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सुधार जारी
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==भूमिगत जलशिराओं का सिद्धान्त==
 
==भूमिगत जलशिराओं का सिद्धान्त==
बृहत्संहिता में आचार्य वराहमिहिर ने जिन वृक्षों से जल विचार कहा है, वे सभी वृक्ष स्वाभाविक रूप से उत्पन्न होते हैं। आचार्य वराहमिहिर ने जल की गहराई मापने के लिये पुरुष शब्द का प्रयोग किया है। ऊपर की ओर हाथ उठाकर पुरुष की लम्बाई को पुरुष का मान, माना जायेगा। अतः औसतन १२० अंगुल - १ पुरुष का पैमाना हुआ तथा ९०" इंच, ७.६ फिट, २२५ से. मी. या २.२५ मी. का एक पुरुष हुआ।
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बृहत्संहिता में आचार्य वराहमिहिर ने जिन वृक्षों से जल विचार कहा है, वे सभी वृक्ष स्वाभाविक रूप से उत्पन्न होते हैं। आचार्य वराहमिहिर ने जल की गहराई मापने के लिये पुरुष शब्द का प्रयोग किया है। ऊपर की ओर हाथ उठाकर पुरुष की लम्बाई को पुरुष का मान, माना जायेगा। अतः औसतन १२० अंगुल - १ पुरुष का पैमाना हुआ तथा ९०" इंच, ७.६ फिट, २२५ से. मी. या २.२५ मी. का एक पुरुष हुआ। बृहत्संहिता में -
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{| class="wikitable"
 
{| class="wikitable"
 
|+बृहत्संहिता- वृक्ष तथा बाँबी के अनुसार भूगर्भ जल का विचार
 
|+बृहत्संहिता- वृक्ष तथा बाँबी के अनुसार भूगर्भ जल का विचार
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!जल की दिशा
 
!जल की दिशा
 
!गहराई
 
!गहराई
!जन्तु, मिट्टी व पत्थर की प्राप्ति  
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!जन्तु, मिट्टी व पत्थर की प्राप्ति
 
!भूगर्भ जल के गुण धर्म
 
!भूगर्भ जल के गुण धर्म
 
!भूगर्भजल की मात्रा
 
!भूगर्भजल की मात्रा
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|बृ० सं० ५४/६८
 
|बृ० सं० ५४/६८
 
|-
 
|-
|बेर (Ziphus mauritiana) व करील  
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|बेर (Ziphus mauritiana) व करील
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|<nowiki>-</nowiki>
|
+
|पश्चिम में तीन हाथ दूर
|
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|अट्ठारह पुरुष (१६२०")
|
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|जल
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|<nowiki>-</nowiki>
|
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|प्रचुर मात्रा में
|
+
| बृ० सं० ५४/७४
 
|-
 
|-
|पीलु (Salvadora oleiodes), व बेर  
+
|पीलु (Salvadora oleiodes), व बेर
|
+
|<nowiki>-</nowiki>
|
+
|तीन हाथ पूर्व में
|
+
|बीस पुरुष (१८००")
|
+
|जल
|
+
|<nowiki>-</nowiki>
|
+
|प्रचुर मात्रा में
|
+
|बृ० सं० ५४/७५
 
|-
 
|-
 
|जामुन (Syzygium cumini)
 
|जामुन (Syzygium cumini)
|
+
|पूर्व की ओर
|
+
|दक्षिण में तीन हाथ वृक्ष से दूर
|
+
|दो पुरुष (१८०")
|
+
|४५" बाद मछली, काला पत्थर, काली मिट्टी, जलशिरा (असितपाषाणम्)
|
+
| मीठा
|
+
|प्रचुर मात्रा में
|
+
|बृ० सं० ५४/९-१०
 
|-
 
|-
 
|गूलर (Ficus racemosa)
 
|गूलर (Ficus racemosa)
|
+
|<nowiki>-</nowiki>
|
+
|तीन हाथ पश्चिम में
|
+
|ढाई पुरुष (२२५")
|
+
|४५"बाद सफेद सांप, काला पत्थर, जलशिरा
|
+
|मीठा
|
+
|_
|
+
|बृ० सं० ५४/११
 
|-
 
|-
 
|निर्गुंडी (Vitex negando)
 
