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सुधार जारी
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== स्मृतियों का स्वरूप एवं विषय-वस्तु ==
 
== स्मृतियों का स्वरूप एवं विषय-वस्तु ==
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स्मृतियाँ वेदों की व्याख्या हैं, अतः भारतीय जनमानस में इन्हें वेदों जैसी ही प्रतिष्ठा प्राप्त है। स्मृतियों में निरूपित आचार, व्यवहार, प्रायश्चित्त, राजनीतिक, आर्थिक सिद्धान्त हजारों वर्षों तक प्राचीन भारतीय समाज के मेरुदण्ड रहे हैं। स्मृतियों से ही प्राचीन भारतीय संस्कृति का विशद ज्ञान होता है। भारत विश्व का पथ प्रदर्शक और प्रेरणा स्रोत किस प्रकार रहा है और भारतीय संस्कृति ने किस प्रकार विश्व को प्रभावित किया है, इसका स्वरूप स्मृतियों से ज्ञात होता है। स्मृतियों से ही प्राचीन भारत की स्थिति का ज्ञान होता है। स्मृतियां श्रुतियों का विशदीकरण हैं, जो तत्व वेद में संक्षेप में निर्दिष्ट हैं, उनका ही स्मृतियों में विस्तृत विवेचन है। मनु का कथन है कि श्रुति वेद हैं और स्मृतियां धर्मशास्त्र हैं। इन दोनों से ही धर्म का प्रादुर्भाव हुआ है। मनु ने वेदों के पश्चात स्मृतियों को ही धर्म का आधार माना है।
    
===1. मनुस्मृति===
 
===1. मनुस्मृति===
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मनुस्मृति से पता चलता है कि अत्रि प्राचीन धर्मशास्त्रकार थे। अत्रि का धर्मशास्त्र नौ अध्यायों में है। इन अध्यायों में दान, जप, तप का वर्णन है, जिनसे पापों से छुटकारा मिलता है। कुछ अध्याय गद्य और पद्य दोनों में ही है। इनके कुछ श्लोक मनुस्मृति में आते हैं। हस्तलिखित प्रतियों में अत्रि स्मृति या 'अत्रि संहिता' नामक एक अन्य ग्रन्थ मिलता है। अत्रि स्मृति में 400 श्लोक हैं। इसमें स्वयं अत्रि प्रमाण स्वरूप उद्धृत किये गये हैं। "अत्रि स्मृति में आपस्तम्ब, यम, व्यास, शंख, शातातप के नाम एवं उनकी कृतियों का वर्णन किया गया है।
 
मनुस्मृति से पता चलता है कि अत्रि प्राचीन धर्मशास्त्रकार थे। अत्रि का धर्मशास्त्र नौ अध्यायों में है। इन अध्यायों में दान, जप, तप का वर्णन है, जिनसे पापों से छुटकारा मिलता है। कुछ अध्याय गद्य और पद्य दोनों में ही है। इनके कुछ श्लोक मनुस्मृति में आते हैं। हस्तलिखित प्रतियों में अत्रि स्मृति या 'अत्रि संहिता' नामक एक अन्य ग्रन्थ मिलता है। अत्रि स्मृति में 400 श्लोक हैं। इसमें स्वयं अत्रि प्रमाण स्वरूप उद्धृत किये गये हैं। "अत्रि स्मृति में आपस्तम्ब, यम, व्यास, शंख, शातातप के नाम एवं उनकी कृतियों का वर्णन किया गया है।
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===3. विष्णु स्मृति ===
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===3. विष्णु स्मृति===
 
