Difference between revisions of "आदि शंकराचार्य: - महापुरुषकीर्तन श्रंखला"
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− | नास्तिक्यमालोक्य ततं समस्ते, लोकेऽप्रशस्तं जिनबुद्धनाम्ना। | + | आदि शंकराचार्य:<ref>महापुरुषकीर्तनम्, लेखक- विद्यावाचस्पति विद्यामार्तण्ड धर्मदेव; सम्पादक: आचार्य आनन्दप्रकाश; प्रकाशक: आर्ष-विद्या-प्रचार-न्यास, आर्ष-शोध-संस्थान, अलियाबाद, मं. शामीरेपट, जिला.- रंगारेड्डी, (आ.प्र.) -500078</ref> (२२००-२१६८ वि. पू.)<blockquote>नास्तिक्यमालोक्य ततं समस्ते, लोकेऽप्रशस्तं जिनबुद्धनाम्ना।</blockquote><blockquote>तद्वारणायाग्रसरो य आसीत्, तं शङ्कराचार्यमहं नमामि॥</blockquote>सारे संसार में जिन और बुद्ध के नाम से गर्हित नास्तिक मत को फैला हुआ देखकर उसके निवारण के लिये जो आगे बढ़े, ऐसे श्री शङ्कराचार्य जी को मैं नमस्कार करता हूँ।<blockquote>अधीत्य शास्त्राणि सुबाल्यकाले, विज्ञाय तत्त्वं निगमागमानाम्।</blockquote><blockquote>धर्माँद्दिधी्षुर्विचचार योऽसौ, तं शङ्कराचार्यमहं नमामि॥</blockquote>बहुत छोटी आयु में ही वेदों को पढ़कर और वेद-शास्त्र के तत्व को जानकर, धर्म के उद्धार करने की इच्छा से जो पृथ्वी पर विचरण करते रहे, ऐसे शङ्कराचार्य जी को मैं नमस्कार करता हूँ।<blockquote>मूर्धन्यभूतो भुवि तार्किकेषु, ह्यद्यापि यो मन्यत एव विप्रैः।</blockquote><blockquote>'परास्तनास्तिक्यमतं सुधीन्द्रं, तं शङ्कराचार्यमहं नमामिं॥</blockquote>आज भी जिन्हें बहुत से बुद्धिमान तार्किक शिरोमणि मानते हैं, सब नास्तिकों को जिन्होंने अपने तर्क बल से परास्त कर दिया ऐसे श्री शङ्काराचार्य जी को मैं नमस्कार करता हूँ।<blockquote>यो ब्रह्मसूत्रोपनिषत्सुभाष्यं, निर्माय सर्वाश्चकितीचकार।</blockquote><blockquote>मेधाविनं तं परमात्मनिष्ठं, श्रीशंङ्कराचार्यमहं नमामि॥</blockquote>जिन्होंने वेदान्त सूत्रों और उपनिषदों का उत्तम भाष्य बनाकर सबको चकित कर दिया, ऐसे अपने समय के बुद्धिमानों में श्रेष्ठ परमात्मानिष्ठ श्री शङ्कराचार्य जी को मैं नमस्कार करता हूँ।<blockquote>धर्मप्रचाराय समस्तदिक्षु, मठाननेकान् किल कर्मयोगी।</blockquote><blockquote>यो निर्ममे शुद्धमना मनीषी, तं शङ्कराचार्यमहं नमामि॥</blockquote>जिस शुद्ध चित्त कर्मयोगी बुद्धिमान ने धर्म के प्रचार के लिये सारी दिशाओं में मठों की स्थापना की, उन श्री शङ्कराचार्य जी को मैं नमस्कार करता हूँ।<blockquote>व्यापादितोऽनीश्वरवादिभियों, विषं प्रदायच्छलकौशलेन।</blockquote><blockquote>तथापि कीर्त्या ह्यमरं प्रशान्तं, श्रीशङ्कराचार्यं नमामि॥</blockquote>जिन संयमी को अनीश्वरवादी नास्तिकों ने विष देकर छल से मार दिया तो भी अपनी कीतिं के कारण अमर, प्रशान्त श्री स्वामी शङ्कराचार्य जी को में नमस्कार करता हूँ। |
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Latest revision as of 02:30, 14 May 2020
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आदि शंकराचार्य:[1] (२२००-२१६८ वि. पू.)
