Difference between revisions of "Modern Linguistics (आधुनिक भाषाविज्ञान)"

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==परिचय ==
 
==परिचय ==
भाषा शब्द संस्कृत के भाष् धातु से बना है जिसका तात्पर्य स्पष्ट वाणी, मनुष्य की वाणी, बोलना या कहना है। भाषा का अर्थ सिर्फ बोलने से नहीं है बल्कि जो मनुष्य बोलता है उसके एक खास अर्थ से है।भाषा शब्द का प्रयोग पशु पक्षियों की बोली के लिये भी होता है।<blockquote>"वाग्वै सम्राट् परमं ब्रह्म"। (ऐतo उप०)</blockquote>उपनिषद् के इस वाक्य में शब्द को ब्रह्म कहा गया है। शब्द या वाक् की उपासना भी ब्रह्म की ही उपासना है। भारतीय ज्ञान परंपरा में प्रातिशाख्यों, शिक्षा-ग्रन्थों,  निरुक्त, व्याकरण तथा काव्य-शास्त्र में भाषा-विज्ञान के विविध पक्षों का बृहत् गाम्भीर्यपूर्ण विवेचन किया गया है।<blockquote>वाचामेव प्रसादेन लोक यात्रा प्रवर्तते। (काव्यादर्श)</blockquote>काव्यादर्श में वाणी (भाषा) को जीवन का मुख्याधार बताते हुए कहा है। पश्चिम में वर्तमान भाषा-विज्ञान का आरंभ १७८६ ई० में विलियम जोन्स द्वारा हुआ। उन्होंने संस्कृत, लैटिन, ग्रीक के तुलनात्मक अध्ययन के संकेत दिए। पश्चिम में भाषा-विज्ञान के लिये सर्वप्रथम 'कम्पेरेटिव ग्रामर' (Comparative Grammar) नाम दिया गया। वहाँ पहले व्याकरण और भाषा-विज्ञान में कोई भेद नहीं किया जाता था। भाषाओं की तुलना पर बल देने के कारण १८वीं शताब्दी में इसे कम्पेरेटिव फिलोलॉजी (Comparative Philology) नाम दिया गया। भाषा-विज्ञान तुलनात्मक ही होता है, इसलिए कम्पेरेटिव शब्द का त्याग कर दिया गया।
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भाषा शब्द संस्कृत के भाष् धातु से बना है जिसका तात्पर्य स्पष्ट वाणी, मनुष्य की वाणी, बोलना या कहना है। भाषा का अर्थ सिर्फ बोलने से नहीं है बल्कि जो मनुष्य बोलता है उसके एक खास अर्थ से है।भाषा शब्द का प्रयोग पशु पक्षियों की बोली के लिये भी होता है।<blockquote>वाग्वै सम्राट् परमं ब्रह्म। (ऐतo उप०)</blockquote>उपनिषद् के इस वाक्य में शब्द को ब्रह्म कहा गया है। शब्द या वाक् की उपासना भी ब्रह्म की ही उपासना है। भारतीय ज्ञान परंपरा में प्रातिशाख्यों, शिक्षा-ग्रन्थों,  निरुक्त, व्याकरण तथा काव्य-शास्त्र में भाषा-विज्ञान के विविध पक्षों का बृहत् गाम्भीर्यपूर्ण विवेचन किया गया है।<blockquote>वाचामेव प्रसादेन लोक यात्रा प्रवर्तते। (काव्यादर्श)</blockquote>काव्यादर्श में वाणी (भाषा) को जीवन का मुख्याधार बताते हुए कहा है। पश्चिम में वर्तमान भाषा-विज्ञान का आरंभ १७८६ ई० में विलियम जोन्स द्वारा हुआ। उन्होंने संस्कृत, लैटिन, ग्रीक के तुलनात्मक अध्ययन के संकेत दिए। पश्चिम में भाषा-विज्ञान के लिये सर्वप्रथम 'कम्पेरेटिव ग्रामर' (Comparative Grammar) नाम दिया गया। वहाँ पहले व्याकरण और भाषा-विज्ञान में कोई भेद नहीं किया जाता था। भाषाओं की तुलना पर बल देने के कारण १८वीं शताब्दी में इसे कम्पेरेटिव फिलोलॉजी (Comparative Philology) नाम दिया गया। भाषा-विज्ञान तुलनात्मक ही होता है, इसलिए कम्पेरेटिव शब्द का त्याग कर दिया गया।
  
 
* डेवीज ने १८१७ ई० में भाषा-विज्ञान के लिये ग्लासोलोजी (Glossology) शब्द का प्रयोग किया, पर यह नाम भी नहीं चला।
 
* डेवीज ने १८१७ ई० में भाषा-विज्ञान के लिये ग्लासोलोजी (Glossology) शब्द का प्रयोग किया, पर यह नाम भी नहीं चला।
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आधुनिक भाषा विज्ञान (Modern Linguistics) भाषा के वैज्ञानिक अध्ययन को संदर्भित करता है। यह 19वीं सदी के अंत और 20वीं सदी की शुरुआत में विकसित हुआ और इसमें भाषा की संरचना, ध्वनि, अर्थ, और सामाजिक उपयोग के अध्ययन शामिल हैं। आधुनिक भाषा विज्ञान के कुछ प्रमुख क्षेत्रों में शामिल हैं -  
 
आधुनिक भाषा विज्ञान (Modern Linguistics) भाषा के वैज्ञानिक अध्ययन को संदर्भित करता है। यह 19वीं सदी के अंत और 20वीं सदी की शुरुआत में विकसित हुआ और इसमें भाषा की संरचना, ध्वनि, अर्थ, और सामाजिक उपयोग के अध्ययन शामिल हैं। आधुनिक भाषा विज्ञान के कुछ प्रमुख क्षेत्रों में शामिल हैं -  
  
* '''1.ध्वनिविज्ञान (Phonetics):''' भाषाओं में ध्वनियों के उत्पादन, ध्वनि गुणों, और ध्वनियों के ध्वनि तंत्र के अध्ययन को ध्वनिविज्ञान कहा जाता है।
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#'''ध्वनिविज्ञान (Phonetics) -''' भाषाओं में ध्वनियों के उत्पादन, ध्वनि गुणों, और ध्वनियों के ध्वनि तंत्र के अध्ययन को ध्वनिविज्ञान कहा जाता है।
* '''2. ध्वन्यात्मकता (Phonology):''' ध्वनियों की संरचना और उनके व्यवस्थित संगठन का अध्ययन।
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#'''ध्वन्यात्मकता (Phonology) -''' ध्वनियों की संरचना और उनके व्यवस्थित संगठन का अध्ययन।
* '''3. रूपविज्ञान (Morphology):''' शब्दों के आंतरिक संरचना और उनके निर्माण का अध्ययन।
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#'''रूपविज्ञान (Morphology) -''' शब्दों के आंतरिक संरचना और उनके निर्माण का अध्ययन।
* '''4. वाक्यविज्ञान (Syntax):''' वाक्यों की संरचना और उनके नियमों का अध्ययन।
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#'''वाक्यविज्ञान (Syntax) -''' वाक्यों की संरचना और उनके नियमों का अध्ययन।
* '''5. अर्थविज्ञान (Semantics):''' शब्दों और वाक्यों के अर्थ का अध्ययन।
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#'''अर्थविज्ञान (Semantics) -''' शब्दों और वाक्यों के अर्थ का अध्ययन।
* '''6.प्रग्मेटिक्स (Pragmatics):''' भाषा का उपयोग और उसका संदर्भ पर प्रभाव का अध्ययन।
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#'''प्रग्मेटिक्स (Pragmatics) -''' भाषा का उपयोग और उसका संदर्भ पर प्रभाव का अध्ययन।
* '''7.सामाजिक भाषा विज्ञान (Sociolinguistics):''' भाषा और समाज के बीच के संबंध का अध्ययन।
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#'''सामाजिक भाषा विज्ञान (Sociolinguistics) -''' भाषा और समाज के बीच के संबंध का अध्ययन।
* '''8.मनोभाषाविज्ञान (Psycholinguistics):''' भाषा का मानसिक प्रक्रियाओं और भाषा के विकास के साथ संबंध का अध्ययन।
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# '''मनोभाषाविज्ञान (Psycholinguistics) -''' भाषा का मानसिक प्रक्रियाओं और भाषा के विकास के साथ संबंध का अध्ययन।
  
 
आधुनिक भाषा विज्ञान में नोम चॉम्स्की का योगदान महत्वपूर्ण है, जिन्होंने भाषा की उत्पत्ति और संरचना को समझने के लिए कई सिद्धांत प्रस्तुत किए। इसके अतिरिक्त, आधुनिक तकनीकी साधनों और गणनात्मक भाषाविज्ञान (Computational Linguistics) ने भी इस क्षेत्र में नई संभावनाएँ खोली हैं।
 