विष्णु स्मृति में 100 अध्याय हैं। इस स्मृति की एवं मनु स्मृति की 160 बातें विल्कुल समान हैं। ऐसा लगता है कि कुछ स्थानों पर तो मनुस्मृति के पद्य गद्य में रख दिये गये हों। याज्ञवल्क्य ने भी विष्णुधर्मसूत्र से शरीरांग-सम्बन्धी ज्ञान ले लिया है। विष्णुस्मृति, याज्ञवल्क्य स्मृति के बाद की कृति है। यह स्मृति भगवद्गीता, मनुस्मृति, याज्ञवल्क्य तथा अन्य धर्मशास्त्रकारों की ऋणी है। मिताक्षरा ने विष्णुस्मृति का 30 बार वर्णन किया हैं।" स्मृति चन्द्रिका में 225 बार विष्णु के उदाहरण आये हैं।<ref>पं० श्रीनन्द, [https://ia801308.us.archive.org/6/items/VisnuSmrti/VisnuSmrti.pdf वैजयन्ती व्याख्या सहित-विष्णुस्मृति], सन 1962, चौखम्बा संस्कृत सीरीज ऑफिस, वाराणसी (पृ० 13)।</ref>
 
विष्णु स्मृति में 100 अध्याय हैं। इस स्मृति की एवं मनु स्मृति की 160 बातें विल्कुल समान हैं। ऐसा लगता है कि कुछ स्थानों पर तो मनुस्मृति के पद्य गद्य में रख दिये गये हों। याज्ञवल्क्य ने भी विष्णुधर्मसूत्र से शरीरांग-सम्बन्धी ज्ञान ले लिया है। विष्णुस्मृति, याज्ञवल्क्य स्मृति के बाद की कृति है। यह स्मृति भगवद्गीता, मनुस्मृति, याज्ञवल्क्य तथा अन्य धर्मशास्त्रकारों की ऋणी है। मिताक्षरा ने विष्णुस्मृति का 30 बार वर्णन किया हैं।" स्मृति चन्द्रिका में 225 बार विष्णु के उदाहरण आये हैं।<ref>पं० श्रीनन्द, [https://ia801308.us.archive.org/6/items/VisnuSmrti/VisnuSmrti.pdf वैजयन्ती व्याख्या सहित-विष्णुस्मृति], सन 1962, चौखम्बा संस्कृत सीरीज ऑफिस, वाराणसी (पृ० 13)।</ref>
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===5. आंगिरस स्मृति===
 
===5. आंगिरस स्मृति===
याज्ञवल्क्य ने अंगिरा को धर्मशास्त्रकार माना है। विश्वरूप के कथनानुसार परिषद् में 121 ब्राह्मण निवास करते थे। इसी प्रकार अडिरस की बहुत सी बातों का वर्णन विश्वरूप ने दिया है। अडिरस स्मृति केवल 72 श्लोकों में है। यह स्मृति वृहत् का संक्षिप्त रूप है। अंगिरस स्मृति में आपस्तम्ब व अंगिरस के नाम आते हैं। इसके उपपन्त्य श्लोक में स्त्रीधन को चुराने वाले की आलोचना की गई है।
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अंगिरा स्मृति, जिसे अंगिरस स्मृति या अंगिरस धर्मशास्त्र के नाम से भी जाना जाता है। यह ग्रन्थ सामाजिक और नैतिक सिद्धान्तों, कानूनी और नैतिक आचरण, अनुष्ठानों, रीति-रिवाजों और जीवन के विभिन्न चरणों में व्यक्तियों के कर्तव्यों सहित विषयों की एक विस्तृत शृंघला को पूर्ण करता है। याज्ञवल्क्य ने अंगिरा को धर्मशास्त्रकार माना है। विश्वरूप के कथनानुसार परिषद् में 121 ब्राह्मण निवास करते थे। इसी प्रकार अडिरस की बहुत सी बातों का वर्णन विश्वरूप ने दिया है। अंगिरस स्मृति केवल 72 श्लोकों में है। यह स्मृति वृहत् का संक्षिप्त रूप है। अंगिरस स्मृति में आपस्तम्ब व अंगिरस के नाम आते हैं। इसके उपन्त्य श्लोक में स्त्रीधन को चुराने वाले की आलोचना की गई है।
    
