Difference between revisions of "Aryabhata (आर्यभट्ट)"
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| − | आचार्य आर्यभट्ट ने आर्यभट्टीयम नामक ग्रन्थ की रचना की। यह ग्रन्थ ४ पादों में विभक्त है। गीतिका पाद, गणित पाद, कालक्रिया पाद और गोलपाद। आर्यभट्ट स्वयं ही इस बात का वर्णन करते हैं - <blockquote>प्रणिपत्यैकमनेकं कं सत्यां देवतां परं ब्रह्म। आर्यभट्ट स्त्रीणि गदति गणितं कालक्रियां गोलम्॥</blockquote>इस श्लोक में आचार्य आर्यभट्ट परम ब्रह्म को नमस्कार करके कहते हैं कि मैं आर्यभट्ट गणित पाद, कालक्रिया पाद तथा गोल पाद सहित इस ग्रन्थ की रचना करता हूं। इस श्लोक में आचार्य आर्यभट्ट ने तीन पादों का ही नाम स्पष्ट किया है परन्तु प्राप्त ग्रन्थ में चार पाद प्राप्त होते हैं। जिसमें उपरोक्त ३ पादों के सहित दसगीतिका पाद का उल्लेख है। कुछ आचार्यों के मत हैं कि इन्हीं अध्यायों के १३ आर्याओं को लेकर के आचार्य आर्यभट्ट के बाद दसगीतिका पाद की रचना की गई होगी। प्राप्त आर्यभट्टीयम ग्रन्थ के आधार पर इनके पादों में वर्ण्य विषयों का विवेचन इस प्रकार है - | + | आचार्य आर्यभट्ट ने आर्यभट्टीयम नामक ग्रन्थ की रचना की। यह ग्रन्थ ४ पादों में विभक्त है। गीतिका पाद, गणित पाद, कालक्रिया पाद और गोलपाद। आर्यभट्ट स्वयं ही इस बात का वर्णन करते हैं - <blockquote>प्रणिपत्यैकमनेकं कं सत्यां देवतां परं ब्रह्म। आर्यभट्ट स्त्रीणि गदति गणितं कालक्रियां गोलम्॥</blockquote>इस श्लोक में आचार्य आर्यभट्ट परम ब्रह्म को नमस्कार करके कहते हैं कि मैं आर्यभट्ट गणित पाद, कालक्रिया पाद तथा गोल पाद सहित इस ग्रन्थ की रचना करता हूं। इस श्लोक में आचार्य आर्यभट्ट ने तीन पादों का ही नाम स्पष्ट किया है परन्तु प्राप्त ग्रन्थ में चार पाद प्राप्त होते हैं। जिसमें उपरोक्त ३ पादों के सहित दसगीतिका पाद का उल्लेख है। कुछ आचार्यों के मत हैं कि इन्हीं अध्यायों के १३ आर्याओं को लेकर के आचार्य आर्यभट्ट के बाद दसगीतिका पाद की रचना की गई होगी। प्राप्त आर्यभट्टीयम ग्रन्थ के आधार पर इनके पादों में वर्ण्य विषयों का विवेचन इस प्रकार है -<ref>शिवनाथ झारखण्डी , [https://archive.org/details/BharatiyaJyotishShivnathJharkhandi/mode/1up भारतीय ज्योतिष] , सन् 1975 , राजर्षि पुरुषोत्तमदास टण्डन हिन्दी भवन , लखनऊ (पृ० 287)। </ref> |
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==आर्यभट्ट का योगदान== | ==आर्यभट्ट का योगदान== | ||
Latest revision as of 07:55, 12 October 2025
