| − | प्रश्न उपनिषद् अथर्ववेदीय ब्राह्मणभागके अन्तर्गत है। इसका भाष्य आरम्भ करते हुए भगवान् भाष्यकार लिखते हैं - अथर्ववेदके मन्त्रभागमें कही हुई (मुण्डक) उपनिषद्के अर्थका ही विस्तारसे अनुवाद करनेवाली यह ब्राह्मणोपनिषद् आरम्भ की जाती है। ग्रन्थके आरम्भमें सुकेशा आदि छः ऋषिकुमार मुनिवर पिप्पलादके आश्रम आकर उनसे कुछ पूछना चाहते हैं। इस उपनिषद्के छः खण्ड हैं, जो छः प्रश्न कहे जाते हैं। इस उपनिषद् में पिप्पलाद ऋषिने सुकेशा आदि छः ऋषियोंके छः प्रश्नोंका क्रमसे उत्तर दिया है, इसलिये इसका नाम प्रश्नोपनिषद् हो गया। | + | {{ToBeEdited}} |
| | + | प्रश्न उपनिषद् (संस्कृतः प्रश्नोपनिषद्) अथर्ववेदीय ब्राह्मणभाग के अन्तर्गत है। इसका भाष्य आरम्भ करते हुए भगवान् भाष्यकार लिखते हैं - अथर्ववेदके मन्त्रभागमें कही हुई (मुण्डक) उपनिषद्के अर्थका ही विस्तारसे अनुवाद करनेवाली यह ब्राह्मणोपनिषद् आरम्भ की जाती है। ग्रन्थके आरम्भमें सुकेशा आदि छः ऋषिकुमार मुनिवर पिप्पलादके आश्रम आकर उनसे कुछ पूछना चाहते हैं। इस उपनिषद्के छः खण्ड हैं, जो छः प्रश्न कहे जाते हैं। इस उपनिषद् में पिप्पलाद ऋषिने सुकेशा आदि छः ऋषियोंके छः प्रश्नोंका क्रमसे उत्तर दिया है, इसलिये इसका नाम प्रश्नोपनिषद् हो गया। |
| | द्वितीय मन्त्र में यह प्रार्थना की गयी है कि - यशस्वी इन्द्र हमारा कल्याण करें, सभी प्रकार के ऐश्वर्य से युक्त पूषन् हमारा कल्याण करें। जिनके चक्र परिधि को कोई हिंसित नहीं कर सकता, ऐसे तार्क्ष्य, हमारा कल्याण करें। बृहस्पति हमारा कल्याण करें। आध्यात्मिक, आधिदैविक और आधिभौतिक - सभी प्रकारके तापोंकी शान्ति हो। | | द्वितीय मन्त्र में यह प्रार्थना की गयी है कि - यशस्वी इन्द्र हमारा कल्याण करें, सभी प्रकार के ऐश्वर्य से युक्त पूषन् हमारा कल्याण करें। जिनके चक्र परिधि को कोई हिंसित नहीं कर सकता, ऐसे तार्क्ष्य, हमारा कल्याण करें। बृहस्पति हमारा कल्याण करें। आध्यात्मिक, आधिदैविक और आधिभौतिक - सभी प्रकारके तापोंकी शान्ति हो। |
| − | ऋषि पिप्पलाद के पास भरद्वाजपुत्र सुकेशा, शिविकुमार सत्यकाम, गर्ग गोत्र में उत्पन्न सौर्यायणी, कोसलदेशीय आश्वलायन, विदर्भ निवासी भार्गव और कत्य ऋषि के प्रपौत्र कबन्धी- ये छह ऋषि हाथ में समिधा लेकर ब्रह्मजिज्ञासा से पहुँचे। ऋषि की आज्ञानुसार उन सबने एक वर्ष तक श्रद्धा, ब्रह्मचर्य और तपस्या के साथ विधिपूर्वक वहाँ निवास किया।<ref>बलदेव उपाध्याय, [https://archive.org/details/1.SanskritVangmayaKaBrihatItihasVedas/page/504/mode/1up संस्कृत वांग्मय का बृहद् इतिहास - वेद खण्ड], सन् १९९६, उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान (पृ० ५०४)।