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| | #'''समय की शुद्धता (Precise Time Calculation)''' | | #'''समय की शुद्धता (Precise Time Calculation)''' |
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| | + | जैसा कि गोलपरिभाषा में कहा गया है -<blockquote>भवृत्तं प्राक्कुजे यत्र लग्नं लग्नं तदुच्यते। पश्चात् कुजेऽस्त लग्नं स्यात् तुर्यं याम्योत्तरे त्वधः॥ |
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| − | जैसा कि गोलपरिभाषा में कहा गया है -<blockquote>भवृत्तं प्राक्कुजे यत्र लग्नं लग्नं तदुच्यते। पश्चात् कुजेऽस्त लग्नं स्यात् तुर्यं याम्योत्तरे त्वधः॥
| + | उर्ध्वं याम्योत्तरे यत्र लग्नं तद्दशमाभिधम्। राश्याद्य जातकादौ तद् गृह्यते व्ययनांशकम्॥ (गोलपरिभाषा)</blockquote>'''भाषार्थ -''' अर्थात क्रान्तिवृत्त उदयक्षितिज वृत्त में पूर्व दिशा में जहाँ स्पर्श करता है, उसे लग्न कहते है। पश्चिम दिशा में जहाँ स्पर्श करता है, उसे सप्तम लग्न तथा अधः दिशा में चतुर्थ लग्न और उर्ध्व दिशा में दशम लग्न होता है। लग्न की यह परिभाषा सैद्धान्तिक गोलीय रीति से कहा गया है। पंचांग में भी दैनिक लग्न सारिणी दिया होता है। उसमें एक लग्न 2 घण्टे का होता है। इस प्रकार से 24 घण्टे में कुल 12 लग्न होता है। यह लग्न पंचांग में मुहूर्तों के लिये दिया गया होता है। किस लग्न में कौन सा कार्य शुभ होता है तथा कौन अशुभ, इसका विवेचन पंचागोक्त लग्न के अनुसार ही किया जाता है।<ref>डॉ० नन्दन कुमार तिवारी, [https://uou.ac.in/sites/default/files/slm/MAJY-603.pdf ज्योतिष प्रबोध-०१], सन २०२१, उत्तराखण्ड मुक्त विश्वविद्यालय (पृ० ५०)।</ref> |
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| − | उर्ध्वं याम्योत्तरे यत्र लग्नं तद्दशमाभिधम्। राश्याद्य जातकादौ तद् गृह्यते व्ययनांशकम्॥ (गोलपरिभाषा)</blockquote>'''भाषार्थ -''' अर्थात् क्रान्तिवृत्त उदयक्षितिज वृत्त में पूर्व दिशा में जहाँ स्पर्श करता है, उसे लग्न कहते है। पश्चिम दिशा में जहाँ स्पर्श करता है, उसे सप्तम लग्न तथा अधः दिशा में चतुर्थ लग्न और उर्ध्व दिशा में दशम लग्न होता है। लग्न की यह परिभाषा सैद्धान्तिक गोलीय रीति से कहा गया है। पंचांग में भी दैनिक लग्न सारिणी दिया होता है। उसमें एक लग्न 2 घण्टे का होता है। इस प्रकार से 24 घण्टे में कुल 12 लग्न होता है। यह लग्न पंचांग में मुहूर्तों के लिये दिया गया होता है। किस लग्न में कौन सा कार्य शुभ होता है तथा कौन अशुभ, इसका विवेचन पंचागोक्त लग्न के अनुसार ही किया जाता है।<ref>डॉ० नन्दन कुमार तिवारी, [https://uou.ac.in/sites/default/files/slm/MAJY-603.pdf ज्योतिष प्रबोध-०१], सन २०२१, उत्तराखण्ड मुक्त विश्वविद्यालय (पृ० ५०)।</ref> | |
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| | ==खगोलीय परिभाषा॥ Astronomical Definition== | | ==खगोलीय परिभाषा॥ Astronomical Definition== |
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| | लग्न उस क्षण को कहते हैं जब पूर्वी क्षितिज पर जो राशि उदित हो रही होती, उसके कोण को लग्न कहते हैं। जन्म कुण्डली में बारह भाव होते प्रथम भाव को लग्न कहा जाता है। पंचांग के पाँच अंगों में भी लग्न को समाहित किया गया है -<ref>मीठालाल हिंमतराम ओझा, [https://archive.org/details/cmuJ_bharatiya-kundali-vigyan-mithalal-himmar-ram-ojha/page/n42/mode/1up भारतीय कुण्डली विज्ञान], सन् १९७२, वाराणसेय संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी (पृ० ३०)।</ref> <blockquote>वर्ष मासो दिनं लग्नं मुहूर्तश्चेति पंचकम्। कालस्यांगानि मुख्यानि प्रबलान्युत्तरोत्तरम्॥ (बृहदवकहडाचक्रम् )<ref>शोधप्रज्ञा-पत्रिका, डॉ० रतन लाल, [https://www.slbsrsv.ac.in/sites/default/files/Articles/Dr_Rattanlal.pdf मानव जीवन में मुहूर्त की उपयोगिता], सन २०२१, उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय हरिद्वार, उत्तराखण्ड (पृ० ९९)।