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| | संस्कृति के विषय में बहुत सारी भ्रामक कल्पनाएँ वर्तमान में समाज में प्रतिष्ठित हैं। नाचना, गाना, सिनेमा, नाटक आदि जैसे मनोरंजन के कार्यक्रमों को संस्कृति माना जा रहा है। विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों के आयोजन में इसी भ्रम का प्रदर्शन दिखाई देता है। शासकीय कार्यक्रमों में भी यही देखने को मिलता है। विभिन्न देशों में सांस्कृतिक लेनदेन के कार्यक्रमों में ऐसे ही मनोरंजन करनेवाले नाच, गाने, नाटकों के जत्थे भेजे जाते हैं। ऐसी संस्कृति के विस्तार के लिए तो हमारे ऋषि मुनियों ने विश्वसंचार के उपक्रम नहीं किये थे। फिर वह कैसी संस्कृति थी? | | संस्कृति के विषय में बहुत सारी भ्रामक कल्पनाएँ वर्तमान में समाज में प्रतिष्ठित हैं। नाचना, गाना, सिनेमा, नाटक आदि जैसे मनोरंजन के कार्यक्रमों को संस्कृति माना जा रहा है। विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों के आयोजन में इसी भ्रम का प्रदर्शन दिखाई देता है। शासकीय कार्यक्रमों में भी यही देखने को मिलता है। विभिन्न देशों में सांस्कृतिक लेनदेन के कार्यक्रमों में ऐसे ही मनोरंजन करनेवाले नाच, गाने, नाटकों के जत्थे भेजे जाते हैं। ऐसी संस्कृति के विस्तार के लिए तो हमारे ऋषि मुनियों ने विश्वसंचार के उपक्रम नहीं किये थे। फिर वह कैसी संस्कृति थी? |
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| − | अंग्रेजी में संस्कृति के लिए कल्चर शब्द का प्रयोग होता है। ऑक्स्फ़र्ड डिक्शनरी के अनुसार कल्चर शब्द का अर्थ है साहित्य, कला, संगीत आदि; किसी समाज या देश की कला, रीति-रिवाज आदि की विकसित समझ। (डेव्हलप्ड अंडरस्टैंडिंग ऑफ़ लिटरेचर, आर्ट, म्यूझिक आदि; आर्ट; कस्टम्स ऑफ़ ए परटीक्यूलर कंट्री ऑर सोसायटी)। विकसित समझ से तात्पर्य क्या है स्पष्ट नहीं किया गया है। शायद उसका तात्पर्य गहरी समझ से हो सकता है। याने किसी समाज के साहित्य, संगीत, कला, रीति रिवाज की अभिव्यक्ति ठीक से जिस में होती है वह संस्कृति है। शायद इसी समझ के कारण हमारे सांस्कृतिक प्रतिनिधि मण्डल केवल नाचगाना और नाटक मंडली तक सीमित रहता है। वेबस्टर डिक्शनरी में भी कुछ ऐसे ही अर्थ बताया गया है। | + | अंग्रेजी में संस्कृति के लिए कल्चर शब्द का प्रयोग होता है। ऑक्स्फ़र्ड डिक्शनरी के अनुसार कल्चर शब्द का अर्थ है साहित्य, कला, संगीत आदि; किसी समाज या देश की कला, रीति-रिवाज आदि की विकसित समझ। (डेव्हलप्ड अंडरस्टैंडिंग ऑफ़ लिटरेचर, आर्ट, म्यूझिक आदि; आर्ट; कस्टम्स ऑफ़ ए परटीक्यूलर कंट्री ऑर सोसायटी)। विकसित समझ से तात्पर्य क्या है स्पष्ट नहीं किया गया है। संभवतः उसका तात्पर्य गहरी समझ से हो सकता है। याने किसी समाज के साहित्य, संगीत, कला, रीति रिवाज की अभिव्यक्ति ठीक से जिस में होती है वह संस्कृति है। संभवतः इसी समझ के कारण हमारे सांस्कृतिक प्रतिनिधि मण्डल केवल नाचगाना और नाटक मंडली तक सीमित रहता है। वेबस्टर डिक्शनरी में भी कुछ ऐसे ही अर्थ बताया गया है। |
