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| − | व्यावसायिक वास्तु का निर्माण भी आवासीय वास्तु के मूल सिद्धान्तों पर ही निर्मित किया जाता है। सर्वप्रथम भूखण्ड चयन, भूमि परीक्षण, भू-प्लव, वेध, द्वार आदि का विचार कर ही व्यावसायिक वास्तु का निर्माण किया जाता है। वास्तुशास्त्र में सिंहमुखी भूखण्ड को व्यवसाय के लिए उत्तम कहा गया है। इसमें व्यवसाय करने वाला एवं ग्राहक दोनों को केन्द्र मानकर वास्तु के मूलसिद्धान्तों को दिशानुसार निर्धारित किया जाता है। | + | व्यावसायिक और औद्योगिक वास्तु (संस्कृतः व्यावसायिक औद्योगिक वास्तुश्च) का निर्माण भी आवासीय वास्तु के मूल सिद्धान्तों पर ही निर्मित किया जाता है। जनसंख्या का औसत दिन-प्रतिदिन बढ रहा है परन्तु भूमि का स्वरूप स्थिर है अतएव आवासीय समस्या समाधान हेतु बहुमंजिले भवनों का निर्माण प्रारम्भ हुआ। इसी को व्यावसायिक और औद्योगिक वास्तु के रूप में दो भागों में विभक्त किया गया है। व्यापारिक एवं औद्योगिक प्रतिष्ठान से व्यापारी को अधिकाधिक लाभ प्राप्त हो, इसके लिए वास्तुशास्त्र के सिद्धान्तों का पालन करना आवश्यक है।<ref>शोध कर्ता - इन्द्रबली मिश्रा, [https://shodhganga.inflibnet.ac.in/handle/10603/457712 वैदिक वाग्मय में वास्तु तत्व एक समीक्षात्मक अध्ययन], अध्याय ०५, सन २०१८, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी (पृ० २३६)।</ref> |
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| | == परिचय॥ Introduction== | | == परिचय॥ Introduction== |
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| | # भवन का मध्य भाग खाली रखना चाहिए। अतः इस स्थान में किसी भी प्रकार का निर्माण सर्वथा वर्जित है। इस स्थान पर औषधियुक्त पौधा लगाया जा सकता है। | | # भवन का मध्य भाग खाली रखना चाहिए। अतः इस स्थान में किसी भी प्रकार का निर्माण सर्वथा वर्जित है। इस स्थान पर औषधियुक्त पौधा लगाया जा सकता है। |
| | # मुख्य व्यक्ति का कक्ष अथवा बैठने का स्थान नैर्ऋत्य अथवा पश्चिम में होना शुभ है। जिससे उसका मुख सदैव ईशान या पूर्व की ओर रहे। | | # मुख्य व्यक्ति का कक्ष अथवा बैठने का स्थान नैर्ऋत्य अथवा पश्चिम में होना शुभ है। जिससे उसका मुख सदैव ईशान या पूर्व की ओर रहे। |
| | + | सर्वप्रथम भूखण्ड चयन, भूमि परीक्षण, भू-प्लव, वेध, द्वार आदि का विचार कर ही व्यावसायिक वास्तु का निर्माण किया जाता है। वास्तुशास्त्र में सिंहमुखी भूखण्ड को व्यवसाय के लिए उत्तम कहा गया है। इसमें व्यवसाय करने वाला एवं ग्राहक दोनों को केन्द्र मानकर वास्तु के मूलसिद्धान्तों को दिशानुसार निर्धारित किया जाता है। |
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| | + | == व्यावसायिक वास्तु॥ Commercial Vastu == |
| | + | व्यापारिक वास्तु उसे कहते हैं जहाँ एक छत के नीचे व्यापार से संबंधित सभी व्यवसाय किये जाते हैं, उसे व्यावसायिक वास्तु कहते हैं। व्यावसायिक प्रतिष्ठान वास्तु के सिद्धान्तों एवं नियमों से निर्माण हो तो व्यापारिक प्रतिष्ठान में व्यापार की उन्नति एवं उसमें कार्यरत लोगों के लिए सुख-शांति बनी रहती है।<ref>निगम पाण्डेय एवं देवेश कुमार मिश्र, [https://egyankosh.ac.in/bitstream/123456789/95283/1/Unit-1.pdf व्यावसायिक वास्तु], सन २०२३, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, नई दिल्ली (पृ० २२८)।</ref> |
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| | + | '''व्यवसायिक वास्तु के प्रकार''' |
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| | + | व्यावसायिक वास्तु से तात्पर्य उस भवन से है, जिसमें लोग व्यापार कार्यालय या औद्योगिक गतिविधियाँ चलाते हैं। व्यावसायिक वास्तु सामान्यतया दो प्रकार का होता है व्यापारिक वास्तु एवं औद्योगिक वास्तु। व्यापारिक वास्तु के भी मुख्यतया सात भेद प्राप्त होते हैं जो निम्न हैं -<ref name=":0">शोध गंगा - बबलु मिश्रा, [https://shodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/479623/9/09_chapter%205.pdf वास्तु विद्या विमर्श], सन २०१८, शोधकेन्द्र- बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय (पृ० १७३)।</ref> |
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| | + | #'''दुकान''' |
| | + | #'''शोरूम''' |
| | + | #'''कार्यालय''' |
| | + | #'''होटल''' |
| | + | #'''चिकित्सालय''' |
| | + | #'''छवि गृह (सिनेमाघर)''' |
| | + | #'''शिक्षण संस्थान''' |
