Changes

Jump to navigation Jump to search
सुधार जारी
Line 12: Line 12:     
'''यंत्रशिरोमणि -  '''1537 शालीवाहन शक में  भी श्री विश्रामपंडित द्वारा विरचित इस ग्रंथ में यंत्रों का वर्णन एवं क्रांति तथा द्युज्यापिंडों के साधनार्थ सारणियां दी गईं हैं। इनसे पूर्व के ग्रंथो में पद्मनाभ विरचित नलिकायंत्राध्याय एवं ध्रुवभ्रमयंत्र, चक्रधर दैवज्ञ विरचित यंत्रचिंतामणि , ग्रहलाघव गणेश दैवज्ञ विरचित प्रतोदयंत्र , पूर्णानन्द सरस्वती रचित नलिकाबंध , इत्यादि प्रमुख हैं।
 
'''यंत्रशिरोमणि -  '''1537 शालीवाहन शक में  भी श्री विश्रामपंडित द्वारा विरचित इस ग्रंथ में यंत्रों का वर्णन एवं क्रांति तथा द्युज्यापिंडों के साधनार्थ सारणियां दी गईं हैं। इनसे पूर्व के ग्रंथो में पद्मनाभ विरचित नलिकायंत्राध्याय एवं ध्रुवभ्रमयंत्र, चक्रधर दैवज्ञ विरचित यंत्रचिंतामणि , ग्रहलाघव गणेश दैवज्ञ विरचित प्रतोदयंत्र , पूर्णानन्द सरस्वती रचित नलिकाबंध , इत्यादि प्रमुख हैं।
 +
 +
== प्राचीन यंत्र ==
 +
भारतीय ज्योतिष शास्त्र में ग्रहवेध हेतु यन्त्रों की परम्परा प्राचीनकाल से चली आ रही है। ज्योतिष शास्त्र के प्राचीन व अर्वाचीन आचार्यों ने विविध यन्त्रों का उपयोग अपने-अपने कालखण्डों में विधिवत् किया है। यन्त्रों के अन्तर्गत आरम्भ काल से १५ वीं तथा १६ वीं सदी के समय तक में अनुमानतः निम्नलिखित प्राचीनयंत्रों के नाम आते हैं, जो प्राप्य हैं -
 +
 +
शंकु यन्त्र, कपाल यन्त्र, मिश्र यन्त्र, दक्षिणोत्तर भित्ति यन्त्र, अष्टमांश यन्त्र, गोल यन्त्र एवं धूपघटिका यन्त्र, मयूर यन्त्र, बृहद् सम्राट् यन्त्र, लघुसम्राट यन्त्र, नाडीवलय यन्त्र, क्रान्ति यन्त्र, जयप्रकाश यन्त्र, षष्ठांश यन्त्र, दिगंश यन्त्र, तुरीय,  द्वादश राशिवलय, धूपघटिका, यन्त्रराज, उन्नतांश, गोल, राम यन्त्र, ध्रुवदर्शक यन्त्र एवं चक्र यन्त्र।
 +
 +
इनके अतिरिक्त भी कई यन्त्र होंगे जो अप्राप्य हैं तथा वर्तमान में उपयोग में नहीं है अथवा ग्रन्थों या वेधशालाओं में द्रष्टव्य नहीं होता है।
 +
 +
== आधुनिक यंत्र ==
 +
    
== सारांश ==
 
== सारांश ==
777

edits

Navigation menu