आधुनिक भाषा विज्ञान में नोम चॉम्स्की का योगदान महत्वपूर्ण है, जिन्होंने भाषा की उत्पत्ति और संरचना को समझने के लिए कई सिद्धांत प्रस्तुत किए। इसके अतिरिक्त, आधुनिक तकनीकी साधनों और गणनात्मक भाषाविज्ञान (Computational Linguistics) ने भी इस क्षेत्र में नई संभावनाएँ खोली हैं।
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नोम चॉम्स्की का आधुनिक भाषा विज्ञान में योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण और प्रभावशाली रहा है। उनकी शोध और सिद्धांतों ने भाषा अध्ययन के क्षेत्र में क्रांति ला दी। उनके प्रमुख योगदानों में शामिल हैं:
 
नोम चॉम्स्की का आधुनिक भाषा विज्ञान में योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण और प्रभावशाली रहा है। उनकी शोध और सिद्धांतों ने भाषा अध्ययन के क्षेत्र में क्रांति ला दी। उनके प्रमुख योगदानों में शामिल हैं:
  
'''1.सार्वभौमिक व्याकरण (Universal Grammar):'''  - चॉम्स्की ने यह प्रस्तावित किया कि सभी मानव भाषाओं के पीछे एक सामान्य व्याकरणिक संरचना होती है, जिसे सार्वभौमिक व्याकरण कहा जाता है। उनका मानना है कि यह संरचना जैविक रूप से मानव मस्तिष्क में निहित होती है।
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'''1.सार्वभौमिक व्याकरण (Universal Grammar)''' - चॉम्स्की ने यह प्रस्तावित किया कि सभी मानव भाषाओं के पीछे एक सामान्य व्याकरणिक संरचना होती है, जिसे सार्वभौमिक व्याकरण कहा जाता है। उनका मानना है कि यह संरचना जैविक रूप से मानव मस्तिष्क में निहित होती है।
  
'''2.उत्पादनात्मक व्याकरण (Generative Grammar): -''' चॉम्स्की ने उत्पादनात्मक व्याकरण का सिद्धांत प्रस्तुत किया, जिसमें उन्होंने भाषा को एक प्रणाली के रूप में देखा जो सीमित नियमों का उपयोग करके अनंत वाक्य उत्पन्न कर सकती है। उन्होंने इसके लिए "स्ट्रक्चरल डेस्क्रिप्शन" और "डीप स्ट्रक्चर" जैसी अवधारणाओं का विकास किया।
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'''2.उत्पादनात्मक व्याकरण (Generative Grammar) -''' चॉम्स्की ने उत्पादनात्मक व्याकरण का सिद्धांत प्रस्तुत किया, जिसमें उन्होंने भाषा को एक प्रणाली के रूप में देखा जो सीमित नियमों का उपयोग करके अनंत वाक्य उत्पन्न कर सकती है। उन्होंने इसके लिए "स्ट्रक्चरल डेस्क्रिप्शन" और "डीप स्ट्रक्चर" जैसी अवधारणाओं का विकास किया।
  
'''3. सतह संरचना और गहन संरचना (Surface Structure and Deep Structure):''' - चॉम्स्की ने भाषा के दो स्तरों की पहचान की: सतह संरचना (Surface Structure), जो वाक्य का वास्तविक रूप होता है, और गहन संरचना (Deep Structure), जो वाक्य का गहरा अर्थ होता है। उन्होंने यह दिखाया कि एक ही गहन संरचना विभिन्न सतह संरचनाओं में व्यक्त की जा सकती है।
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'''3. सतह संरचना और गहन संरचना (Surface Structure and Deep Structure)''' - चॉम्स्की ने भाषा के दो स्तरों की पहचान की: सतह संरचना (Surface Structure), जो वाक्य का वास्तविक रूप होता है, और गहन संरचना (Deep Structure), जो वाक्य का गहरा अर्थ होता है। उन्होंने यह दिखाया कि एक ही गहन संरचना विभिन्न सतह संरचनाओं में व्यक्त की जा सकती है।
  
'''4.परिवर्तन नियम (Transformational Rules):''' - चॉम्स्की ने परिवर्तन नियमों का सिद्धांत प्रस्तुत किया, जो यह बताते हैं कि गहन संरचनाओं को सतह संरचनाओं में कैसे परिवर्तित किया जाता है। इन नियमों के माध्यम से वाक्य संरचनाओं को अधिक गहनता से समझा जा सकता है।
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'''4.परिवर्तन नियम (Transformational Rules)''' - चॉम्स्की ने परिवर्तन नियमों का सिद्धांत प्रस्तुत किया, जो यह बताते हैं कि गहन संरचनाओं को सतह संरचनाओं में कैसे परिवर्तित किया जाता है। इन नियमों के माध्यम से वाक्य संरचनाओं को अधिक गहनता से समझा जा सकता है।
  
'''5.लैंग्वेज एक्विजिशन डिवाइस (Language Acquisition Device):''' - चॉम्स्की ने यह प्रस्तावित किया कि मानव मस्तिष्क में एक लैंग्वेज एक्विजिशन डिवाइस (LAD) होता है, जो बच्चों को सहज रूप से भाषा सीखने में सक्षम बनाता है। उनका मानना है कि बच्चे जन्म से ही भाषा सीखने की क्षमता के साथ पैदा होते हैं।
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'''5.लैंग्वेज एक्विजिशन डिवाइस (Language Acquisition Device)''' - चॉम्स्की ने यह प्रस्तावित किया कि मानव मस्तिष्क में एक लैंग्वेज एक्विजिशन डिवाइस (LAD) होता है, जो बच्चों को सहज रूप से भाषा सीखने में सक्षम बनाता है। उनका मानना है कि बच्चे जन्म से ही भाषा सीखने की क्षमता के साथ पैदा होते हैं।
  
'''6.भाषाई कम्प्यूटेशन (Computational Linguistics):''' - चॉम्स्की के सिद्धांतों ने गणनात्मक भाषाविज्ञान में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनके विचारों ने भाषा को गणितीय और कम्प्यूटेशनल रूप से समझने की दिशा में नई संभावनाएं खोलीं।
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'''6.भाषाई कम्प्यूटेशन (Computational Linguistics)''' - चॉम्स्की के सिद्धांतों ने गणनात्मक भाषाविज्ञान में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनके विचारों ने भाषा को गणितीय और कम्प्यूटेशनल रूप से समझने की दिशा में नई संभावनाएं खोलीं।
  
 
चॉम्स्की के विचारों और सिद्धांतों ने भाषा विज्ञान को एक नई दिशा दी है, और उनके शोध ने भाषा के अध्ययन को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से समझने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
 
चॉम्स्की के विचारों और सिद्धांतों ने भाषा विज्ञान को एक नई दिशा दी है, और उनके शोध ने भाषा के अध्ययन को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से समझने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
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'''1.पाणिनि (Panini)'''
 
'''1.पाणिनि (Panini)'''
  
सिद्धांत: पाणिनि को संस्कृत व्याकरण का जनक माना जाता है। उन्होंने 'अष्टाध्यायी' नामक एक ग्रंथ लिखा, जो संस्कृत भाषा के व्याकरणिक नियमों का संकलन है। पाणिनि का कार्य शास्त्रीय भारतीय भाषा विज्ञान का आधार है और उनका व्याकरण आज भी महत्वपूर्ण है।
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पाणिनि को संस्कृत व्याकरण का जनक माना जाता है। उन्होंने 'अष्टाध्यायी' नामक एक ग्रंथ लिखा, जो संस्कृत भाषा के व्याकरणिक नियमों का संकलन है। पाणिनि का कार्य शास्त्रीय भारतीय भाषा विज्ञान का आधार है और उनका व्याकरण आज भी महत्वपूर्ण है।
  
'''महत्व:''' पाणिनि के नियमों की संक्षिप्तता और सटीकता आधुनिक भाषा विज्ञान के लिए प्रेरणा का स्रोत रही है। उनके द्वारा प्रस्तुत 'संधि', 'समास' और 'धातु' जैसे व्याकरणिक सिद्धांत आज भी प्रासंगिक हैं।
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पाणिनि के नियमों की संक्षिप्तता और सटीकता आधुनिक भाषा विज्ञान के लिए प्रेरणा का स्रोत रही है। उनके द्वारा प्रस्तुत 'संधि', 'समास' और 'धातु' जैसे व्याकरणिक सिद्धांत आज भी प्रासंगिक हैं।
  
 
'''2.भर्तृहरि (Bhartrihari)'''
 
'''2.भर्तृहरि (Bhartrihari)'''
  