आर्यभट (499 ई०) के साथ भारत में गणित और ज्योतिष के अध्ययन का एक नया युग शुरू हुआ था, वैज्ञानिक चिंतन की एक नई स्वस्थ परंपरा स्थापित हुई थी। आर्यभट प्राचीन भारत के पहले वैज्ञानिक हैं जिन्होंने अपने समय (जन्म; 476 ई०) के बारे में स्पष्ट जानकारी दी है।
परिचय
वेदांगों में ज्योतिष शास्त्र को वेद पुरुष का नेत्र कहा गया। क्योंकि यह काल विधायक शास्त्र है। वेदों का मुख्य कार्य यज्ञ कर्म की प्रवृत्ति है परन्तु ये यज्ञ काल के अधीन हैं, तथा काल का ज्ञान ज्योतिष शास्त्र के द्वारा होता है। अतः ज्योतिषशास्त्र को काल शास्त्र भी कहा गया है। वेदों से लेकर लौकिक रूप में ज्योतिष शास्त्र के आचार्य लगध से लेकर आजतक यह परम्परा अनवरत रूप से प्रचलित है। आचार्य लगध के उपरांत ज्योतिष की परम्परा का एक लम्बी अवधि का कालखण्ड रिक्त मिलता है। इनके बाद आचार्य आर्यभट्ट का नाम हमें प्राप्त होता ह़ै।
- आर्यभट्ट को आधुनिक विज्ञान के प्रतिपादक आचार्य के रूप में स्मरण किया जाता
- गणित, खगोल एवं गणितीय कूटांक पद्धति आदि विषयों पर अनेकों सूत्र प्रदान किए
- इनकी रचना ने ज्योतिष एवं खगोल जगत में एक क्रांति दी।
- इनके सूत्रों पर अनेक शोध कार्य संपादित किए गए।
सामान्यतया ज्योतिष शास्त्र में दो आर्यभट्ट प्रसिद्ध हैं। प्रथम आर्यभट्ट जो कि 398 शक में उत्पन्न हुए उसके बाद द्वितीय आर्यभट्ट जिन्होंने महासिद्धान्त नामक ग्रन्थ को लिखा। इस प्रस्तुत अध्याय में हम आर्यभट्ट प्रथम अर्थात् आर्यभटीयम ग्रन्थ के कर्ता आचार्य आर्यभट्ट के सन्दर्भ में जानेंगे।
आर्यभट्ट की जीवनी
ज्योतिष शास्त्र के विकास के क्रम में अनेकों आचार्यों ने अपना योगदान दिया। जिनमें आर्यभट्ट का नाम प्राचीनतम आचार्यों में बडे ही मुख्यता के साथ लिया जाता है। आर्यभट्ट विशेष प्रतिभा संपन्न ज्योतिर्विद थे। वह एक महान गणितज्ञ थे, जिन्होंने समस्त विश्व को गणित की एक नई परिपाटी पर चलना सिखाया तथा अपने नवीन सिद्धांतों के प्रतिपादन से आधुनिक विज्ञान के दशा एवं दिशा को परिवर्तित कर दिया।
नाम
आर्यभट्ट की विश्वप्रसिद्ध रचना आर्यभट्टीयम है। आर्यभट्ट के नाम को लेकर सामान्य जनों में एक संशय रहता है कि आचार्य का नाम आर्यभट है या आर्यभट्ट है। इस सन्दर्भ में आचार्य अपना नाम स्वयं ही दसगीतिका पाद में बताते हैं कि -
आर्यभट्टस्त्रीणि गदति गणितं कालक्रिया - गोलम्। (आर्यभटीय)
अर्थात आचार्य आर्यभट्ट गणित, गोल एवं काल क्रियापाद को बताते हैं। अतः उन्होंने स्वयं ही अपना नाम आर्यभट्ट बताया है।
जन्म स्थान
आर्यभट्ट जी ने ही अपने ग्रन्थ आर्यभट्टीयम में अपने ज्ञान प्राप्ति के स्थान का उल्लेख किया है। वह कहते हैं -
कुसुमपुरे अभ्यर्चितं ज्ञानम्। (आर्यभटीय)
जन्मकाल
आर्यभट्ट की रचनाएं
