Difference between revisions of "Shadgunya (षाड्गुण्य)"
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षाड्गुण्य भारतीय राजनीति का मौलिक सिद्धांत है, जिसमें राजा को संधि, विग्रह, यान, आसन, द्वैधीभाव और संश्रय गुणों को ग्रहण करने का परामर्श दिया गया है। षाड्गुण्य का शाब्दिक अर्थ है - छः गुणों का समुच्चय। जो राजा षाड्गुण्य नीति का उचित प्रयोग करता है वह सफलता प्राप्त करता है। षाड्गुण्य का वर्णन मनुस्मृति, महाभारत, अग्निपुराण, हरिवंशपुराण, कौटिल्य के अर्थशास्त्र, पंचतन्त्र आदि कई ग्रन्थों में मिलता है।
परिचय
षाड्गुण्य मनु का मौलिक सिद्धान्त है, जिसमें वह राजा को संधि, विग्रह, यान, आसन, द्वैधीभाव और संश्रय गुणों को ग्रहण करने का परामर्श देते है। इसी के माध्यम से राजा सूचनायें एकत्र करता था ललितासहस्रनामस्तोत्र में भी देवी को षाड्गुण्य-परिपूरिता नाम के द्वारा सम्बोधित किया गया है।
षाड्गुण्य नीति का महत्व
मनुस्मृति में लिखा है कि राजा को इन छः गुणों के विषय में निरन्तर विचार करना चाहिये -
सन्धिञ्च विग्रहञ्चौव यनमासनमेव च। द्वैधिभावं संश्रयं च षद्गुणान्श्चन्तयेत्सदा॥ (मनु स्मृति 7.160)
संधि का अर्थ है सुलह कर लेना, शांति कर लेना। विग्रह का अर्थ है विरोध अथवा शत्रुता। इसकी परिणति युद्ध में होती है। यान का अर्थ है शत्रु की ओर सेना का कूच करना। आसन का अर्थ है बैठे रहना अर्थात् शत्रु की किसी चाल का तुरन्त जवाब न देना। द्वैधीभाव का अर्थ है दोहरी चाल चलना और संश्रय का अर्थ है किसी शक्तिशाली राजा का आश्रय लेना। राजनीति परक शास्त्रों में इस बात की बहुत चर्चा मिलती है कि कब किस गुण का प्रयोग करना चाहिये।