|निर्गुंडी (Vitex negando)
|
+
|पास में ही
|
+
| दक्षिण की ओर तीन हाथ दूर
|
+
|सवा दो पुरुष (२२२.५")
|
+
|<nowiki>-</nowiki>
|
+
|मीठा
|
+
|प्रचुर मात्रा में
|
+
|बृ० सं० ५४/१४-१५
 
|-
 
|-
 
|करंज (Pongamia pinnata)
 
|करंज (Pongamia pinnata)
|
+
|दक्षिण दिशा
|
+
|दो हाथ दक्षिण में
|
+
|साढेतीन पुरुष (३१५')
|
+
|४१" बाद कछुआ, तत्पश्चात जल
|
+
|<nowiki>-</nowiki>
|
+
| कम (स्वल्पम्)
|
+
|बृ० सं० ५४/३३-३४
 
|-
 
|-
 
|महुआ (Madhuca longifalia)
 
|महुआ (Madhuca longifalia)
|
+
|उत्तर में
|
+
|पश्चिम की ओर पाँच हाथ बाद
|
+
|साढेसात पुरुष (६७५")
|
+
|९०" बाद साँप, धुएंरंगत वाली मिट्टी, मेहरुन रंगत का पत्थर पश्चात जल
|
+
|मीठा
|
+
|प्रचुर मात्रा में
|
+
|बृ० सं० ५४/३५-३६
 
|-
 
|-
|तिलक  
+
|तिलक
|
+
|दक्षिण में कुशाघास उगी हो
|
+
|पाँच हाथ पश्चिम में
|
+
|पाँच पुरुष (४५०")
|
+
|जल
|
+
|मीठा
|
+
|प्रचुर मात्रा में
|
+
|बृ० सं० ५४/३५-३६
 
|-
 
|-
 
|कदंब (Neolumorrckia cadamba)
 
|कदंब (Neolumorrckia cadamba)
|
+
|पश्चिम में
|
+
|तीन हाथ दक्षिण में
|
+
|छह पुरुष (५४० ")
|
+
|९०" बाद सुनहरा मेंढक, पीली  मिट्टी, जल
|
+
|लोह स्वाद
|
+
|प्रचुर मात्रा में
|
+
|बृ० सं० ५४/३८-३९
 
|-
 
|-
 
|पीला धतूरा (Datura stramonium)
 
|पीला धतूरा (Datura stramonium)
|
+
|बायीं या उत्तर दिशा में बाँबी
|
+
|दो हाथ बाद दक्षिण में
|
+
|पन्द्रह पुरुष (१३५०")
|
+
|४५" बाद ताम्ररंग का नेवला, ताम्ररंग का पत्थर, लाल मिट्टी
|
+
| खारा
|
+
|<nowiki>-</nowiki>
|
+
|बृ० सं० ५४/७०-७२
 
|-
 
|-
 
|पीलु (Salvadora oleiodes)
 
|पीलु (Salvadora oleiodes)
|
+
|ईशान कोण में, साँप चीटीं की बाँबी में
|
+
|साढेचार हाथ पश्चिम में
|
+
|पाँच पुरुष (४५०")
|
+
| ९०" इंच बाद मेंढक, पीली मिट्टी, हरी चमकीली मिट्टी, पत्थर अन्त में जल।
|
+
|खारा
|
+
|प्रचुर मात्रा में
|
+
|बृ० सं० ५४/६३-६४
 
|-
 
|-
 
|ताड़ (Borassus flabellifer), नारियल (Cocos Hucifera), खजूर (Phocnix sylvestris)
 
|ताड़ (Borassus flabellifer), नारियल (Cocos Hucifera), खजूर (Phocnix sylvestris)
|
+
|पास बाँबी में
|
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| छह हाथ पश्चिम में
|
+
|चार पुरुष (३६०")
|
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|जल
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|<nowiki>-</nowiki>
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|<nowiki>-</nowiki>
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|बृ० सं० ५४/४०
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|}
 
|}
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==जल विज्ञान का लक्षण व स्वरूप==
 