'''सिद्धांत:''' भर्तृहरि ने 'वाक्यपदीय' नामक ग्रंथ में भाषा और अर्थ के संबंधों पर विचार किया। उन्होंने 'स्फोट सिद्धांत' प्रस्तुत किया, जिसमें कहा गया कि शब्द या वाक्य का अर्थ एक समग्र अनुभव के रूप में प्रकट होता है, न कि अलग-अलग शब्दों से।
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भर्तृहरि ने 'वाक्यपदीय' नामक ग्रंथ में भाषा और अर्थ के संबंधों पर विचार किया। उन्होंने 'स्फोट सिद्धांत' प्रस्तुत किया, जिसमें कहा गया कि शब्द या वाक्य का अर्थ एक समग्र अनुभव के रूप में प्रकट होता है, न कि अलग-अलग शब्दों से।
  
'''महत्व:''' भर्तृहरि का स्फोट सिद्धांत भाषा के मनोवैज्ञानिक और दार्शनिक पहलुओं को समझने में मदद करता है और इसने आधुनिक भाषाविज्ञान में संरचनावाद और अर्थशास्त्र के विकास को प्रभावित किया।
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भर्तृहरि का स्फोट सिद्धांत भाषा के मनोवैज्ञानिक और दार्शनिक पहलुओं को समझने में मदद करता है और इसने आधुनिक भाषाविज्ञान में संरचनावाद और अर्थशास्त्र के विकास को प्रभावित किया।
  
 
'''3. केदारनाथ भट्टाचार्य (Kedarnath Bhattacharya)'''
 
'''3. केदारनाथ भट्टाचार्य (Kedarnath Bhattacharya)'''
  
'''सिद्धांत:''' केदारनाथ भट्टाचार्य भारतीय भाषा विज्ञान में शब्दार्थ विज्ञान (Lexicography) और अनुवाद के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने कई भाषाओं के शब्दकोशों और अनुवाद कार्यों पर काम किया।
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केदारनाथ भट्टाचार्य भारतीय भाषा विज्ञान में शब्दार्थ विज्ञान (Lexicography) और अनुवाद के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने कई भाषाओं के शब्दकोशों और अनुवाद कार्यों पर काम किया।
  
'''महत्व:''' उनके कार्यों ने भारतीय भाषाओं के शब्दार्थ और उनके भाषाई विकास को समझने में मदद की है।
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उनके कार्यों ने भारतीय भाषाओं के शब्दार्थ और उनके भाषाई विकास को समझने में मदद की है।
  
 
'''4. फर्डिनांड डी सॉसुर और भारतीय परंपरा'''
 
'''4. फर्डिनांड डी सॉसुर और भारतीय परंपरा'''
  
'''सिद्धांत:''' सॉसुर को आधुनिक संरचनावादी भाषा विज्ञान के पिता के रूप में जाना जाता है। हालांकि वे भारतीय नहीं थे, लेकिन भारतीय व्याकरणिक परंपराओं, विशेषकर पाणिनि, का उनकी सोच पर गहरा प्रभाव पड़ा।
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सॉसुर को आधुनिक संरचनावादी भाषा विज्ञान के पिता के रूप में जाना जाता है। हालांकि वे भारतीय नहीं थे, लेकिन भारतीय व्याकरणिक परंपराओं, विशेषकर पाणिनि, का उनकी सोच पर गहरा प्रभाव पड़ा।
  
'''महत्व:''' सॉसुर के विचारों और सिद्धांतों ने भारतीय भाषा विज्ञान को आधुनिक दृष्टिकोण प्रदान किया, जिससे भाषा के संरचनात्मक और अर्थात्मक विश्लेषण को बढ़ावा मिला।
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सॉसुर के विचारों और सिद्धांतों ने भारतीय भाषा विज्ञान को आधुनिक दृष्टिकोण प्रदान किया, जिससे भाषा के संरचनात्मक और अर्थात्मक विश्लेषण को बढ़ावा मिला।
  
 
'''6. भोलानाथ तिवारी'''
 
'''6. भोलानाथ तिवारी'''
  
'''सिद्धांत:''' भोलानाथ तिवारी ने हिंदी भाषा विज्ञान पर महत्वपूर्ण कार्य किया और हिंदी के स्वरविज्ञान, ध्वनिविज्ञान, और व्याकरणिक संरचना पर गहन अध्ययन प्रस्तुत किया।
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भोलानाथ तिवारी ने हिंदी भाषा विज्ञान पर महत्वपूर्ण कार्य किया और हिंदी के स्वरविज्ञान, ध्वनिविज्ञान, और व्याकरणिक संरचना पर गहन अध्ययन प्रस्तुत किया।
  
'''महत्व:''' उनके शोध ने हिंदी भाषा के विकास और उसकी व्याकरणिक संरचना को समझने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
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उनके शोध ने हिंदी भाषा के विकास और उसकी व्याकरणिक संरचना को समझने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
  
 
अर्थात भारतीय सिद्धांतकारों ने आधुनिक भाषा विज्ञान को समृद्ध करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। पाणिनि, भर्तृहरि, और केदारनाथ भट्टाचार्य जैसे विद्वानों के कार्यों ने न केवल भारतीय भाषाओं की समझ को गहरा किया है, बल्कि वैश्विक स्तर पर भाषा विज्ञान के सिद्धांतों और विचारों को प्रभावित किया है। इन सिद्धांतकारों के योगदान आज भी भाषा विज्ञान के अध्ययन और अनुसंधान में महत्वपूर्ण बने हुए हैं।
 
अर्थात भारतीय सिद्धांतकारों ने आधुनिक भाषा विज्ञान को समृद्ध करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। पाणिनि, भर्तृहरि, और केदारनाथ भट्टाचार्य जैसे विद्वानों के कार्यों ने न केवल भारतीय भाषाओं की समझ को गहरा किया है, बल्कि वैश्विक स्तर पर भाषा विज्ञान के सिद्धांतों और विचारों को प्रभावित किया है। इन सिद्धांतकारों के योगदान आज भी भाषा विज्ञान के अध्ययन और अनुसंधान में महत्वपूर्ण बने हुए हैं।
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'''1. नोम चॉम्स्की (Noam Chomsky):'''
 
'''1. नोम चॉम्स्की (Noam Chomsky):'''
  
'''सिद्धांत:''' उत्पादनात्मक व्याकरण (Generative Grammar), सार्वभौमिक व्याकरण (Universal Grammar)
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उत्पादनात्मक व्याकरण (Generative Grammar), सार्वभौमिक व्याकरण (Universal Grammar)
  
'''योगदान:''' चॉम्स्की ने भाषा की संरचना को समझने के लिए उत्पादनात्मक व्याकरण का सिद्धांत प्रस्तुत किया, जिसमें गहन संरचना (Deep Structure) और सतह संरचना (Surface Structure) की अवधारणाएँ शामिल हैं। उन्होंने यह भी प्रस्तावित किया कि सभी मानव भाषाओं में एक सामान्य व्याकरणिक ढांचा होता है जो मानव मस्तिष्क में निहित है।
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चॉम्स्की ने भाषा की संरचना को समझने के लिए उत्पादनात्मक व्याकरण का सिद्धांत प्रस्तुत किया, जिसमें गहन संरचना (Deep Structure) और सतह संरचना (Surface Structure) की अवधारणाएँ शामिल हैं। उन्होंने यह भी प्रस्तावित किया कि सभी मानव भाषाओं में एक सामान्य व्याकरणिक ढांचा होता है जो मानव मस्तिष्क में निहित है।
  
'''2. फर्डिनेंड डी सॉसुर (Ferdinand de Saussure):'''
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'''2. फर्डिनेंड डी सॉसुर (Ferdinand de Saussure)'''
  
'''सिद्धांत''': स्ट्रक्चरलिज़्म (Structuralism)
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स्ट्रक्चरलिज़्म (Structuralism)
  
'''योगदान:''' सॉसुर ने भाषा को एक संरचना के रूप में देखने का प्रस्ताव दिया, जिसमें 'सिंक्रोनिक' (समकालीन) और 'डायाक्रोनिक' (इतिहासिक) दृष्टिकोण शामिल हैं। उन्होंने भाषा के अध्ययन के लिए 'साइन' (चिह्न) की अवधारणा प्रस्तुत की, जिसमें 'साइनिफायर' (संकेतक) और 'साइनिफाइड' (संकेतित) शामिल हैं।
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सॉसुर ने भाषा को एक संरचना के रूप में देखने का प्रस्ताव दिया, जिसमें 'सिंक्रोनिक' (समकालीन) और 'डायाक्रोनिक' (इतिहासिक) दृष्टिकोण शामिल हैं। उन्होंने भाषा के अध्ययन के लिए 'साइन' (चिह्न) की अवधारणा प्रस्तुत की, जिसमें 'साइनिफायर' (संकेतक) और 'साइनिफाइड' (संकेतित) शामिल हैं।
  
'''3. विलियम लाबोव (William Labov):'''
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'''3. विलियम लाबोव (William Labov)'''
  
'''सिद्धांत''': सामाजिक भाषा विज्ञान (Sociolinguistics)
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सामाजिक भाषा विज्ञान (Sociolinguistics)
  
