Changes

Jump to navigation Jump to search
सुधार जारी
Line 1: Line 1:  
{{ToBeEdited}}
 
{{ToBeEdited}}
   −
व्याकरण शास्त्र के विवेचन को दो भागों में बाँटा जा सकता है - लौकिक व्याकरण एवं वैदिक व्याकरण। लौकिक व्याकरण में पाणिनि आदि आचार्य हैं तथा अष्टाध्यायी महाभाष्य आदि ग्रन्थ हैं। वैदिक व्याकरण में प्रातिशाख्य ग्रन्थ हैं। शब्दशास्त्र के लिये व्याकरण शब्द का प्रयोग रामायण, गोपथ ब्राह्मण, मुण्डकोपनिषद् और महाभारत आदि अनेक ग्रन्थों में मिलता है।
+
व्याकरण शास्त्र के विवेचन को दो भागों में बाँटा जा सकता है - लौकिक व्याकरण एवं वैदिक व्याकरण। लौकिक व्याकरण में पाणिनि आदि आचार्य हैं तथा अष्टाध्यायी महाभाष्य आदि ग्रन्थ हैं। वैदिक व्याकरण में प्रातिशाख्य ग्रन्थ हैं। शब्दशास्त्र के लिये व्याकरण शब्द का प्रयोग रामायण, गोपथ ब्राह्मण, मुण्डकोपनिषद् और महाभारत आदि अनेक ग्रन्थों में मिलता है। इस लेख में शब्दशास्त्र की महती परम्परा के अन्तर्गत त्रिमुनि आचार्य, प्राच्य एवं नव्य व्याकरणाचार्यों का परिज्ञान होगा।
    
==परिचय==
 
==परिचय==
भारतीय इतिहास में सब विद्याओं का आदि प्रवक्ता ब्रह्मा जी को कहा गया है। इसके अनुसार व्याकरणशास्त्र के आदि वक्ता भी ब्रह्मा जी ही हैं। ऋक्तन्त्रकार ने लिखा है - <blockquote>ब्रह्मा बृहस्पतये प्रोवाच, बृहस्पतिरिन्द्राय, इन्द्रो भरद्वाजाय, भरद्वाज ऋषिभ्यः, ऋषयो ब्राह्मणेभ्यः॥(१/४)</blockquote>इस वचन के अनुसार व्याकरण के एकदेश अक्षरसमाम्नाय का सर्व प्रथम प्रवक्ता ब्रह्मा जी हैं। व्याकरण के प्रथम परिपूर्ण आचार्य पाणिनि हुए जिन्होंने तात्कालिक संस्कृतभाषा को संयत किया जो आज तक प्रचलित है। पाणिनि ने दस प्राचीन आचार्यों के नामों का उल्लेख किया है जिससे स्पष्ट होता है कि उनसे पूर्व भी ये वैयाकरण प्रसिद्ध रहे हैं।  
+
भारतीय इतिहास में सब विद्याओं का आदि प्रवक्ता ब्रह्मा जी को कहा गया है। इसके अनुसार व्याकरणशास्त्र के आदि वक्ता भी ब्रह्मा जी ही हैं। ऋक्तन्त्रकार ने लिखा है - <blockquote>ब्रह्मा बृहस्पतये प्रोवाच, बृहस्पतिरिन्द्राय, इन्द्रो भरद्वाजाय, भरद्वाज ऋषिभ्यः, ऋषयो ब्राह्मणेभ्यः॥ (ऋक्तन्त्र १/४)</blockquote>इस वचन के अनुसार व्याकरण के एकदेश अक्षरसमाम्नाय का सर्व प्रथम प्रवक्ता ब्रह्मा जी हैं। व्याकरण के प्रथम परिपूर्ण आचार्य पाणिनि हुए जिन्होंने तात्कालिक संस्कृतभाषा को संयत किया जो आज तक प्रचलित है। पाणिनि ने दस प्राचीन आचार्यों के नामों का उल्लेख किया है जिससे स्पष्ट होता है कि उनसे पूर्व भी ये वैयाकरण प्रसिद्ध रहे हैं।  
    