</ref><blockquote>ॐ सुकेशा च भारद्वाजः शैब्यश्च सत्यकामः सौर्यायणी च गार्ग्यः कौसल्यश्चाश्वलायनो भार्गवो वैदर्भिः कबन्धी कात्यायनस्ते हैते ब्रह्मपरा ब्रह्मनिष्ठाः परं ब्रह्मान्वेषमाणा एष ह वै तत्सर्वं वक्ष्यतीति ते ह समित्पाणयो भगवन्तं पिप्पलादमुपसन्नाः ॥ (प्रश्नोपनिषद् - १)<ref name=":0" /></blockquote>पिप्पलादमुनि के पास आए हुए ये सभी ब्रह्मजिज्ञासु बडे बुद्धिशाली थे। उन्होंने उनसे बहुत सुन्दर प्रश्न पूछे-<ref name=":1">आचार्य केशवलाल वी० शास्त्री, [https://archive.org/details/djpC_upanishad-sanchayan-ishadi-ashtottar-shat-upanishad-part-1-with-hindi-translatio/page/n79/mode/1up उपनिषत्सञ्चयनम्], सन् २०१५, चौखम्बा संस्कृत प्रतिष्ठान (पृ० ३८)।</ref> | + | ऋषि पिप्पलाद के पास भरद्वाजपुत्र सुकेशा, शिविकुमार सत्यकाम, गर्ग गोत्र में उत्पन्न सौर्यायणी, कोसलदेशीय आश्वलायन, विदर्भ निवासी भार्गव और कत्य ऋषि के प्रपौत्र कबन्धी- ये छह ऋषि हाथ में समिधा लेकर ब्रह्मजिज्ञासा से पहुँचे। ऋषि की आज्ञानुसार उन सबने एक वर्ष तक श्रद्धा, ब्रह्मचर्य और तपस्या के साथ विधिपूर्वक वहाँ निवास किया।<ref>बलदेव उपाध्याय, [https://archive.org/details/1.SanskritVangmayaKaBrihatItihasVedas/page/504/mode/1up संस्कृत वांग्मय का बृहद् इतिहास - वेद खण्ड], सन् १९९६, उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान (पृ० ५०४)।</ref> पिप्पलाद की सूचना का यथा पालन करके वे जब उनके सामने प्रश्न लेकर उपस्थित हुए तो प्रत्येक ने अपना एक-एक प्रश्न पूछा और पिप्पलाद ने उन सभी प्रश्नों का परितोषजनक उत्तर भी दिया।<blockquote>ॐ सुकेशा च भारद्वाजः शैब्यश्च सत्यकामः सौर्यायणी च गार्ग्यः कौसल्यश्चाश्वलायनो भार्गवो वैदर्भिः कबन्धी कात्यायनस्ते हैते ब्रह्मपरा ब्रह्मनिष्ठाः परं ब्रह्मान्वेषमाणा एष ह वै तत्सर्वं वक्ष्यतीति ते ह समित्पाणयो भगवन्तं पिप्पलादमुपसन्नाः ॥ (प्रश्नोपनिषद् - १)<ref name=":0" /></blockquote>पिप्पलादमुनि के पास आए हुए ये सभी ब्रह्मजिज्ञासु बडे बुद्धिशाली थे। उन्होंने उनसे बहुत सुन्दर प्रश्न पूछे-<ref name=":1">आचार्य केशवलाल वी० शास्त्री, [https://archive.org/details/djpC_upanishad-sanchayan-ishadi-ashtottar-shat-upanishad-part-1-with-hindi-translatio/page/n79/mode/1up उपनिषत्सञ्चयनम्], सन् २०१५, चौखम्बा संस्कृत प्रतिष्ठान (पृ० ३८)।</ref> |