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===1. मनुस्मृति===
 
===1. मनुस्मृति===
मनुस्मृति में बारह अध्याय तथा छब्बीस सौ चौरासी (2684) श्लोक हैं। कुछ संस्करणों में श्लोकों की संख्या 2964 है। मनुस्मृति सरल भाषा में लिखी गई है। मृच्छकटिक नामक नाटक में मनुस्मृति का नाम उल्लिखित हुआ है। वाल्मीकीय रामायण में भी मनुस्मृति के कुछ श्लोक मनु के नाम से प्रस्तुत हुए हैं। मनुस्मृति याज्ञवल्क्य स्मृति से बहुत पुरानी स्मृति है। मनुस्मृति याज्ञवल्क्य स्मृति की अपेक्षा अपूर्ण एवं अनियमित रूप से वर्णित है। कुछ विद्वान् इसका समय दो सौ (200) ई० पू० से दो सौ ई0 (200 ई0) तक का निश्चित करते हैं।<ref>सम्पादक-पं० श्री तुलसीराम स्वामी, [https://vedpuran.net/wp-content/uploads/2016/07/manusmiriti.pdf मनुस्मृति], सन 1984, अध्यक्ष स्वामी प्रेस, मेरठ (पृ० 31)।</ref>
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{{Main|Manusmrti_(मनुस्मृतिः)}}
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मनुस्मृति में बारह अध्याय तथा छब्बीस सौ चौरासी (2684) श्लोक हैं। कुछ संस्करणों में श्लोकों की संख्या 2964 है। मनुस्मृति सरल भाषा में लिखी गई है। मृच्छकटिक नामक नाटक में मनुस्मृति का नाम उल्लिखित हुआ है। वाल्मीकीय रामायण में भी मनुस्मृति के कुछ श्लोक मनु के नाम से प्रस्तुत हुए हैं। मनुस्मृति याज्ञवल्क्य स्मृति से बहुत पुरानी स्मृति है। मनुस्मृति याज्ञवल्क्य स्मृति की अपेक्षा अपूर्ण एवं अनियमित रूप से वर्णित है। ब्रह्मांड का उद्देश्य, कर्म, कर्मों के गुण और दोष, स्थान और जाति, कुल का कर्तव्य और मोक्ष ये मनु स्मृति के मुख्य वर्णनीय विषय हैं।<ref>सम्पादक-पं० श्री तुलसीराम स्वामी, [https://vedpuran.net/wp-content/uploads/2016/07/manusmiriti.pdf मनुस्मृति], सन 1984, अध्यक्ष स्वामी प्रेस, मेरठ (पृ० 31)।</ref>
    
===2. अत्रिस्मृति===
 
===2. अत्रिस्मृति===
 
मनुस्मृति से पता चलता है कि अत्रि प्राचीन धर्मशास्त्रकार थे। अत्रि का धर्मशास्त्र नौ अध्यायों में है। इन अध्यायों में दान, जप, तप का वर्णन है, जिनसे पापों से छुटकारा मिलता है। कुछ अध्याय गद्य और पद्य दोनों में ही है। इनके कुछ श्लोक मनुस्मृति में आते हैं। हस्तलिखित प्रतियों में अत्रि स्मृति या 'अत्रि संहिता' नामक एक अन्य ग्रन्थ मिलता है। अत्रि स्मृति में 400 श्लोक हैं। इसमें स्वयं अत्रि प्रमाण स्वरूप उद्धृत किये गये हैं। "अत्रि स्मृति में आपस्तम्ब, यम, व्यास, शंख, शातातप के नाम एवं उनकी कृतियों का वर्णन किया गया है।
 
मनुस्मृति से पता चलता है कि अत्रि प्राचीन धर्मशास्त्रकार थे। अत्रि का धर्मशास्त्र नौ अध्यायों में है। इन अध्यायों में दान, जप, तप का वर्णन है, जिनसे पापों से छुटकारा मिलता है। कुछ अध्याय गद्य और पद्य दोनों में ही है। इनके कुछ श्लोक मनुस्मृति में आते हैं। हस्तलिखित प्रतियों में अत्रि स्मृति या 'अत्रि संहिता' नामक एक अन्य ग्रन्थ मिलता है। अत्रि स्मृति में 400 श्लोक हैं। इसमें स्वयं अत्रि प्रमाण स्वरूप उद्धृत किये गये हैं। "अत्रि स्मृति में आपस्तम्ब, यम, व्यास, शंख, शातातप के नाम एवं उनकी कृतियों का वर्णन किया गया है।
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=== 3. विष्णु स्मृति===
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===3. विष्णु स्मृति ===
 