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| | संस्कृति और सभ्यता इन दो विषयों में भी बहुत अस्पष्टता दिखाई देती है। अंग्रेजी में सिव्हिलायझेशन शब्द का प्रयोग सभ्यता इस शब्द के लिए किया जाता है। सिव्हिलायझेशन शब्द सिव्हिल शब्द से बना है। ऑक्स्फ़र्ड डिक्शनरी के अनुसार सिव्हिल शब्द के दो अर्थ दिए हैं। | | संस्कृति और सभ्यता इन दो विषयों में भी बहुत अस्पष्टता दिखाई देती है। अंग्रेजी में सिव्हिलायझेशन शब्द का प्रयोग सभ्यता इस शब्द के लिए किया जाता है। सिव्हिलायझेशन शब्द सिव्हिल शब्द से बना है। ऑक्स्फ़र्ड डिक्शनरी के अनुसार सिव्हिल शब्द के दो अर्थ दिए हैं। |
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| − | १. ऑफ़ सिटीझन्स; नॉट ऑफ़ द आर्म्ड फोर्सेस ऑर चर्च। याने नागरिकों नागरिकों का; सेना या चर्चा का नहीं। | + | १. ऑफ़ सिटीझन्स; नॉट ऑफ़ द आर्म्ड फोर्सेस ऑर चर्च। याने नागरिकों का; सेना या चर्चा का नहीं। |
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| | २. ‘पोलाइट एंड ओब्लाइझिंग’। याने नम्र और उपकारी। इन दो अर्थों में से पहला अर्थ ही यहाँ लागू होता है। | | २. ‘पोलाइट एंड ओब्लाइझिंग’। याने नम्र और उपकारी। इन दो अर्थों में से पहला अर्थ ही यहाँ लागू होता है। |
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| | अब अच्छे और बुरे संस्कार का अर्थ क्या है। अच्छे बुरे का संबंध किये जानेवाले काम से है। एक ही काम को स्थल-काल में अंतर के कारण कभी अच्छा कभी बुरा माना जा सकता है। या एक ही काम को एक समाज अच्छा मानता है और दूसरा समाज उसे बुरा मानता है। जैसे मूर्तिपूजा का विषय लें। | | अब अच्छे और बुरे संस्कार का अर्थ क्या है। अच्छे बुरे का संबंध किये जानेवाले काम से है। एक ही काम को स्थल-काल में अंतर के कारण कभी अच्छा कभी बुरा माना जा सकता है। या एक ही काम को एक समाज अच्छा मानता है और दूसरा समाज उसे बुरा मानता है। जैसे मूर्तिपूजा का विषय लें। |
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| − | इस्लाम मूर्तिपूजा को छोड़ें मूर्ति तोड़ने को अच्छा काम मानता है। जब कि हिन्दू मूर्तिपूजा को आदर से देखता है, अच्छा मानता है। इस अच्छे और बुरे की कसौटी क्या है? किसी समाज में वह काम जीवन के लक्ष्य की ओर ले जानेवाला होने से अच्छा बन जाता है। और लक्ष्य से अन्यत्र ले जानेवाला काम बुरा बन जाता है। | + | इस्लाम मूर्ति तोड़ने को अच्छा काम मानता है। जब कि हिन्दू मूर्तिपूजा को आदर से देखता है, अच्छा मानता है। इस अच्छे और बुरे की कसौटी क्या है? किसी समाज में वह काम जीवन के लक्ष्य की ओर ले जानेवाला होने से अच्छा बन जाता है। और लक्ष्य से अन्यत्र ले जानेवाला काम बुरा बन जाता है। |
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| | इस्लाम में जन्नत एक लक्ष्य है। मोहम्मद पैगंबर के व्यवहार का अनुसरण करने से जन्नत मिलेगी ऐसी इस्लाम की मान्यता है। अतः उनकी तरह ही मूर्तियों को तोड़ना यह इस्लाम के लिए अच्छी बात हो जाती है। जब की मूर्ति के रूप में एक आलंबन सामने रखकर मन को परमात्मा के चिंतन में लगाने से मनुष्य मोक्ष की ओर बढ़ता है ऐसा मानने के कारण मूर्ति पूजा अच्छा काम हो जाता है। | | इस्लाम में जन्नत एक लक्ष्य है। मोहम्मद पैगंबर के व्यवहार का अनुसरण करने से जन्नत मिलेगी ऐसी इस्लाम की मान्यता है। अतः उनकी तरह ही मूर्तियों को तोड़ना यह इस्लाम के लिए अच्छी बात हो जाती है। जब की मूर्ति के रूप में एक आलंबन सामने रखकर मन को परमात्मा के चिंतन में लगाने से मनुष्य मोक्ष की ओर बढ़ता है ऐसा मानने के कारण मूर्ति पूजा अच्छा काम हो जाता है। |
