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| | * भूमि का तर्कसंगत उपयोग (Rational use of land) - भूमि का बुद्धिमत्तापूर्वक, सही उद्देश्य के लिए और नियोजित तरीके से उपयोग करना। | | * भूमि का तर्कसंगत उपयोग (Rational use of land) - भूमि का बुद्धिमत्तापूर्वक, सही उद्देश्य के लिए और नियोजित तरीके से उपयोग करना। |
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| − | अग्निपुराण के अनुसार नगर वसाने के लिए चार कोस, दो कोस या एक कोस तक का स्थान चुनना चाहिए तथा नगरवास्तु की पूजा करके परकोटा खिंचवा देना चाहिए। | + | तैत्तिरीय संहिता में नगर शब्द का उल्लेख पुर के अर्थ में हुआ है - <blockquote>नैतमृषिं विदित्वा नगरं प्रविशेत्॥ (तैत्तिरीय संहिता)<ref>[https://sa.wikisource.org/wiki/%E0%A4%A4%E0%A5%88%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A3%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%95%E0%A4%AE%E0%A5%8D(%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%B0)/%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%A0%E0%A4%95%E0%A4%83_%E0%A5%A7prapaa तैत्तिरीय आरण्यकम्], प्रपाठकः - १, अनुवाक - ११।</ref></blockquote>अग्निपुराण के अनुसार नगर वसाने के लिए चार कोस, दो कोस या एक कोस तक का स्थान चुनना चाहिए तथा नगरवास्तु की पूजा करके परकोटा खिंचवा देना चाहिए। |
| − | * नगर के पूर्व दिशा का द्वार सूर्य पद के सम्मुख | + | *नगर के पूर्व दिशा का द्वार सूर्य पद के सम्मुख |
| | *दक्षिण दिशा का द्वार गन्धर्व पद में | | *दक्षिण दिशा का द्वार गन्धर्व पद में |
| − | *पश्चिम दिशा का द्वार वरुण पद में | + | * पश्चिम दिशा का द्वार वरुण पद में |
| | *उत्तर दिशा का द्वार सोम पद सम्मुख रहना चाहिये। | | *उत्तर दिशा का द्वार सोम पद सम्मुख रहना चाहिये। |
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| | *नगर निवेश के वास्तुशास्त्रीय दृष्टिकोण से चारों दिशाओं में द्वार होने चाहिये। | | *नगर निवेश के वास्तुशास्त्रीय दृष्टिकोण से चारों दिशाओं में द्वार होने चाहिये। |
| − | * नगर के सभी द्वार गोपुरों से परिवेष्ठित होने चाहिये। | + | *नगर के सभी द्वार गोपुरों से परिवेष्ठित होने चाहिये। |
| | *नगरमें वास भवनों का सम्यक विन्यास होना चाहिये। | | *नगरमें वास भवनों का सम्यक विन्यास होना चाहिये। |
| | *नगर मापन | | *नगर मापन |
| | *भूमि संग्रह -भूमि चयन | | *भूमि संग्रह -भूमि चयन |
| | *नगर दिक परीक्षा | | *नगर दिक परीक्षा |
| − | *पद - विन्यास | + | * पद - विन्यास |
| | *नगराभ्युदयिक शान्तिक एवं बलिकर्म विधान | | *नगराभ्युदयिक शान्तिक एवं बलिकर्म विधान |
| | *मार्ग - विन्यास | | *मार्ग - विन्यास |
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| | नगर-व्यवस्था के तीन प्रमुख अंग थे - 1. परिख (Moat), 2. प्राकार - नगर के चारों ओर बनी सुरक्षा दीवार (Rampart) 3. द्वार (Gate)। बौद्ध जातक ग्रंथो में पत्तन (Port Town), निगम (Market Town) एवं दुर्ग (Fort) का वर्णन है। | | नगर-व्यवस्था के तीन प्रमुख अंग थे - 1. परिख (Moat), 2. प्राकार - नगर के चारों ओर बनी सुरक्षा दीवार (Rampart) 3. द्वार (Gate)। बौद्ध जातक ग्रंथो में पत्तन (Port Town), निगम (Market Town) एवं दुर्ग (Fort) का वर्णन है। |
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| − | ==नगर विन्यास एवं भवन निवेश॥ Nagar Vinyasa evam Bhavan Nivesh == | + | ==नगर विन्यास एवं भवन निवेश॥ Nagar Vinyasa evam Bhavan Nivesh== |