'''योगदान:''' लाबोव ने भाषा और समाज के बीच संबंधों का अध्ययन किया, जिसमें उन्होंने सामाजिक वर्ग, गुट और भाषाई विविधता के प्रभावों का विश्लेषण किया। उनके काम ने भाषा के सामाजिक और सांस्कृतिक संदर्भों को समझने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
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योगदान - लाबोव ने भाषा और समाज के बीच संबंधों का अध्ययन किया, जिसमें उन्होंने सामाजिक वर्ग, गुट और भाषाई विविधता के प्रभावों का विश्लेषण किया। उनके काम ने भाषा के सामाजिक और सांस्कृतिक संदर्भों को समझने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
  
'''4. जॉन ऑस्टिन (John Austin) और जॉन सेरले (John Searle):'''
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'''4. जॉन ऑस्टिन (John Austin) और जॉन सेरले (John Searle)'''
  
'''सिद्धांत:''' प्रागमैटिक्स (Pragmatics) और वाक्य क्रिया सिद्धांत (Speech Act Theory)
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सिद्धांत - प्रागमैटिक्स (Pragmatics) और वाक्य क्रिया सिद्धांत (Speech Act Theory)
  
'''योगदान:''' ऑस्टिन और सेरले ने भाषा के उपयोग और संदर्भ के अध्ययन पर ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने वाक्य क्रिया सिद्धांत (Speech Act Theory) विकसित किया, जिसमें यह बताया गया कि किस प्रकार वक्ता के द्वारा बोले गए शब्दों का सामाजिक और क्रियात्मक प्रभाव पड़ता है।
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योगदान - ऑस्टिन और सेरले ने भाषा के उपयोग और संदर्भ के अध्ययन पर ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने वाक्य क्रिया सिद्धांत (Speech Act Theory) विकसित किया, जिसमें यह बताया गया कि किस प्रकार वक्ता के द्वारा बोले गए शब्दों का सामाजिक और क्रियात्मक प्रभाव पड़ता है।
  
'''5. एडवर्ड सपिर (Edward Sapir) और बेंजामिन ली व्हॉर्फ (Benjamin Lee Whorf):'''
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'''5. एडवर्ड सपिर (Edward Sapir) और बेंजामिन ली व्हॉर्फ (Benjamin Lee Whorf)'''
  
'''सिद्धांत:''' सपिर-व्हॉर्फ हाइपोथीसिस (Sapir-Whorf Hypothesis)
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सिद्धांत - सपिर-व्हॉर्फ हाइपोथीसिस (Sapir-Whorf Hypothesis)
  
'''योगदान:''' सपिर और व्हॉर्फ ने यह प्रस्तावित किया कि भाषा हमारे विचारों और संसार के दृष्टिकोण को प्रभावित करती है। उनके अनुसार, विभिन्न भाषाओं के बोलने वाले व्यक्ति संसार को अलग-अलग तरीकों से अनुभव करते हैं।
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योगदान - सपिर और व्हॉर्फ ने यह प्रस्तावित किया कि भाषा हमारे विचारों और संसार के दृष्टिकोण को प्रभावित करती है। उनके अनुसार, विभिन्न भाषाओं के बोलने वाले व्यक्ति संसार को अलग-अलग तरीकों से अनुभव करते हैं।
  
'''6. रोमन जैकब्सन (Roman Jakobson):'''
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'''6. रोमन जैकब्सन (Roman Jakobson)'''
  
'''सिद्धांत:''' स्ट्रक्चरलिज़्म (Structuralism) और संप्रेषण मॉडल (Communication Model)
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सिद्धांत - स्ट्रक्चरलिज़्म (Structuralism) और संप्रेषण मॉडल (Communication Model)
  
'''योगदान:''' जैकब्सन ने भाषा के कार्यों और संरचनाओं का अध्ययन किया। उन्होंने संप्रेषण मॉडल विकसित किया, जिसमें भाषा के विभिन्न कार्यों जैसे संदर्भात्मक, भावात्मक, संकेतिक, सौंदर्यात्मक और फाटिक कार्यों का वर्णन किया।
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योगदान - जैकब्सन ने भाषा के कार्यों और संरचनाओं का अध्ययन किया। उन्होंने संप्रेषण मॉडल विकसित किया, जिसमें भाषा के विभिन्न कार्यों जैसे संदर्भात्मक, भावात्मक, संकेतिक, सौंदर्यात्मक और फाटिक कार्यों का वर्णन किया।
  
'''7.हर्बर्ट पॉल ग्राइस (H. P. Grice):'''
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'''7.हर्बर्ट पॉल ग्राइस (H. P. Grice)'''
  
सिद्धांत: प्रागमैटिक्स (Pragmatics) और संवाद के अधिकतम सिद्धांत (Maxims of Conversation)
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सिद्धांत - प्रागमैटिक्स (Pragmatics) और संवाद के अधिकतम सिद्धांत (Maxims of Conversation)
  
'''योगदान:''' ग्राइस ने वार्तालापीय अधिकतम (Conversational Maxims) का सिद्धांत प्रस्तुत किया, जिसमें उन्होंने संवाद में उपयोग होने वाले चार प्रमुख सिद्धांतों का वर्णन किया: गुणवत्ता, मात्रा, संबंध, और रीति।
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योगदान '''-''' ग्राइस ने वार्तालापीय अधिकतम (Conversational Maxims) का सिद्धांत प्रस्तुत किया, जिसमें उन्होंने संवाद में उपयोग होने वाले चार प्रमुख सिद्धांतों का वर्णन किया: गुणवत्ता, मात्रा, संबंध, और रीति।
  
'''8.डेल हाइम्स (Dell Hymes):'''
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'''8.डेल हाइम्स (Dell Hymes)'''
  
*'''सिद्धांत:''' एथ्नोग्राफी ऑफ़ स्पीकिंग (Ethnography of Speaking)
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सिद्धांत - एथ्नोग्राफी ऑफ़ स्पीकिंग (Ethnography of Speaking)
*'''योगदान:''' हाइम्स ने भाषा के सामाजिक और सांस्कृतिक संदर्भों का अध्ययन किया। उन्होंने भाषाई समुदायों के संचार पैटर्न और भाषाई व्यवहार का विश्लेषण किया।
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योगदान '''-''' हाइम्स ने भाषा के सामाजिक और सांस्कृतिक संदर्भों का अध्ययन किया। उन्होंने भाषाई समुदायों के संचार पैटर्न और भाषाई व्यवहार का विश्लेषण किया।
  
 
ये सिद्धांतकार आधुनिक भाषा विज्ञान में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले प्रमुख व्यक्ति हैं और उनके सिद्धांतों ने भाषा के विभिन्न पहलुओं को समझने और विश्लेषण करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
 
ये सिद्धांतकार आधुनिक भाषा विज्ञान में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले प्रमुख व्यक्ति हैं और उनके सिद्धांतों ने भाषा के विभिन्न पहलुओं को समझने और विश्लेषण करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

Latest revision as of 12:29, 12 August 2024

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भाषा-चिन्तन की भारतीय परंपरा अति प्राचीन है, जब कि आधुनिक भाषाविज्ञान का प्रारंभ १८ वीं शताब्दी ई० से होता है। भारत में भाषा के संबंध में चिंतन की प्रक्रिया का स्पष्ट प्रमाण ऋग्वेद में मिलता है, जिस के दो सूक्तों में वाक् की उत्पत्ति मनुष्यकृत सिद्ध होती है। भारतीय ज्ञान परंपरा में षडंग विद्या की परंपरा थी - शिक्षा (ध्वनि विज्ञान), व्याकरण (पद एवं वाक्यविज्ञान), छंद (काव्य-रचना), निरुक्त (शब्द-व्युत्पत्ति), ज्योतिष एवं कल्प, इनमें से प्रथम चारों भाषा से संबंधित हैं।[1]

परिचय

भाषा शब्द संस्कृत के भाष् धातु से बना है जिसका तात्पर्य स्पष्ट वाणी, मनुष्य की वाणी, बोलना या कहना है। भाषा का अर्थ सिर्फ बोलने से नहीं है बल्कि जो मनुष्य बोलता है उसके एक खास अर्थ से है।भाषा शब्द का प्रयोग पशु पक्षियों की बोली के लिये भी होता है।

वाग्वै सम्राट् परमं ब्रह्म। (ऐतo उप०)

उपनिषद् के इस वाक्य में शब्द को ब्रह्म कहा गया है। शब्द या वाक् की उपासना भी ब्रह्म की ही उपासना है। भारतीय ज्ञान परंपरा में प्रातिशाख्यों, शिक्षा-ग्रन्थों, निरुक्त, व्याकरण तथा काव्य-शास्त्र में भाषा-विज्ञान के विविध पक्षों का बृहत् गाम्भीर्यपूर्ण विवेचन किया गया है।

