परराष्ट्र नीति प्रत्येक राज्य की अनिवार्य आवश्यकता है, जिसके बिना राज्य अपना अस्तित्व लम्बे समय तक कायम नहीं कर सकता क्योंकि दूसरे राज्यों के साथ सम्बन्धों से वह अपने अनेक हितों की पूर्ति करता है। इसीलिये परराष्ट्र नीति में यह कहा जाता है कि इसमें किसी राज्य का स्थाई शत्रु या स्थाई मित्र नहीं होता। राज्य का आन्तरिक दृष्टि के साथ-साथ बाहरी दृष्टि से शक्ति सम्पन्न होना बहुत आवश्यक है। इसके लिये राज्य को अपने मित्र राज्य सहित अन्य राज्यों के साथ संबंध सुधारने का प्रयास करना चाहिये। राजा अपनी कूटनीति का इस तरह से कार्यान्वयन करे कि शत्रु राजा भी बिना युद्ध किये उसके प्रभुत्व को स्वीकार कर ले और मित्र राजा भी उसके साथ प्रगाढता स्थापित करने का प्रयास करने लगे। मनु ने परराष्ट्र संबंधों पर विचार करते हुए दो प्रमुख सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया है। ये सिद्धान्त हैं - | परराष्ट्र नीति प्रत्येक राज्य की अनिवार्य आवश्यकता है, जिसके बिना राज्य अपना अस्तित्व लम्बे समय तक कायम नहीं कर सकता क्योंकि दूसरे राज्यों के साथ सम्बन्धों से वह अपने अनेक हितों की पूर्ति करता है। इसीलिये परराष्ट्र नीति में यह कहा जाता है कि इसमें किसी राज्य का स्थाई शत्रु या स्थाई मित्र नहीं होता। राज्य का आन्तरिक दृष्टि के साथ-साथ बाहरी दृष्टि से शक्ति सम्पन्न होना बहुत आवश्यक है। इसके लिये राज्य को अपने मित्र राज्य सहित अन्य राज्यों के साथ संबंध सुधारने का प्रयास करना चाहिये। राजा अपनी कूटनीति का इस तरह से कार्यान्वयन करे कि शत्रु राजा भी बिना युद्ध किये उसके प्रभुत्व को स्वीकार कर ले और मित्र राजा भी उसके साथ प्रगाढता स्थापित करने का प्रयास करने लगे। मनु ने परराष्ट्र संबंधों पर विचार करते हुए दो प्रमुख सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया है। ये सिद्धान्त हैं - |