'''व्याकरण के प्रकार -''' प्राचीनकाल में आठ या नौ प्रकार की व्याकरण प्रचलित रही है। इस संबंध में कई प्रमाण मिलते हैं। जैसे -   
 
'''व्याकरण के प्रकार -''' प्राचीनकाल में आठ या नौ प्रकार की व्याकरण प्रचलित रही है। इस संबंध में कई प्रमाण मिलते हैं। जैसे -   
Line 12: Line 12:  
#अष्टौ व्याकरणानि षट् च भिषजां व्याचष्ट ताः संहिताः।
 
#अष्टौ व्याकरणानि षट् च भिषजां व्याचष्ट ताः संहिताः।
   −
विभिन्न ग्रन्थों में भिन्न-भिन्न नाम वाली व्याकरण-परम्पराओं का वर्णन प्राप्त होता है। जैसे -  
+
विभिन्न ग्रन्थों में भिन्न-भिन्न नाम वाली व्याकरण-परम्पराओं का वर्णन प्राप्त होता है। जैसे - <blockquote>ब्राह्ममैशानमैन्द्रं च प्राजापत्यं बृहस्पतिम्। त्वाष्ट्रमापिशलं चेति पाणिनीयमथाष्टमम् ॥ इन्द्रश्चन्द्रः काशकृत्स्नापिशली शाकटायनः। पाणिन्यमरजैनेन्द्राः जयन्त्यष्टादिशाब्दिकाः॥</blockquote>अतः स्पष्ट है कि प्राचीनकाल में आठ प्रकार के व्याकरण सम्प्रदाय रहे हैं। ये निम्नलिखित हैं -  
   −
ब्राह्ममैशानमैन्द्रं च प्राजापत्यं बृहस्पतिम्। त्वाष्ट्रमापिशलं चेति पाणिनीयमथाष्टमम् ॥
+
ऐन्द्र, चन्द्र, काशकृत्स्न, आपिशली, शाकटायन, पाणिनि, अमरजैनेन्द्र, जयन्ति - इन सभी व्याकरणों में पाणिनीय-व्याकरण ही सर्वोत्तम और सर्वश्रेष्ठ रही है।
   −
इन्द्रश्चन्द्रः काशकृत्स्नापिशली शाकटायनः। पाणिन्यमरजैनेन्द्राः जयन्त्यष्टादिशाब्दिकाः॥
+
'''व्याकरण की विकास परम्परा -''' वैदिककाल में ही व्याकरण का उद्भव हो चुका था। षड् वेदांगों में से शिक्षा, व्याकरण तथा निरुक्त - ये तीन वेदांग संस्कृत-व्याकरण से जुडे हुये हैं -
 +
 
 +
*शिक्षा वेदांग - शुद्ध शब्द उच्चारण के लिये
 +
*निरुक्त वेदांग - पदों के अर्थज्ञान व निर्वचन के लिये
 +
*व्याकरण वेदांग - पद विवेचन के लिये
 +
जो आचार्य निस्सन्दिग्ध रूप में ऐतिहासिक हैं उन्हें हम प्रथमतः दो वर्गों में विभक्त कर सकते हैं -
 +
 
 +
#पाणिनि से पूर्ववर्ती
 +
#पाणिनि से उत्तरवर्ती
 +
 
 +
प्रथम वर्ग के आचार्यों को भी पाणिनि के संकेत के आधार पर दो उपवर्गों में बाँटा जा सकता है -
 +
 
 +
#पाणिनि द्वारा अनुल्लिखित
 +
#पाणिनि द्वारा उल्लिखित
 +
 
 +
प्रथम वर्ग के प्रत्र्हम उपवर्ग में निम्नलिखित आचार्यों का समावेश है -
 +
 
 +
इन्द्र, भागुरि, पौष्करसादि, चारायण, काशकृत्स्न, वैयाघ्रपद , माध्यन्दिन, रौढि, शौनक, गौतम तथा व्याडि। इस वर्ग के द्वितीय उपवर्ग में निम्न-निर्दिष्ट आचार्यों की गणना है -
 +
 
 +
आपिशलि, काश्यप, गार्ग्य, गालव, चाक्रवर्मण, भारद्वाज, शाकटायन, शाकल्य, सेनक तथा स्फोटायन। 
    
