Changes

Jump to navigation Jump to search
सुधार जारी
Line 1: Line 1:  +
{{ToBeEdited}}
 +
 
हमारी भारतीय संस्कृति में ज्योतिष एवं गणित की समृद्ध परम्परा रही है। ज्योतिष ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति, गति तथा उनके साथ हमारा संबंध बताने वाली विद्या एवं वहीं गणित के माध्यम से ग्रहों की गति, स्थिति एवं दूरी आदि की गणना की जाती है। इस प्रकार से ज्योतिष के सिद्धान्त स्कन्ध (खगोल शास्त्र) के साथ गणित का प्रयोग देखा जाता है। गणित समस्त विज्ञान का मूल है। सृष्टि की प्रत्येक वस्तु में गति है, गति का संबंध गणना से है एवं संसार की प्रत्येक वस्तु किसी नियम से बद्ध है, उसमें कोई क्रम है। उस नियम, क्रम एवं गणना का ज्ञान गणित का विषय है। ग्रह, नक्षत्र एवं पृथिवी की गति के ज्ञान से ही सूर्योदय-सूर्यास्त, सूर्यग्रहण-चंद्रग्रहण, भू-परिक्रमण एवं परिभ्रमण आदि का ज्ञान होता है। गणना हेतु ज्योतिष-शास्त्र में गणित का प्रयोग देखा जाता है। स्थान और समय का निर्धारण गणित के आधार पर ही होता है। गणित के द्वारा गति का आकलन किया जाता है, अतः ज्योतिष एवं गणित का अन्योन्याश्रय संबंध है।
 
हमारी भारतीय संस्कृति में ज्योतिष एवं गणित की समृद्ध परम्परा रही है। ज्योतिष ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति, गति तथा उनके साथ हमारा संबंध बताने वाली विद्या एवं वहीं गणित के माध्यम से ग्रहों की गति, स्थिति एवं दूरी आदि की गणना की जाती है। इस प्रकार से ज्योतिष के सिद्धान्त स्कन्ध (खगोल शास्त्र) के साथ गणित का प्रयोग देखा जाता है। गणित समस्त विज्ञान का मूल है। सृष्टि की प्रत्येक वस्तु में गति है, गति का संबंध गणना से है एवं संसार की प्रत्येक वस्तु किसी नियम से बद्ध है, उसमें कोई क्रम है। उस नियम, क्रम एवं गणना का ज्ञान गणित का विषय है। ग्रह, नक्षत्र एवं पृथिवी की गति के ज्ञान से ही सूर्योदय-सूर्यास्त, सूर्यग्रहण-चंद्रग्रहण, भू-परिक्रमण एवं परिभ्रमण आदि का ज्ञान होता है। गणना हेतु ज्योतिष-शास्त्र में गणित का प्रयोग देखा जाता है। स्थान और समय का निर्धारण गणित के आधार पर ही होता है। गणित के द्वारा गति का आकलन किया जाता है, अतः ज्योतिष एवं गणित का अन्योन्याश्रय संबंध है।
   −
== परिचय==
+
== परिचय॥ Introduction ==
 
