Changes

Jump to navigation Jump to search
सुधार जारि
Line 4: Line 4:  
किसी मनुष्य के जन्मकालीन लग्न द्वारा उसके जीवन के सम्पूर्ण सुख-दुख का निर्णय पहले ही कर देना होरा स्कन्ध का सामान्यतः मूल स्वरूप है।  होरा स्कन्ध को जातक स्कन्ध भी कहा जाता है। कालान्तर में इसके भी दो भाग हो गए। जातक सम्बन्धी विषय जिसमें आया वह जातक कहलाया और दूसरा भाग ताजिक हुआ। ज्योतिष शास्त्र का जो स्कन्ध कुण्डलियों का निर्माण करता है और जो व्यक्ति विशेष से सम्बन्धित है वह होराशास्त्र या जातक के नाम से विख्यात है।
 
किसी मनुष्य के जन्मकालीन लग्न द्वारा उसके जीवन के सम्पूर्ण सुख-दुख का निर्णय पहले ही कर देना होरा स्कन्ध का सामान्यतः मूल स्वरूप है।  होरा स्कन्ध को जातक स्कन्ध भी कहा जाता है। कालान्तर में इसके भी दो भाग हो गए। जातक सम्बन्धी विषय जिसमें आया वह जातक कहलाया और दूसरा भाग ताजिक हुआ। ज्योतिष शास्त्र का जो स्कन्ध कुण्डलियों का निर्माण करता है और जो व्यक्ति विशेष से सम्बन्धित है वह होराशास्त्र या जातक के नाम से विख्यात है।
   −
== परिभाषा ==
+
बृहज्जातक में वराहमिहिर ने दो बातों पर विशेष बल दिया है-<ref>डॉ० श्रीअशोकजी थपलियाल,होरास्कन्धविमर्श, ज्योतिषतत्त्वांक, गोरखपुरः गीताप्रेस, (पृ० २२०)।</ref>
बृहज्जातक में आया है कि कुछ लोगों के मत से होरा, अहोरात्र शब्द के पहले एवं अंतिम अक्षरों को निकाल देने से बना है। होराशास्त्र पूर्वजन्मों में किए गए अच्छे या बुरे फलों को भली-भाँति व्यक्त करता है।<blockquote>होरेत्यहोरात्रविकल्पमेके वाञ्छन्ति पूर्वापरवर्णलोपात्।</blockquote>होरा शब्द की व्युत्पत्ति अहोरात्र शब्द से अ और त्र हटाने के बाद होरा शब्द बनता है। बृहज्जातक में वराहमिहिर ने दो बातों पर विशेष बल दिया है-<ref>डॉ० श्रीअशोकजी थपलियाल,होरास्कन्धविमर्श, ज्योतिषतत्त्वांक, गोरखपुरः गीताप्रेस, (पृ० २२०)।</ref>
  −
 
   
# होराशास्त्र कर्म एवं पुनर्जन्म के सिद्धान्तों से सम्बन्धित है।
 
# होराशास्त्र कर्म एवं पुनर्जन्म के सिद्धान्तों से सम्बन्धित है।
 
# शास्त्र बताता है कि कुण्डली एक नक्सा या योजना मात्र है जो पूर्वजन्म में किए गए कम से उत्पन्न किसी व्यक्ति के जीवन के भविष्य की ओर निर्देश करती है।  होराशास्त्र यह नहीं कहता है कि व्यक्ति की कुण्डली के ग्रह उसे यह या वह करने के लिए बाध्य करते हैं, बल्कि कुण्डली केवल यह बताती हैं कि व्यक्ति का भविष्य किन दिशाओं की ओर उन्मुख है।
 
# शास्त्र बताता है कि कुण्डली एक नक्सा या योजना मात्र है जो पूर्वजन्म में किए गए कम से उत्पन्न किसी व्यक्ति के जीवन के भविष्य की ओर निर्देश करती है।  होराशास्त्र यह नहीं कहता है कि व्यक्ति की कुण्डली के ग्रह उसे यह या वह करने के लिए बाध्य करते हैं, बल्कि कुण्डली केवल यह बताती हैं कि व्यक्ति का भविष्य किन दिशाओं की ओर उन्मुख है।
 +
 +
== परिभाषा ==
 +
बृहज्जातक में आया है कि कुछ लोगों के मत से होरा, अहोरात्र शब्द के पहले एवं अंतिम अक्षरों को निकाल देने से बना है। होराशास्त्र पूर्वजन्मों में किए गए अच्छे या बुरे फलों को भली-भाँति व्यक्त करता है।<blockquote>होरेत्यहोरात्रविकल्पमेके वाञ्छन्ति पूर्वापरवर्णलोपात्।</blockquote>होरा शब्द की व्युत्पत्ति अहोरात्र शब्द से अ और त्र हटाने के बाद होरा शब्द बनता है। जिसमें व्यक्तिगत फल निरूपण प्रक्रिया का उपस्थापन किया जाता है उसे होरा स्कन्ध कहते हैं।
    
== होरा स्कन्ध का वैशिष्ट्य ==
 
== होरा स्कन्ध का वैशिष्ट्य ==
Line 16: Line 17:     
== होरा स्कन्ध का वर्ण्य विषय ==
 
== होरा स्कन्ध का वर्ण्य विषय ==
 +
 +
== होरा स्कन्ध की समाज में उपयोगिता ==
 +
होरा शास्त्रके ज्ञानसे मनुष्य भावी सुख-दुःखादि का ज्ञानकर अपने पौरुष से उसे अनुकूल बना सकता है। यह शास्त्र मनोवैज्ञानिक रूपसे उसे दुःखादि अशुभ परिस्थितियोंको झेलने में सम्बल प्रदान करता है। इस प्रकार प्राणिमात्रपर पडने वाले शुभाशुभ प्रभावका अध्ययनकर उसे समुचित मार्गदर्शन देना ही होरा शास्त्र की लोकोपयोगिताको सिद्ध करता है। इस प्रकाए जातककी अभिरुचि, दक्षता, स्वभावादिका विश्लेषण करके उसे भावी जीवनमें अपने कार्यक्षेत्र का चुनाव करने में सहायक सिद्ध हो सकता है।
 +
 +
होराशास्त्र कर्मप्रधान शास्त्र है, जो पूर्वजन्मार्जित कर्मों के फल को क्रियमाण कर्म के द्वारा न्यूनाधिक करने में विश्वास रखता है। जहाँ पर जन्मपत्रिकादि से दशाफलकालक्रम द्वारा रोगसम्भावना या अरिष्ट की सम्भावना है अथवा जब सन्तान, विद्या, धनादि का अभाव होने का कारण प्रकट होता है वहाँ ग्रहशान्ति, मणिधारण, मन्त्रजप, दान, औषधिधारण आदि उपचारों से प्रतिबन्धक योगों को शिथिल करने का प्रयास किया जाता है।
    
== उद्धरण ==
 
== उद्धरण ==
928

edits

Navigation menu