वाचामेव प्रसादेन लोक यात्रा प्रवर्तते। (काव्यादर्श)

काव्यादर्श में वाणी (भाषा) को जीवन का मुख्याधार बताते हुए कहा है। पश्चिम में वर्तमान भाषा-विज्ञान का आरंभ १७८६ ई० में विलियम जोन्स द्वारा हुआ। उन्होंने संस्कृत, लैटिन, ग्रीक के तुलनात्मक अध्ययन के संकेत दिए। पश्चिम में भाषा-विज्ञान के लिये सर्वप्रथम 'कम्पेरेटिव ग्रामर' (Comparative Grammar) नाम दिया गया। वहाँ पहले व्याकरण और भाषा-विज्ञान में कोई भेद नहीं किया जाता था। भाषाओं की तुलना पर बल देने के कारण १८वीं शताब्दी में इसे कम्पेरेटिव फिलोलॉजी (Comparative Philology) नाम दिया गया। भाषा-विज्ञान तुलनात्मक ही होता है, इसलिए कम्पेरेटिव शब्द का त्याग कर दिया गया।

  • डेवीज ने १८१७ ई० में भाषा-विज्ञान के लिये ग्लासोलोजी (Glossology) शब्द का प्रयोग किया, पर यह नाम भी नहीं चला।
  • 1841 ई० में प्रिचर्ड ने ग्लाटोलोजी (Glattology) नाम प्रस्तुत किया जो चल नहीं सका।
  • उपर्युक्त नामों में से फिलोलॉजी शब्द आज तक चल रहा है। अंग्रेजी में इसके लिए साइंस ऑफ लेंग्वेज (Science of Language) नाम का प्रचलन है। [2]

अँग्रेजी में इसके लिए साईंस ऑफ लेंग्वेज (Science of Language) नाम का प्रचलन है। वर्तमान में अधिक प्रचलित नाम लिंग्विस्टिक्स (Linguistics) है। यह शब्द लैटिन के शब्द लिंगुआ (Lingua) से बना है, जिसका अर्थ है-जीभ। भाषाविज्ञान के अर्थ में लेंगिस्टीक (Linguistique) शब्द का प्रचलन फ्रांस में हुआ और 18वीं शताब्दी के चौथे दशक में अंग्रेजी में यह Linguistic नाम से ग्रहण किया गया। छठे दशक में यह शब्द (Linguistics) के रूप में अपनाया गया और आज तक यही नाम अधिक प्रचलित है। जर्मन भाषा में भाषाविज्ञान के लिए स्प्राचविस्सेनशाफ्ट (Sprachwissenschaft) नाम है। रूसी भाषा में इसके लिए 'यजिकाज्नानिमे' शब्द है। इसमें 'यज़िक' का अर्थ भाषा है और 'ज्नानिमे का अर्थ विज्ञान है।

भाषा की परिभाषा

वक्ता जो बोलता और श्रोता जो सुनकर भावों को ग्रहण करता है वही भाषा है। सामान्य रूप से देखा जाय तो भाषा वह साधन है जिसके माध्यम से हम सोचते हैं तथा अपने विचारों को व्यक्त करते हैं। जो बोला व सुना जाता है उसे भाषा कहते हैं। भाषा विज्ञान के अन्तर्गत केवल स्पष्ट रूप से बोलने वाले मनुष्यों की वाणी ही आती है। भाषा शब्द का प्रयोग सामान्य रूप से अपने व्यापक अर्थ में किया जाता है। इसमें बोलने वाला भी भाषा बोलता है, सुनने वाला भी भाषा सुनता है और बोध भी भाषा रूप में होता है। विद्वानों ने भाषा की परिभाषा इस प्रकार दी है - पाणिनी के अष्टाध्यायी के महाभाष्य में महर्षि पतञ्जलि ने भाषा की परिभाषा इस प्रकार दी है -

व्यक्तां वाचि वर्णां येषां त इमे व्यक्तवाचः। (महाभा०१/३/४८)

यहां वर्णात्मक वाणी को ही भाषा कहा गया है। प्राचीन समय में भाषा-विज्ञान-विषयक अध्ययन के लिये व्याकरण, शब्दानुशासन, शब्दशास्त्र, निर्वचन शास्त्र आदि शब्द प्रचलित थे। वर्तमान समय में इस अर्थ में तुलनात्मक भाषा-विज्ञान, भाषा-शास्त्र, तुलनात्मक भाषा-शास्त्र, शब्द-शास्त्र, भाषिकी आदि शब्द प्रचलित हैं। भाषा के विशिष्ट ज्ञान को भाषा-विज्ञान कहते हैं -[3]

भाषायाः विज्ञानम्-भाषा विज्ञानम्। विशिष्टं ज्ञानम्-विज्ञानम्।

भाषा के वैज्ञानिक और विवेचनात्मक अध्ययन को भाषा-विज्ञान कहा जाएगा -

भाषाया यत्तु विज्ञानं, सर्वांगं व्याकृतात्मकम्। विज्ञानदृष्टिमूलं तद्, भाषाविज्ञानमुच्यते॥ (कपिलस्य)

भाषा का स्थापत्य

भाषाविज्ञान भाषा के स्थापत्य का विश्लेषण है और भाषा का यह स्थापत्य मुख्यतः उसके तीन तत्त्वों- ध्वनि, विचार तथा शब्द से संश्लिष्ट है। भाषा मनुष्य के स्वर-यंत्र द्वारा उत्पादित स्वेच्छापूर्वक मान्य वह ध्वनि है जिसके माध्यम से एक समाज आपने विचारों का आदान-प्रदान करता है।[4]

लिंग्विस्टिक्स (Linguistics) के अर्थ में 'भाषा-विज्ञान' जैसा विषय भारत में नहीं था। भारत में भाषा के अध्ययन के लिए व्याकरण, शब्दानुशासन, शब्दशास्त्र, निर्वचनशास्त्र आदि नाम भी प्रचलित रहे हैं। लिंग्विस्टिक्स के अर्थ में वर्तमान समय में तुलनात्मक भाषा-विज्ञान, भाषाविज्ञान, भाषाशास्त्र, तुलनात्मक भाषाशास्त्र, शब्दशास्त्रा, भाषालोचन, भाषिकी, भाषातत्त्व, भाषाविचार आदि नाम प्रचलित हैं। इन सभी नामों में से 'भाषाविज्ञान' अधिक प्रचलित नाम हैं।

भाषा विज्ञान के सिद्धांत

आधुनिक भाषा विज्ञान (Modern Linguistics) भाषा के वैज्ञानिक अध्ययन को संदर्भित करता है। यह 19वीं सदी के अंत और 20वीं सदी की शुरुआत में विकसित हुआ और इसमें भाषा की संरचना, ध्वनि, अर्थ, और सामाजिक उपयोग के अध्ययन शामिल हैं। आधुनिक भाषा विज्ञान के कुछ प्रमुख क्षेत्रों में शामिल हैं -

  1. ध्वनिविज्ञान (Phonetics) - भाषाओं में ध्वनियों के उत्पादन, ध्वनि गुणों, और ध्वनियों के ध्वनि तंत्र के अध्ययन को ध्वनिविज्ञान कहा जाता है।
  2. ध्वन्यात्मकता (Phonology) - ध्वनियों की संरचना और उनके व्यवस्थित संगठन का अध्ययन।
  3. रूपविज्ञान (Morphology) - शब्दों के आंतरिक संरचना और उनके निर्माण का अध्ययन।
  4. वाक्यविज्ञान (Syntax) - वाक्यों की संरचना और उनके नियमों का अध्ययन।
  5. अर्थविज्ञान (Semantics) - शब्दों और वाक्यों के अर्थ का अध्ययन।
  6. प्रग्मेटिक्स (Pragmatics) - भाषा का उपयोग और उसका संदर्भ पर प्रभाव का अध्ययन।
  7. सामाजिक भाषा विज्ञान (Sociolinguistics) - भाषा और समाज के बीच के संबंध का अध्ययन।
  8. मनोभाषाविज्ञान (Psycholinguistics) - भाषा का मानसिक प्रक्रियाओं और भाषा के विकास के साथ संबंध का अध्ययन।

आधुनिक भाषा विज्ञान में नोम चॉम्स्की का योगदान महत्वपूर्ण है, जिन्होंने भाषा की उत्पत्ति और संरचना को समझने के लिए कई सिद्धांत प्रस्तुत किए। इसके अतिरिक्त, आधुनिक तकनीकी साधनों और गणनात्मक भाषाविज्ञान (Computational Linguistics) ने भी इस क्षेत्र में नई संभावनाएँ खोली हैं।

नोम चॉम्स्की का आधुनिक भाषा विज्ञान में योगदान

नोम चॉम्स्की का आधुनिक भाषा विज्ञान में योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण और प्रभावशाली रहा है। उनकी शोध और सिद्धांतों ने भाषा अध्ययन के क्षेत्र में क्रांति ला दी। उनके प्रमुख योगदानों में शामिल हैं:

1.सार्वभौमिक व्याकरण (Universal Grammar) - चॉम्स्की ने यह प्रस्तावित किया कि सभी मानव भाषाओं के पीछे एक सामान्य व्याकरणिक संरचना होती है, जिसे सार्वभौमिक व्याकरण कहा जाता है। उनका मानना है कि यह संरचना जैविक रूप से मानव मस्तिष्क में निहित होती है।

2.उत्पादनात्मक व्याकरण (Generative Grammar) - चॉम्स्की ने उत्पादनात्मक व्याकरण का सिद्धांत प्रस्तुत किया, जिसमें उन्होंने भाषा को एक प्रणाली के रूप में देखा जो सीमित नियमों का उपयोग करके अनंत वाक्य उत्पन्न कर सकती है। उन्होंने इसके लिए "स्ट्रक्चरल डेस्क्रिप्शन" और "डीप स्ट्रक्चर" जैसी अवधारणाओं का विकास किया।

3. सतह संरचना और गहन संरचना (Surface Structure and Deep Structure) - चॉम्स्की ने भाषा के दो स्तरों की पहचान की: सतह संरचना (Surface Structure), जो वाक्य का वास्तविक रूप होता है, और गहन संरचना (Deep Structure), जो वाक्य का गहरा अर्थ होता है। उन्होंने यह दिखाया कि एक ही गहन संरचना विभिन्न सतह संरचनाओं में व्यक्त की जा सकती है।

4.परिवर्तन नियम (Transformational Rules) - चॉम्स्की ने परिवर्तन नियमों का सिद्धांत प्रस्तुत किया, जो यह बताते हैं कि गहन संरचनाओं को सतह संरचनाओं में कैसे परिवर्तित किया जाता है। इन नियमों के माध्यम से वाक्य संरचनाओं को अधिक गहनता से समझा जा सकता है।

5.लैंग्वेज एक्विजिशन डिवाइस (Language Acquisition Device) - चॉम्स्की ने यह प्रस्तावित किया कि मानव मस्तिष्क में एक लैंग्वेज एक्विजिशन डिवाइस (LAD) होता है, जो बच्चों को सहज रूप से भाषा सीखने में सक्षम बनाता है। उनका मानना है कि बच्चे जन्म से ही भाषा सीखने की क्षमता के साथ पैदा होते हैं।

6.भाषाई कम्प्यूटेशन (Computational Linguistics) - चॉम्स्की के सिद्धांतों ने गणनात्मक भाषाविज्ञान में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनके विचारों ने भाषा को गणितीय और कम्प्यूटेशनल रूप से समझने की दिशा में नई संभावनाएं खोलीं।

चॉम्स्की के विचारों और सिद्धांतों ने भाषा विज्ञान को एक नई दिशा दी है, और उनके शोध ने भाषा के अध्ययन को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से समझने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

भारतीय सिद्धांतकार

आधुनिक भाषा विज्ञान में कई भारतीय सिद्धांतकारों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है, जिन्होंने भाषा के विभिन्न पहलुओं पर अपने विचार प्रस्तुत किए हैं। ये सिद्धांतकार भाषा विज्ञान के विविध क्षेत्रों में शोध और अध्ययन करके इस क्षेत्र को समृद्ध बनाने में सफल हुए हैं।

1.पाणिनि (Panini)

पाणिनि को संस्कृत व्याकरण का जनक माना जाता है। उन्होंने 'अष्टाध्यायी' नामक एक ग्रंथ लिखा, जो संस्कृत भाषा के व्याकरणिक नियमों का संकलन है। पाणिनि का कार्य शास्त्रीय भारतीय भाषा विज्ञान का आधार है और उनका व्याकरण आज भी महत्वपूर्ण है।

पाणिनि के नियमों की संक्षिप्तता और सटीकता आधुनिक भाषा विज्ञान के लिए प्रेरणा का स्रोत रही है। उनके द्वारा प्रस्तुत 'संधि', 'समास' और 'धातु' जैसे व्याकरणिक सिद्धांत आज भी प्रासंगिक हैं।

2.भर्तृहरि (Bhartrihari)

भर्तृहरि ने 'वाक्यपदीय' नामक ग्रंथ में भाषा और अर्थ के संबंधों पर विचार किया। उन्होंने 'स्फोट सिद्धांत' प्रस्तुत किया, जिसमें कहा गया कि शब्द या वाक्य का अर्थ एक समग्र अनुभव के रूप में प्रकट होता है, न कि अलग-अलग शब्दों से।

भर्तृहरि का स्फोट सिद्धांत भाषा के मनोवैज्ञानिक और दार्शनिक पहलुओं को समझने में मदद करता है और इसने आधुनिक भाषाविज्ञान में संरचनावाद और अर्थशास्त्र के विकास को प्रभावित किया।

3. केदारनाथ भट्टाचार्य (Kedarnath Bhattacharya)

केदारनाथ भट्टाचार्य भारतीय भाषा विज्ञान में शब्दार्थ विज्ञान (Lexicography) और अनुवाद के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने कई भाषाओं के शब्दकोशों और अनुवाद कार्यों पर काम किया।

उनके कार्यों ने भारतीय भाषाओं के शब्दार्थ और उनके भाषाई विकास को समझने में मदद की है।

4. फर्डिनांड डी सॉसुर और भारतीय परंपरा

सॉसुर को आधुनिक संरचनावादी भाषा विज्ञान के पिता के रूप में जाना जाता है। हालांकि वे भारतीय नहीं थे, लेकिन भारतीय व्याकरणिक परंपराओं, विशेषकर पाणिनि, का उनकी सोच पर गहरा प्रभाव पड़ा।

सॉसुर के विचारों और सिद्धांतों ने भारतीय भाषा विज्ञान को आधुनिक दृष्टिकोण प्रदान किया, जिससे भाषा के संरचनात्मक और अर्थात्मक विश्लेषण को बढ़ावा मिला।

6. भोलानाथ तिवारी

भोलानाथ तिवारी ने हिंदी भाषा विज्ञान पर महत्वपूर्ण कार्य किया और हिंदी के स्वरविज्ञान, ध्वनिविज्ञान, और व्याकरणिक संरचना पर गहन अध्ययन प्रस्तुत किया।

उनके शोध ने हिंदी भाषा के विकास और उसकी व्याकरणिक संरचना को समझने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

अर्थात भारतीय सिद्धांतकारों ने आधुनिक भाषा विज्ञान को समृद्ध करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। पाणिनि, भर्तृहरि, और केदारनाथ भट्टाचार्य जैसे विद्वानों के कार्यों ने न केवल भारतीय भाषाओं की समझ को गहरा किया है, बल्कि वैश्विक स्तर पर भाषा विज्ञान के सिद्धांतों और विचारों को प्रभावित किया है। इन सिद्धांतकारों के योगदान आज भी भाषा विज्ञान के अध्ययन और अनुसंधान में महत्वपूर्ण बने हुए हैं।

पाश्चात्य प्रमुख सिद्धांतकार

आधुनिक भाषा विज्ञान के प्रमुख सिद्धांतकारों ने भाषा के अध्ययन के विभिन्न पहलुओं को समझने और विश्लेषण करने के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया है। यहाँ कुछ प्रमुख सिद्धांतकार और उनके योगदान का विवरण दिया गया है:

1. नोम चॉम्स्की (Noam Chomsky):

उत्पादनात्मक व्याकरण (Generative Grammar), सार्वभौमिक व्याकरण (Universal Grammar)

चॉम्स्की ने भाषा की संरचना को समझने के लिए उत्पादनात्मक व्याकरण का सिद्धांत प्रस्तुत किया, जिसमें गहन संरचना (Deep Structure) और सतह संरचना (Surface Structure) की अवधारणाएँ शामिल हैं। उन्होंने यह भी प्रस्तावित किया कि सभी मानव भाषाओं में एक सामान्य व्याकरणिक ढांचा होता है जो मानव मस्तिष्क में निहित है।

2. फर्डिनेंड डी सॉसुर (Ferdinand de Saussure)

स्ट्रक्चरलिज़्म (Structuralism)

सॉसुर ने भाषा को एक संरचना के रूप में देखने का प्रस्ताव दिया, जिसमें 'सिंक्रोनिक' (समकालीन) और 'डायाक्रोनिक' (इतिहासिक) दृष्टिकोण शामिल हैं। उन्होंने भाषा के अध्ययन के लिए 'साइन' (चिह्न) की अवधारणा प्रस्तुत की, जिसमें 'साइनिफायर' (संकेतक) और 'साइनिफाइड' (संकेतित) शामिल हैं।

3. विलियम लाबोव (William Labov)

सामाजिक भाषा विज्ञान (Sociolinguistics)

