Difference between revisions of "Sthalapuranas (स्थलपुराण)"

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बहुत से पुराण आज भी विद्यमान हैं, जिनकी गणना महापुराणों और उपपुराण की शैली में लिखे गये हैं। उनमें से बहुत से स्थल पुराण हैं, जो स्थान विशेष के महत्व को बतलाते हैं और पुराण साहित्य में निरन्तर सुशोभित होते रहते हैं।
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स्थल पुराण असंख्य हैं। तीर्थ की महिमा, मंदिर की महिमा, वहां स्थापित देवता, तालाब एवं वृक्ष आदि के माहात्म्य को जिसके द्वारा बताया जाता है, वे स्थल पुराण के अन्तर्गत आते हैं एवं इनकी लेखन की शैली भी माहात्म्य की दृष्टि से महापुराणों और उपपुराणों की तरह ही है। उनमें से बहुत से स्थल पुराण हैं, जो स्थान विशेष के महत्व को बतलाते हैं और पुराण साहित्य में निरन्तर सुशोभित होते रहते हैं।  
  
== परिचय ==
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==परिचय==
स्थल पुराण की महिमा अत्यन्त अर्वाचीन है। ऐसे पुराणों का लेखन, जो किसी स्थल, तीर्थ अथवा क्षेत्र विशेष की महिमा का वर्णन करते हैं और उस क्षेत्र की संस्कृति को प्रदर्शित करने का कार्य सम्पन्न करते हैं, ऐसे पुराण नामधारी ग्रन्थों को स्थल पुराण कहा जाता है। स्थल पुराण को तीन मुख्य विषयों के साथ वर्गीकृत किया गया है - तीर्थ (किसी पवित्र स्थल का वैशिष्ट्य), क्षेत्र (एक भौगोलिक क्षेत्र या स्थान), और किसी देवता विशेष के आधार पर।
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स्थल पुराण की महिमा अत्यन्त अर्वाचीन है। ऐसे पुराणों का लेखन, जो किसी स्थल, तीर्थ अथवा क्षेत्र विशेष की महिमा का वर्णन करते हैं और उस क्षेत्र की संस्कृति को प्रदर्शित करने का कार्य सम्पन्न करते हैं, ऐसे पुराण नामधारी ग्रन्थों को स्थल पुराण कहा जाता है। स्थल पुराण को तीन मुख्य विषयों के साथ वर्गीकृत किया गया है - तीर्थ (किसी पवित्र स्थल का वैशिष्ट्य), क्षेत्र (एक भौगोलिक क्षेत्र या स्थान), और किसी देवता विशेष के आधार पर यह संस्कृत या स्थानीय लोक भाषा में भी लिखे गये हैं।
  
== स्थलपुराणों का वर्ण्य विषय ==
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==स्थलपुराणों का वर्ण्य विषय==
स्थल पुराण, पुराण लेखन की परंपरा में समय-समय पर लिखे गये हैं और आज भी लिखे जा रहे हैं। ऐसे बहुत से स्थल पुराण धर्मशास्त्रीय ग्रन्थों में उपलब्ध हैं, जिनकी सूची इस प्रकार है -<ref>शोधगंगा - प्रतीक्षा श्रीवास्तव, [https://shodhganga.inflibnet.ac.in/handle/10603/551891 स्थल पुराणों की परम्परा में वासुकी पुराण एक अध्ययन], सन् २००७, शोधकेन्द्र- लखनऊ विश्वविद्यालय (पृ० २३४)।</ref>  
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स्थल पुराण न केवल हमें इतिहास की जानकारी देने में सक्षम बनाते हैं अपितु स्थानीय संस्कृति और स्थानीय रीति-रिवाजों के बारे में हमारे ज्ञान को समृद्ध बनाते हैं। स्थानीय जानकारी के द्वारा इतिहास को उचित रूप से समझने में सहायता प्राप्त होती है किसी भी स्थान आदि विशेष के इतिहास को यथार्थ रूप से जानने में स्थल पुराण की महत्वपूर्ण भूमिका है। पुराण लेखन की परंपरा में स्थल पुराण समय-समय पर लिखे गये हैं और आज भी लिखे जा रहे हैं। ऐसे बहुत से स्थल पुराण धर्मशास्त्रीय ग्रन्थों में उपलब्ध हैं, जिनकी सूची इस प्रकार है -<ref>शोधगंगा - प्रतीक्षा श्रीवास्तव, [https://shodhganga.inflibnet.ac.in/handle/10603/551891 स्थल पुराणों की परम्परा में वासुकी पुराण एक अध्ययन], सन् २००७, शोधकेन्द्र- लखनऊ विश्वविद्यालय (पृ० २३४)।</ref>  
 
