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अभिवादन भारतीय सनातन शिष्टाचारका एक महत्त्वपूर्ण अङ्ग है। जिसने प्रणाम करनेका व्रत ले लिया समझना चाहिये कि उसमें नम्रता, विनयशीलता एवं श्रद्धाका भाव स्वतः प्रविष्ट हो गया। इसीलिये सनातन संस्कृतिमें अभिवादन को उत्तम संस्कारका जनक कहा गया है। प्रायः सभी देशों और सभी वर्ग के लोगों में एक दूसरे का सम्मान सत्कार अभिवादन करने की प्रथा अभी तक प्रचलित है। अभिवादन करने का स्वरूप, अभिवादन के नाम अन्यान्य भाषाओं में अलग अलग हो सकते हैं किन्तु सभी इसको समान रूप से स्वीकर करते हैं। परन्तु इसकी अनुष्ठान पद्धति(क्रिया शैली)एक दूसरे से बहुत भिन्न देखी जाती है। शास्त्रों के अनुसार सनातन धर्म में अभिवादन का स्वरूप, विधि, एवं लाभ का क्या हैं उनका वर्णन किया जा रहा है।
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अभिवादन भारतीय सनातन शिष्टाचारका एक महत्त्वपूर्ण अङ्ग है। जिसने प्रणाम करनेका व्रत ले लिया समझना चाहिये कि उसमें नम्रता, विनयशीलता एवं श्रद्धाका भाव स्वतः प्रविष्ट हो गया। इसीलिये सनातन संस्कृतिमें अभिवादन को उत्तम संस्कारका जनक कहा गया है। प्रायः सभी देशों और सभी वर्ग के लोगों में एक दूसरे का सम्मान सत्कार अभिवादन करने की प्रथा अभी तक प्रचलित है। अभिवादन करने का स्वरूप, अभिवादन के नाम अन्यान्य भाषाओं में अलग अलग हो सकते हैं किन्तु सभी इसको समान रूप से स्वीकर करते हैं। परन्तु इसकी अनुष्ठान पद्धति (क्रिया शैली) एक दूसरे से बहुत भिन्न देखी जाती है। शास्त्रों के अनुसार सनातन धर्म में अभिवादन का स्वरूप, विधि, एवं लाभ का क्या हैं उनका वर्णन किया जा रहा है।
    
== परिचय ==
 
== परिचय ==
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महाराज दिलीप बहुत समयतक नि:सन्तान ही रहे तो चिन्तित मनसे अपने कुलगुरु वसिष्ठजीके पास गये। प्रणामाभिवादनके पश्चात् वसिष्ठजीने अपनी दिव्य दृष्टिसे देखकर बताया-तुम एक बार स्वर्गसे लौट रहे थे तो मार्गमें कामधेनुके मिलनेपर तुमने उसे प्रणाम नहीं किया। कामधेनुने इस कारण तुम्हें निःसन्तान होनेका शाप दे दिया कि तुमको मेरी सन्तानकी आराधना-सेवाके बिना निःसन्तान ही रहना पड़ेगा। अतः कामधेनुकी पुत्री नन्दिनी जो मेरे आश्रममें है। तुम उसकी सेवा करो तो तुम्हें यशस्वी पुत्रकी प्राप्ति होगी। राजाने निष्ठासे गोसेवाकी साथ ही रानी सुदक्षिणाने भी प्रातः-सायं गौका पूजन-वन्दन किया और सेवा की, जिसके प्रभावसे उन्हें पुत्ररत्नकी प्राप्ति हुई। प्रणाम, अभिवादन तथा सेवाके अभावमें गुरु और पितृजनोंके अभिशापसे सन्तान, सौभाग्य और ऐश्वर्यका अभाव हो जाता है। इस अभावकी पूर्ति भी उन्हें प्रसन्न करनेसे ही होती है।
 
महाराज दिलीप बहुत समयतक नि:सन्तान ही रहे तो चिन्तित मनसे अपने कुलगुरु वसिष्ठजीके पास गये। प्रणामाभिवादनके पश्चात् वसिष्ठजीने अपनी दिव्य दृष्टिसे देखकर बताया-तुम एक बार स्वर्गसे लौट रहे थे तो मार्गमें कामधेनुके मिलनेपर तुमने उसे प्रणाम नहीं किया। कामधेनुने इस कारण तुम्हें निःसन्तान होनेका शाप दे दिया कि तुमको मेरी सन्तानकी आराधना-सेवाके बिना निःसन्तान ही रहना पड़ेगा। अतः कामधेनुकी पुत्री नन्दिनी जो मेरे आश्रममें है। तुम उसकी सेवा करो तो तुम्हें यशस्वी पुत्रकी प्राप्ति होगी। राजाने निष्ठासे गोसेवाकी साथ ही रानी सुदक्षिणाने भी प्रातः-सायं गौका पूजन-वन्दन किया और सेवा की, जिसके प्रभावसे उन्हें पुत्ररत्नकी प्राप्ति हुई। प्रणाम, अभिवादन तथा सेवाके अभावमें गुरु और पितृजनोंके अभिशापसे सन्तान, सौभाग्य और ऐश्वर्यका अभाव हो जाता है। इस अभावकी पूर्ति भी उन्हें प्रसन्न करनेसे ही होती है।
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==== वैज्ञानिक लाभ ====
      
== उद्धरण ==
 
== उद्धरण ==
 
<references />
 
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[[Category:Hindi Articles]]
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[[Category:हिंदी भाषा के लेख]]
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