==परिभाषा==
 
==परिभाषा==
 
जिस शास्त्र के द्वारा शब्दों के प्रकृति-प्रत्यय का विवेचन किया जाता है, उसे व्याकरण कहते हैं - <blockquote>व्याक्रियन्ते विविच्यन्ते शब्दा अनेनेति व्याकरणम्।<ref>डॉ० कपिल देव द्विवेदी, [https://archive.org/details/vedicsahityaevamsanskritidr.kapildevdwivedi/page/n4/mode/1up वैदिक साहित्य एवं संस्कृति], सन् २०००, विश्वविद्यालय प्रकाशन, वाराणसी (पृ० २००)।</ref></blockquote>अर्थात् इसमें यह विवेचन किया जाता है कि शब्द कैसे बनता है। इसमें क्या प्रकृति है और क्या प्रत्यय लगा है। उसके अनुसार शब्द का अर्थ निश्चित किया जाता है। इस पाणिनीय व्याकरण के अध्ययन की दो पद्धतियाँ सम्प्रति व्यवहार में प्रयुक्त हैं। एक है - लक्षण प्रधान एवं अन्य है - लक्ष्य प्रधान।
 
जिस शास्त्र के द्वारा शब्दों के प्रकृति-प्रत्यय का विवेचन किया जाता है, उसे व्याकरण कहते हैं - <blockquote>व्याक्रियन्ते विविच्यन्ते शब्दा अनेनेति व्याकरणम्।<ref>डॉ० कपिल देव द्विवेदी, [https://archive.org/details/vedicsahityaevamsanskritidr.kapildevdwivedi/page/n4/mode/1up वैदिक साहित्य एवं संस्कृति], सन् २०००, विश्वविद्यालय प्रकाशन, वाराणसी (पृ० २००)।</ref></blockquote>अर्थात् इसमें यह विवेचन किया जाता है कि शब्द कैसे बनता है। इसमें क्या प्रकृति है और क्या प्रत्यय लगा है। उसके अनुसार शब्द का अर्थ निश्चित किया जाता है। इस पाणिनीय व्याकरण के अध्ययन की दो पद्धतियाँ सम्प्रति व्यवहार में प्रयुक्त हैं। एक है - लक्षण प्रधान एवं अन्य है - लक्ष्य प्रधान।
   −
==प्राचीन व्याकरण==
+
==व्याकरणशास्त्र परम्परा==
यह मार्ग महाभाष्य से प्रारंभ होकर काशिकावृत्ति से होता हुआ अद्यावधि अनवरत चल रहा है।  
+
व्याकरण शास्त्र में दो संप्रदाय - ऐन्द्र और माहेश्वर (अथवा शैव) प्रसिद्ध हैं। कातन्त्र-व्याकरण ऐन्द्र संप्रदाय का माना जाता है और पाणिनीय व्याकरण शैव सम्प्रदाय का। ऐन्द्र तन्त्र के अनन्तर व्याकरण शास्त्र के अनेक प्रवचनकर्ता हुए। प्रवचन भेद से अनेक व्याकरण ग्रन्थों की रचना हुई।<ref>रामनाथ त्रिपाठी शास्त्री, [https://archive.org/details/sanskrit-vyakaran-shastra-ka-itihas-chhatropayogi/page/n45/mode/1up संस्कृत व्याकरण शास्त्र का इतिहास], सन् २०२०, चौखम्बा पब्लिशर्स, वाराणसी (पृ० २९)।</ref>
 +
 
 +
विभिन्न शाब्दिकों द्वारा पाणिनीय व्याकरण से इतर व्याकरण सम्प्रदायों का आविर्भाव भी कालान्तर में हुआ है। कतिपय प्रमुख शब्दानुशासनों का संक्षिप्त विवरण निम्न है -<ref>पं० युधिष्ठिर मीमांसक, [https://archive.org/details/3_20200913_20200913_1432/%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A5%83%E0%A4%A4%20%E0%A4%B5%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A4%B0%E0%A4%A3%20%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%20%E0%A4%95%E0%A4%BE%20%E0%A4%87%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%B8%20%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%97-%201-%20%E0%A4%AF%E0%A5%81%E0%A4%A7%E0%A4%BF%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%A0%E0%A4%BF%E0%A4%B0%20%E0%A4%AE%E0%A5%80%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%B8%E0%A4%95%20%E0%A4%9C%E0%A5%80/page/n96/mode/1up संस्कृत व्याकरण शास्त्र का इतिहास], सन् १९८४, युधिष्ठिर मीमांसक बहालगढ, सोनीपत (पृ० १३४)</ref>
 +
 