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सूतसंहिता, मानसखण्ड, काशीरहस्य, विनायकमाहात्म्य, विरजाक्षेत्रमाहात्म्य, नेपालमाहात्म्य, मिथिलामाहात्म्य।
  
== सारांश ==
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==सारांश==
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स्थलपुराणों को स्थानीय पुराण नाम के द्वारा भी व्यवहार किया जाता है।  इनके द्वारा स्थल विशेष का धार्मिक महत्व ज्ञात करने में सहायता प्राप्त होती है।
  
== उद्धरण ==
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* स्थान मन्दिर आदियों के महत्व का वर्णन
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* भारतीय धार्मिक परंपरा और साहित्य में स्थल पुराणों का सम्माननीय स्थान है।
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Latest revision as of 13:41, 22 May 2024

स्थल पुराण असंख्य हैं। तीर्थ की महिमा, मंदिर की महिमा, वहां स्थापित देवता, तालाब एवं वृक्ष आदि के माहात्म्य को जिसके द्वारा बताया जाता है, वे स्थल पुराण के अन्तर्गत आते हैं एवं इनकी लेखन की शैली भी माहात्म्य की दृष्टि से महापुराणों और उपपुराणों की तरह ही है। उनमें से बहुत से स्थल पुराण हैं, जो स्थान विशेष के महत्व को बतलाते हैं और पुराण साहित्य में निरन्तर सुशोभित होते रहते हैं।

परिचय

स्थल पुराण की महिमा अत्यन्त अर्वाचीन है। ऐसे पुराणों का लेखन, जो किसी स्थल, तीर्थ अथवा क्षेत्र विशेष की महिमा का वर्णन करते हैं और उस क्षेत्र की संस्कृति को प्रदर्शित करने का कार्य सम्पन्न करते हैं, ऐसे पुराण नामधारी ग्रन्थों को स्थल पुराण कहा जाता है। स्थल पुराण को तीन मुख्य विषयों के साथ वर्गीकृत किया गया है - तीर्थ (किसी पवित्र स्थल का वैशिष्ट्य), क्षेत्र (एक भौगोलिक क्षेत्र या स्थान), और किसी देवता विशेष के आधार पर यह संस्कृत या स्थानीय लोक भाषा में भी लिखे गये हैं।

स्थलपुराणों का वर्ण्य विषय

स्थल पुराण न केवल हमें इतिहास की जानकारी देने में सक्षम बनाते हैं अपितु स्थानीय संस्कृति और स्थानीय रीति-रिवाजों के बारे में हमारे ज्ञान को समृद्ध बनाते हैं। स्थानीय जानकारी के द्वारा इतिहास को उचित रूप से समझने में सहायता प्राप्त होती है किसी भी स्थान आदि विशेष के इतिहास को यथार्थ रूप से जानने में स्थल पुराण की महत्वपूर्ण भूमिका है। पुराण लेखन की परंपरा में स्थल पुराण समय-समय पर लिखे गये हैं और आज भी लिखे जा रहे हैं। ऐसे बहुत से स्थल पुराण धर्मशास्त्रीय ग्रन्थों में उपलब्ध हैं, जिनकी सूची इस प्रकार है -[1]

