| − | ज्योतिषशास्त्र में वेध एवं वेधशालाओं का अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान है। ब्रह्माण्ड में स्थित ग्रहनक्षत्रादि पिण्डों के अवलोकन को वेध कहते हैं। भारतवर्ष में वेध परम्परा का प्रादुर्भाव वैदिक काल से ही आरम्भ हो गया था। कालान्तर में उसका क्रियान्वयन का स्वरूप समय-समय पर परिवर्तित होते रहा है। कभी तपोबल के द्वारा सभी ग्रहों की स्थितियों को जान लिया जाता था। अनन्तर ग्रहों को वेध-यन्त्रों के द्वारा देखा जाने लगा। त्रिस्कन्धात्मक ज्योतिषशास्त्र के आधाररूप सिद्धान्त ज्योतिष की ग्रह-गणित परम्परा के अन्तर्गत वेधशालाओं का महत्त्वपूर्ण स्थान है। भारतवर्ष में वेध परम्परा प्राचीनकाल से ही चली आ रही है।
| + | वेध एवं वेधशालाओं का ज्योतिषशास्त्र में अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान है। ब्रह्माण्ड में स्थित ग्रहनक्षत्रादि पिण्डों के अवलोकन को वेध कहते हैं। भारतवर्ष में वेध परम्परा का प्रादुर्भाव वैदिक काल से ही आरम्भ हो गया था। कालान्तर में उसका क्रियान्वयन का स्वरूप समय-समय पर परिवर्तित होते रहा है। कभी तपोबल के द्वारा सभी ग्रहों की स्थितियों को जान लिया जाता था। अनन्तर ग्रहों को वेध-यन्त्रों के द्वारा देखा जाने लगा। त्रिस्कन्धात्मक ज्योतिषशास्त्र के आधाररूप सिद्धान्त ज्योतिष की ग्रह-गणित परम्परा के अन्तर्गत वेधशालाओं का महत्त्वपूर्ण स्थान है। भारतवर्ष में वेध परम्परा प्राचीनकाल से ही चली आ रही है। |
| | वेध शब्द की निष्पत्ति विध् धातु से होती है। जिसका अर्थ है किसी आकाशीय ग्रह अथवा तारे को दृष्टि के द्वारा वेधना अर्थात् विद्ध करना। ग्रहों तथा तारों की स्थिति के ज्ञान हेतु आकाश में उन्हैं देखा जाता था। आकाश में ग्रहादिकों को देखकर उनकी स्थिति का निर्धारण ही वेध है। | | वेध शब्द की निष्पत्ति विध् धातु से होती है। जिसका अर्थ है किसी आकाशीय ग्रह अथवा तारे को दृष्टि के द्वारा वेधना अर्थात् विद्ध करना। ग्रहों तथा तारों की स्थिति के ज्ञान हेतु आकाश में उन्हैं देखा जाता था। आकाश में ग्रहादिकों को देखकर उनकी स्थिति का निर्धारण ही वेध है। |
| − | नग्ननेत्र या शलाका, यष्टि, नलिका, दूर्दर्शक इत्यादि यन्त्रोंके द्वारा आकाशीय पिण्डोंका निरीक्षण ही वेध है।<blockquote>वेधानां शाला इति वेधशाला।</blockquote>अर्थात् वह स्थान जहां ग्रहों के वेध, वेध-यन्त्रों द्वारा किया जाता है उसका नाम वेधशाला है। सिद्धान्त-ग्रन्थों में जिन यन्त्रों का विधान किया गया है, उन यन्त्रों के द्वारा ग्रहों को देखने की प्रक्रिया वेध कहलाती है। और जहाँ इस प्रकार के यन्त्रों को एक साथ रखकर ग्रहों की गति-स्थिति आदि का सतत परीक्षण किया जाता है, उसे वेधशाला कहते हैं।<ref>पं, श्री कल्याणदत्त, वेधशाला परिचय पुस्तिका, प्रस्तावना, श्री लालबहादुर शास्त्री राष्ट्रिय संस्कृत विद्यापीठ, नई दिल्ली (पृ०३)।</ref> | + | नग्ननेत्र या शलाका, यष्टि, नलिका, दूर्दर्शक इत्यादि यन्त्रोंके द्वारा आकाशीय पिण्डोंका निरीक्षण ही वेध है।<blockquote>वेधानां शाला इति वेधशाला। (शब्दकल्पद्रुम)</blockquote>अर्थात् वह स्थान जहां ग्रहों के वेध, वेध-यन्त्रों द्वारा किया जाता है उसका नाम वेधशाला है। सिद्धान्त-ग्रन्थों में जिन यन्त्रों का विधान किया गया है, उन यन्त्रों के द्वारा ग्रहों को देखने की प्रक्रिया वेध कहलाती है। और जहाँ इस प्रकार के यन्त्रों को एक साथ रखकर ग्रहों की गति-स्थिति आदि का सतत परीक्षण किया जाता है, उसे वेधशाला कहते हैं।<ref>पं, श्री कल्याणदत्त, वेधशाला परिचय पुस्तिका, प्रस्तावना, श्री लालबहादुर शास्त्री राष्ट्रिय संस्कृत विद्यापीठ, नई दिल्ली (पृ०३)।</ref> |
| | मध्यकालीन भारतीय इतिहासकी अट्ठारहवीं शताब्दीके प्रारम्भिक पचास वर्षोंके राजनीतिज्ञों और शासकोंपर दृष्टि डाली जाय तो महाराजा सवाई जयसिंहका व्यक्तित्व और कृतित्व अत्यन्त विशिष्टता युक्त दृष्टिगोचर होता है। वे जहां एक पराक्रमी योद्धा थे तो साथ में ही एक चतुर कूटनीतिज्ञ, धर्मप्रेमी, युद्धनीतिमें निपुण, वास्तुविद् और ज्योतिर्विद् भी थे। | | मध्यकालीन भारतीय इतिहासकी अट्ठारहवीं शताब्दीके प्रारम्भिक पचास वर्षोंके राजनीतिज्ञों और शासकोंपर दृष्टि डाली जाय तो महाराजा सवाई जयसिंहका व्यक्तित्व और कृतित्व अत्यन्त विशिष्टता युक्त दृष्टिगोचर होता है। वे जहां एक पराक्रमी योद्धा थे तो साथ में ही एक चतुर कूटनीतिज्ञ, धर्मप्रेमी, युद्धनीतिमें निपुण, वास्तुविद् और ज्योतिर्विद् भी थे। |