पटना शहर को पाटलिपुत्र कहते थे। इस नगर में बगीचों में अधिकसंख्या में खिलनेवाले फूलों के कारण ही इस नगर को कुसुमपुर अथवा पुष्पपुर के नाम से भी जाना जाता था।
आर्यभट्टीय सिद्धान्त
आचार्य आर्यभट्ट ने आर्यभट्टीयम नामक ग्रन्थ की रचना की। यह ग्रन्थ ४ पादों में विभक्त है। गीतिका पाद, गणित पाद, कालक्रिया पाद और गोलपाद। आर्यभट्ट स्वयं ही इस बात का वर्णन करते हैं -
प्रणिपत्यैकमनेकं कं सत्यां देवतां परं ब्रह्म। आर्यभट्ट स्त्रीणि गदति गणितं कालक्रियां गोलम्॥
इस श्लोक में आचार्य आर्यभट्ट परम ब्रह्म को नमस्कार करके कहते हैं कि मैं आर्यभट्ट गणित पाद, कालक्रिया पाद तथा गोल पाद सहित इस ग्रन्थ की रचना करता हूं। इस श्लोक में आचार्य आर्यभट्ट ने तीन पादों का ही नाम स्पष्ट किया है परन्तु प्राप्त ग्रन्थ में चार पाद प्राप्त होते हैं। जिसमें उपरोक्त ३ पादों के सहित दसगीतिका पाद का उल्लेख है। कुछ आचार्यों के मत हैं कि इन्हीं अध्यायों के १३ आर्याओं को लेकर के आचार्य आर्यभट्ट के बाद दसगीतिका पाद की रचना की गई होगी। प्राप्त आर्यभट्टीयम ग्रन्थ के आधार पर इनके पादों में वर्ण्य विषयों का विवेचन इस प्रकार है -[1]
- गीतिका पाद -
- गणित पाद -
- कालक्रिया-पाद -
- गोल-पाद -
संख्याज्ञापक चक्र
ज्योतिषीय अन्य ग्रन्थों में एक के लिए भू, तीन के लिए राम और उसी प्रकार अन्य भी बहुत से नामों का प्रयोग संख्याओं के लिए किया गया है, पर आर्यभट्ट ने ऐसा न करके संख्याएँ अक्षरों द्वारा बतलायी हैं। उसका प्रकार यह है -
वर्गाक्षराणि वर्गेऽवर्गेऽवर्गाक्षराणि कात् ङ्मौ यः। खद्विनवके स्वरा नव वर्गेऽवर्गे नवान्त्यवर्गे वा॥(आर्यभटीय)[2]
| अक्षर | संख्या | अक्षर | संख्या | ||||||
|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|
| अ | 1 | ए | |||||||
| इ | 100 | ऐ | |||||||
| उ | 1000 | ओ | |||||||
| ऋ | 1000000 | औ | |||||||
| लृ | 100000000 | ||||||||
| व्यंजन वर्ण संख्या ज्ञापक पद्धति | |||||||||
| क | 1 | च | 6 | ट | 11 | त | 16 | प | 21 |
| ख | 2 | छ | 7 | ठ | 12 | थ | 17 | फ | 22 |
| ग | 3 | ज | 8 | ड | 13 | द | 18 | ब | 23 |
| घ | 4 | झ | 9 | ढ | 14 | ध | 19 | भ | 24 |
| ङ | 5 | ञ | 10 | ण | 15 | न | 20 | म | 25 |
| यकारादि हकारांत अंक संख्या | |||||||||
| य | 30 | श | 70 | ||||||
| र | 40 | ष | 80 | ||||||
| ल | 50 | स | 90 | ||||||
| व | 60 | ह | 100 | ||||||
| क | के | ||||||||
| कि | कै | ||||||||
| कु | को | ||||||||
| कृ | कौ | ||||||||
| क्लृ | |||||||||
| के | |||||||||
| कै | |||||||||
| को | |||||||||
| कौ | |||||||||
| इसी प्रकार 'ख' का भी जानना...। | |||||||||
| ख | |||||||||