गणित शब्द वैदिककाल में अपने मूलरूप में नहीं पाया जाता है तथापि उनमें गण गणपति और गण्या शब्द ऋग्वेद में उपलब्ध हैं। गणित के अन्य नाम गणना, संख्यान, संख्याशास्त्र, अंकविद्या, राशिविद्या आदि संस्कृत साहित्य में दृष्टिगत होते हैं। वैदिककाल में गणित नक्षत्रविद्या के अंतर्गत स्वीकार्य था क्योंकि धर्मपरायण भारतीय यज्ञप्रेमी थे। यज्ञफल की प्राप्ति तभी संभव थी जब उसका अनुष्ठान यथाकाल-यथानक्षत्र में किया जाए, यह गणना गणित द्वारा ही ज्ञात करना संभव थी। अतः ज्योतिष शास्त्र के सिद्धान्त स्कन्ध स्वरूप अंग रूप में  में गणित का विकास हुआ, जिससे ग्रहों के गति की गणना द्वारा तिथि-नक्षत्रों,पर्वों का ठीक-ठीक ज्ञान हो सका। इस प्रकार यज्ञरूप कारण से गणित का आविर्भाव हुआ। निरोगत प्रदान करने वाले यज्ञों का अनुष्ठान ऋतुओं की संधियों अथवा पर्वों की संधियों पर आयोजित किया जाता था। प्रातः सायं की संधियों, पक्ष की संधियों, मास की संधियों, ऋतु परिवर्तन की संधियों, चतुर्मास की संधियों, उत्तरायण-दक्षिणायन की संधियों में सम्पन्न यज्ञ सम्पूर्ण वर्ष आरोग्य, समृद्धि, मनःशांति आदि के लिए लाभकारी होते थे। जैसा कि कहा भी है  -<blockquote>यज्ञो वै संवत्सरः।</blockquote>ऋग्वेद के एक मंत्र में ज्योतिष संबंधि वार्षिक तिथियों की गणना के लिए अनेक गणितीय पदों का समावेश किया है - <blockquote>द्वादश प्रधयश्चक्रमेकं त्रीणि नम्यानि क उ तच्चिकेत। तस्मिन् साकं त्रिशता न शंकवोऽर्पिताः षष्टिर्न चलाचला सः॥  </blockquote>प्रस्तुत मंत्र में 12 भागों में विभक्त 360 अंश के चक्र को तीन नाभियों (सर्दी, गर्मी, वर्षा) में विभक्त कहा है। इस चक्र का वर्णन महाभारत में भी उल्लिखित है - <blockquote>चतुर्विंशतिपर्व त्वां षण्णभि द्वादशप्रधि। तत्त्रिषष्टि शतं वै तु चक्रं पातु सदागति॥</blockquote>हे राजन्! 24 पर्व (पक्ष), छः नाभियां (ऋतुएं), 12 घेरे (मास) व 360 अरों (दिनों) वाला चक्र तुम्हारा कल्याण करें। इस चक्र से सूर्य की प्रदक्षिणा मार्ग का ज्ञान वैदिक ऋषियों को होता था, जिससे वे दिशाओं तथा 13वें अधिकमास की भी गणना कर लेते थे। वैदिक ऋषि ग्रहण गणना भी जानते थे। ज्योतिष तथा गणित शास्त्र की श्रुतिमूलकता के संदर्भ में सर्व प्रथम वेदों के अंतर्गत गणित के अंकुरों पर विचार किया जाएगा। स्थूल रूप से ज्योतिषशास्त्र के मुख्यतः दो भेद किए जाते हैं - गणित तथा फलित ।   
 
