ष्वाकु, वंश।
विग्रहवाक्यम् = इक्ष्वाकोः वंशः इक्ष्वाकुवंशः (षष्ठीतत्पुरुषः)।
Example 4.
रक्षिता जीवलोकस्य धर्मस्य परिरक्षिता।
रक्षिता स्वस्य धर्मस्य स्वजनस्य च रक्षिता ।।१३।।
=> पदच्छेदः
रक्षिता, जीवलोकस्य, धर्मस्य, परिरक्षिता,
रक्षिता, स्वस्य, धर्मस्य, स्वजनस्य, च, रक्षिता।
=> तत्पुरुषसमासाः
जीवलोकस्य, स्वजनस्य
- विग्रहवाक्यम् किम्? प्रकारः कः? (Expansion/type?)
Solution 4.
समस्तपदम् = जीवलोकस्य(पुं. ६, १) [रक्षिता]।
प्रातिपदिके = जीव, लोक।
विग्रहवाक्यम् = जीवानां लोकः जीवलोकः (षष्ठीतत्पुरुषः)।
तस्य जीवलोकस्य।
समस्तपदम् = स्वजनस्य (पुं. ६, १) [रक्षिता]।
प्रातिपदिके = स्व, जन।
विग्रहवाक्यम् = स्वस्य जनः स्वजनः (षष्ठीतत्पुरुषः)।
तस्य स्वजनस्य।
Example 4.
आर्यः सर्वसमश्चैव सदैकप्रियदर्शनः।
स च सर्वगुणोपेतः कौसल्यानन्दवर्धनः ।।१६।।
=> पदच्छेदः
आर्यः, सर्वसमः, च, एव, सदा, एकप्रियदर्शनः,
स, च, सर्वगुणोपेतः, कौसल्यानन्दवर्धनः |
=> तत्पुरुषसमासाः
सर्वगुणोपेतः, कौसल्यानन्दवर्धनः
- विग्रहवाक्यम् किम्? प्रकारः कः? (Expansion/type?)
Solution 4.
समस्तपदम् = सर्वगुणोपेतः (पुं. १, १) [=रामः]।
प्रातिपदिके = सर्वगुण, उपेत।
विग्रहवाक्यम् = सर्वगुणैः उपेतः सर्वगुणोपेतः (तृतीयातत्पुरुषः)।
समस्तपदम् = कौसल्यानन्दवर्धनः (पुं. १, १) [=रामः]।
प्रातिपदिकानि = कौसल्या, आनन्द, वर्धन।
विग्रहवाक्यम् = कौसल्यायाः आनन्दः कौसल्यानन्दः (षष्ठीतत्पुरुषः)।
कौसल्यानन्दस्य वर्धनः कौसल्यानन्दवर्धनः (षष्ठीतत्पुरुषः)।
Example 5.
प्रहृष्टमुदितो लोकस्तुष्टः पुष्टः सुधार्मिकः ।
निरामयो ह्यरोगश्च दुर्भिक्षभयवर्जितः ।।८८।।
=> पदच्छेदः
प्रहृष्टमुदितः, लोकः, तुष्टः, पुष्टः, सुधार्मिकः,
निरामयः, हि, अरोगः, च, दुर्भिक्षभयवर्जितः।
=> तत्पुरुषसमासाः
दुर्भिक्षभयवर्जितः
– विग्रहवाक्यम् किम्? प्रकारः कः? (Expansion/type?)
Solution 5.
समस्तपदम् = दुर्भिक्षभयवर्जितः (पुं. १, १) [=लोकः]।
प्रातिपदिकानि = दुर्भिक्ष, भय, वर्जित।
विग्रहवाक्यम् = दुर्भिक्षात् भयं दुर्भिक्षभयम् (पञ्चमीतत्पुरुषः)।
दुर्भिक्षभयेन वर्जितः दुर्भिक्षभयवर्जितः (तृतीयातत्पुरुषः)।[2]