</ref> </blockquote>'''भाषार्थ -''' वर्ष, मास, दिन, लग्न एवं मुहूर्त ये पंचाग के पाँच अंग हैं एवं क्रम से उत्तरोत्तर प्रबल होते हैं। अपने उदय क्षितिज में क्रान्तिवृत्त का जो प्रदेश जब भी स्पर्श करता है उसे लग्न कहते है। प्राचीन ग्रंथों में लग्न का महत्व इस प्रकार वर्णित है - | | लग्न उस क्षण को कहते हैं जब पूर्वी क्षितिज पर जो राशि उदित हो रही होती, उसके कोण को लग्न कहते हैं। जन्म कुण्डली में बारह भाव होते प्रथम भाव को लग्न कहा जाता है। पंचांग के पाँच अंगों में भी लग्न को समाहित किया गया है -<ref>मीठालाल हिंमतराम ओझा, [https://archive.org/details/cmuJ_bharatiya-kundali-vigyan-mithalal-himmar-ram-ojha/page/n42/mode/1up भारतीय कुण्डली विज्ञान], सन् १९७२, वाराणसेय संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी (पृ० ३०)।</ref> <blockquote>वर्ष मासो दिनं लग्नं मुहूर्तश्चेति पंचकम्। कालस्यांगानि मुख्यानि प्रबलान्युत्तरोत्तरम्॥ (बृहदवकहडाचक्रम् )<ref>शोधप्रज्ञा-पत्रिका, डॉ० रतन लाल, [https://www.slbsrsv.ac.in/sites/default/files/Articles/Dr_Rattanlal.pdf मानव जीवन में मुहूर्त की उपयोगिता], सन २०२१, उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय हरिद्वार, उत्तराखण्ड (पृ० ९९)।</ref> </blockquote>'''भाषार्थ -''' वर्ष, मास, दिन, लग्न एवं मुहूर्त ये पंचाग के पाँच अंग हैं एवं क्रम से उत्तरोत्तर प्रबल होते हैं। अपने उदय क्षितिज में क्रान्तिवृत्त का जो प्रदेश जब भी स्पर्श करता है उसे लग्न कहते है। प्राचीन ग्रंथों में लग्न का महत्व इस प्रकार वर्णित है - |
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| − | *'''बृहत्पाराशरहोराशास्त्र -''' "लग्ने स्थितो ग्रहः सर्वस्य फलदाता भवेत्" अर्थात लग्न में स्थित ग्रह समस्त जीवन पर प्रभाव डालते हैं। | + | *'''बृहत्पाराशरहोराशास्त्र -''' लग्ने स्थितो ग्रहः सर्वस्य फलदाता भवेत् अर्थात लग्न में स्थित ग्रह समस्त जीवन पर प्रभाव डालते हैं। |
| | *'''जातकपरिजात -''' "लग्नमेव शरीरस्य कारणं" यानी लग्न शरीर का मूल आधार है। | | *'''जातकपरिजात -''' "लग्नमेव शरीरस्य कारणं" यानी लग्न शरीर का मूल आधार है। |
| − | *'''फलदीपिका -''' "लग्नान्नवांशांशमवेक्ष्य नित्यं, कर्मादयो दृश्यफलानि चान्ये" – लग्न एवं नवांश की स्थिति से कर्मफल ज्ञात किया जा सकता है। | + | *'''फलदीपिका -''' लग्नान्नवांशांशमवेक्ष्य नित्यं, कर्मादयो दृश्यफलानि चान्ये – लग्न एवं नवांश की स्थिति से कर्मफल ज्ञात किया जा सकता है। |
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| | + | शुभे लग्न सुमुहूर्ते समागच्छतु सोंतिकम्। तदा दास्यामि तनयां भिक्षार्थं शंभवे विधे॥ (शिव पुराण)<ref>[https://sa.wikisource.org/wiki/%E0%A4%B6%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A3%E0%A4%AE%E0%A5%8D/%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A4%BE_%E0%A5%A8_(%E0%A4%B0%E0%A5%81%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A4%BE)/%E0%A4%96%E0%A4%A3%E0%A5%8D%E0%A4%A1%E0%A4%83_%E0%A5%A8_(%E0%A4%B8%E0%A4%A4%E0%A5%80%E0%A4%96%E0%A4%A3%E0%A5%8D%E0%A4%A1%E0%A4%83)/%E0%A4%85%E0%A4%A7%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%83_%E0%A5%A7%E0%A5%AE शिवपुराण], रुद्र संहिता, सती खण्ड, अध्याय-18, श्लोक-12।</ref> |
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| | प्राचीन ज्योतिष ग्रंथों में लग्न को अत्यंत महत्वपूर्ण बताया गया है। | | प्राचीन ज्योतिष ग्रंथों में लग्न को अत्यंत महत्वपूर्ण बताया गया है। |
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| | ==द्रष्ट लग्न एवं भाव लग्न॥ Drashta Lagna and Bhava Lagna== | | ==द्रष्ट लग्न एवं भाव लग्न॥ Drashta Lagna and Bhava Lagna== |
| − | कोशकारों ने राशियोंके उदयको लग्न नाम कहा है, वे क्षितिजमें लगनेके कारण अन्वर्थसंज्ञक हैं। राशियोंके दो भेद होनेके कारण लग्न भी दो प्रकारके होते हैं - एक भबिम्बीय ( नक्षत्रबिम्बोदयवश), द्वितीय भवृत्तीय (क्रान्तिवृत्तीय स्थानोदयवश)। | + | कोशकारों ने राशियोंके उदयको लग्न नाम कहा है, वे क्षितिजमें लगनेके कारण अन्वर्थसंज्ञक हैं। राशियोंके दो भेद होनेके कारण लग्न भी दो प्रकारके होते हैं - एक भबिम्बीय (नक्षत्रबिम्बोदयवश), द्वितीय भवृत्तीय (क्रान्तिवृत्तीय स्थानोदयवश)। |
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| | #'''द्रष्ट लग्न''' - यह वह बिंदु है जहाँ किसी विशेष क्षण में क्रान्तिवृत्त क्षितिज से मिलता है। | | #'''द्रष्ट लग्न''' - यह वह बिंदु है जहाँ किसी विशेष क्षण में क्रान्तिवृत्त क्षितिज से मिलता है। |