| खि | |||||||||
| ञ | म | ||||||||
| ष | |||||||||
| स | |||||||||
| ह | |||||||||
| खु | |||||||||
| इसी प्रकार और व्यञ्जनों का भी जानना | |||||||||
| य | |||||||||
| यि | |||||||||
| यु | |||||||||
| र | |||||||||
| रि | |||||||||
| रु | |||||||||
भारत की संस्कृति में मौखिक परंपरा अत्यंत महत्वपूर्ण रही है। आसानी से याद रखे जा सकने वाले ग्रन्थों या सूत्रों की रचना को अत्यधिक महत्व दिया गया। कटपयादि सूत्र का उपयोग करके श्लोकों को डिकोड करना, अर्थात उनका सही अर्थ निकालना संभव हुआ। खगोलशास्त्रीय ग्रन्थों ने ग्रहों की स्थितियाँ गणना करने में कटपयादि प्रणाली का उपयोग किया।[3]
आर्यभट्ट का योगदान
भारतीय ज्ञान परंपरा में आचार्य जी का अनमोल योगदान रहा है जैसे – [4]
- शून्य एवं संख्याओं की स्थानीय मानप्रणाली
- गणित के विकास की परंपरा
- त्रिकोणमिति एवं ज्यासारणी
- भूभ्रमण का सिद्धान्त
- व्यास एवं परिधि का सम्बन्ध अर्थात पाई
- अनिश्चित समीकरण
- वास्तविक भूपरिधि
- क्षेत्रमिति
- ग्रहण का वास्तविक वैज्ञानिक विवेचन
सारांश
प्रस्तुत लेख को यदि अब हम सारांश रूप में देखें तो आचार्य आर्यभट्ट भारत के ऋषि परम्परा में सुप्रसिद्ध गणितज्ञ एवं खगोलशास्त्री हुए। आर्यभट्ट जी का नाम दो प्रकार से प्राप्त होता है - आर्यभट एवं आर्यभट्ट। इनका वास्तविक नाम आर्यभट्ट ही था।
इनका जन्म कुसुमपुर नामक स्थान में हुआ था। इस स्थान के सन्दर्भ में विद्वानों के अनेक मत हैं। इनका जन्म ४२१ शक में हुआ था। इनकी आर्यभट्टीयम नामक रचना सुप्रसिद्ध हैं। प्रस्तुत ग्रन्थ में चार अध्याय हैं। जिनके नाम इस प्रकार भी हैं -
- दशगीतिका पाद - १३ श्लोक
- गणित पाद - ३३ श्लोक
- कालक्रिया पाद २५ श्लोक
- गोल पाद ५० श्लोक
इस प्रकार से चार अध्यायों में विभक्त सम्पूर्ण ग्रन्थ में १२१ श्लोक प्राप्त होते हैं। जिनमें आचार्य आर्यभट्ट ने गणित के साथ-साथ खगोलीय विषयों का भी बृहद् विवेचन किया है। इस प्रकार से आचार्य आर्यभट्ट के कुछ विशिष्ट अवदान आधुनिक गणित एवं खगोल विज्ञान को सुदृढ करते हैं तथा उनके सिद्धांतों को दृढता से स्थापित करते हैं।
उद्धरण
- ↑ शिवनाथ झारखण्डी , भारतीय ज्योतिष , सन् 1975 , राजर्षि पुरुषोत्तमदास टण्डन हिन्दी भवन , लखनऊ (पृ० 287)।
- ↑ आर्यभट्ट, आर्यभटीय , सन् 1906, शास्त्रप्रकाश कार्यालय मुजफ्फरपुर, दशगीतिका पाद - श्लोक - 1 (पृ० 4)।
- ↑ डॉ० दिनकर मराठे, कटपयादि संख्या प्रणाली का सोदाहरण विश्लेषण, सन २०२४, नेशनल जर्नल ऑफ हिन्दी एण्ड संस्कृत रिसर्च (पृ० २०७)।
- ↑ आर्यभट , प्राचीन भारत के महान गणितज्ञ – ज्योतिषी (गुणाकर मुले), ज्ञान-विज्ञान प्रकाशन नई दिल्ली (पृ ० 13)।