| − | सूर्योदय के समय सूर्य जिस राशि में हो वही राशि लग्न होती है। लग्न शब्द से ही प्रतीत होता है कि एक वस्तु का दूसरे वस्तु में लगना। इसीलिए कहा गया है कि - लगतीति लग्नम्। राशीनामुदयो लग्नं ते तु मेषवृषादयः॥ (१.३.२९) वस्तुतः लग्न में भी यही होता है क्योंकि इष्टकाल में क्रान्तिवृत्त का जो स्थान उदयक्षितिज में जहाँ लगता है, वही राश्यादि (राशि, अंश, कला, विकला) लग्न होता है।<ref>जितेंद्र कुमार दुबे, [https://egyankosh.ac.in/bitstream/123456789/81133/1/Unit-2.pdf लग्न साधन], सन् २०२१, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, नई दिल्ली (पृ० ९३)।</ref> जिस समय लग्न जानना हो उस समय जिस राशि के सूर्य होंगे ठीक सूर्योदय के समय उसी राशि से लग्न आरम्भ होता है - | + | सूर्योदय के समय सूर्य जिस राशि में हो वही राशि लग्न होती है। लग्न शब्द से ही प्रतीत होता है कि एक वस्तु का दूसरे वस्तु में लगना। इसीलिए कहा गया है कि - लगतीति लग्नम्। राशीनामुदयो लग्नं ते तु मेषवृषादयः॥ (१.३.२९) वस्तुतः लग्न में भी यही होता है क्योंकि इष्टकाल में क्रान्तिवृत्त का जो स्थान उदयक्षितिज में जहाँ लगता है, वही राश्यादि (राशि, अंश, कला, विकला) लग्न होता है।<ref>जितेंद्र कुमार दुबे, [https://egyankosh.ac.in/bitstream/123456789/81133/1/Unit-2.pdf लग्न साधन], सन् २०२१, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, नई दिल्ली (पृ० ९३)।</ref> जिस समय लग्न जानना हो उस समय जिस राशि के सूर्य होंगे ठीक सूर्योदय के समय उसी राशि से लग्न आरम्भ होता है -<ref>नेमिचन्द्र शास्त्री, [https://ia601501.us.archive.org/30/items/in.ernet.dli.2015.350217/2015.350217.Bhartiya-Jyotish.pdf भारतीय ज्योतिष], सन १९६६, भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन, वाराणसी (पृ० ३५१)।</ref> |
| − | लग्न उस क्षण को कहते हैं जब पूर्वी क्षितिज पर जो राशि उदित हो रही होती, उसके कोण को लग्न कहते हैं। जन्म कुण्डली में बारह भाव होते प्रथम भाव को लग्न कहा जाता है। पंचांग के पाँच अंगों में भी लग्न को समाहित किया गया है - <blockquote>वर्ष मासो दिनं लग्नं मुहूर्तश्चेति पंचकम्। कालस्यांगानि मुख्यानि प्रबलान्युत्तरोत्तरम्॥ (बृहदवकहडाचक्रम् )<ref>शोधप्रज्ञा-पत्रिका, डॉ० रतन लाल, [https://www.slbsrsv.ac.in/sites/default/files/Articles/Dr_Rattanlal.pdf मानव जीवन में मुहूर्त की उपयोगिता], सन २०२१, उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय हरिद्वार, उत्तराखण्ड (पृ० ९९)।</ref> </blockquote>'''भाषार्थ -''' वर्ष, मास, दिन, लग्न एवं मुहूर्त ये पंचाग के पाँच अंग हैं एवं क्रम से उत्तरोत्तर प्रबल होते हैं। अपने उदय क्षितिज में क्रान्तिवृत्त का जो प्रदेश जब भी स्पर्श करता है उसे लग्न कहते है। | + | लग्न उस क्षण को कहते हैं जब पूर्वी क्षितिज पर जो राशि उदित हो रही होती, उसके कोण को लग्न कहते हैं। जन्म कुण्डली में बारह भाव होते प्रथम भाव को लग्न कहा जाता है। पंचांग के पाँच अंगों में भी लग्न को समाहित किया गया है -<ref>मीठालाल हिंमतराम ओझा, [https://archive.org/details/cmuJ_bharatiya-kundali-vigyan-mithalal-himmar-ram-ojha/page/n42/mode/1up भारतीय कुण्डली विज्ञान], सन् १९७२, वाराणसेय संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी (पृ० ३०)।</ref> <blockquote>वर्ष मासो दिनं लग्नं मुहूर्तश्चेति पंचकम्। कालस्यांगानि मुख्यानि प्रबलान्युत्तरोत्तरम्॥ (बृहदवकहडाचक्रम् )<ref>शोधप्रज्ञा-पत्रिका, डॉ० रतन लाल, [https://www.slbsrsv.ac.in/sites/default/files/Articles/Dr_Rattanlal.pdf मानव जीवन में मुहूर्त की उपयोगिता], सन २०२१, उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय हरिद्वार, उत्तराखण्ड (पृ० ९९)।</ref> </blockquote>'''भाषार्थ -''' वर्ष, मास, दिन, लग्न एवं मुहूर्त ये पंचाग के पाँच अंग हैं एवं क्रम से उत्तरोत्तर प्रबल होते हैं। अपने उदय क्षितिज में क्रान्तिवृत्त का जो प्रदेश जब भी स्पर्श करता है उसे लग्न कहते है। |