===6. यम स्मृति===
 
===6. यम स्मृति===
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याज्ञवल्क्य की सूची में संवर्त एक स्मृतिकार के रूप में आते हैं। संवर्त स्मृति में 227 से 230 तक श्लोक उपलब्ध होते हैं। आज जो प्रकाशित संवर्त स्मृति मिलती है, वह मौलिक स्मृति के अंश का संक्षिप्त सार मात्र प्रतीत होता है।
 
याज्ञवल्क्य की सूची में संवर्त एक स्मृतिकार के रूप में आते हैं। संवर्त स्मृति में 227 से 230 तक श्लोक उपलब्ध होते हैं। आज जो प्रकाशित संवर्त स्मृति मिलती है, वह मौलिक स्मृति के अंश का संक्षिप्त सार मात्र प्रतीत होता है।
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===8. कात्यायन स्मृति===
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===8. कात्यायन स्मृति ===
 
शंख, लिखित, याज्ञवल्क्य एवं पराशर आदि स्मृतिकारों ने कात्यायन को धर्म वक्ताओं में गिना है। कात्यायन ने नारद एवं वृहस्पति को अपना आदेश माना है। कात्यायन ने स्त्रीधन पर जो लिखा है, वह उनकी व्यवहार-सम्बन्धी कुशलता का परिचायक है। इस निबन्धों में कात्यायन के 900 श्लोक उद्धृत हुए हैं। कात्यायन का काल-निर्णय सरल नहीं है। वे मनु एवं याज्ञवल्क्य के बाद आते हैं। कात्यायन अधिक से अधिक ईसा के बाद तीसरी या 90 चौथी शताब्दी के माने जाते हैं।
 
शंख, लिखित, याज्ञवल्क्य एवं पराशर आदि स्मृतिकारों ने कात्यायन को धर्म वक्ताओं में गिना है। कात्यायन ने नारद एवं वृहस्पति को अपना आदेश माना है। कात्यायन ने स्त्रीधन पर जो लिखा है, वह उनकी व्यवहार-सम्बन्धी कुशलता का परिचायक है। इस निबन्धों में कात्यायन के 900 श्लोक उद्धृत हुए हैं। कात्यायन का काल-निर्णय सरल नहीं है। वे मनु एवं याज्ञवल्क्य के बाद आते हैं। कात्यायन अधिक से अधिक ईसा के बाद तीसरी या 90 चौथी शताब्दी के माने जाते हैं।
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याज्ञवल्क्य ने शंख, लिखित को धर्मशास्त्रकारों में गिना है। शंख एवं लिखित स्मृति प्राचीन है। इस स्मृति में 18 अध्याय तथा शंख स्मृति के 330 तथा लिखित स्मृति के 93 श्लोक पाये जाते हैं। मित्ताक्षरा में इस स्मृति के 50 श्लोक उद्धृत हुए हैं। यह धर्मसूत्र गौतम एवं आपस्तम्ब के बाद की किन्तु याज्ञवल्क्य स्मृति के पहले की रचना है। इसके प्रणयन का काल ई०पू० 300 से लेकर सन् 100 के बीच में माना गया हैं।
 
याज्ञवल्क्य ने शंख, लिखित को धर्मशास्त्रकारों में गिना है। शंख एवं लिखित स्मृति प्राचीन है। इस स्मृति में 18 अध्याय तथा शंख स्मृति के 330 तथा लिखित स्मृति के 93 श्लोक पाये जाते हैं। मित्ताक्षरा में इस स्मृति के 50 श्लोक उद्धृत हुए हैं। यह धर्मसूत्र गौतम एवं आपस्तम्ब के बाद की किन्तु याज्ञवल्क्य स्मृति के पहले की रचना है। इसके प्रणयन का काल ई०पू० 300 से लेकर सन् 100 के बीच में माना गया हैं।
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===14. दक्ष स्मृति===
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===14. दक्ष स्मृति ===
 