 +
'''कातन्त्रव्याकरण -''' व्याकरण वांग्मय में पाणिनीय व्याकरण के पश्चात् कातन्त्र व्याकरण का स्थान अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।
 +
 
 +
'''चान्द्रव्याकरण -''' वाक्यपदीयकार भर्तृहरि ने अन्य वैयाकरणों में चान्द्रव्याकरण का वर्णन किया है। 
 +
 
 +
'''जैनेन्द्र व्याकरण -''' आचार्य देवनन्दी द्वारा रचित जैनेन्द्र शब्दानुशासन की रचना सं० ५०० वि० से पूर्व की है। इन्होंने व्याकरण के पञ्चांगों की रचना करते हुये पाणिनीय सूत्रों तथा वार्तिकों का संक्षिप्तीकरण किया। 
 +
 
 +
'''शाकटायन व्याकरण -''' इस सम्प्रदाय के संस्थापक, पाणिनि द्वारा उद्धृत पूर्व आचार्य शाकटायन नहीं हैं। इस शब्दानुशासन के रचयिता का मूलनाम पाल्यकीर्ति है जिनका रचनाकाल नवम शताब्दी के प्रथम चतुर्थांश में निर्धारित होता है।  
 +
 
 +
'''हेमचन्द्रव्याकरण -''' सुप्रसिद्ध कलिकालसर्वज्ञ जैनाचार्य हेमचन्द्र ने सिद्धहैमशब्दानुशासन नामक संस्कृत तथा प्राकृत उभयतः व्याकरण की रचना, ईसा की ग्यारहवीं शती में की थी। 
 +
 
 +
'''सारस्वतव्याकरण -''' अनुभूति स्वरूपाचार्य ईसा की चौदहवीं शती के मध्य हुये थे। इस ग्रन्थ में ७०० सूत्र प्राप्त होते हैं। इस प्रक्रिया के अनेक टीकाकारों में क्षेमेन्द्र, पुञ्जराज, अमृतभारती, धनेश्वर, वासुदेव भट्ट, रामभट्ट आदि प्रमुख हैं।
   −
==नव्य व्याकरण==
+
==पाणिनि व्याकरणशास्त्र परम्परा==
प्रक्रिया पद्धति, जिसका सर्वप्रामाणिक ग्रन्थ सिद्धान्तकौमुदी है। इसमें लक्ष्य को मुख्यतया लक्षित करके उस लक्ष्य की सिद्धि के लिये सूत्रों की व्याख्या प्रस्तुत की जाती है। अतः यह पद्धति लक्ष्यप्रधान है। प्रथम पद्धति को प्राचीनव्याकरण तथा नवीन पद्धति को नव्यव्याकरण के नाम से जाना जाता है।
+
शब्दानुशासन का प्रवचन जिन-जिन आचार्यों ने किया, उन सभी ने स्वयं के शब्दशास्त्र से सम्बद्ध प्रकृति-प्रत्ययादि के विभागों के प्रदर्शन हेतु पृथक्-पृथक् व्याकरणों की रचना की। पदों का विश्लेषण तथा शुद्धता की समीक्षा के अर्थ में व्याकरण का उद्भव वैदिक युग में ही हो चुका था। वेद अध्ययन के लिये उपादेय शास्त्रों (वेदांगों) में व्याकरण को प्रमुख स्थान मिला।
   −
==व्याकरणशास्त्र परम्परा==
+
पद विवेचन में अन्य सभी भाषाओं में संस्कृत अग्रणी है, इतनी सूक्ष्म दृष्टि तथा गम्भीरता से व्याकरण का विचार कहीं नहीं हैं -
विभिन्न शाब्दिकों द्वारा पाणिनीय व्याकरण से इतर व्याकरण सम्प्रदायों का आविर्भाव भी कालान्तर में हुआ है। कतिपय प्रमुख शब्दानुशासनों का संक्षिप्त विवरण निम्न है -<ref>पं० युधिष्ठिर मीमांसक, [https://archive.org/details/3_20200913_20200913_1432/%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A5%83%E0%A4%A4%20%E0%A4%B5%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A4%B0%E0%A4%A3%20%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%20%E0%A4%95%E0%A4%BE%20%E0%A4%87%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%B8%20%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%97-%201-%20%E0%A4%AF%E0%A5%81%E0%A4%A7%E0%A4%BF%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%A0%E0%A4%BF%E0%A4%B0%20%E0%A4%AE%E0%A5%80%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%B8%E0%A4%95%20%E0%A4%9C%E0%A5%80/page/n96/mode/1up संस्कृत व्याकरण शास्त्र का इतिहास], सन् १९८४, युधिष्ठिर मीमांसक बहालगढ, सोनीपत (पृ० १३४)</ref>
+
 