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| | == वर्तमान जीवन की गति और संस्कृति == | | == वर्तमान जीवन की गति और संस्कृति == |
| − | विश्व गति करता है इसीलिये विश्व को जगत भी कहते हैं। गति ही जीवन है। गतिशून्यता मृत्यू है। अतः जीवन चलते रहने के लिए गति आवश्यक होती है। लेकिन जीवन की गति जब बहुत अधिक हो जाती है तब बड़ी मात्रा में समाज के दुर्बल घटक उस गति के साथ चल नहीं पाते। ऐसा होने से वे अन्यों से पिछड़ जाते हैं। दु:खी हो जाते हैं। लेकिन जीवन जब इष्ट गति से चलता है तब वह सबको सुखमय होता है। इष्ट गति से तात्पर्य उस गति से है जिस गति से समाज का अंतिम व्यक्ति भी साथ चल सके। इष्ट गति से कम या अधिक गति जब समाज जीवन को मिलती है तब समाज सुख से दूर जाता है। वर्तमान में जीवन को जो गति मिली है वह जीवन की इष्ट गति से बहुत ही अधिक है। इस बढ़ी हुई गति के कारण जीवन में किसी भी प्रकार का ठहराव नहीं आ पाता। ठहराव, विकास का विरोधी है ऐसी भावना व्याप्त हो गयी है। केवल ठहराव ही नहीं तो कम गति भी विकास के विरोध में मानी जाती है। वर्तमान जीवन ने लोगोंं को पगढ़ीला बना दिया है। आवागमन के क्षिप्रा गति के साधनों के कारण समाज घुमंतू बन रहा है। घुमंतू जातियों की भी कुछ संस्कृति होती है। क्यों कि घुमंतू स्वभाव छोड़ दें तो उनका जीवन ठहराव से भरा रहता है। घुमंतू स्वभाव के कारण संस्कृति शायद श्रेष्ठ नहीं होगी लेकिन होती अवश्य है। लेकिन वर्तमान तंत्रज्ञान के, और तेजी से विकास की तीव्र इच्छा के कारण समाज में कोई ठहराव की संभावनाएं नहीं रहतीं। | + | विश्व गति करता है इसीलिये विश्व को जगत भी कहते हैं। गति ही जीवन है। गतिशून्यता मृत्यू है। अतः जीवन चलते रहने के लिए गति आवश्यक होती है। लेकिन जीवन की गति जब बहुत अधिक हो जाती है तब बड़ी मात्रा में समाज के दुर्बल घटक उस गति के साथ चल नहीं पाते। ऐसा होने से वे अन्यों से पिछड़ जाते हैं। दु:खी हो जाते हैं। लेकिन जीवन जब इष्ट गति से चलता है तब वह सबको सुखमय होता है। इष्ट गति से तात्पर्य उस गति से है जिस गति से समाज का अंतिम व्यक्ति भी साथ चल सके। इष्ट गति से कम या अधिक गति जब समाज जीवन को मिलती है तब समाज सुख से दूर जाता है। वर्तमान में जीवन को जो गति मिली है वह जीवन की इष्ट गति से बहुत ही अधिक है। इस बढ़ी हुई गति के कारण जीवन में किसी भी प्रकार का ठहराव नहीं आ पाता। ठहराव, विकास का विरोधी है ऐसी भावना व्याप्त हो गयी है। केवल ठहराव ही नहीं तो कम गति भी विकास के विरोध में मानी जाती है। वर्तमान जीवन ने लोगोंं को पगढ़ीला बना दिया है। आवागमन के क्षिप्रा गति के साधनों के कारण समाज घुमंतू बन रहा है। घुमंतू जातियों की भी कुछ संस्कृति होती है। क्यों कि घुमंतू स्वभाव छोड़ दें तो उनका जीवन ठहराव से भरा रहता है। घुमंतू स्वभाव के कारण संस्कृति संभवतः श्रेष्ठ नहीं होगी लेकिन होती अवश्य है। लेकिन वर्तमान तंत्रज्ञान के, और तेजी से विकास की तीव्र इच्छा के कारण समाज में कोई ठहराव की संभावनाएं नहीं रहतीं। |