याज्ञवल्क्य ने दक्ष का उल्लेख किया है। विश्वरूप, मिताक्षरा अपरार्क ने दक्ष से उदाहरण लिए हैं। दक्ष के व्यवहार-सम्बन्धी अपरार्क ने दक्ष से उदाहरण लिए हैं। दक्ष के व्यवहार-सम्बन्धी निम्नलिखित दो श्लोक, जिनमें दान में न दिये जाने वाले नौ पदार्थो की चर्चा की गई हैं, बहुधा प्रस्तुत किये जाते हैं-<blockquote>सामान्यं याचितं न्यास आदिर्दाराश्व तद्धनम्। क्रमायातंच निक्षेपः सर्वस्व चान्वये सति॥  आपत्स्वति न देयानि नव वस्तूनि सर्वदा। यो ददाति स मूढात्मा प्रायश्चित्तीयते नरः॥</blockquote>यह स्मृति वस्तुतः बहुत पुरानी है।
 
याज्ञवल्क्य ने दक्ष का उल्लेख किया है। विश्वरूप, मिताक्षरा अपरार्क ने दक्ष से उदाहरण लिए हैं। दक्ष के व्यवहार-सम्बन्धी अपरार्क ने दक्ष से उदाहरण लिए हैं। दक्ष के व्यवहार-सम्बन्धी निम्नलिखित दो श्लोक, जिनमें दान में न दिये जाने वाले नौ पदार्थो की चर्चा की गई हैं, बहुधा प्रस्तुत किये जाते हैं-<blockquote>सामान्यं याचितं न्यास आदिर्दाराश्व तद्धनम्। क्रमायातंच निक्षेपः सर्वस्व चान्वये सति॥  आपत्स्वति न देयानि नव वस्तूनि सर्वदा। यो ददाति स मूढात्मा प्रायश्चित्तीयते नरः॥</blockquote>यह स्मृति वस्तुतः बहुत पुरानी है।
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याज्ञवल्क्य एवं पराशर ने शातातप को धर्मवक्ताओं में माना है। मिताक्षरा, स्मृति चन्द्रिका तथा अन्य ग्रन्थों में शातातप के बहुत से श्लोक लिये गये हैं। शातांतप के नाम की कई स्मृतियां हैं। जीवानन्द के संग्रह में कर्मविपाक नामक शतातप स्मृति है, जिसमें छः अध्याय एवं 231 श्लोक हैं। यह बहुत ही प्राचीन स्मृति है।
 
याज्ञवल्क्य एवं पराशर ने शातातप को धर्मवक्ताओं में माना है। मिताक्षरा, स्मृति चन्द्रिका तथा अन्य ग्रन्थों में शातातप के बहुत से श्लोक लिये गये हैं। शातांतप के नाम की कई स्मृतियां हैं। जीवानन्द के संग्रह में कर्मविपाक नामक शतातप स्मृति है, जिसमें छः अध्याय एवं 231 श्लोक हैं। यह बहुत ही प्राचीन स्मृति है।
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===17. वसिष्ठ स्मृति ===
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===17. वसिष्ठ स्मृति===
 
भगवान् श्रीराम का नाम लेते समय हमारे मन में एक और नाम स्मृति का विषय बनता है और वह नाम मुनि वशिष्ठ का है, जिन्हे अपने तप, ज्ञान आदि से ब्रह्मषि का पद प्राप्त हुआ हैं। इन्होंने तीस अध्यायों में समाप्त होने वाली अपनी वशिष्ठस्मृति के अध्याय 16, 17 और 18 में न्याय प्रक्रिया, साक्षी, दाय विभाग तथा राजा के कर्त्तव्यों का वर्णन किया है।
 