नास्तिक्यमालोक्य ततं समस्ते, लोकेऽप्रशस्तं जिनबुद्धनाम्ना।
तद्वारणायाग्रसरो य आसीत्, तं शङ्कराचार्यमहं नमामि॥
सारे संसार में जिन और बुद्ध के नाम से गर्हित नास्तिक मत को फैला हुआ देखकर उसके निवारण के लिये जो आगे बढ़े, ऐसे श्री शङ्कराचार्य जी को मैं नमस्कार करता हूँ।
अधीत्य शास्त्राणि सुबाल्यकाले, विज्ञाय तत्त्वं निगमागमानाम्।
धर्माँद्दिधी्षुर्विचचार योऽसौ, तं शङ्कराचार्यमहं नमामि॥
बहुत छोटी आयु में ही वेदों को पढ़कर और वेद-शास्त्र के तत्व को जानकर, धर्म के उद्धार करने की इच्छा से जो पृथ्वी पर विचरण करते रहे, ऐसे शङ्कराचार्य जी को मैं नमस्कार करता हूँ।
मूर्धन्यभूतो भुवि तार्किकेषु, ह्यद्यापि यो मन्यत एव विप्रैः।
'परास्तनास्तिक्यमतं सुधीन्द्रं, तं शङ्कराचार्यमहं नमामिं॥
आज भी जिन्हें बहुत से बुद्धिमान तार्किक शिरोमणि मानते हैं, सब नास्तिकों को जिन्होंने अपने तर्क बल से परास्त कर दिया ऐसे श्री शङ्काराचार्य जी को मैं नमस्कार करता हूँ।
यो ब्रह्मसूत्रोपनिषत्सुभाष्यं, निर्माय सर्वाश्चकितीचकार।
मेधाविनं तं परमात्मनिष्ठं, श्रीशंङ्कराचार्यमहं नमामि॥
जिन्होंने वेदान्त सूत्रों और उपनिषदों का उत्तम भाष्य बनाकर सबको चकित कर दिया, ऐसे अपने समय के बुद्धिमानों में श्रेष्ठ परमात्मानिष्ठ श्री शङ्कराचार्य जी को मैं नमस्कार करता हूँ।
धर्मप्रचाराय समस्तदिक्षु, मठाननेकान् किल कर्मयोगी।
यो निर्ममे शुद्धमना मनीषी, तं शङ्कराचार्यमहं नमामि॥
जिस शुद्ध चित्त कर्मयोगी बुद्धिमान ने धर्म के प्रचार के लिये सारी दिशाओं में मठों की स्थापना की, उन श्री शङ्कराचार्य जी को मैं नमस्कार करता हूँ।
व्यापादितोऽनीश्वरवादिभियों, विषं प्रदायच्छलकौशलेन।
तथापि कीर्त्या ह्यमरं प्रशान्तं, श्रीशङ्कराचार्यं नमामि॥
जिन संयमी को अनीश्वरवादी नास्तिकों ने विष देकर छल से मार दिया तो भी अपनी कीतिं के कारण अमर, प्रशान्त श्री स्वामी शङ्कराचार्य जी को में नमस्कार करता हूँ।
References
- ↑ महापुरुषकीर्तनम्, लेखक- विद्यावाचस्पति विद्यामार्तण्ड धर्मदेव; सम्पादक: आचार्य आनन्दप्रकाश; प्रकाशक: आर्ष-विद्या-प्रचार-न्यास, आर्ष-शोध-संस्थान, अलियाबाद, मं. शामीरेपट, जिला.- रंगारेड्डी, (आ.प्र.) -500078