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*'''ज्ञानमीमांसा (Epistemology) -''' इसके अन्तर्गत वास्तविक ज्ञान, उसके प्रकार, उसकी प्रामाणिकता, ज्ञान की सीमा आदि का अध्ययन किया जाता है।
 
*'''ज्ञानमीमांसा (Epistemology) -''' इसके अन्तर्गत वास्तविक ज्ञान, उसके प्रकार, उसकी प्रामाणिकता, ज्ञान की सीमा आदि का अध्ययन किया जाता है।
 
*'''तत्त्वमीमांसा (Metaphysics) -''' इसके अन्तर्गत जगत के मूलतत्त्वों, उनकी प्रकृति, उनकी संख्या आदि के विषय में अध्ययन किया जाता है।
 
*'''तत्त्वमीमांसा (Metaphysics) -''' इसके अन्तर्गत जगत के मूलतत्त्वों, उनकी प्रकृति, उनकी संख्या आदि के विषय में अध्ययन किया जाता है।
*'''नीतिशास्त्र (Ethics) -''' नीतिशास्त्र को दर्शनशास्त्र की ही एक शाखा के रूप में मान्यता प्राप्त है।
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*'''नीतिशास्त्र (Ethics) -''' नीतिशास्त्र को [[Shad Darshanas (षड्दर्शनानि)|दर्शनशास्त्र]] की ही एक शाखा के रूप में मान्यता प्राप्त है।
नीति के भण्डार ग्रन्थों के अतिरिक्त परामर्श, शिक्षा, मंत्रणा और व्यावहारिक ज्ञान आदि के अनेक ग्रन्थ हैं जो नीति परक उपदेश की कोटी में आते हैं। नीति के उपदेश और काव्यों के बीच में विभाजक रेखा अत्यन्त छोटी है, फिर भी यह निर्धारित होता है कि नीति उपदेशात्मक काव्यों की रचना निम्न शैलियों में की गई होगी -  
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नीति के भण्डार ग्रन्थों के अतिरिक्त परामर्श, [[Shiksha (शिक्षा)|शिक्षा]], मंत्रणा और व्यावहारिक ज्ञान आदि के अनेक ग्रन्थ हैं जो नीति परक उपदेश की कोटी में आते हैं। नीति के उपदेश और काव्यों के बीच में विभाजक रेखा अत्यन्त छोटी है, फिर भी यह निर्धारित होता है कि नीति उपदेशात्मक काव्यों की रचना निम्न शैलियों में की गई होगी -  
    
*दाम्पत्य जीवन के संवाद में
 
*दाम्पत्य जीवन के संवाद में
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*वक्रोक्ति-अन्योक्ति और प्रहेलिका आदि के रूप में
 
*वक्रोक्ति-अन्योक्ति और प्रहेलिका आदि के रूप में
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प्रभु सम्मित वाक्य के द्वारा तथा कहीं पर कान्ता सम्मित उपदेश वाक्य के द्वारा तदरूप मार्गों पर चलने का निर्देश दिया गया है। इन्हीं नीति वचनों के अनुपालन से मनुष्य पुरुषार्थों की प्राप्ति में सिद्ध और सफल हो जाता है। भगवद्गीतामें श्रीकृष्ण जी कहते हैं - <blockquote>नीतिरस्मि जिगीषताम् ॥ (भगवद्गीता 10-38)<ref>[https://sa.wikisource.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%83%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%A0%E0%A4%AE%E0%A5%8D:%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%AE%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%AD%E0%A4%97%E0%A4%B5%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%97%E0%A5%80%E0%A4%A4%E0%A4%BE.pdf/%E0%A5%A9%E0%A5%A8%E0%A5%AC श्रीमद्भगवद्गीता], अध्याय-10, श्लोक-38।</ref></blockquote>विजयकी इच्छा रखनेवालों के लिये मैं नीतिस्वरूप हूँ।
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प्रभु सम्मित वाक्य के द्वारा तथा कहीं पर कान्ता सम्मित उपदेश वाक्य के द्वारा तदरूप मार्गों पर चलने का निर्देश दिया गया है। इन्हीं नीति वचनों के अनुपालन से मनुष्य पुरुषार्थों की प्राप्ति में सिद्ध और सफल हो जाता है। [[Bhagavad Gita (भगवद्गीता)|भगवद्गीता]] में श्रीकृष्ण जी कहते हैं - <blockquote>नीतिरस्मि जिगीषताम् ॥ (भगवद्गीता 10-38)<ref>[https://sa.wikisource.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%83%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%A0%E0%A4%AE%E0%A5%8D:%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%AE%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%AD%E0%A4%97%E0%A4%B5%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%97%E0%A5%80%E0%A4%A4%E0%A4%BE.pdf/%E0%A5%A9%E0%A5%A8%E0%A5%AC श्रीमद्भगवद्गीता], अध्याय-10, श्लोक-38।</ref></blockquote>विजयकी इच्छा रखनेवालों के लिये मैं नीतिस्वरूप हूँ।
    