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| | लेकिन जीवन जब तक इष्ट गति से नहीं चलता उसमें धर्म की भावना, संस्कृति पनप ही नहीं सकती। संस्कृति के लिए ठहराव आवश्यक होता है। लेकिन ठहराव से तो जीवन ही नष्ट हो जाएगा। अतः इष्ट गति वह गति है जिसमें धर्म तथा संस्कृति के पनपने के लिए वातावरण रहे। जब समाज के सारे लोग समान (इष्ट) गति से आगे बढ़ाते हैं तब वे एक सापेक्ष ठहराव की स्थिति को प्राप्त करते हैं। यह सापेक्ष ठहराव ही संस्कृति के विकास के लिए भूमि बनाता है। वर्तमान जीवन की गति विश्व की सभी समाजों की संस्कृतियों को नष्ट कर रही हैं। विश्व के सभी राष्ट्रों के सम्मुख संस्कृति की रक्षा की चुनौती निर्माण हो गयी है। यह गति जिस सामाजिक जीवन के अधार्मिक (अधार्मिक) प्रतिमान में हम जी रहे हैं उसका स्वाभाविक परिणाम है। | | लेकिन जीवन जब तक इष्ट गति से नहीं चलता उसमें धर्म की भावना, संस्कृति पनप ही नहीं सकती। संस्कृति के लिए ठहराव आवश्यक होता है। लेकिन ठहराव से तो जीवन ही नष्ट हो जाएगा। अतः इष्ट गति वह गति है जिसमें धर्म तथा संस्कृति के पनपने के लिए वातावरण रहे। जब समाज के सारे लोग समान (इष्ट) गति से आगे बढ़ाते हैं तब वे एक सापेक्ष ठहराव की स्थिति को प्राप्त करते हैं। यह सापेक्ष ठहराव ही संस्कृति के विकास के लिए भूमि बनाता है। वर्तमान जीवन की गति विश्व की सभी समाजों की संस्कृतियों को नष्ट कर रही हैं। विश्व के सभी राष्ट्रों के सम्मुख संस्कृति की रक्षा की चुनौती निर्माण हो गयी है। यह गति जिस सामाजिक जीवन के अधार्मिक (अधार्मिक) प्रतिमान में हम जी रहे हैं उसका स्वाभाविक परिणाम है। |
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| | == धार्मिक संस्कृति की श्रेष्ठता == | | == धार्मिक संस्कृति की श्रेष्ठता == |
| − | भारत ने कभी भी आक्रमण नहीं किया। दूसरे पर किसी भी कारण के बिना लूटपाट के लिए, अत्याचार के लिए आक्रमण करना यह एक मानवीय विकृति है। विश्व में ऐसा शायद एक भी समाज का उदाहरण नहीं है जो बलवान बना और उसने औरों की लूट करने के लिए, औरों को गुलाम बनाने के लिए अन्य समाजों पर आक्रमण नहीं किये। तथापि धार्मिक संस्कृति ने दुनिया को जीता था। कैसे ? वैसे तो ईसा पूर्व के काल में कुछ सैनिक अभियान भी हुए लेकिन वे कभी भी जनता की लूटमार करने के लिए नहीं हुए। धार्मिक संस्कृति के वैश्विक विस्तार के कारण सभी राज्यों की जनता समान संस्कृति की थी। अतः वे आक्रमण एक राष्ट्र द्वारा दूसरे राष्ट्र पर किये हुए आक्रमण के स्वरूप के नहीं थे। एक ही राष्ट्र के अन्दर होनेवाले राजाओं के संघर्ष जैसे ही थे। | + | भारत ने कभी भी आक्रमण नहीं किया। दूसरे पर किसी भी कारण के बिना लूटपाट के लिए, अत्याचार के लिए आक्रमण करना यह एक मानवीय विकृति है। विश्व में ऐसा संभवतः एक भी समाज का उदाहरण नहीं है जो बलवान बना और उसने औरों की लूट करने के लिए, औरों को गुलाम बनाने के लिए अन्य समाजों पर आक्रमण नहीं किये। तथापि धार्मिक संस्कृति ने दुनिया को जीता था। कैसे ? वैसे तो ईसा पूर्व के काल में कुछ सैनिक अभियान भी हुए लेकिन वे कभी भी जनता की लूटमार करने के लिए नहीं हुए। धार्मिक संस्कृति के वैश्विक विस्तार के कारण सभी राज्यों की जनता समान संस्कृति की थी। अतः वे आक्रमण एक राष्ट्र द्वारा दूसरे राष्ट्र पर किये हुए आक्रमण के स्वरूप के नहीं थे। एक ही राष्ट्र के अन्दर होनेवाले राजाओं के संघर्ष जैसे ही थे। |
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| | == धार्मिक संस्कृति का विश्वसंचार == | | == धार्मिक संस्कृति का विश्वसंचार == |