Difference between revisions of "तेनाली रामा जी - मूल्यवान प्रकाश"

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महाराज समझ गये की श्रृष्टि में सबसे अधिक प्रकाशवान और स्वच्छ ज्ञान होता है इससे अधिक मूल्यवान कोई वस्तु नहीं होती है। महाराज ने इनाम की राशि आश्रम को देने का निर्णय लिया और तेनालीरामा द्वारा ज्ञान के विषय को समझाने की कला की बहुत प्रशंसा की और उन्हें दीपावली का उपहार भी दिया।
 
महाराज समझ गये की श्रृष्टि में सबसे अधिक प्रकाशवान और स्वच्छ ज्ञान होता है इससे अधिक मूल्यवान कोई वस्तु नहीं होती है। महाराज ने इनाम की राशि आश्रम को देने का निर्णय लिया और तेनालीरामा द्वारा ज्ञान के विषय को समझाने की कला की बहुत प्रशंसा की और उन्हें दीपावली का उपहार भी दिया।
  
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Latest revision as of 22:32, 12 December 2020

चारों और दीपावली धूम मची हुई थी। विजयनगर राज्य पूरी तरह से दीपावली के प्रकाश उत्सव में डूबने के लिए तैयार था। महाराज भी दीपावली के पर्व की तैयारियों एवं मधुर स्वादों के भाव से प्रसन्न हो रहे थे। महाराज दीपावली की तैयारियों के लिए राजसभा में अपने मंत्री गणों के साथ बैठकर चर्चा कर रहे थे। अचानक महाराज को नगर में प्रतियोगिता कराने की योजना आ गई। महाराज ने सभी मंत्रियो से प्रतियोगिता की चर्चा की और बताया की इस वर्ष नगर में सौन्दर्य एवं दीप सजावट की प्रतियोगिता रखी जाये। जिसका निवास अधिक प्रकाशमान होगा उन्हें सोने की हजार मुद्राएँ दी जाएगी ।

पुरे नगर में प्रतियोगिता की घोषणा कर दी जाती है। महाराज ने दीपावली के दिन अपने सभी मंत्री गणों के लिए भोज का आयोजन किया। भोजन के पश्चात् महाराज सभी मंत्रीगण एवं तेनालीरामा के साथ नगर परिक्षण के लिए जाते है। मार्ग सभी घरो के सौन्दर्य एवं प्रकाशीय सजावट का आनंद लेते हुए बढ़ रहे थे। मार्ग में एक कोठी की सजावट इतनी सुदर और मनमोहक की हुई थी कि महाराज और सभी मंत्री रुक कर देखने लगते है। घर चारो ओर से दिये के प्रकाश से जगमगा रहा था।

एक मंत्री ने महाराज से कहा "महाराज यह कोठी हीरे के व्यापारी हरिलाल जी की है, बहुत ही सुन्दर और मनमोहक सजावट है। मुझे लगता है प्रतियोगिता का विजेता इन्हें ही घोषित कर देना चाहिए और पारितोषिक की राशि इन्हें दे देनी चाहिए।" तेनालीरामा ने कहा "महाराज मुझे जानकारी है कि एक और निवास स्थान है जिसे देखकर आप आश्चर्य चकित हो जायेंगे। वहाँ पर केवल एक दिए से हजारो दियें की रोशनी चारो और बिखर रही है। चारो तरफ प्रकाशमय वातवरण।"

उस निवास को देखने की महाराज की उत्सुकता बढ़ाने लगी ।

सभी उस निवास स्थान की ओर चल पड़े, चलते चलते नगर के बाहर आ गये थे। महाराज ने तेनालीरामा से पूछा "अभी कितनी दूर है नगर भी समाप्त होने वाला है।" तेनालीरामा ने कहा "बस हम आ गए, सामने कुटिया दिख रही है।" महाराज को कुटिया दिखी परन्तु कोई सजावट नहीं थी, महाराज को आश्चर्य हुआ कि तेनालीरामा हमें कहाँ ले आए । कुटिया पहुचकर सभी जब अन्दर प्रवेश करते है तो देखते है कि एक आचार्य है जो सभी विद्यार्थियों को ज्ञान दे रहे थे। महाराज को देखकर आचार्य खड़े हो गयें । तेनालीरामा ने महाराज को इशारे में आचार्य के समीप रखे दिये की ओर संकेत किया । महाराज समझ ना सके । तब तेनालीरामा ने कहा महाराज देखिये यहाँ ज्ञान का दीपक जल रहा है जिससे हजारो विद्यार्थी प्रकाशवान हो रहे है । इस एक ज्ञान के दीपक से कितनो के घरो में उजाले होंगे ।

महाराज समझ गये की श्रृष्टि में सबसे अधिक प्रकाशवान और स्वच्छ ज्ञान होता है इससे अधिक मूल्यवान कोई वस्तु नहीं होती है। महाराज ने इनाम की राशि आश्रम को देने का निर्णय लिया और तेनालीरामा द्वारा ज्ञान के विषय को समझाने की कला की बहुत प्रशंसा की और उन्हें दीपावली का उपहार भी दिया।