विष्णु स्मृति में 100 अध्याय हैं। इस स्मृति की एवं मनु स्मृति की 160 बातें विल्कुल समान हैं। ऐसा लगता है कि कुछ स्थानों पर तो मनुस्मृति के पद्य गद्य में रख दिये गये हों। याज्ञवल्क्य ने भी विष्णुधर्मसूत्र से शरीरांग-सम्बन्धी ज्ञान ले लिया है। विष्णुस्मृति, याज्ञवल्क्य स्मृति के बाद की कृति है। यह स्मृति भगवद्गीता, मनुस्मृति, याज्ञवल्क्य तथा अन्य धर्मशास्त्रकारों की ऋणी है। मिताक्षरा ने विष्णुस्मृति का 30 बार वर्णन किया हैं।" स्मृति चन्द्रिका में 225 बार विष्णु के उदाहरण आये हैं।<ref>पं० श्रीनन्द, [https://ia801308.us.archive.org/6/items/VisnuSmrti/VisnuSmrti.pdf वैजयन्ती व्याख्या सहित-विष्णुस्मृति], सन 1962, चौखम्बा संस्कृत सीरीज ऑफिस, वाराणसी (पृ० 13)।</ref>
 
विष्णु स्मृति में 100 अध्याय हैं। इस स्मृति की एवं मनु स्मृति की 160 बातें विल्कुल समान हैं। ऐसा लगता है कि कुछ स्थानों पर तो मनुस्मृति के पद्य गद्य में रख दिये गये हों। याज्ञवल्क्य ने भी विष्णुधर्मसूत्र से शरीरांग-सम्बन्धी ज्ञान ले लिया है। विष्णुस्मृति, याज्ञवल्क्य स्मृति के बाद की कृति है। यह स्मृति भगवद्गीता, मनुस्मृति, याज्ञवल्क्य तथा अन्य धर्मशास्त्रकारों की ऋणी है। मिताक्षरा ने विष्णुस्मृति का 30 बार वर्णन किया हैं।" स्मृति चन्द्रिका में 225 बार विष्णु के उदाहरण आये हैं।<ref>पं० श्रीनन्द, [https://ia801308.us.archive.org/6/items/VisnuSmrti/VisnuSmrti.pdf वैजयन्ती व्याख्या सहित-विष्णुस्मृति], सन 1962, चौखम्बा संस्कृत सीरीज ऑफिस, वाराणसी (पृ० 13)।</ref>
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यह स्मृति सात अध्यायों वाली है तथा संक्षिप्त होने के बाद भी इसमें वैदिक शिक्षा को इस प्रकार प्रस्तुत किया गया है कि वह सभी के कल्याण के लिये उपयोगी है -  
 
यह स्मृति सात अध्यायों वाली है तथा संक्षिप्त होने के बाद भी इसमें वैदिक शिक्षा को इस प्रकार प्रस्तुत किया गया है कि वह सभी के कल्याण के लिये उपयोगी है -  
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* प्रथम अध्याय में चारों वर्णों तथा अवस्थाओं का वर्णन है।  
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*प्रथम अध्याय में चारों वर्णों तथा अवस्थाओं का वर्णन है।
* दूसरे अध्याय में चारों वर्णों का विश्लेषण है।  
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*दूसरे अध्याय में चारों वर्णों का विश्लेषण है।
* तीसरे अध्याय में ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए कर्तव्यों का वर्णन है।
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*तीसरे अध्याय में ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए कर्तव्यों का वर्णन है।
* चतुर्थ अध्याय में गृहस्थ जीवन तथा कर्तव्यों का वर्णन है।
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*चतुर्थ अध्याय में गृहस्थ जीवन तथा कर्तव्यों का वर्णन है।
* पंचम अध्याय में वानप्रस्थ अर्थात वन में जाने वाले व्यक्ति के जीवन तथा कर्तव्यों का वर्णन है।
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*पंचम अध्याय में वानप्रस्थ अर्थात वन में जाने वाले व्यक्ति के जीवन तथा कर्तव्यों का वर्णन है।
* छटवें अध्याय में त्याग की अवधारणा है।
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*छटवें अध्याय में त्याग की अवधारणा है।
* सातवें अध्याय में योग की अवधारणा है।
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*सातवें अध्याय में योग की अवधारणा है।
    