योगदान - लाबोव ने भाषा और समाज के बीच संबंधों का अध्ययन किया, जिसमें उन्होंने सामाजिक वर्ग, गुट और भाषाई विविधता के प्रभावों का विश्लेषण किया। उनके काम ने भाषा के सामाजिक और सांस्कृतिक संदर्भों को समझने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

4. जॉन ऑस्टिन (John Austin) और जॉन सेरले (John Searle)

सिद्धांत - प्रागमैटिक्स (Pragmatics) और वाक्य क्रिया सिद्धांत (Speech Act Theory)

योगदान - ऑस्टिन और सेरले ने भाषा के उपयोग और संदर्भ के अध्ययन पर ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने वाक्य क्रिया सिद्धांत (Speech Act Theory) विकसित किया, जिसमें यह बताया गया कि किस प्रकार वक्ता के द्वारा बोले गए शब्दों का सामाजिक और क्रियात्मक प्रभाव पड़ता है।

5. एडवर्ड सपिर (Edward Sapir) और बेंजामिन ली व्हॉर्फ (Benjamin Lee Whorf)

सिद्धांत - सपिर-व्हॉर्फ हाइपोथीसिस (Sapir-Whorf Hypothesis)

योगदान - सपिर और व्हॉर्फ ने यह प्रस्तावित किया कि भाषा हमारे विचारों और संसार के दृष्टिकोण को प्रभावित करती है। उनके अनुसार, विभिन्न भाषाओं के बोलने वाले व्यक्ति संसार को अलग-अलग तरीकों से अनुभव करते हैं।

6. रोमन जैकब्सन (Roman Jakobson)

सिद्धांत - स्ट्रक्चरलिज़्म (Structuralism) और संप्रेषण मॉडल (Communication Model)

योगदान - जैकब्सन ने भाषा के कार्यों और संरचनाओं का अध्ययन किया। उन्होंने संप्रेषण मॉडल विकसित किया, जिसमें भाषा के विभिन्न कार्यों जैसे संदर्भात्मक, भावात्मक, संकेतिक, सौंदर्यात्मक और फाटिक कार्यों का वर्णन किया।

7.हर्बर्ट पॉल ग्राइस (H. P. Grice)

सिद्धांत - प्रागमैटिक्स (Pragmatics) और संवाद के अधिकतम सिद्धांत (Maxims of Conversation)

योगदान - ग्राइस ने वार्तालापीय अधिकतम (Conversational Maxims) का सिद्धांत प्रस्तुत किया, जिसमें उन्होंने संवाद में उपयोग होने वाले चार प्रमुख सिद्धांतों का वर्णन किया: गुणवत्ता, मात्रा, संबंध, और रीति।

8.डेल हाइम्स (Dell Hymes)

सिद्धांत - एथ्नोग्राफी ऑफ़ स्पीकिंग (Ethnography of Speaking)

योगदान - हाइम्स ने भाषा के सामाजिक और सांस्कृतिक संदर्भों का अध्ययन किया। उन्होंने भाषाई समुदायों के संचार पैटर्न और भाषाई व्यवहार का विश्लेषण किया।

ये सिद्धांतकार आधुनिक भाषा विज्ञान में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले प्रमुख व्यक्ति हैं और उनके सिद्धांतों ने भाषा के विभिन्न पहलुओं को समझने और विश्लेषण करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

आधुनिक भाषा विज्ञान और दैवी वाक सिद्धांत

आधुनिक भाषा विज्ञान (Modern Linguistics) और दैवी वाक सिद्धांत (Divine Speech Theory) दो अलग-अलग दृष्टिकोण हैं, जो भाषा की उत्पत्ति और उसकी प्रकृति को समझने का प्रयास करते हैं। इनमें से एक वैज्ञानिक और तर्कसंगत दृष्टिकोण पर आधारित है, जबकि दूसरा धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण पर आधारित है।

आधुनिक भाषा विज्ञान

आधुनिक भाषा विज्ञान भाषा के वैज्ञानिक और संरचनात्मक अध्ययन पर आधारित है। यह 19वीं और 20वीं शताब्दी में विकसित हुआ और इसका उद्देश्य भाषा के विभिन्न पहलुओं जैसे ध्वन्यात्मकता (phonetics), स्वरविज्ञान (phonology), रूपविज्ञान (morphology), वाक्यविज्ञान (syntax), अर्थविज्ञान (semantics), और प्राग्मेटिक्स (pragmatics) का विश्लेषण करना है।

भाषा का विकास: आधुनिक भाषा विज्ञान के अनुसार, भाषा एक सामाजिक और सांस्कृतिक निर्माण है, जो मानव मस्तिष्क की संज्ञानात्मक क्षमताओं और सामाजिक बातचीत के परिणामस्वरूप विकसित हुआ है।

भाषा की संरचना: भाषा विज्ञान में भाषा की संरचना का विश्लेषण तर्कसंगत और व्यवस्थित रूप से किया जाता है, जहां ध्वनियों, शब्दों और वाक्यों की संरचना के नियमों को समझने का प्रयास किया जाता है।

भाषा का उपयोग: यह अध्ययन करता है कि लोग भाषा का उपयोग कैसे करते हैं और किस प्रकार सामाजिक और सांस्कृतिक संदर्भों में भाषा का अर्थ बदलता है।

दैवी वाक सिद्धांत

दैवी वाक सिद्धांत धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से उत्पन्न होता है, जिसमें यह माना जाता है कि भाषा की उत्पत्ति और उसका अस्तित्व दैवीय शक्ति के कारण है। विभिन्न धार्मिक परंपराओं में, वाक (Speech) को ब्रह्मांड की रचना का माध्यम माना गया है।

ऋग्वेद और वाक: भारतीय परंपरा में, विशेष रूप से ऋग्वेद में, वाक को ब्रह्मांड की रचना और ज्ञान के स्रोत के रूप में देखा गया है। वाक को देवी सरस्वती के साथ भी जोड़ा गया है, जिन्हें ज्ञान और वाणी की देवी माना जाता है।

स्फोट सिद्धांत: भर्तृहरि का स्फोट सिद्धांत, जो कि दैवी वाक सिद्धांत से प्रेरित है, यह कहता है कि शब्द का अर्थ एक समग्र अनुभव के रूप में प्रकट होता है, न कि शब्दों के अनुक्रमिक उच्चारण से। इसे भी भाषा के दिव्य स्रोत के रूप में देखा जा सकता है।

ईश्वर द्वारा प्रदत्त भाषा: विभिन्न धार्मिक ग्रंथों में यह माना जाता है कि भाषा ईश्वर द्वारा मानव को प्रदान की गई है, जिससे वह ब्रह्मांड की समझ और संचार कर सके। इस दृष्टिकोण में, भाषा का पवित्र और दिव्य महत्व है।

1. उत्पत्ति का दृष्टिकोण

आधुनिक भाषा विज्ञान - भाषा की उत्पत्ति को एक प्राकृतिक और जैविक प्रक्रिया के रूप में देखता है, जो मानव समाज के विकास के साथ हुई।

दैवी वाक सिद्धांत - भाषा की उत्पत्ति को दैवीय और पवित्र मानता है, जिसे ईश्वर या किसी दिव्य शक्ति द्वारा प्रदान किया गया है।

2.भाषा की प्रकृति

आधुनिक भाषा विज्ञान - भाषा को एक संरचनात्मक और सामाजिक उपकरण मानता है, जो समाज में संचार के लिए विकसित हुआ है।

दैवी वाक सिद्धांत - भाषा को एक पवित्र और अलौकिक तत्व के रूप में देखता है, जो ज्ञान और सत्य की अभिव्यक्ति के लिए महत्वपूर्ण है।

3. भाषा का अध्ययन

आधुनिक भाषा विज्ञान - भाषा का अध्ययन वैज्ञानिक, तर्कसंगत, और अनुभवजन्य दृष्टिकोण से करता है।

दैवी वाक सिद्धांत - भाषा का अध्ययन धार्मिक, आध्यात्मिक, और दार्शनिक दृष्टिकोण से करता है।

निष्कर्ष

आधुनिक भाषा विज्ञान और दैवी वाक सिद्धांत भाषा को दो अलग-अलग दृष्टिकोणों से समझने का प्रयास करते हैं। एक ओर, आधुनिक भाषा विज्ञान भाषा को एक वैज्ञानिक और सामाजिक निर्माण के रूप में देखता है, जबकि दूसरी ओर, दैवी वाक सिद्धांत भाषा को एक पवित्र और दैवीय उपहार के रूप में समझता है। दोनों दृष्टिकोणों का अध्ययन और तुलना भाषा के प्रति हमारी समझ को गहरा करता है और हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि भाषा केवल संचार का माध्यम नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति, विचारधारा, और आध्यात्मिकता का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