 +
*वेदांगों में शिक्षा का उपयोग शुद्ध उच्चारण के लिये
 +
*व्याकरण का पद के विवेचन के लिये
 +
*निरुक्त का अर्थज्ञान एवं निर्वचन के लिये
   −
'''कातन्त्रव्याकरण -'''
+
कालक्रम से ये सभी उपयोग व्याकरण पर आश्रित हो गये, उसका भार बढ गया।<ref name=":0" />
   −
'''चान्द्रव्याकरण -'''
+
परम्परागत दैवीय शाब्दिकों की प्राच्य-परम्परा में व्याकरण समाम्नाय में दो सम्प्रदाय प्रचलित हैं - ऐन्द्र व्याकरण तथा माहेश्वर व्याकरण। जिनमें ऐन्द्र व्याकरण का प्रतिनिधि ग्रन्थ - कातन्त्र व्याकरण तथा माहेश्वर (शैव) व्याकरण का प्रतिनिधि - पाणिनीय व्याकरण है। इनका व्याकरण-प्रस्थान संस्कृत व्याकरण के सभी दस उपलब्ध प्रस्थानों में व्यापकता, गम्भीरता एवं उनके शब्दों की सूक्ष्म विवेचना के कारण अतिविशिष्ट है। इन्होंने अपने पञ्च उपदेश (अष्टाध्यायी, धातुपाठ, गणपाठ, उणादिकोष और लिंगानुशासन) के द्वारा तात्कालिक भाषा का जैसा सर्वेक्षण किया है वैसा किसी भी भाषा के किसी भी ग्रन्थ में नहीं है।
   −
'''जैनेन्द्र व्याकरण -'''
+
===त्रिमुनि===
 +
पाणिनि-व्याकरण त्रिमुनि के नाम से उल्लेखित किया जाता है - पाणिनि, कात्यायन तथा पतञ्जलि।<blockquote>वाक्यकारं वररुचिं, भाष्यकारं पतञ्जलिम्। पाणिनिं सूत्रकारञ्च, प्रणतोऽस्मि मुनित्रयम् ॥</blockquote>
   −
'''शाकटायन व्याकरण -'''
+
===प्राचीन व्याकरण===
 +
यह मार्ग महाभाष्य से प्रारंभ होकर काशिकावृत्ति से होता हुआ अद्यावधि अनवरत चल रहा है। व्याकरण को काल की दृष्टि से इस प्रकार वर्गीकृत किया गया है -<ref>बलदेव उपाध्याय, [https://archive.org/details/15.-sanskrit-vangmaya-brihat-itihas-15-vyakaran/page/n41/mode/1up संस्कृत वांग्मय बृहद् इतिहास-व्याकरण खण्ड], सन् २००१, उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान, लखनऊ (पृ० ४३)।</ref> 
   −
'''हेमचन्द्रव्याकरण -'''
+
*सूत्रकाल
 +
*वार्तिक-काल
 +
*महाभाष्य काल
 +
*दर्शन काल
 +
*वृत्तिकाल
 +
*प्रक्रिया काल
 +
*सिद्धान्त काल आदि
   −
'''सारस्वतव्याकरण -'''
+
===नव्य व्याकरण===
 +
प्रक्रिया पद्धति, जिसका सर्वप्रामाणिक ग्रन्थ सिद्धान्तकौमुदी है। इसमें लक्ष्य को मुख्यतया लक्षित करके उस लक्ष्य की सिद्धि के लिये सूत्रों की व्याख्या प्रस्तुत की जाती है। अतः यह पद्धति लक्ष्यप्रधान है। प्रथम पद्धति को प्राचीनव्याकरण तथा नवीन पद्धति को नव्यव्याकरण के नाम से जाना जाता है। प्रक्रिया पद्धति, जिसका सर्वप्रामाणिक ग्रन्थ सिद्धान्तकौमुदी है। प्रथम पद्धति को प्राचीनव्याकरण तथा नवीन पद्धति को नव्यव्याकरण के नाम से जाना जाता है।
    