गणित शब्द वैदिककाल में अपने मूलरूप में नहीं पाया जाता है तथापि उनमें गण गणपति और गण्या शब्द ऋग्वेद में उपलब्ध हैं। गणित के अन्य नाम गणना, संख्यान, संख्याशास्त्र, अंकविद्या, राशिविद्या आदि संस्कृत साहित्य में दृष्टिगत होते हैं। वैदिककाल में गणित नक्षत्रविद्या के अंतर्गत स्वीकार्य था क्योंकि धर्मपरायण भारतीय यज्ञप्रेमी थे। यज्ञफल की प्राप्ति तभी संभव थी जब उसका अनुष्ठान यथाकाल-यथानक्षत्र में किया जाए, यह गणना गणित द्वारा ही ज्ञात करना संभव थी। अतः ज्योतिष शास्त्र के सिद्धान्त स्कन्ध स्वरूप अंग रूप में  में गणित का विकास हुआ, जिससे ग्रहों के गति की गणना द्वारा तिथि-नक्षत्रों,पर्वों का ठीक-ठीक ज्ञान हो सका। इस प्रकार यज्ञरूप कारण से गणित का आविर्भाव हुआ। निरोगत प्रदान करने वाले यज्ञों का अनुष्ठान ऋतुओं की संधियों अथवा पर्वों की संधियों पर आयोजित किया जाता था। प्रातः सायं की संधियों, पक्ष की संधियों, मास की संधियों, ऋतु परिवर्तन की संधियों, चतुर्मास की संधियों, उत्तरायण-दक्षिणायन की संधियों में सम्पन्न यज्ञ सम्पूर्ण वर्ष आरोग्य, समृद्धि, मनःशांति आदि के लिए लाभकारी होते थे। जैसा कि कहा भी है  -<blockquote>यज्ञो वै संवत्सरः।</blockquote>ऋग्वेद के एक मंत्र में ज्योतिष संबंधि वार्षिक तिथियों की गणना के लिए अनेक गणितीय पदों का समावेश किया है - <blockquote>द्वादश प्रधयश्चक्रमेकं त्रीणि नम्यानि क उ तच्चिकेत। तस्मिन् साकं त्रिशता न शंकवोऽर्पिताः षष्टिर्न चलाचला सः॥  </blockquote>प्रस्तुत मंत्र में 12 भागों में विभक्त 360 अंश के चक्र को तीन नाभियों (सर्दी, गर्मी, वर्षा) में विभक्त कहा है। इस चक्र का वर्णन महाभारत में भी उल्लिखित है - <blockquote>चतुर्विंशतिपर्व त्वां षण्णभि द्वादशप्रधि। तत्त्रिषष्टि शतं वै तु चक्रं पातु सदागति॥</blockquote>हे राजन्! 24 पर्व (पक्ष), छः नाभियां (ऋतुएं), 12 घेरे (मास) व 360 अरों (दिनों) वाला चक्र तुम्हारा कल्याण करें। इस चक्र से सूर्य की प्रदक्षिणा मार्ग का ज्ञान वैदिक ऋषियों को होता था, जिससे वे दिशाओं तथा 13वें अधिकमास की भी गणना कर लेते थे। वैदिक ऋषि ग्रहण गणना भी जानते थे। ज्योतिष तथा गणित शास्त्र की श्रुतिमूलकता के संदर्भ में सर्व प्रथम वेदों के अंतर्गत गणित के अंकुरों पर विचार किया जाएगा। स्थूल रूप से ज्योतिषशास्त्र के मुख्यतः दो भेद किए जाते हैं - गणित तथा फलित ।   
   Line 10: Line 12:  
'''अव्यक्त गणित -''' जहां अंक के स्थान में अक्षर को मानकर संयोग-वियोग, गुणा-भाग आदि प्रक्रिया द्वारा गणित किया जाये उसे अव्यक्त गणित कहते हैं।
 
'''अव्यक्त गणित -''' जहां अंक के स्थान में अक्षर को मानकर संयोग-वियोग, गुणा-भाग आदि प्रक्रिया द्वारा गणित किया जाये उसे अव्यक्त गणित कहते हैं।
   −
==परिभाषा==
+
==परिभाषा॥ Definition==
 
ज्योतिष शास्त्र वास्तव में आकाश में ज्योतिष्मान पिण्डों की गति और स्थिति के ज्ञान का ही विज्ञान है। वह शास्त्र जिससे प्रकाशमान ग्रह-नक्षत्रों इत्यादि की गति और स्थिति का कलन या ज्ञान किया जाता है। जैसा कि कहा गया है -<blockquote>ज्योतिष्मतांग्रह-नक्षत्रादीनांगतिंस्तिथिञ्चाधिकृत्यकृतंशास्त्रम्।</blockquote>
 
ज्योतिष शास्त्र वास्तव में आकाश में ज्योतिष्मान पिण्डों की गति और स्थिति के ज्ञान का ही विज्ञान है। वह शास्त्र जिससे प्रकाशमान ग्रह-नक्षत्रों इत्यादि की गति और स्थिति का कलन या ज्ञान किया जाता है। जैसा कि कहा गया है -<blockquote>ज्योतिष्मतांग्रह-नक्षत्रादीनांगतिंस्तिथिञ्चाधिकृत्यकृतंशास्त्रम्।</blockquote>
 
अर्थात् गणना बिना गणित के संभव नहीं है। अत: गणित के बिना ज्योतिष का ज्ञान असंभव ही है। गणना सिद्धांत ज्योतिष का अनन्य और मूलभूत भाग है और इसे ही बहुधा गणित नाम से संबोधित किया गया है। इसके बिना ज्योतिष की कल्पना ही नहीं हो सकती। भारतीय परम्परा में गणेश दैवज्ञ ने अपने ग्रन्थ बुद्धिविलासिनी में गणित की परिभाषा निम्नवत की है - <blockquote>
 