भाषा की उत्पत्ति

किसी से अति परिचय होने से उसके विषय में हमें बहुत कुछ अवज्ञा हो जाती है, या कम से कम उसके विषय में अधिक उत्सुकता नहीं रहती। इस नियम के अनुसार भाषा के साथ हमारा अति गहरा संबंध होने से प्रायः यह प्रश्न भी हमारे मन में कभी पैदा नहीं होता कि मनुष्यभाषा की उत्पत्ति या प्रवृत्ति संसार में आदि-आदि में किस प्रकार हुई होगी। भाषा की उत्पत्ति के विषय में जो विद्वानों के भिन्न-भिन्न मत पाये जाते हैं वह इस प्रकार हैं - [5]

कोश विज्ञान

इस विज्ञान के अन्तर्गत कोश रचना का प्रकार बताया जाता है। कैसे शब्दों की व्युत्पत्ति हुई? किस प्रकार से शब्दों के अर्थ का निर्धारण किया जाता है? शब्दों का किन अर्थों में प्रयोग होता है? कोश विज्ञान के अन्तर्गत व्युत्पत्ति शास्त्र भी आता है। निघण्टु नामक ग्रंथ इसका प्राचीन उदाहरण है।

भाषिक भूगोल

भाषिक भूगोल के अन्तर्गत भौगोलिक दृष्टि से भाषा का अध्ययन किया जाता है। संसार के विभिन्न क्षेत्रों में कौन-कौन सी भाषाएं बोली जाती हैं? भाषा का क्षेत्र कितना व्याप्त है? भाषा की कितनी बोलियां व उपबोलियां हैं? इसी का अध्ययन किया जाता है।

लिपि विज्ञान

लिपि को भी भाषा-विज्ञान का अंग माना जाता है, इसके अन्तर्गत लिपि की उत्पत्ति, उसके विकास व उसकी उपयोगिता पर विवेचन किया जाता है। किसी भी भाषा का अध्ययन लिपि के आधार पर किया जाता है।

भाषा-विज्ञान के अंग

भाषा-विज्ञान भाषा का सर्वांगीण अध्ययन प्रस्तुत करता है, अतः उसमें भाषा के सभी घटकों का अध्ययन होता है। भाषा शब्द के द्वारा उसके चार घटकों का मुख्य रूप से बोध होता है-१. ध्वनि (Sound), २. पद या शब्द (Form), ३. वाक्य (Sentence), ४. अर्थ (Meaning)। भाषा की सबसे छोटी इकाई ध्वनि है। उसका ही सर्वप्रथम उच्चारण होता है। अनेक ध्वनियों से मिलकर पद या शब्द बनता है। अनेक पदों से वाक्य की रचना होती है और वाक्य से अर्थ की अभिव्यक्ति होती है। यह क्रम निरन्तर चलता रहता है। इनमें से प्रत्येक के विशेष अध्ययन के कारण भाषा-विज्ञान के ४ प्रमुख अंग विकसित हो गये हैं। इनके नाम हैं -

  1. ध्वनि-विज्ञान॥ Phonology
  2. पद-विज्ञान॥ Morphology
  3. वाक्य-विज्ञान॥ Syntax
  4. अर्थ-विज्ञान॥ Semantics

ध्वनि-विज्ञान

ध्वनि भाषा की लघुतम इकाई है। इसके उच्चारण में सहायक उच्चारण अवयवों की रचना, ध्वनियों का निर्माण, ध्वनियों का वहन एवं श्रवण, ध्वनियों का वर्गीकरण, ध्वनि योगों की रचना आदि विषयों का विवेचन ध्वनि-विज्ञान के अध्ययन का विषय है।[6]

पद-विज्ञान

पद-विज्ञान को रूप विज्ञान भी कहते हैं। पद-विज्ञान के अन्तर्गत पदों अर्थात् रूपों का अध्ययन करते हैं। ध्वनियों के मिलने से पद बनाये जाते हैं। पद विज्ञान हमें यह बताता है कि किस प्रकार पदों का निर्माण होता है? किस आधार पर पदों का विभाजन होता है? पुरुष, वचन, लिंग, विभक्ति, काल, प्रत्यय आदि तत्व क्या हैं? इन सभी का विवेचन किया जाता है।

वाक्य-विज्ञान

वाक्य विज्ञान भाषा विज्ञान की वह शाखा है जिसमें वाक्यों का अध्ययन व विश्लेषण किया जाता है। विभिन्न ध्वनियों के मिलने से जिस प्रकार पद या रूप बनता है उसी प्रकार विभिन्न पदों या रूपों के मिलने से वाक्य बनता है। इसके अन्तर्गत यह अध्ययन किया जाता है कि वाक्य की रचना किस प्रकार होती है? वाक्य के कर्ता, क्रिया, कर्म आदि का क्या स्थान है? वाक्य के कितने भेद हैं? वाक्य विज्ञान को वाक्य विचार भी कहा जाता है। वाक्य विज्ञान को तीन भागों में विभक्त किया गया है।

  1. वर्णनात्मक वाक्य विज्ञान
  2. ऐतिहासिक वाक्य विज्ञान
  3. तुलनात्मक वाक्य विज्ञान

अर्थ-विज्ञान

अर्थ विज्ञान को अर्थ विचार भी कहते हैं। बिना अर्थ के भाषा का कोई महत्व नहीं है। जिस प्रकार से आत्मा मनुष्य का सार है उसी प्रकार भाषा की आत्मा अर्थ है। इसके अन्तर्गत इस विषय पर विचार किया जाता है कि अर्थ क्या है? अर्थ को कैसे निर्धारित करते हैं? शब्द और अर्थ का क्या सम्बन्ध है? अर्थ कितने प्रकार का होता है? किन कारणों से अर्थ में परिवर्तन होते हैं? ।आदि का अध्ययन अर्थ विज्ञान के अन्तर्गत किया जाता है। अर्थ विज्ञान के चार भेद हैं - एककालिक, व्यतिरेकी, काल-क्रमिक तथा तुलनात्मक।

भाषा-विज्ञान अध्ययन के प्रकार

भाषा-विज्ञान का अध्ययन कई दृष्टियों में किया जाता है। प्रत्येक दृष्टि से किया गया अध्ययन भाषा-विज्ञान के नए रूप व नए प्रकार को हमारे सम्मुख प्रस्तुत करता है -

  1. सामान्य भाषा-विज्ञान
  2. वर्णनात्मक भाषा-विज्ञान
  3. ऐतिहासिक भाषा-विज्ञान
  4. तुलनात्मक भाषा-विज्ञान
  5. सैद्धान्तिक भाषा-विज्ञान

भाषा-विज्ञान की उपयोगिता

भाषा-विज्ञान एक विज्ञान है। विज्ञान स्वतः निरपेक्ष होता है। तात्त्विक विवेचन और तत्त्वसंदर्शन ही उसका लक्ष्य होता है। तत्त्वसंदर्शन से बौद्धिक शान्ति और आनन्दानुभूति होती है। अतएव वैज्ञानिक चिन्तन निरपेक्ष होते हुए भी सापेक्ष होता है। इसी दृष्टि से भाषा-विज्ञान की भी कतिपय उपयोगिताएँ दृष्टिगोचर होती हैं। उनका संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है -

  1. ज्ञान-पिपासा की शान्ति
  2. भाषा के परिष्कृत रूप का ज्ञान
  3. भाषा-विज्ञान से वैज्ञानिक अध्ययन की ओर प्रवृत्ति
  4. वेदार्थ-ज्ञान में सहायक
  5. प्राचीन संस्कृति और सभ्यता का ज्ञान
  6. व्याकरण-दर्शन
  7. वाक्-चिकित्सा
  8. विभिन्न शास्त्रों से समन्वय

निष्कर्ष

उद्धरण

  1. चित्तरञ्जन कर, भाषा-चिन्तन की भारतीय परंपरा और आधुनिक भाषाविज्ञान,सन् २०१०, संस्कृत विमर्श (पृ० ६५)
  2. प्रो० अंजू थापा, भाषा विज्ञान-एम० ए० हिन्दी, सन् २०२३, दूरस्थ एवं ऑनलाइन शिक्षा निदेशालय, जम्मू विश्वविद्यालय, जम्मू (पृ० 14)।
  3. कपिलदेव द्विवेदी, भाषा-विज्ञान एवं भाषा-शास्त्र, सन् २०१६, विश्वविद्यालय प्रकाशन, वाराणसी (पृ० ६)।
  4. श्री पद्मनारायण, आधुनिक भाषा-विज्ञान, सन् १९६१, ज्ञानपीठ प्राइवेट लिमिटेड, पटना (पृ० ३३)।
  5. डॉ० मंगलदेव शास्त्री, भाषा-विज्ञान, सन् १९४०, श्री सुरेशचन्द्र, बनारस (पृ० १८४)।
  6. डॉ० राजमणि शर्मा, आधुनिक भाषा-विज्ञान, सन् २००७, वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली (पृ० ७३)।