==व्याकरण के प्रमुख सिद्धान्त==
 
==व्याकरण के प्रमुख सिद्धान्त==
Line 50: Line 95:  
*भाषा वैज्ञानिकों की दृष्टि से महाभाष्य में शिक्षा, व्याकरण और निरुक्त तीनों की चर्चा हुई है।
 
*भाषा वैज्ञानिकों की दृष्टि से महाभाष्य में शिक्षा, व्याकरण और निरुक्त तीनों की चर्चा हुई है।
 
*
 
*
 +
 +
==पाणिनि से पूर्ववर्ती आचार्यपरम्परा==
 +
शब्दानुशासन का प्रवचन जिन-जिन आचार्यों ने किया, उन सभी ने स्वयं के शब्दशास्त्र से सम्बद्ध प्रकृति-प्रत्ययादि के विभागों के प्रदर्शन हेतु पृथक्-पृथक् व्याकरणों की रचना की। ऐतिहासिक दृष्टि से व्याकरण का सर्वप्रथम पूर्णग्रन्थ पाणिनि की अष्टाध्यायी है जिसके ४००० सूत्रों में प्रायः ७०० वैदिक भाषा तथा उसमें निहित स्वर के विवेचन से सम्बद्ध हैं। वैदिक भाषा की तुलना संस्कृत से करते हुए पाणिनि ने तथाकथित वैदिकी प्रक्रिया के सूत्रों की रचना की थी। पाणिनि के पूर्व भी आपिशलि, काश्यप, गार्ग्य, गालव, चाक्रवर्मण, भारद्वाज, शाकटायन, शाकल्य, सेनक तथा स्फोटायन - ये दस वैयाकरण हो चुके थे जिनके नाम अष्टाध्यायी में आये हैं। इनके अतिरिक्त अन्य ग्रन्थों से १३ वैयाकरणों के नाम प्राप्त होते हैं, जो पाणिनि से पहले हो चुके थे। इनके ग्रन्थ अनुपलब्ध हैं।<ref name=":0">डॉ० उमाशंकर शर्मा 'ऋषि', [https://archive.org/details/umashankar20082020/page/n102/mode/1up?view=theater संस्कृत साहित्य का इतिहास], सन् २०१७, चौखम्बा विश्वभारती (पृ० ६६)।</ref>
 +
 +
== संस्कृत व्याकरण और आधुनिक भाषा विज्ञान ==
 +
संस्कृत व्याकरण और आधुनिक भाषा शास्त्र (Modern Linguistics) दो महत्वपूर्ण लेकिन भिन्न क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
 +
 +
'''संस्कृत व्याकरण'''
 +
 +
संस्कृत व्याकरण का सबसे महत्वपूर्ण और प्रभावशाली ग्रंथ पाणिनि का 'अष्टाध्यायी' है। पाणिनि (लगभग 500 ईसा पूर्व) ने संस्कृत भाषा के व्याकरण को बहुत ही वैज्ञानिक और संरचित रूप में प्रस्तुत किया।
 +
 +
'''1. अष्टाध्यायी:''' यह संस्कृत के व्याकरण के 8 अध्यायों में विभाजित सूत्रों का संग्रह है। इसमें धातु (मूल शब्द), प्रत्यय (शब्द के अंत में लगने वाले उपसर्ग), संधि (शब्दों का मेल) आदि के नियम बताए गए हैं।
 +
 +
'''2. धातुपाठ:''' यह एक ग्रंथ है जिसमें संस्कृत के सभी धातुओं की सूची दी गई है। ये धातु किसी भी शब्द का मूल रूप होते हैं।
 +
 +
'''3. गणपाठ:''' इसमें संस्कृत के विभिन संज्ञाओं और सर्वनामों के समूहों को संकलित किया गया है।
 +
 +
'''4. शिक्षा और छन्दःशास्त्र:''' यह संस्कृत के उच्चारण और छंदों के नियमों का अध्ययन है।
 +
 +
संस्कृत व्याकरण को बहुत ही वैज्ञानिक और विश्लेषणात्मक माना जाता है, और यह एक निश्चित नियमों पर आधारित है जो सदियों से अपरिवर्तित है। इसे विश्व के सबसे प्रारंभिक और संपूर्ण व्याकरणों में से एक माना जाता है।