| | गृह में वास करने के कारण ही गृहस्थ कहा जाता है। एक निश्चित स्थान में स्थित रहकर त्रिवर्ग (धर्म, अर्थ एवं काम) का सेवन करते हुए एक धार्मिक समाज का निर्माण करने वाला ही गृहस्थ कहलाता है -<ref>प्रो० देवीप्रसाद त्रिपाठी, [https://archive.org/details/bWMC_vastu-shastra-vimarsha-of-prof.-vachaspati-upadhyaya-with-prof.-prem-kumar-sharm/page/n3/mode/1up वास्तुशास्त्रविमर्श-सम्पादकीय,] सन २०१०, श्री लालबहादुर शास्त्री राष्ट्रिय संस्कृत विद्यापीठ, नव देहली (पृ० ४)।</ref> <blockquote>त्रिवर्गसेवी सततं देवतानां च पूजनम्। कुर्यादहरहर्नित्यं नमस्येत् प्रयतः सुरान्॥ | | गृह में वास करने के कारण ही गृहस्थ कहा जाता है। एक निश्चित स्थान में स्थित रहकर त्रिवर्ग (धर्म, अर्थ एवं काम) का सेवन करते हुए एक धार्मिक समाज का निर्माण करने वाला ही गृहस्थ कहलाता है -<ref>प्रो० देवीप्रसाद त्रिपाठी, [https://archive.org/details/bWMC_vastu-shastra-vimarsha-of-prof.-vachaspati-upadhyaya-with-prof.-prem-kumar-sharm/page/n3/mode/1up वास्तुशास्त्रविमर्श-सम्पादकीय,] सन २०१०, श्री लालबहादुर शास्त्री राष्ट्रिय संस्कृत विद्यापीठ, नव देहली (पृ० ४)।</ref> <blockquote>त्रिवर्गसेवी सततं देवतानां च पूजनम्। कुर्यादहरहर्नित्यं नमस्येत् प्रयतः सुरान्॥ |
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| | #भूमि-चयन - Site Selection | | #भूमि-चयन - Site Selection |
| | #दिक्-परिच्छेद - Determination of Cardinal Points | | #दिक्-परिच्छेद - Determination of Cardinal Points |
| − | #पद विन्यास - Survey and mapping of the arc and marking into squares | + | # पद विन्यास - Survey and mapping of the arc and marking into squares |
| | #बलिकर्मविधान - Sacrificial rituals | | #बलिकर्मविधान - Sacrificial rituals |
| | #ग्राम-नगर विन्यास - Layout and planning of Village and City | | #ग्राम-नगर विन्यास - Layout and planning of Village and City |
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| | [[File:अर्थशास्त्र में नगर प्रकार .jpg|thumb|320x320px|ग्राम आधारित - नगर संज्ञा]] | | [[File:अर्थशास्त्र में नगर प्रकार .jpg|thumb|320x320px|ग्राम आधारित - नगर संज्ञा]] |
| | आचार्य कौटिल्य ने अर्थशास्त्र में नगरों की सुरक्षा के लिए जो उपाय सुझाए हैं उनके अनुरूप ही तद्युगीन नगर बसाए गए। नगर के विविध हिस्सों में कोषगृह, कोष्ठागार, पण्यगृह, कुप्यगृह (अन्नागार), शस्त्रागार एवं कारागार जैसे महत्वपूर्ण भवनों के निर्माण का सन्दर्भ भी अर्थशास्त्र में मिलता है। कौटिल्य ने राजधानी नगर के निर्माण के सम्बन्ध में तथा शत्रु से उसकी रक्षा करने के लिए नगर सीमा के चारों ओर नाना प्रकार के दुर्गों के निर्माण के सम्बन्ध में तथा शत्रु से उसकी रक्षा करने के लिए नगर सीमा के चारों ओर नाना प्रकार के दुर्गों के निर्माण का विधान किया है। कौटिल्य के अर्थशास्त्र के अनुसार - | | आचार्य कौटिल्य ने अर्थशास्त्र में नगरों की सुरक्षा के लिए जो उपाय सुझाए हैं उनके अनुरूप ही तद्युगीन नगर बसाए गए। नगर के विविध हिस्सों में कोषगृह, कोष्ठागार, पण्यगृह, कुप्यगृह (अन्नागार), शस्त्रागार एवं कारागार जैसे महत्वपूर्ण भवनों के निर्माण का सन्दर्भ भी अर्थशास्त्र में मिलता है। कौटिल्य ने राजधानी नगर के निर्माण के सम्बन्ध में तथा शत्रु से उसकी रक्षा करने के लिए नगर सीमा के चारों ओर नाना प्रकार के दुर्गों के निर्माण के सम्बन्ध में तथा शत्रु से उसकी रक्षा करने के लिए नगर सीमा के चारों ओर नाना प्रकार के दुर्गों के निर्माण का विधान किया है। कौटिल्य के अर्थशास्त्र के अनुसार - |