अर्थात् गणना बिना गणित के संभव नहीं है। अत: गणित के बिना ज्योतिष का ज्ञान असंभव ही है। गणना सिद्धांत ज्योतिष का अनन्य और मूलभूत भाग है और इसे ही बहुधा गणित नाम से संबोधित किया गया है। इसके बिना ज्योतिष की कल्पना ही नहीं हो सकती। भारतीय परम्परा में गणेश दैवज्ञ ने अपने ग्रन्थ बुद्धिविलासिनी में गणित की परिभाषा निम्नवत की है - <blockquote>
Line 16: Line 18:  
अर्थात् गणना के आधार को बताने वाला शास्त्र गणित शास्त्र कहलाता है। पाणिनीय धातुपाठ में गण-संख्याने धातु है, जिस धातु का अर्थ है - गणना करना। गण धातु में इतच् प्रत्यय  लगाकर गिनना अर्थ में निष्पन्न है। अतः भारतीय चिन्तन में गणित अत्यन्त प्राचीन काल से हि खगोल विज्ञान के साथ ही विद्या विशेष के रूप में प्रयोग होता आ रहा है। <blockquote>विद्वान् विपश्चिद् दोषज्ञः संख्यावान् पण्डितो जनः। </blockquote>गणितशास्त्र के प्रति भारतीय ऋषियों के सम्मान को इसी तथ्य से समझा जा सकता है कि संख्यावान् अर्थात् गणितशास्त्र के ज्ञाता को ही विद्वान् कहा जाता था।
 
अर्थात् गणना के आधार को बताने वाला शास्त्र गणित शास्त्र कहलाता है। पाणिनीय धातुपाठ में गण-संख्याने धातु है, जिस धातु का अर्थ है - गणना करना। गण धातु में इतच् प्रत्यय  लगाकर गिनना अर्थ में निष्पन्न है। अतः भारतीय चिन्तन में गणित अत्यन्त प्राचीन काल से हि खगोल विज्ञान के साथ ही विद्या विशेष के रूप में प्रयोग होता आ रहा है। <blockquote>विद्वान् विपश्चिद् दोषज्ञः संख्यावान् पण्डितो जनः। </blockquote>गणितशास्त्र के प्रति भारतीय ऋषियों के सम्मान को इसी तथ्य से समझा जा सकता है कि संख्यावान् अर्थात् गणितशास्त्र के ज्ञाता को ही विद्वान् कहा जाता था।
   −
==प्रमुख ग्रन्थकार ==
+
==प्रमुख ग्रन्थकार॥ Pramukha Granthakara==
 
विश्व प्रसिद्ध महान गणितज्ञ भारत में हुए थे। उनमें से प्रमुख हैं -  
 
विश्व प्रसिद्ध महान गणितज्ञ भारत में हुए थे। उनमें से प्रमुख हैं -  
   −
*आर्यभट्ट
+
* आर्यभट्ट
 
*वराहमिहिर
 
*वराहमिहिर
* ब्रह्मगुप्त
+
*ब्रह्मगुप्त
 
*भास्कराचार्य
 
*भास्कराचार्य
 
*बौधायन
 
*बौधायन
Line 27: Line 29:  
सिद्धांत ज्योतिष को गणित उपजीवी कहा गया है। किन्तु प्राचीन समय में गणित के ही एक अंग के रूप में इसको भी माना गया था। इसलिए भास्कराचार्य जी ने सिद्धांतज्योतिष का लक्षण करते हुये यह दिखलाया है, कि सिद्धांतज्योतिष में अंकगणित, बीजगणित तथा यंत्र भी अवयव के रूप में गृहीत होना चाहिए। ज्योतिष शास्त्र को पढ़ने का अधिकार किसको है इसका वर्णन करते हुए भास्कराचार्य कहते हैं कि - <blockquote>द्विविधगणितमुक्तं व्यक्तमव्यक्त युक्तं तदवगमननिष्ठः शब्दशास्त्रे पटिष्ठः। यदि भवति तदेदं ज्योतिषं भूरिभेदं प्रपठितुमधिकारी सोऽन्यथानामधारी॥</blockquote>
 
