अग्निपुराण में राजधर्म तथा उसके अंगों के वर्णन के प्रसंग में धनुर्विद्या का अध्याय 249 प्रारंभ में होकर 252 अध्याय पर्यंत वर्णन प्राप्त होता है। प्राचीन काल में धनुर्वेद पर बहुत सारे ग्रंथ उपलब्ध थे, किन्तु कालांतर में धनुर्वेद के प्रायः सभी ग्रंथ लुप्त हो गए। धनुर्वेद के तेरह (13) उपांगों का वर्णन किया गया है – (नीति प्रकाशिका पृ0 9)
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अग्निपुराण में राजधर्म तथा उसके अंगों के वर्णन के प्रसंग में धनुर्विद्या का अध्याय 249 प्रारंभ में होकर 252 अध्याय पर्यंत वर्णन प्राप्त होता है। प्राचीन काल में धनुर्वेद पर बहुत सारे ग्रंथ उपलब्ध थे, किन्तु कालांतर में धनुर्वेद के प्रायः सभी ग्रंथ लुप्त हो गए। धनुर्वेद के तेरह (13) उपांगों का वर्णन किया गया है – (नीति प्रकाशिका पृ0 9){{columns-list|colwidth=10em|style=width: 800px; font-style: regular;|
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'''शब्द'''
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# '''शब्द'''
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# '''स्पर्श'''
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# '''गंध'''
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# '''अदर्शन'''
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'''दूर'''
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'''चल'''
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# '''भ्रमण'''
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# '''प्रतिबिंब'''
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'''अदर्शन'''
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# '''उद्देश (ऊपर) लक्ष्यों पर शरनिपातन करना (वेध करना)'''}}
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'''पृष्ठ'''
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'''भ्रमण'''
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'''उद्देश (ऊपर) लक्ष्यों पर शरनिपातन करना (वेध करना)'''
धनुर्वेद में मुक्त और अमुक्त आयुधों की संख्या बत्तीस है –
धनुर्वेद में मुक्त और अमुक्त आयुधों की संख्या बत्तीस है –