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| | + | अष्टशतग्राम्या मध्ये स्थानीयं, चतुश्शतग्राम्या द्रोणमुखं, द्विशतग्राम्याः खार्वटिकं, दशग्रामीसङ्ग्रहेण सङ्ग्रहणं स्थापयेत्॥ (अर्थशास्त्र)<ref>आचार्य कौटिल्य, अनुवादक-वाचस्पति गैरोला, [https://archive.org/details/arthasastraofkautilyachanakyasutravachaspatigairolachowkambha_202002/page/n2/mode/1up अर्थशास्त्र-अनुवाद सहित], सन १९८४, चौखम्बा सुरभारती प्रकाशन, वाराणसी (पृ० ७७)। </ref> |
| | *ग्राम की लंबाई 1-2 क्रोश (कोस) होनी चाहिए। | | *ग्राम की लंबाई 1-2 क्रोश (कोस) होनी चाहिए। |
| | *800 ग्रामों के केंद्र में एक स्थानीय (Distt. Town) होना चाहिए। | | *800 ग्रामों के केंद्र में एक स्थानीय (Distt. Town) होना चाहिए। |
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| | राष्ट्रं खेटमथ ग्रामं पश्यतस्तौ पुरं च यत्। तत्रारोग्यार्थसंसिद्धी प्रजाविजयमादिशेत्॥ (समरांगणसूत्रधार)<ref>महाराज भोजदेव, [https://archive.org/details/in.ernet.dli.2015.369658/page/n95/mode/1up समरांगणसूत्रधार-पुरनिवेश अध्याय], सन-१९२४, सेंट्रल लाईब्रेरी, बरौदा, अध्याय १०, श्लोक-१०४-१०५ (पृ० ४७)।</ref></blockquote>मत्स्य पुराण के अनुसार देव मंदिर का निर्माण कराने वाले को या देव मंदिर का सुधार, रख रखाब पुनरुद्धार मरम्मत इत्यादि कार्य करने वालों को जब तक उस मंदिर का अस्तित्त्व रहता है तब तक उस व्यक्ति को कुल परिवार और पूर्वजों सहित भगवान श्री हरि विष्णु जी के लोक में वास करने का सौभाग्य प्राप्त होता है। | | राष्ट्रं खेटमथ ग्रामं पश्यतस्तौ पुरं च यत्। तत्रारोग्यार्थसंसिद्धी प्रजाविजयमादिशेत्॥ (समरांगणसूत्रधार)<ref>महाराज भोजदेव, [https://archive.org/details/in.ernet.dli.2015.369658/page/n95/mode/1up समरांगणसूत्रधार-पुरनिवेश अध्याय], सन-१९२४, सेंट्रल लाईब्रेरी, बरौदा, अध्याय १०, श्लोक-१०४-१०५ (पृ० ४७)।</ref></blockquote>मत्स्य पुराण के अनुसार देव मंदिर का निर्माण कराने वाले को या देव मंदिर का सुधार, रख रखाब पुनरुद्धार मरम्मत इत्यादि कार्य करने वालों को जब तक उस मंदिर का अस्तित्त्व रहता है तब तक उस व्यक्ति को कुल परिवार और पूर्वजों सहित भगवान श्री हरि विष्णु जी के लोक में वास करने का सौभाग्य प्राप्त होता है। |
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| − | कौटिल्य का नगर नियोजन न केवल भौतिक संरचना तक सीमित था, अपितु उसमें सामाजिक, आर्थिक, पर्यावरणीय, धार्मिक और नैतिक पक्षों का गहरा समावेश था। कौटिल्य का यह दृष्टिकोण आज के स्मार्ट सिटी मॉडल की नींव रखने वाला एक समग्र एवं दूरदर्शी विचार है। | + | कौटिल्य का नगर नियोजन न केवल भौतिक संरचना तक सीमित था, अपितु उसमें सामाजिक, आर्थिक, पर्यावरणीय, धार्मिक और नैतिक पक्षों का गहरा समावेश था। कौटिल्य का यह दृष्टिकोण आज के स्मार्ट सिटी मॉडल की नींव रखने वाला एक समग्र एवं दूरदर्शी विचार है।<ref>हृषिकेश प्रधान, [https://www.anantaajournal.com/archives/2023/vol9issue1/PartD/9-1-26-744.pdf प्राचीन भारत में नगर योजना], सन २०२३, इन्टरनेशनल जर्नल ऑफ संस्कृत रिसर्च (पृ० १९९)।</ref> |
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| − | == नगर के प्रमुख प्रकार॥ Nagar ke Pramukh Prakara == | + | ==नगर के प्रमुख प्रकार॥ Nagar ke Pramukh Prakara== |
| | '''राजधानी''' | | '''राजधानी''' |
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