सिद्धांत ज्योतिष को गणित उपजीवी कहा गया है। किन्तु प्राचीन समय में गणित के ही एक अंग के रूप में इसको भी माना गया था। इसलिए भास्कराचार्य जी ने सिद्धांतज्योतिष का लक्षण करते हुये यह दिखलाया है, कि सिद्धांतज्योतिष में अंकगणित, बीजगणित तथा यंत्र भी अवयव के रूप में गृहीत होना चाहिए। ज्योतिष शास्त्र को पढ़ने का अधिकार किसको है इसका वर्णन करते हुए भास्कराचार्य कहते हैं कि - <blockquote>द्विविधगणितमुक्तं व्यक्तमव्यक्त युक्तं तदवगमननिष्ठः शब्दशास्त्रे पटिष्ठः। यदि भवति तदेदं ज्योतिषं भूरिभेदं प्रपठितुमधिकारी सोऽन्यथानामधारी॥</blockquote>
   −
==ज्योतिष एवं गणित महत्व==
+
==ज्योतिष एवं गणित महत्व॥ Importance of astrology and Mathematics==
 
भारतीय परम्परा में गणेश दैवज्ञ ने अपने ग्रन्थ बुद्धिविलासिनी में गणित की परिभाषा निम्नवत की है-
 
भारतीय परम्परा में गणेश दैवज्ञ ने अपने ग्रन्थ बुद्धिविलासिनी में गणित की परिभाषा निम्नवत की है-
   Line 43: Line 45:  
(बहुत प्रलाप करने से क्या लाभ है ? इस चराचर जगत में जो कोई भी वस्तु है वह गणित के बिना नहीं है / उसको गणित के बिना नहीं समझा जा सकता)
 
(बहुत प्रलाप करने से क्या लाभ है ? इस चराचर जगत में जो कोई भी वस्तु है वह गणित के बिना नहीं है / उसको गणित के बिना नहीं समझा जा सकता)
   −
खगोल-विज्ञान के साथ तो गणित का अन्योन्य सम्बन्ध माना गया है। भास्कराचार्य का कहना है कि खगोल तथा गणित में एक दूसरे से अनभिज्ञ पुरुष उसी प्रकार महत्त्वहीन है, जैसे घृत के बिना व्यंजन, राजा के बिना राज्य तथा अच्छे वक्ता के बिना सभा होती है -  
+
खगोल-विज्ञान के साथ तो गणित का अन्योन्य सम्बन्ध माना गया है। भास्कराचार्य का कहना है कि खगोल तथा गणित में एक दूसरे से अनभिज्ञ पुरुष उसी प्रकार महत्त्वहीन है, जैसे घृत के बिना व्यंजन, राजा के बिना राज्य तथा अच्छे वक्ता के बिना सभा होती है - <blockquote>भोज्यं यता सर्वरसं विनाज्यं राज्यं यथा राजविवर्जितं च। सभा न भातीव सुवक्तृहीना गोलानभिज्ञो गणकस्तथात्र ॥ -- (सिद्धान्तशिरोमणि, गोलाध्याय, श्लोक 4) </blockquote>गणकों के गुण
 
  −
भोज्यं यता सर्वरसं विनाज्यं राज्यं यथा राजविवर्जितं च। सभा न भातीव सुवक्तृहीना गोलानभिज्ञो गणकस्तथात्र ॥ -- (सिद्धान्तशिरोमणि, गोलाध्याय, श्लोक 4)  
  −
 
  −
गणकों के गुण
      
गणितसारसंग्रह के संज्ञाधिकार के अन्त में महावीराचार्य ने गणकों (गणितज्ञों) के ८ गुण गिनाए हैं-
 
गणितसारसंग्रह के संज्ञाधिकार के अन्त में महावीराचार्य ने गणकों (गणितज्ञों) के ८ गुण गिनाए हैं-
Line 60: Line 58:  
महर्षि लगध ने वेदांग ज्योतिष में ग्रहों की स्थिति, काल एवं गति की गणना के सूत्र दिए गए हैं - <blockquote>तिथि मे का दशाम्य स्ताम् पर्वमांश समन्विताम्। विभज्य भज समुहेन तिथि नक्षत्रमादिशेत॥ </blockquote>अर्थात् तिथि को 11 से गुणा कर उसमें पर्व के अंश जोड़ें और फिर नक्षत्र संख्या से भाग दें। इस प्रकार तिथि के नक्षत्र बतावें। नेपाल में इसी ग्रन्थ के आधार मे विगत ६ साल से वैदिक तिथिपत्रम्" व्यवहार मे लाया गया है।
 