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| | + | ===दुकान=== |
| | + | दुकान एवं शोरूम व्यावसायिक वास्तु की सबसे महत्त्वपूर्ण इकाई है। क्यों कि व्यापारिक मुख्य गतिविधि क्रय-विक्रय का यह केन्द्र बिन्दु होता है। अतः व्यावसायिक वास्तु में दुकान एवं शोरूम का विचार गंभीरता पूर्वक किया जाना चाहिए। दुकान का प्रचलन प्राचीन काल से ही है इसी कारण वास्तुशास्त्र में इसका पर्याप्त वर्णन प्राप्त होता है। व्यापार में प्रगति एवं जीवन में उन्नति के लिए दुकान एवं शोरूम के बारे में वास्तुशास्त्र के निम्नलिखित नियमों का ध्यान अवश्य रखना चाहिए -<ref name=":0" /> |
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| | + | *दुकान एवं शोरूम के लिए भूखण्ड एवं भूमि का परिक्षण सामान्य नियमानुसार कर लेना चाहिए। |
| | + | *दुकान एवं शोरूम के लिए आयताकार, वर्गाकार एवं सिंह मुखी आकार का भूखण्ड शुभ होता है। गोमुखी आकार का भूखण्ड अशुभ होता है। |
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| | + | दुकान एवं शोरूम में भारी वस्तुएं या अनुपयोगी वस्तुएं नैरृत्य में रखनी चाहिए। ऐसी चीजें वायव्य या ईशान में कभी भी नहीं रखनी चाहिए। |
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| | + | ===कार्यालय॥ ऑफिस=== |
| | + | कुछ समय पूर्व जो व्यापारिक कार्य व्यापारियों की गद्दियों से होता था - वह सभी व्यापारिक कार्य आज कार्यालयों में होता है। बड़े व्यापारी, उद्योगपति, देशी-विदेशी कम्पनियाँ परामर्शदाता एवं विभिन्न प्रकार के सेवा देने वाले आज अपनी व्यावसायिक गतिविधियाँ कार्यालयों से चला रहे हैं। कार्यालय के माध्यम से संचालित गतिविधियों में अपेक्षित सफलता एवं प्रगति के लिए वास्तुशास्त्र के निम्नलिखित नियमों को ध्यान में रखकर ऑफिस बनाना चाहिए -<ref name=":0" /> |
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| | + | *ऑफिस या कार्यालय के लिए पूर्व कथनानुसार भूमि एवं भवन का चयन करना चाहिए। |
| | + | *कार्यालय के द्वार के सामने अन्य कार्यालय का दरवाजा कैन्टीन, टेलीफोन बूथ या कोई सार्वजनिक सुविधाओं का होना शुभ नहीं होता है। |
| | + | *कार्यालय में यदि रात्रि में कार्य करना हो तो कर्मचारीयों की कुर्सियां उत्तराभिमुखी लगानी चाहिए। |
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| | + | ===होटल=== |
| | + | होटल एवं रिसार्ट के निर्माण में सर्व प्रथम व्यावसायिक वास्तु के सिद्धान्त जो पूर्व कथित हैं उनके अनुसार भूखण्ड का चयन करना चाहिए। भूखण्ड की आकृति वर्गाकार, वृत्ताकार, सिंहमुखी, षाटकोण एवं अष्टकोण आकार की होनी चाहिए। भूमि के ढ़लान, समीपवर्ती मार्ग एवं वेध आदि का विचार व्यावसायिक भवन के अनुसार ही करना चाहिए। भवन में बेस्मेन्ट बनाना हो तो आधे से अधिक भाग पर नहीं बनाना चाहिए। |
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| | ==औद्योगिक वास्तु॥ industrial Vastu== | | ==औद्योगिक वास्तु॥ industrial Vastu== |
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| | '''विद्यालय व्यवस्था''' | | '''विद्यालय व्यवस्था''' |
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| − | == व्यावसायिक वास्तु॥ Commercial Vastu ==
| + | वास्तुशास्त्र में पञ्चमहाभूतों, चुम्बकीय प्रभावों, दिशाओं और गुरुत्वाकर्षण के नियमों को ध्यान में रखते हुए वास्तुशास्त्र की रचना की गयी तथा यह बताया गया है कि इन नियमों के पालन से मनुष्य के जीवन में सुख-शान्ति आती है और उत्तरोत्तर धन-धान्य में वृद्धि होती है।<ref>[https://egyankosh.ac.in/bitstream/123456789/95283/1/Unit-1.pdf औद्योगिक वास्तु]</ref> |
| − | व्यापारिक वास्तु उसे कहते हैं जहाँ एक छत के नीचे व्यापार से संबंधित सभी व्यवसाय किये जाते हैं, उसे व्यावसायिक वास्तु कहते हैं। व्यावसायिक प्रतिष्ठान वास्तु के सिद्धान्तों एवं नियमों से निर्माण हो तो व्यापारिक प्रतिष्ठान में व्यापार की उन्नति एवं उसमें कार्यरत लोगों के लिए सुख-शांति बनी रहती है।<ref>निगम पाण्डेय एवं देवेश कुमार मिश्र, [https://egyankosh.ac.in/bitstream/123456789/95283/1/Unit-1.pdf व्यावसायिक वास्तु], सन २०२३, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, नई दिल्ली (पृ० २२८)।</ref>
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| − | == उद्धरण॥ References == | + | ==उद्धरण॥ References== |
| | <references /> | | <references /> |
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