Difference between revisions of "Eras (संवत्)"

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काल गणनामें कल्प, मन्वन्तर, युगादि के पश्चात् संवत्सरका नाम आता है। गणना पद्धति के अन्तर्गत समय मापने की छोटी-बडी इकाइयों का निर्धारण व इन इकाइयों के लिये ग्रहों,नक्षत्रों, चन्द्र, सूर्य की चालों का अध्ययन आवश्यक है। इस कार्य को खगोलशास्त्रियों व पंचांग निर्माताओं द्वारा किया जाता है। इस प्रकार निर्धारित की गई गणना पद्धति को आधार मानते हुये, किसी भी स्मरणीय घटना से वर्षों की गिनती आरम्भ कर देना तथा इस गणना को एक नाम दे देना संवत् कहलाता है।

परिचय

परिभाषा

संवसन्ति ऋतवोऽत्र संवस्-सरन् इति सः संवत्सरः।(आप्टे)[1]

भारतीय एवं विदेशी संवत्

काल गणनामें युगादि के भेदसे सत्ययुग में ब्रह्म-संवत् , त्रेतामें वामन-संवत् ,परशुराम-संवत् (सहस्रार्जुन वधसे) तथा श्रीराम-संवत् (रावण-विजयसे), द्वापरमें युधिष्ठिर-संवत् और कलिमें विक्रम-संवत्, शक संवत् आदि इन संवतों के अतिरिक्त अनेक राजाओं तथा सम्प्रदायाचार्योंके नामपर संवत् चलाये गये हैं। भारतीय संवतोंके अतिरिक्त विश्वमें और भी धर्मोंके संवत् हैं। तुलना के लिये उनमेंसे प्रधान-प्रधानकी तालिका दी जा रही है-

(संवत् सारिणी)[2]
भारतीय विदेशीय
क्रम संवत् नाम वर्तमान वर्ष क्रम संवत् नाम वर्तमान वर्ष
1 कल्पाब्द 1,97,29,49,050 1 चीनी संवत् 1,60,02,247
2 सृष्टि-संवत् 1,15,58,85,050 2 खताई 8,88,38,320
3 वामन-संवत् 1,96,08,89,050 3 पारसी 1,89,917
4 श्रीराम-संवत् 1,25,69,050 4 मिस्री 27,603
5 श्रीकृष्ण-संवत् 5,175 5 तुर्की 7,556
6 युधिष्ठिर-संवत् 5,050 6 आदम 7,301
7 बौद्ध-संवत् 2,524 7 ईरानी 5,954
8 महावीर(जैन)-संवत् 2,476 8 यहूदी 5,710
9 श्रीशंकराचार्य-संवत् 2,229 9 इब्राहीम 4,389
10 विक्रम-संवत् 2,006 10 मूसा 3,653
11 शालिवाहन-संवत् 1,871 11 यूनानी 3,522
12 कलचुरी संवत् 1,701 12 रोमन 2,700
13 वलभी संवत् 1,629 13 ब्रह्मा 2,490
14 फसली संवत् 1,360 14 मलयकेतु 2,261
15 बँगला संवत् 1,356 15 पार्थियन 2,196
16 हर्षाब्द संवत् 1,342 16 ईस्वी 1,949
17 जावा 1,875
18 हिजरी 1,319

यह तुलना इस बातको तो स्पष्ट ही कर देती है कि भारतीय संवत् अत्यन्त प्राचीन हैं। साथ ही ये गणितकी दृष्टिसे अत्यन्त सुगम और सर्वथा ठीक हिसाब रखकर निश्चित किये गये हैं।

राष्ट्रीय सम्वत्

भारतमें केन्द्र सरकारके निर्णयके अनुसार २२ मार्च १९५७ से शक सम्वत् को राष्ट्रीय सम्वत् घोषित कर दिया गया है। यह प्रतिवर्ष २२ मार्चसे प्रारम्भ होता है।

विक्रम सम्वत्

यह सम्वत् उज्जयिनीके सम्राट् विक्रमादित्यने चलाया था। यह प्रतिवर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदासे प्रारंभ होता है। इसमें दिन, वार और तिथिका प्रारम्भ सूर्योदयसे माना जाता है।

शक सम्वत्

यह सम्वत् शालिवाहन नामक नृपतिने चलाया था। इसे अब राष्ट्रीय सम्वत् की मान्यता है। एक अन्य मान्यता के अनुसार कनिष्क प्रथमको इस संवत् का प्रवर्तक माना जाता है।