महर्षि लगध ने वेदांग ज्योतिष में ग्रहों की स्थिति, काल एवं गति की गणना के सूत्र दिए गए हैं - <blockquote>तिथि मे का दशाम्य स्ताम् पर्वमांश समन्विताम्। विभज्य भज समुहेन तिथि नक्षत्रमादिशेत॥ </blockquote>अर्थात् तिथि को 11 से गुणा कर उसमें पर्व के अंश जोड़ें और फिर नक्षत्र संख्या से भाग दें। इस प्रकार तिथि के नक्षत्र बतावें। नेपाल में इसी ग्रन्थ के आधार मे विगत ६ साल से वैदिक तिथिपत्रम्" व्यवहार मे लाया गया है।
   −
== भारतीय गणितशास्त्र का विकास ==
+
==भारतीय गणितशास्त्र का विकास==
 
इस प्रकार ज्योतिषशास्त्रीय ग्रन्थों तथा दैवज्ञों, गणकों के अथक परिश्रम से गणित स्वतन्त्र शास्त्र बनकर नित्य ही उन्नति की ओर अग्रसर हुआ और बीजगणित, रेखागणित, क्षेत्रगणित, त्रिकोणमिति, गतिविज्ञान, स्थिति विज्ञान, सांख्यिकी आदि अनेक शाखाओं के रूप में विस्तार को प्राप्त हुआ।  
 
इस प्रकार ज्योतिषशास्त्रीय ग्रन्थों तथा दैवज्ञों, गणकों के अथक परिश्रम से गणित स्वतन्त्र शास्त्र बनकर नित्य ही उन्नति की ओर अग्रसर हुआ और बीजगणित, रेखागणित, क्षेत्रगणित, त्रिकोणमिति, गतिविज्ञान, स्थिति विज्ञान, सांख्यिकी आदि अनेक शाखाओं के रूप में विस्तार को प्राप्त हुआ।  
   −
==गणित  एवं गोल विज्ञान ==
+
==गणित  एवं गोल विज्ञान==
 
ज्योतिष का हर स्कन्ध गणित, गोल, तर्क एवं यन्त्राधारित होने से विज्ञानमय है। गणित सिद्धान्त स्कन्ध के कल्पादि गणना सिद्धान्त, युगादि गणना तन्त्र तथा इष्टवर्षादि गणना करण के बारे में भी यथार्थ जानकारी दी गयी है। गणित की मूल शाखाओं के साथ नवीन गणितीय एवं खगोलीय विकास के बारे में भी यथार्थ विवरण प्रस्तुत किये गये हैं। प्राचीन गणित सिद्धान्त के निम्नांकित विभाग आज प्राप्त होते हैं - <ref>प्रो० सच्चिदानन्द मिश्र, [https://bhu.ac.in/Images/files/p61_1.pdf भारतीय ज्योतिष का वैज्ञानिकत्व - एक समीक्षा], प्रज्ञा-पत्रिका, अंक-६१, सन् २०१५-१६, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (पृ० ०७)।</ref>
 
ज्योतिष का हर स्कन्ध गणित, गोल, तर्क एवं यन्त्राधारित होने से विज्ञानमय है। गणित सिद्धान्त स्कन्ध के कल्पादि गणना सिद्धान्त, युगादि गणना तन्त्र तथा इष्टवर्षादि गणना करण के बारे में भी यथार्थ जानकारी दी गयी है। गणित की मूल शाखाओं के साथ नवीन गणितीय एवं खगोलीय विकास के बारे में भी यथार्थ विवरण प्रस्तुत किये गये हैं। प्राचीन गणित सिद्धान्त के निम्नांकित विभाग आज प्राप्त होते हैं - <ref>प्रो० सच्चिदानन्द मिश्र, [https://bhu.ac.in/Images/files/p61_1.pdf भारतीय ज्योतिष का वैज्ञानिकत्व - एक समीक्षा], प्रज्ञा-पत्रिका, अंक-६१, सन् २०१५-१६, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (पृ० ०७)।</ref>
   Line 81: Line 79:     
*अंक गणित
 