भगवान् श्रीराम का नाम लेते समय हमारे मन में एक और नाम स्मृति का विषय बनता है और वह नाम मुनि वशिष्ठ का है, जिन्हे अपने तप, ज्ञान आदि से ब्रह्मषि का पद प्राप्त हुआ हैं। इन्होंने तीस अध्यायों में समाप्त होने वाली अपनी वशिष्ठस्मृति के अध्याय 16, 17 और 18 में न्याय प्रक्रिया, साक्षी, दाय विभाग तथा राजा के कर्त्तव्यों का वर्णन किया है।
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===18. आपस्तम्ब स्मृति ===
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===18. आपस्तम्ब स्मृति===
 
इसमें संहिताओं के अतिरिक्त ब्राह्मणों के उद्धरण उल्लिखित हैं। इसमें मीमांसा के बहुत से पारिभाषिक शब्द एवं सिद्धान्त पाये जाते हैं। अपरार्क, हरदन्त, स्मृतिचन्द्रिका तथा अन्य ग्रन्थों में इसके बहुत से उद्धरण हैं।
 
इसमें संहिताओं के अतिरिक्त ब्राह्मणों के उद्धरण उल्लिखित हैं। इसमें मीमांसा के बहुत से पारिभाषिक शब्द एवं सिद्धान्त पाये जाते हैं। अपरार्क, हरदन्त, स्मृतिचन्द्रिका तथा अन्य ग्रन्थों में इसके बहुत से उद्धरण हैं।
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==प्रमुख वर्ण्यविषय==
 
==प्रमुख वर्ण्यविषय==
स्मृति को धर्मशास्त्र भी कहा जाता है जिसका अर्थ आचार-संहिता होता है। आचार-संहिता के तीन भाग हैं - अनुष्ठान अथवा कर्मकाण्ड, सामाजिक उत्तरदायित्व का निर्वाह, और पापों जिनमें अपराध भी सम्मिलित हैं उनका प्रायश्चित्त। मनुष्य को धर्माचरण सिखाती हैं स्मृतियाँ।
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वर्ण्य विषय की दृष्टि से स्मृतियों की समस्त विषय सामग्री को तीन भागों में विभक्त किया जा सकता है - आचाराध्याय, व्यवहाराध्याय और प्रायश्चित्ताध्याय।
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==त्रिविध स्रोत - श्रुति स्मृति एवं पुराण ==
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स्मृति को धर्मशास्त्र भी कहा जाता है जिसका अर्थ आचार-संहिता होता है। आचाराध्याय के अन्तर्गत अनुष्ठान अथवा कर्मकाण्ड, सामाजिक उत्तरदायित्व का निर्वाह आदि विषय आते हैं। व्यवहाराध्याय के अन्तर्गत राजनीति, राज्यशासन-विधि, राजा और प्रजा के कर्तव्य, न्याय व्यवस्था, विवादास्पद विषयों का निर्णय, दायभाग आदि और प्रायश्चित्ताध्याय में पापों (अपराध)  उनका प्रायश्चित्त आदि का विवेचन है। मनुष्य को धर्माचरण सिखाती हैं स्मृतियाँ। 
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==त्रिविध स्रोत - श्रुति स्मृति एवं पुराण==
 
श्रुति, स्मृति एवं पुराण प्रायः इन तीनों का नाम एक साथ लिया जाता है, जैसे पूजा आदि के पूर्व संकल्प में श्रुति-स्मृति-पुराणोक्त फलप्राप्त्यर्थम् या आद्यशंकराचार्य की स्तुति में - श्रुतिस्मृतिपुराणानामालयं करुणालयम्।
 
श्रुति, स्मृति एवं पुराण प्रायः इन तीनों का नाम एक साथ लिया जाता है, जैसे पूजा आदि के पूर्व संकल्प में श्रुति-स्मृति-पुराणोक्त फलप्राप्त्यर्थम् या आद्यशंकराचार्य की स्तुति में - श्रुतिस्मृतिपुराणानामालयं करुणालयम्।
  
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