==जल विज्ञान का लक्षण व स्वरूप==
 
अमरकोष के अनुसार आप, अंभ, वारि, तोय, सलिल, जल, अमृत, जीवन, पेय, पानी, उदक इत्यादि जल के ही पर्यायवाची शब्द हैं। वराहमिहिर ने जल विज्ञान को उदकार्गल कहा है। उदक जल को कहते हैं, अर्गला जल के ऊपर आई हुई रुकावट को कहते हैं। वराहमिहिर के ही शब्दों में जिस विद्या से भूमिगत जल का ज्ञान होता है उस धर्म और यश को देने वाले ज्ञान को उदकार्गल कहते हैं - <blockquote>धर्म्यं यशस्यं च वदाम्यतोsहं दकार्गल येन जलोपलब्धिः। पुंसां यथांग्रेषु शिरास्तथैव क्षितावपि प्रोन्नतनिम्नसंस्थाः॥ (बृहत्संहिता)<ref>डॉ० जितेन्द्र व्यास, [https://www.allresearchjournal.com/archives/2022/vol8issue5/PartB/8-5-33-660.pdf जल विज्ञान व वनस्पति विज्ञानः प्राकृतिक संसाधन शास्त्र की ज्योतिषीय प्रासंगिकता], सन् २०२२, इन्टरनेशनल जर्नल ऑफ अप्लाईड रिसर्च (पृ० १३४)।</ref></blockquote>जिस तरह मनुष्यों के अंग में नाडियाँ है उसी तरह भूमि में ऊँची नीची जल की शिरायें (धारायें) बहती हैं। आकाश से केवल एक स्वाद वाला जल पृथ्वी पर गिरता है। किन्तु वही जल पृथ्वी की विशेषता से तत्तत्स्थान में अनेक प्रकार के रस और स्वाद वाला हो जाता है। भूमि के वर्ण और रस के समान, जल का रस और वर्ण और रस व स्वाद का परीक्षण करना चाहिए।   
 
अमरकोष के अनुसार आप, अंभ, वारि, तोय, सलिल, जल, अमृत, जीवन, पेय, पानी, उदक इत्यादि जल के ही पर्यायवाची शब्द हैं। वराहमिहिर ने जल विज्ञान को उदकार्गल कहा है। उदक जल को कहते हैं, अर्गला जल के ऊपर आई हुई रुकावट को कहते हैं। वराहमिहिर के ही शब्दों में जिस विद्या से भूमिगत जल का ज्ञान होता है उस धर्म और यश को देने वाले ज्ञान को उदकार्गल कहते हैं - <blockquote>धर्म्यं यशस्यं च वदाम्यतोsहं दकार्गल येन जलोपलब्धिः। पुंसां यथांग्रेषु शिरास्तथैव क्षितावपि प्रोन्नतनिम्नसंस्थाः॥ (बृहत्संहिता)<ref>डॉ० जितेन्द्र व्यास, [https://www.allresearchjournal.com/archives/2022/vol8issue5/PartB/8-5-33-660.pdf जल विज्ञान व वनस्पति विज्ञानः प्राकृतिक संसाधन शास्त्र की ज्योतिषीय प्रासंगिकता], सन् २०२२, इन्टरनेशनल जर्नल ऑफ अप्लाईड रिसर्च (पृ० १३४)।</ref></blockquote>जिस तरह मनुष्यों के अंग में नाडियाँ है उसी तरह भूमि में ऊँची नीची जल की शिरायें (धारायें) बहती हैं। आकाश से केवल एक स्वाद वाला जल पृथ्वी पर गिरता है। किन्तु वही जल पृथ्वी की विशेषता से तत्तत्स्थान में अनेक प्रकार के रस और स्वाद वाला हो जाता है। भूमि के वर्ण और रस के समान, जल का रस और वर्ण और रस व स्वाद का परीक्षण करना चाहिए।   
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== भूगर्भ जल वर्तमान में महत्व ==
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अर्जेण्टीना में १९७७ ईस्वी में आयोजित युनाइटेड नेशन्स की इण्टरनेशनल कॉन्फ्रेंस में भूगर्भ जल के बारे में विचारणा हुई थी। इसमें बताया गया था कि विश्व में जल की ९५ प्रतिशत राशि समुद्रों एवं महासागरों में है। ४ प्रतिशत हिम बर्फ एवं स्थायी भूमि के स्वरूप में हैं। केवल १ प्रतिशत जल राशि ही भूगर्भ जल के रूप में प्राप्त होता है।<ref>टंकेश्वरी पटेल, [https://www.researchgate.net/publication/339378721_brhatsanhita_mem_bhugarbha_jalavidya बृहत्संहिता में भूगर्भ जलविद्या], सन् २०१५, देव संस्कृति इण्टरडिस्किप्लिनरी इण्टरनेशनल जर्नल (पृ० २६)।</ref>
    
==सारांश॥ Summary==
 
==सारांश॥ Summary==
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