*अंक गणित
* रेखा गणित
+
*रेखा गणित
 
*बीजगणित
 
*बीजगणित
   Line 115: Line 113:  
|ग
 
|ग
 
|घ
 
|घ
|ङ
+
| ङ
 
|च
 
|च
 
|छ
 
|छ
Line 137: Line 135:  
|ब
 
|ब
 
|भ
 
|भ
|म
+
| म
 
| -
 
| -
 
| -
 
| -
Line 153: Line 151:  
|ह
 
|ह
 
| -
 
| -
| -
+
| -
 
|}
 
|}
 
शब्द के अक्षरों को उल्टे क्रम में लिया जाता है।
 
शब्द के अक्षरों को उल्टे क्रम में लिया जाता है।
Line 191: Line 189:  
|-
 
|-
 
|6
 
|6
|रस, अंग, ऋतु, दर्शन, अरि, तर्क, कारक, षण्मुख
+
| रस, अंग, ऋतु, दर्शन, अरि, तर्क, कारक, षण्मुख
 
|-
 
|-
 
|7
 
|7
Line 227: Line 225:  
|-
 
|-
 
|18
 
|18
|धृति, पुराण
+
| धृति, पुराण
 
|-
 
|-
 
|19
 
|19
Line 251: Line 249:  
|-
 
|-
 
|33
 
|33
|देव, अमर, सुर, त्रिदश
+
| देव, अमर, सुर, त्रिदश
 
|-
 
|-
 
|49
 
|49
Line 258: Line 256:  
मुहूर्त चिंतामणि के इस श्लोक में सभी नक्षत्रों में उपस्थित तारों की संख्या भूतसंख्या विधि के माध्यम से बताया गया है - <blockquote>त्रित्र्यङ्गपञ्चाग्निकुवेदवह्नय:शरेषुनेत्राश्विशरेन्दुभूकृता:। वेदाग्निरुद्राश्वियमाग्निवह्नयोस्ब्धय:शतंद्विरदा:भतारका:।। (मुहूर्त चिंतामणि,नक्षत्र प्रकरण, श्लोक 58)</blockquote>
 
मुहूर्त चिंतामणि के इस श्लोक में सभी नक्षत्रों में उपस्थित तारों की संख्या भूतसंख्या विधि के माध्यम से बताया गया है - <blockquote>त्रित्र्यङ्गपञ्चाग्निकुवेदवह्नय:शरेषुनेत्राश्विशरेन्दुभूकृता:। वेदाग्निरुद्राश्वियमाग्निवह्नयोस्ब्धय:शतंद्विरदा:भतारका:।। (मुहूर्त चिंतामणि,नक्षत्र प्रकरण, श्लोक 58)</blockquote>
   −
==सारांश==
+
==निष्कर्ष==
 +
ज्योतिष और गणित का संबंध प्राचीन भारत में बहुत गहरा रहा है। ज्योतिष का विज्ञान खगोलीय पिंडों की स्थिति और गति के अध्ययन पर आधारित है, और यह गणितीय गणनाओं के बिना संभव नहीं होता। इस प्रकार, गणित ज्योतिष का एक अनिवार्य हिस्सा है। आइए इन दोनों के बीच के संबंध को विस्तार से समझते हैं -
 +
 
 +
'''गणित का ज्योतिष में महत्व -''' खगोलीय गणनाएं - ज्योतिष में ग्रहों, नक्षत्रों, और अन्य खगोलीय पिंडों की स्थिति और गति का अध्ययन किया जाता है। इनकी गणना के लिए त्रिकोणमिति, अंकगणित, और ज्यामिति का उपयोग किया जाता है।
 +
 
 +
'''पंचांग निर्माण -''' पंचांग या कैलेंडर का निर्माण पूरी तरह से गणितीय गणनाओं पर आधारित होता है। इसमें ग्रहों के परिभ्रमण की अवधि, चंद्र मास, सौर मास, और संक्रांतियों की गणना शामिल होती है।
 +
 
