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द्वितीय मन्त्र में यह प्रार्थना की गयी है कि - यशस्वी इन्द्र हमारा कल्याण करें, सभी प्रकार के ऐश्वर्य से युक्त पूषन् हमारा कल्याण करें। जिनके चक्र परिधि को कोई हिंसित नहीं कर सकता, ऐसे तार्क्ष्य, हमारा कल्याण करें। बृहस्पति हमारा कल्याण करें। आध्यात्मिक, आधिदैविक और आधिभौतिक - सभी प्रकारके तापोंकी शान्ति हो।
 
द्वितीय मन्त्र में यह प्रार्थना की गयी है कि - यशस्वी इन्द्र हमारा कल्याण करें, सभी प्रकार के ऐश्वर्य से युक्त पूषन् हमारा कल्याण करें। जिनके चक्र परिधि को कोई हिंसित नहीं कर सकता, ऐसे तार्क्ष्य, हमारा कल्याण करें। बृहस्पति हमारा कल्याण करें। आध्यात्मिक, आधिदैविक और आधिभौतिक - सभी प्रकारके तापोंकी शान्ति हो।
 
==प्रश्न उपनिषद् - वर्ण्य विषय==
 
==प्रश्न उपनिषद् - वर्ण्य विषय==
ऋषि पिप्पलाद के पास भरद्वाजपुत्र सुकेशा, शिविकुमार सत्यकाम, गर्ग गोत्र में उत्पन्न सौर्यायणी, कोसलदेशीय आश्वलायन, विदर्भ निवासी भार्गव और कत्य ऋषि के प्रपौत्र कबन्धी- ये छह ऋषि हाथ में समिधा लेकर ब्रह्मजिज्ञासा से पहुँचे। ऋषि की आज्ञानुसार उन सबने एक वर्ष तक श्रद्धा, ब्रह्मचर्य और तपस्या के साथ विधिपूर्वक वहाँ निवास किया।<ref>बलदेव उपाध्याय, [https://archive.org/details/1.SanskritVangmayaKaBrihatItihasVedas/page/504/mode/1up संस्कृत वांग्मय का बृहद् इतिहास - वेद खण्ड], सन् १९९६, उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान (पृ० ५०४)।</ref><blockquote>ॐ सुकेशा च भारद्वाजः शैब्यश्च सत्यकामः सौर्यायणी च गार्ग्यः कौसल्यश्चाश्वलायनो भार्गवो वैदर्भिः कबन्धी कात्यायनस्ते हैते ब्रह्मपरा ब्रह्मनिष्ठाः परं ब्रह्मान्वेषमाणा एष ह वै तत्सर्वं वक्ष्यतीति ते ह समित्पाणयो भगवन्तं पिप्पलादमुपसन्नाः ॥ (प्रश्नोपनिषद् - १)<ref name=":0" /></blockquote>'''प्रथम प्रश्न - समस्त प्राणियों का स्रोत'''
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ऋषि पिप्पलाद के पास भरद्वाजपुत्र सुकेशा, शिविकुमार सत्यकाम, गर्ग गोत्र में उत्पन्न सौर्यायणी, कोसलदेशीय आश्वलायन, विदर्भ निवासी भार्गव और कत्य ऋषि के प्रपौत्र कबन्धी- ये छह ऋषि हाथ में समिधा लेकर ब्रह्मजिज्ञासा से पहुँचे। ऋषि की आज्ञानुसार उन सबने एक वर्ष तक श्रद्धा, ब्रह्मचर्य और तपस्या के साथ विधिपूर्वक वहाँ निवास किया।<ref>बलदेव उपाध्याय, [https://archive.org/details/1.SanskritVangmayaKaBrihatItihasVedas/page/504/mode/1up संस्कृत वांग्मय का बृहद् इतिहास - वेद खण्ड], सन् १९९६, उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान (पृ० ५०४)।</ref><blockquote>ॐ सुकेशा च भारद्वाजः शैब्यश्च सत्यकामः सौर्यायणी च गार्ग्यः कौसल्यश्चाश्वलायनो भार्गवो वैदर्भिः कबन्धी कात्यायनस्ते हैते ब्रह्मपरा ब्रह्मनिष्ठाः परं ब्रह्मान्वेषमाणा एष ह वै तत्सर्वं वक्ष्यतीति ते ह समित्पाणयो भगवन्तं पिप्पलादमुपसन्नाः ॥ (प्रश्नोपनिषद् - १)<ref name=":0" /></blockquote>पिप्पलादमुनि के पास आए हुए ये सभी ब्रह्मजिज्ञासु बडे बुद्धिशाली थे। उन्होंने उनसे बहुत सुन्दर प्रश्न पूछे-
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* हम कहाँ से आते हैं ?
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* जीवन का मूलस्रोत कौन-सा है?
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* कौन से अवयव (इन्द्रियाँ) प्रकाश देते हैं?
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* उनमें मुख्य अवयव कौन-सा है?
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* यह प्राण (संजीवनी शक्ति) कहाँ से आती है?
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* देह में वह कैसे आ जाती है?
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* इससे फिर अलग क्यों हो जाती हैं?
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* निद्रित कौन होता है?
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* जागता कौन है?
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* स्वप्न में क्या होता है?
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* सुख का मूल क्या है?
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* ओं के ध्यान से कौन-सी गति और प्राप्ति होती है?
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* परम सत् क्या है और कहाँ रहता है?
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'''प्रथम प्रश्न - समस्त प्राणियों का स्रोत'''
    
प्रथम प्रश्न कात्यायन कबन्धि ने मुनि पिप्पलाद से यह किया, ऋषिवर, जीवों की उत्पत्ति कहां से होती है? अथवा ये सारे जीव किस प्रकार उत्पन्न हुए हैं?
 
प्रथम प्रश्न कात्यायन कबन्धि ने मुनि पिप्पलाद से यह किया, ऋषिवर, जीवों की उत्पत्ति कहां से होती है? अथवा ये सारे जीव किस प्रकार उत्पन्न हुए हैं?
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