==परिभाषा==
 
==परिभाषा==
नीतिका तात्पर्य है- जिसके द्वारा जाना जाय अर्थ समझा जाय वह नीति है - <ref>कल्याण पत्रिका, [https://ia601505.us.archive.org/35/items/in.ernet.dli.2015.404141/2015.404141.Neetisaar-.pdf नीतिसार अंक-धर्म और नीति], गीताप्रेस गोरखपुर (पृ० 126)।</ref><blockquote>नीयन्ते उन्नीयन्ते अर्थाः अनया इति नीतिः।</blockquote>शुक्रनीति ग्रन्थमें नीतिकी परिभाषा करते हुए लिखा है - <blockquote>सर्वोपजीवको लोकस्थितिकृन्नीतिशास्त्रकम्। धर्मार्थकाममूलो हि स्मृतो मोक्षप्रदो यतः॥</blockquote>नीतिशास्त्र सभीकी जीविकाका साधन है तथा वह लोककी स्थिति सुरक्षित करनेवाला और धर्म अर्थ तथा कामका मूल एवं मोक्ष प्रदान करनेवाला है।
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नीतिका तात्पर्य है- जिसके द्वारा जाना जाय अर्थ समझा जाय वह नीति है - <ref>कल्याण पत्रिका, [https://ia601505.us.archive.org/35/items/in.ernet.dli.2015.404141/2015.404141.Neetisaar-.pdf नीतिसार अंक-धर्म और नीति], गीताप्रेस गोरखपुर (पृ० 126)।</ref><blockquote>नीयन्ते उन्नीयन्ते अर्थाः अनया इति नीतिः।</blockquote>शुक्रनीति ग्रन्थमें नीतिकी परिभाषा करते हुए लिखा है - <blockquote>सर्वोपजीवको लोकस्थितिकृन्नीतिशास्त्रकम्। धर्मार्थकाममूलो हि स्मृतो मोक्षप्रदो यतः॥ (शुक्रनीति)</blockquote>नीतिशास्त्र सभीकी जीविकाका साधन है तथा वह लोककी स्थिति सुरक्षित करनेवाला और धर्म अर्थ तथा कामका मूल एवं मोक्ष प्रदान करनेवाला है।
    
==नीतिशास्त्र एवं अन्य विद्याएं==
 
==नीतिशास्त्र एवं अन्य विद्याएं==
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*प्राणि शास्त्र
 
*प्राणि शास्त्र
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इनके अतिरिक्त नीति-शास्त्र का घनिष्ठ सम्बन्ध राजनीति शास्त्र और, समाजशास्त्र और अर्थशास्त्र से भी है।
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इनके अतिरिक्त नीति-शास्त्र का घनिष्ठ सम्बन्ध राजनीति शास्त्र और, समाजशास्त्र और अर्थशास्त्र के साथ-साथ नीतिशास्त्र और [[Manas (मनः)|मनोविज्ञान]], नीति-शास्त्र और तत्त्वविज्ञान, नीति-शास्त्र और तर्क-शास्त्र, नीतिशास्त्र और सौन्दर्य शास्त्र के साथ भी संबंध देखने में प्राप्त होता है।
 
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'''नीतिशास्त्र और मनोविज्ञान'''
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'''नीति-शास्त्र और तत्त्वविज्ञान'''
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'''नीति-शास्त्र और तर्क-शास्त्र'''
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'''नीतिशास्त्र और सौन्दर्य शास्त्र'''
      