 +
 +
'''आधुनिक भाषा शास्त्र'''
 +
 +
आधुनिक भाषा शास्त्र 19वीं सदी से विकसित हुआ और इसका उद्देश्य विभिन्न भाषाओं के संरचनात्मक और कार्यात्मक पहलुओं का अध्ययन करना है।
 +
 +
'''1. स्ट्रक्चरल लिंग्विस्टिक्स (Structural Linguistics):''' फर्डिनांड डी सॉसुर द्वारा प्रारंभ किया गया यह दृष्टिकोण भाषा की संरचना, जैसे ध्वन्यात्मकता (Phonology), रूपविज्ञान (Morphology), और वाक्यविज्ञान (Syntax) का अध्ययन करता है।
 +
 +
'''2. नोम चॉम्स्की और जेनरेटिव व्याकरण (Generative Grammar):''' नोम चॉम्स्की ने आधुनिक भाषा शास्त्र में एक क्रांति ला दी। उन्होंने सार्वभौमिक व्याकरण (Universal Grammar) का सिद्धांत दिया, जो यह बताता है कि सभी भाषाओं की एक सामान्य आधारभूत संरचना होती है।
 +
 +
'''3. समाजभाषाविज्ञान (Sociolinguistics):''' यह भाषा और समाज के बीच के संबंधों का अध्ययन करता है। इसमें बोली, उच्चारण, भाषा परिवर्तन और समाज में भाषा की भूमिका जैसे पहलू आते हैं।
 +
 +
'''4. मनोभाषाविज्ञान (Psycholinguistics):''' यह भाषा के मानसिक और संज्ञानात्मक पहलुओं का अध्ययन करता है, जैसे भाषा सीखने की प्रक्रिया।
 +
 +
'''5. कंप्यूटेशनल लिंग्विस्टिक्स (Computational Linguistics):''' यह भाषा के कम्प्यूटर मॉडलिंग और प्रोग्रामिंग का अध्ययन है, जैसे प्राकृतिक भाषा प्रसंस्करण (NLP)।
 +
 +
'''संबंध और अंतर'''
 +
 +
'''संस्कृत व्याकरण''' एक प्राचीन और अत्यधिक संगठित प्रणाली है जो विशिष्ट रूप से संस्कृत भाषा के अध्ययन के लिए बनाई गई है।
 +
 +
'''आधुनिक भाषा शास्त्र''' भाषा के विभिन्न पहलुओं का व्यापक अध्ययन करता है, जो विभिन्न भाषाओं और भाषाई पैटर्नों को समझने के लिए विकसित हुआ है।
 +
 +
संस्कृत व्याकरण की जटिलता और सटीकता ने आधुनिक भाषा शास्त्रियों को भी प्रभावित किया है, और कई सिद्धांतकारों ने पाणिनि के कार्यों को आधुनिक दृष्टिकोण से भी अध्ययन किया है।
 +
 +
==व्याकरण दर्शन==
 +
मानव-मस्तिष्क की विचार-प्रक्रिया तथा उसकी अभिव्यक्ति के साथ शब्दतत्व (भाषा) का इतना अधिक निकट सम्बन्ध है कि दार्शनिक और तार्किक भूमि पर उसकी व्याख्या के बिना भाषा का कोई भी व्याकरण स्वयं को वैज्ञानिक धरातल पर प्रतिष्ठित नहीं कर सकता। अतः जैसे -
 +
 +
शब्द का वस्तु रूप क्या है?
 +
 +
शब्दबोध्य अर्थ क्या है?
 +
 +
दोनों में क्या सम्बन्ध है?
 +
 +
वे दोनों नित्य हैं या कार्यरूप?
 +
 +
पदार्थ जाति है या व्यक्ति?
 +
 +
शब्द-अर्थ तथा उनके सम्बन्ध के बारे में व्याकरण क्या दृष्टि रखता है?
 +
 +
आदि-आदि ऐसे प्रश्न हैं जो शाब्दिक जगत् के सम्मुख प्रतिपद उपस्थित किये जा सकते हैं। इन प्रश्नों के तर्कसंगत समाधान खोज निकालने को ही व्याकरण-दर्शन कहा जाता है।
    