 +
'''मुहूर्त निर्धारण -''' शुभ समय या मुहूर्त का निर्धारण भी गणितीय गणनाओं के द्वारा किया जाता है। इसमें ग्रहों और नक्षत्रों की स्थिति के आधार पर समय की सटीक गणना की जाती है।
 +
 
 +
'''प्राचीन भारतीय गणितज्ञ और ज्योतिष'''
 +
 
 +
'''आर्यभट (476-550 ईस्वी) -''' आर्यभट एक महान गणितज्ञ और खगोलशास्त्री थे। उन्होंने ग्रहों की गति की गणना, चंद्रग्रहण और सूर्यग्रहण की भविष्यवाणी, और समय की गणना के लिए सूत्र प्रस्तुत किए।
 +
 
 +
'''ब्रह्मगुप्त (598-668 ईस्वी) -''' उन्होंने 'ब्रह्मस्फुटसिद्धांत' लिखा, जिसमें ग्रहों की गति और उनके परिभ्रमण की गणना के लिए सूत्र दिए गए हैं। यह ग्रंथ गणित और ज्योतिष दोनों के लिए महत्वपूर्ण है।
 +
 
 +
'''भास्कराचार्य (1114-1185 ईस्वी) -''' उन्होंने 'सिद्धांत शिरोमणि' नामक ग्रंथ लिखा, जिसमें गणितीय गणनाओं के माध्यम से ग्रहों की स्थिति, ग्रहण, और खगोलीय घटनाओं का अध्ययन किया गया है।
 +
 
 +
'''गणितीय अवधारणाएं और ज्योतिष'''
 +
 
 +
'''त्रिकोणमिति -''' त्रिकोणमिति का उपयोग खगोलीय पिंडों के कोणों और दूरी की गणना में किया जाता है।
 +
 
 +
'''गणितीय तालिकाएं -''' प्राचीन ज्योतिषियों ने खगोलीय घटनाओं की भविष्यवाणी के लिए साइन, कोसाइन, और अन्य गणितीय तालिकाएं बनाई थीं।
 +
 
 +
'''काल गणना -''' ज्योतिष में समय की गणना के लिए गणित का उपयोग किया जाता है। इसमें वर्षों, महीनों, तिथियों, और समय की सटीक गणना शामिल होती है।
 +
 
 +
'''गणित के प्रयोग के उदाहरण'''
 +
 
 +
'''कुंडली निर्माण -''' जन्म कुंडली या हॉरोस्कोप का निर्माण ग्रहों और नक्षत्रों की स्थिति के आधार पर किया जाता है। इसके लिए जन्म के समय और स्थान की सटीक गणना की जाती है।
 +
 
 +
'''ग्रहों की गति और ग्रहण की भविष्यवाणी -''' ग्रहों की गति की गणना के लिए आर्यभट और अन्य खगोलशास्त्रियों द्वारा दिए गए सूत्रों का उपयोग किया जाता है। यह गणनाएं ज्योतिष के विभिन्न पहलुओं, जैसे ग्रहण की भविष्यवाणी, में उपयोगी होती हैं।
 +
 
 +
'''मुहूर्त शास्त्र -''' शुभ समय का निर्धारण, जिसमें गणितीय आधार पर ग्रहों और नक्षत्रों की स्थिति को ध्यान में रखा जाता है, भी गणित पर आधारित है।
 +
 
 +
ज्योतिष और गणित का प्राचीन भारतीय ज्ञान वैज्ञानिक और धार्मिक दृष्टिकोण का एक अद्वितीय संगम है। गणित ने ज्योतिष को एक वैज्ञानिक आधार प्रदान किया, जिससे खगोलीय घटनाओं की भविष्यवाणी और समय की गणना सटीक और विश्वसनीय हो सकी। इन दोनों विषयों का समन्वय आज भी महत्वपूर्ण है, और यह प्राचीन भारतीय ज्ञान की समृद्ध परंपरा को दर्शाता है।
   −
==उद्धरण==
+
==उद्धरण॥ References==
 
[[Category:Jyotisha]]
 
[[Category:Jyotisha]]
 
[[Category:Hindi Articles]]
 
[[Category:Hindi Articles]]
 
<references />
 
<references />
1,239

edits

Navigation menu