बँगला संवत्

बँगला सम्वत् मेषकी संक्रान्तिसे प्रारम्भ होता है। मीनकी संक्रान्तिसे बंगाली चैत्रमास तथा मेषकी संक्रान्तिसे वैशाख मास प्रारम्भ होता है। वर्षारम्भ संक्रान्तिके दूसरे दिनसे पहली तारीख गिनते हैं। बंगला सम्वत् में कभी २९, ३०, ३१ या ३२ दिन भी एक महीनेमें पड सकते हैं। बंगाली सन् में ५१५ जोडनेसे शक सम्वत् और ५९३-९४ जोडनेसे ईसवी सन् आता है।

ईसवी सन्

ईसवी सन् का प्रारंभ ईसामसीहके जन्मदिनसे माना जाता है। जनवरी माहसे प्रारम्भ होकर दिसम्बर माहतक १२ माह सम्मिलित होते हैं।

इस्लामी हिजरी सन्

इसकी उत्पत्ति अरब देश में हुई थी। भारतमें इसका प्रचार मुसलमानी राज्यकालसे हुआ है। हिजरत का अर्थ है संकट में देशत्याग। पैगम्बर मुहम्मद साहब १५ जुलाई सन् ६२२ ई०तदनुसार शाके ५४४ श्रावण शुक्ल, गुरुवारकी रात्रि (मुसलमानोंकी शुक्रवारकी रात)- को अपने वतन मक्काको छोडकर मदीना चले गये थे। पैगम्बर साहबके हिजरतकी यह घटना ही इस सन् का आरम्भ काल है। इसीलिये इसे हिजरी सन् कहते हैं। इसमें चान्द्रवर्ष ३५४ या ३५५ दिन का होता है। इसमें अधिकमास नहीं होता। महीनेका आरम्भ शुक्लपक्षकी प्रतिपदा या द्वितीयाके चन्द्रदर्शनके बाद होता है। महीने के दिनों को पहला चाँद, दूसरा चाँद आदि कहते हैं। एक मास में २९या ३० चाँद दिन होते हैं। इसमें वार और तारीखका प्रारम्भ सूर्यास्तसे होता है। मुहर्रम महीनेसे जिलहिजतक १२ महीने होते हैं।

शक एवं संवत्

भारत में विक्रम संवत् तथा शालीवाहन शक का विशेष प्रचार है। विक्रमादित्य राजा ने विक्रम संवत् का प्रारम्भ किया और शालीवाहन ने शक का प्रारंभ किया। इस समय विक्रम संवत् २०७९ तथा शक संवत् १९४४ है। शक से संवत् १३५ वर्ष पुराना है। व्यापारियों का विक्रम संवत् दीपावली से प्रारंभ होता है एवं दक्षिण भारत में भी प्रायः विक्रम संवत् कार्तिक से प्रारंभ होता है और शेष भारत में प्रायः चैत्र से विक्रम संवत् का प्रारंभ होता है।शक का प्रारंभ सभी जगह चैत्र से ही होता है।

विक्रमसंवत् से संवत्सर का ज्ञान

एक संवत्सर एक वर्ष का माना जाता है। वर्ष गणना हेतु संवत्सर का उपयोग होता है। संहिता स्कन्ध के विद्वान् बृहस्पति की मध्यम राशि के भोगकाल को संवत्सर कहते हैं। यह काल भी एक वर्ष का माना जाता है।संवत्सर ६० होते है। जिनका नाम इस प्रकार है-

संवत्कालस्त्वंकयुतः कृत्वा शून्यरसैर्हृतः। शेषः संवत्सरो ज्ञेयः प्रभवादिर्बुधैः क्रमात् ॥

विक्रम संवत् में ९ जोडकर ६० से भाग दें। शेष में एक जोडने पर प्रभवादि संवत्सर होगा। जैसे-

वर्तमान संवत् २०७९ में ९ जोडकर योग=२०८८ में ६० का भाग देने से शेष ३४,८ रहे। इनमें १ जोडने से प्रभवादि ३५,८ अर्थात् ३६ वाँ संवत्सर शुभकृत् वर्तमान संवत्सर ज्ञात हुआ।[3]

उद्धरण

  1. आप्टे शब्दकोष १।२।४
  2. राधेश्याम खेमका, हिन्दू-संस्कृति-अंक, हिन्दू संवत् वर्ष मास और वार, श्रीदेवकी नंदनजी खेडवाल, सन् २०१९, (पृ०८६२)।
  3. मीठालाल हिंमतराम ओझा, भारतीय कुण्डली विज्ञान, सन् २००४, वाराणसीः देवर्षि प्रकाशन पृ०८।