==नीतिशास्त्र और राजनीति का संबंध==
 
==नीतिशास्त्र और राजनीति का संबंध==
 
संस्कृत साहित्य में वैदिक युग से ही नीति परक उपदेशों की परम्परा चली आ रही है, जिसमें विभिन्न मनुष्य ने अपने अनुसार नीति कथाओं एवं वचनों के वर्णन किये गये हैं। वस्तुतः नीति के उद्भावक भगवान् ब्रह्मा और प्रतिष्ठापक विष्णु हैं। आदि काल से लेकर आधुनिक काल तक नीतियों का अत्यधिक प्रचार हुआ है। जिनमें नीतिशास्त्र से संबंधित कुछ प्रमुख ग्रन्थ इस प्रकार हैं -  
 
संस्कृत साहित्य में वैदिक युग से ही नीति परक उपदेशों की परम्परा चली आ रही है, जिसमें विभिन्न मनुष्य ने अपने अनुसार नीति कथाओं एवं वचनों के वर्णन किये गये हैं। वस्तुतः नीति के उद्भावक भगवान् ब्रह्मा और प्रतिष्ठापक विष्णु हैं। आदि काल से लेकर आधुनिक काल तक नीतियों का अत्यधिक प्रचार हुआ है। जिनमें नीतिशास्त्र से संबंधित कुछ प्रमुख ग्रन्थ इस प्रकार हैं -  
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*नीति
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*'''विदुर नीति'''
*विदुर नीति
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*'''शुक्र नीति'''
*शुक्र नीति
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*'''कामन्दकीय नीतिसार'''
*कामन्दकीय नीतिसार
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*'''चाणक्यनीति'''
*चाणक्यनीति
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*'''नीति कल्पतरू'''
*नीति कल्पतरू
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*'''कृत्य नीति वाक्यामृत'''
*कृत्य नीति वाक्यामृत
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*'''पञ्चतन्त्र'''
*पञ्चतन्त्र
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*'''हितोपदेश'''
*हितोपदेश
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*'''नीति शतक'''
*नीति शतक
      
==नीतिशास्त्र का महत्व==
 
==नीतिशास्त्र का महत्व==
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== नीति शास्त्र एवं नीति कथाएं ==
 
== नीति शास्त्र एवं नीति कथाएं ==
नीति शास्त्र और नीति कथाओं दोनों का ही उद्देश्य समाज में नैतिक मूल्यों और संस्कारों का विकास करना है। नीति शास्त्र के सिद्धांत और नीति कथाओं की शिक्षाएँ एक साथ मिलकर व्यक्ति और समाज को नैतिकता, धर्म, और न्याय के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करती हैं। पंचतंत्र और हितोपदेश दो प्रमुख नीति ग्रंथ हैं, जिनमें नीति कथाओं के माध्यम से नैतिकता और जीवन के सिद्धांतों को समझाया गया है। इन ग्रंथों में जानवरों और पक्षियों की कहानियाँ हैं, जो नीति शास्त्र के सिद्धांतों को सरल और प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करती हैं। महाभारत के "विदुर नीति" और "शांति पर्व" में नीति शास्त्र के गहन सिद्धांत दिए गए हैं, वहीं महाभारत और रामायण की कहानियाँ इन सिद्धांतों को व्यावहारिक जीवन में कैसे लागू किया जाए, इसे समझाने में मदद करती हैं।
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नीति शास्त्र और नीति कथाओं दोनों का ही उद्देश्य समाज में नैतिक मूल्यों और संस्कारों का विकास करना है। नीति शास्त्र के सिद्धांत और नीति कथाओं की शिक्षाएँ एक साथ मिलकर व्यक्ति और समाज को नैतिकता, धर्म, और न्याय के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करती हैं। पंचतंत्र और हितोपदेश दो प्रमुख नीति ग्रंथ हैं, जिनमें नीति कथाओं के माध्यम से नैतिकता और जीवन के सिद्धांतों को समझाया गया है। इन ग्रंथों में जानवरों और पक्षियों की कहानियाँ हैं, जो नीति शास्त्र के सिद्धांतों को सरल और प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करती हैं। [[Mahabharat (महाभारत)|महाभारत]] के "विदुर नीति" और "शांति पर्व" में नीति शास्त्र के गहन सिद्धांत दिए गए हैं, वहीं महाभारत और [[Ramayana (रामायण)|रामायण]] की कहानियाँ इन सिद्धांतों को व्यावहारिक जीवन में कैसे लागू किया जाए, इसे समझाने में मदद करती हैं।
    
==निष्कर्ष==
 
==निष्कर्ष==
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