हारीत के व्यवहार-सम्बन्धी पद्यावतरणों की चर्चा अपेक्षित है। स्मृति चन्द्रिका के उद्धरण में आया हैं- <blockquote>स्वधनस्य यथा प्राप्तिः परधनस्य वर्जनम्। न्यायेन यत्र क्रियते व्यवहारः स उच्चयते॥</blockquote>उन्होंनें इस प्रकार व्यवहार की परिभाषा की है। नारद की भाँति हारीत ने भी व्यवहार के चार स्वरूप बताये हैं। जैसे-धर्म, व्यवहार, चरित्र एवं नृपाज्ञा हारीत, वृहस्पति एवं कात्यायन के समाकालीन लगते हैं। हरिताचार्य ने तप और ज्ञान के सम्मिश्रण को बहुत अच्छे प्रकार से समझाया है -  <blockquote>यथा रथो अश्व हिंसास्तु ताहश्वो रथि हिना कारा। एवं तपश्च विद्या च संयुतं भेषजं भवेत॥ (हा० स्मृ० 6/9) </blockquote>जिस प्रकार घोड़े के बिना रथ सारथी के बिना घोड़े के समान है, अर्थात दोनों ही बेकार हैं। उसी प्रकार तप और ज्ञान का उचित समन्वय ही औषधि के गुण के समान सभी लोगों के कल्याण में सहायक होगा।
 
हारीत के व्यवहार-सम्बन्धी पद्यावतरणों की चर्चा अपेक्षित है। स्मृति चन्द्रिका के उद्धरण में आया हैं- <blockquote>स्वधनस्य यथा प्राप्तिः परधनस्य वर्जनम्। न्यायेन यत्र क्रियते व्यवहारः स उच्चयते॥</blockquote>उन्होंनें इस प्रकार व्यवहार की परिभाषा की है। नारद की भाँति हारीत ने भी व्यवहार के चार स्वरूप बताये हैं। जैसे-धर्म, व्यवहार, चरित्र एवं नृपाज्ञा हारीत, वृहस्पति एवं कात्यायन के समाकालीन लगते हैं। हरिताचार्य ने तप और ज्ञान के सम्मिश्रण को बहुत अच्छे प्रकार से समझाया है -  <blockquote>यथा रथो अश्व हिंसास्तु ताहश्वो रथि हिना कारा। एवं तपश्च विद्या च संयुतं भेषजं भवेत॥ (हा० स्मृ० 6/9) </blockquote>जिस प्रकार घोड़े के बिना रथ सारथी के बिना घोड़े के समान है, अर्थात दोनों ही बेकार हैं। उसी प्रकार तप और ज्ञान का उचित समन्वय ही औषधि के गुण के समान सभी लोगों के कल्याण में सहायक होगा।
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वशिष्ठ धर्मसूत्र ने यम को धर्मशास्त्रकार मानकर उनकी स्मृति से उदाहरण लिया है। याज्ञवल्क्य ने यम को धर्मवक्ता बताया है। इस स्मृति में 78 श्लोक हैं मूलतः यम स्मृति बहुत छोटा ग्रंथ है। इस स्मृति के कुछ श्लोक मनुस्मृति से मिलते जुलते हैं। यम ने नारियों के लिए संन्यास वर्जित किया है। इसमें विभिन्न प्रकार के तपों की चर्चा की गई है तथा उनके पीछे के सैद्धांतिक सिद्धांतों को भी बताया गया है। मुनि यम ने ग्रंथ के प्रारंभ से ही प्रायश्चित के प्रकारों की व्याख्या की है।
 
वशिष्ठ धर्मसूत्र ने यम को धर्मशास्त्रकार मानकर उनकी स्मृति से उदाहरण लिया है। याज्ञवल्क्य ने यम को धर्मवक्ता बताया है। इस स्मृति में 78 श्लोक हैं मूलतः यम स्मृति बहुत छोटा ग्रंथ है। इस स्मृति के कुछ श्लोक मनुस्मृति से मिलते जुलते हैं। यम ने नारियों के लिए संन्यास वर्जित किया है। इसमें विभिन्न प्रकार के तपों की चर्चा की गई है तथा उनके पीछे के सैद्धांतिक सिद्धांतों को भी बताया गया है। मुनि यम ने ग्रंथ के प्रारंभ से ही प्रायश्चित के प्रकारों की व्याख्या की है।
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=== 7. संवर्त स्मृति ===
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===7. संवर्त स्मृति===
 
याज्ञवल्क्य की सूची में संवर्त एक स्मृतिकार के रूप में आते हैं। संवर्त स्मृति में 227 से 230 तक श्लोक उपलब्ध होते हैं। आज जो प्रकाशित संवर्त स्मृति मिलती है, वह मौलिक स्मृति के अंश का संक्षिप्त सार मात्र प्रतीत होता है।
 