  1. अर्बुद पुराणम्
  2. आत्मपुराणम्
  3. आगम पुराणम्
  4. आञ्जनेय पुराणम्
  5. आनन्दपुराणम्
  6. उत्तरसौरपुराणम्
  7. ऊर्ध्वांपुराणम्
  8. कन्यकापुराणम्
  9. कच्छपुराणम्
  10. कात्यायनीपुराणम्
  11. कारणपुराणम्
  12. कृष्णपुराणम्
  13. व्रातपुराणम्
  14. कौशिकीपुराणम्
  15. गर्गपुराणम्
  16. गण्डकीपुराणम्
  17. गालवपुराणम्
  18. गोमतीपुराणम्
  19. गोकर्णपुराणम्
  20. चण्डीपुराणम्
  21. जैमिनीपुराणम्
  22. त्वष्टपुराणम्
  23. तुलापुराणम्
  24. दत्तपुराणम्
  25. देवरहस्यपुराणम्
  26. निराञ्जनपुराणम्
  27. नीलमतपुराणम्
  28. प्रजापुराणम्
  29. पुरुषोत्तमपुराणम्
  30. पुष्करपुराणम्
  31. भविष्योत्तरपुराणम्
  32. भगवतीपुराणम्
  33. भूगोलपुराणम्
  34. भूचरपुराणम्
  35. भैरवपुराणम्
  36. मार्तण्डपुराणम्
  37. माधवीयपुराणम्
  38. माघपुराणम्
  39. यमपुराणम्
  40. युगपुराणम्
  41. रुद्रपुराणम्
  42. रुद्रभागवतपुराणम्
  43. रैजुकपुराणम्
  44. लघुबृहन्नारदीयपुराणम्
  45. लघुब्रह्मवैवर्तपुराणम्
  46. लक्ष्मीपुराणम्
  47. ब्रह्मवैवर्तपुराणम्
  48. वसवेश्वरपुराणम्
  49. विख्यादपुराणम्
  50. विश्वकर्मपुराणम्
  51. विष्णुरहस्यपुराणम्
  52. विष्णुधर्मोत्तरमृतपुराणम्
  53. वासुकिपुराणम्
  54. वृद्धपाद्मपुराणम्
  55. बृहद्वामनपुराणम्
  56. वृहल्लिंगपुराणम्
  57. वृहन्मस्त्यपुराणम्
  58. बृहद्विष्णुधर्मपुराणम्
  59. वैराटपुराणम्
  60. सरस्वती (शारदापुराणम्)
  61. स्वल्पमत्स्य पुराणम्
  62. सोमपुराणम्
  63. सौरधर्मपुराणम्
  64. शिवधर्मोत्तरपुराणम् आदि

उपर्युक्त सभी स्थल पुराणों के नाम से प्रसिद्ध हैं और स्थल पुराण की परम्परा के अन्तर्गत आते हैं।

माहात्म्य एवं स्थलपुराण की सूची में कुछ और ग्रन्थ इस प्रकार हैं -

सूतसंहिता, मानसखण्ड, काशीरहस्य, विनायकमाहात्म्य, विरजाक्षेत्रमाहात्म्य, नेपालमाहात्म्य, मिथिलामाहात्म्य।

सारांश

स्थलपुराणों को स्थानीय पुराण नाम के द्वारा भी व्यवहार किया जाता है। इनके द्वारा स्थल विशेष का धार्मिक महत्व ज्ञात करने में सहायता प्राप्त होती है।

  • स्थान मन्दिर आदियों के महत्व का वर्णन
  • भारतीय धार्मिक परंपरा और साहित्य में स्थल पुराणों का सम्माननीय स्थान है।

उद्धरण

  1. शोधगंगा - प्रतीक्षा श्रीवास्तव, स्थल पुराणों की परम्परा में वासुकी पुराण एक अध्ययन, सन् २००७, शोधकेन्द्र- लखनऊ विश्वविद्यालय (पृ० २३४)।