==सारांश==
 
==सारांश==
 
इस प्रकार भारतीय वांग्मय में व्याकरण अध्ययन के बृहद् इतिहास का वर्णन, उपर्युक्त परंपरा से हमें प्राप्त होता है। इसका आदि भारतीय परंपरा के अनुसार, ब्रह्मा तथा शिव से प्रारंभ होते हुये आज तक यह परंपरा अविच्छिन रूप में विकसित होते हुये, संस्कृत भाषा को परिनिष्ठित करने हेतु व्याख्यायित है।
 
इस प्रकार भारतीय वांग्मय में व्याकरण अध्ययन के बृहद् इतिहास का वर्णन, उपर्युक्त परंपरा से हमें प्राप्त होता है। इसका आदि भारतीय परंपरा के अनुसार, ब्रह्मा तथा शिव से प्रारंभ होते हुये आज तक यह परंपरा अविच्छिन रूप में विकसित होते हुये, संस्कृत भाषा को परिनिष्ठित करने हेतु व्याख्यायित है।
   −
व्याकरणनिकायों प्राच्य तथा नव्य विधाओं में लक्ष्य तथा लक्षण उभयतः ग्रन्थों की रचना हुयी है। आचार्य पाणिनि इस समस्त शब्दानुशासन के प्रवर्तक स्वीकृत किये जाते हैं। उअन्के द्वारा रचित पाणिनीय व्याकरण अनुवर्ती सभी शाब्दिकों के अध्ययन का प्रमुख प्रवर्तक ग्रन्थ सिद्ध हुआ है। जिसमें वार्तिककार कात्यायन तथा महाभाष्यकार पतञ्जलि का विशेष महत्त्व है।
+
व्याकरणनिकायों प्राच्य तथा नव्य विधाओं में लक्ष्य तथा लक्षण उभयतः ग्रन्थों की रचना हुयी है। आचार्य पाणिनि इस समस्त शब्दानुशासन के प्रवर्तक स्वीकृत किये जाते हैं। उअन्के द्वारा रचित पाणिनीय व्याकरण अनुवर्ती सभी शाब्दिकों के अध्ययन का प्रमुख प्रवर्तक ग्रन्थ सिद्ध हुआ है। जिसमें वार्तिककार कात्यायन तथा महाभाष्यकार पतञ्जलि का विशेष महत्त्व है। इन मुनित्रयों के पश्चात् आचार्य भर्तृहरि, कैयट, वामन-जयादित्य, भट्टोजिदीक्षित, नागेशभट्ट आदि से लेकर अद्यावधि पर्यन्त अनेकों विद्वानों ने स्वरचित ग्रन्थों द्वारा प्रतिष्ठा प्राप्त की है।
 
  −
इन मुनित्रयों के पश्चात् आचार्य भर्तृहरि, कैयट, वामन-जयादित्य, भट्टोजिदीक्षित, नागेशभट्ट आदि से लेकर अद्यावधि पर्यन्त अनेकों विद्वानों ने स्वरचित ग्रन्थों द्वारा प्रतिष्ठा प्राप्त की है।  
     −
==व्याकरण के आचार्य==
+
==उद्धरण==
 
<references />
 
<references />
 
[[Category:Hindi Articles]]
 
[[Category:Hindi Articles]]
922

edits

Navigation menu