याज्ञवल्क्य की सूची में संवर्त एक स्मृतिकार के रूप में आते हैं। संवर्त स्मृति में 227 से 230 तक श्लोक उपलब्ध होते हैं। आज जो प्रकाशित संवर्त स्मृति मिलती है, वह मौलिक स्मृति के अंश का संक्षिप्त सार मात्र प्रतीत होता है।
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याज्ञवल्क्य एवं पराशर ने शातातप को धर्मवक्ताओं में माना है। मिताक्षरा, स्मृति चन्द्रिका तथा अन्य ग्रन्थों में शातातप के बहुत से श्लोक लिये गये हैं। शातांतप के नाम की कई स्मृतियां हैं। जीवानन्द के संग्रह में कर्मविपाक नामक शतातप स्मृति है, जिसमें छः अध्याय एवं 231 श्लोक हैं। यह बहुत ही प्राचीन स्मृति है।
 
याज्ञवल्क्य एवं पराशर ने शातातप को धर्मवक्ताओं में माना है। मिताक्षरा, स्मृति चन्द्रिका तथा अन्य ग्रन्थों में शातातप के बहुत से श्लोक लिये गये हैं। शातांतप के नाम की कई स्मृतियां हैं। जीवानन्द के संग्रह में कर्मविपाक नामक शतातप स्मृति है, जिसमें छः अध्याय एवं 231 श्लोक हैं। यह बहुत ही प्राचीन स्मृति है।
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===17. वसिष्ठ स्मृति===
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===17. वसिष्ठ स्मृति ===
 
भगवान् श्रीराम का नाम लेते समय हमारे मन में एक और नाम स्मृति का विषय बनता है और वह नाम मुनि वशिष्ठ का है, जिन्हे अपने तप, ज्ञान आदि से ब्रह्मषि का पद प्राप्त हुआ हैं। इन्होंने तीस अध्यायों में समाप्त होने वाली अपनी वशिष्ठस्मृति के अध्याय 16, 17 और 18 में न्याय प्रक्रिया, साक्षी, दाय विभाग तथा राजा के कर्त्तव्यों का वर्णन किया है।
 
भगवान् श्रीराम का नाम लेते समय हमारे मन में एक और नाम स्मृति का विषय बनता है और वह नाम मुनि वशिष्ठ का है, जिन्हे अपने तप, ज्ञान आदि से ब्रह्मषि का पद प्राप्त हुआ हैं। इन्होंने तीस अध्यायों में समाप्त होने वाली अपनी वशिष्ठस्मृति के अध्याय 16, 17 और 18 में न्याय प्रक्रिया, साक्षी, दाय विभाग तथा राजा के कर्त्तव्यों का वर्णन किया है।
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स्मृति को धर्मशास्त्र भी कहा जाता है जिसका अर्थ आचार-संहिता होता है। आचार-संहिता के तीन भाग हैं - अनुष्ठान अथवा कर्मकाण्ड, सामाजिक उत्तरदायित्व का निर्वाह, और पापों जिनमें अपराध भी सम्मिलित हैं उनका प्रायश्चित्त। मनुष्य को धर्माचरण सिखाती हैं स्मृतियाँ।  
 
स्मृति को धर्मशास्त्र भी कहा जाता है जिसका अर्थ आचार-संहिता होता है। आचार-संहिता के तीन भाग हैं - अनुष्ठान अथवा कर्मकाण्ड, सामाजिक उत्तरदायित्व का निर्वाह, और पापों जिनमें अपराध भी सम्मिलित हैं उनका प्रायश्चित्त। मनुष्य को धर्माचरण सिखाती हैं स्मृतियाँ।  
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==त्रिविध स्रोत - श्रुति स्मृति एवं पुराण==
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==त्रिविध स्रोत - श्रुति स्मृति एवं पुराण ==
 
श्रुति, स्मृति एवं पुराण प्रायः इन तीनों का नाम एक साथ लिया जाता है, जैसे पूजा आदि के पूर्व संकल्प में श्रुति-स्मृति-पुराणोक्त फलप्राप्त्यर्थम् या आद्यशंकराचार्य की स्तुति में - श्रुतिस्मृतिपुराणानामालयं करुणालयम्।
 
श्रुति, स्मृति एवं पुराण प्रायः इन तीनों का नाम एक साथ लिया जाता है, जैसे पूजा आदि के पूर्व संकल्प में श्रुति-स्मृति-पुराणोक्त फलप्राप्त्यर्थम् या आद्यशंकराचार्य की स्तुति में - श्रुतिस्मृतिपुराणानामालयं करुणालयम्।
  
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