Difference between revisions of "Yoga in Panchanga (पंचांग में योग)"

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ज्योतिषशास्त्र में पञ्चांग के अन्तर्गत चतुर्थ योग एवं पञ्चम करण का समावेश हुआ है। सूर्य से चन्द्रमा का अन्तर १२॰ होने पर एक तिथि होती है। सूर्य चन्द्रमा के योग से दोनों के दैनिक भोग का योग ८०० कला होने पर एक योग होता है। वे योग विष्कम्भ आदि वैधृति अन्त २७ होते हैं।जिस प्रकार चन्द्र एवं सूर्य का वियोगात्मक मान तिथि महत्वपूर्ण तत्व को उत्पन्न कर सकता है तो उन दोनों का संयोगात्मक मान भी अवश्य ही शुभ सूचक होगा। अतः इन्हैं योग नाम से अभिहित किया गया।

परिचय

योग पंचांग का एक प्रमुख अंग है। सैद्धान्तिक दृष्टि से सूर्य एवं चन्द्रमा के गति योग को योग कहलाते हैं। योग दो प्रकार के होते हैं- एक स्थिरात्मक और दूसरा चलायमान। विष्कुम्भादि योग चलायमान हैं और आनन्दादि योग स्थिर।

पंचांग में दो प्रकार के योग दिये जाते हैं- प्रथम विष्कम्भादि योग और दूसरा आनन्दादि योग। विष्कम्भ आदि योगों की परिकल्पना गणितीय है। यह सूर्य चन्द्र के स्पष्ट योग पर आश्रित हैं। ज्योतिषशास्त्र के विकासक्रम में तिथि और नक्षत्र का गणित सर्वप्रथम आया। योग का गणित बाद में आया है। अतः विष्कम्भादि योगों की परिकल्पना गणितीय है। यह सूर्य चन्द्र के स्पष्ट योग पर आश्रित है। ज्योतिषशास्त्र के विकासक्रम में तिथि और नक्षत्र का गणित सबसे पहले आया। योग का गणित बाद में आया है। अतः विष्कम्भादि योग मौलिक योग कहे जायेंगे, जबकि आनन्दादि योग वार और नक्षत्र के संयोग से कल्पित हैं।

योगों का महत्व

विष्कम्भादि योग

(योग सारिणी, देवता एवं फल)
क्र०सं० योग नाम देवता फल
1 विष्कम्भ यम अशुभ
2 प्रीति विष्णु शुभ
3 आयुष्मान् चन्द्र शुभ
4 सौभाग्य ब्रह्मा शुभ
5 शोभन बृहस्पति शुभ
6 अतिगण्ड चन्द्र अशुभ
7 सुकर्मा इन्द्र शुभ
8 धृति जल शुभ
9 शूल सर्प अशुभ
10 गण्ड अग्नि अशुभ
11 वृद्धि सूर्य शुभ
12 ध्रुव भूमि शुभ
13 व्याघात वायु अशुभ
14 हर्षण भग शुभ
15 वज्र वरुण अशुभ
16 सिद्धि गणेश शुभ
17 व्यतीपात रुद्र अशुभ
18 वरीयान् कुबेर शुभ
19 परिघ विश्वकर्मा अशुभ
20 शिव मित्र शुभ
21 सिद्धि कार्तिकेय शुभ
22 साध्य सावित्री शुभ
23 शुभ लक्ष्मी शुभ
24 शुक्ल पार्वती शुभ
25 ब्रह्मा अश्विनी शुभ
26 ऐन्द्र पितर शुभ
27 वैधृति दिति अशुभ

आनन्दादि योग

आनन्दादि योग सारिणी
क्रम सं० योग फल रवि सोम मंगल बुध गुरु शुक्र शनि
1 आनन्द शुभ अश्विनी
2 कालदण्ड अशुभ भरणी
3 धूम्र अशुभ कृत्तिका
4 धाता शुभ रोहिणी
5 सौम्य शुभ मृगशिरा
6 ध्वांक्ष अशुभ आर्द्रा
7 केतु शुभ पुनर्वसु
8 श्रीवत्स शुभ पुष्य
9 वज्र अशुभ आश्लेषा
10 मुद्गर अशुभ मघा
11 छत्र शुभ पूर्वाफाल्गुनी
12 मित्र शुभ उत्तराफाल्गुनी
13 मानस शुभ हस्त
14 पद्म अशुभ चित्रा
15 लुम्ब अशुभ स्वाती
16 उत्पात अशुभ विशाखा
17 मृत्यु अशुभ अनुराधा
18 काण अशुभ ज्येष्ठा अभिजित्
19 सिद्धि शुभ मूल श्रवण
20 शुभ शुभ पूर्वाषाढा धनिष्ठा
21 अमृत शुभ उत्तराषाढा शतभिषा
22 मुशल अशुभ अभिजित् पूर्वाभाद्रपदा
23 गद अशुभ श्रवण उत्तराभाद्रपदा
24 मातंग शुभ धनिष्ठा रेवती
25 रक्ष अशुभ शतभिषा
26 चर शुभ पूर्वाभाद्रपदा
27 सुस्थिर शुभ उत्तराभाद्रपदा
28 प्रवर्धमान शुभ रेवती

योग फल

विष्कम्भे जितशत्रुरर्थपशुमान् प्रीतौ परस्त्रीवश श्चायुष्मत्प्रभवश्चिरायुरगदः सौभाग्यजातः सुखी।

भोगी शोभनश्योगजो वधरूचिर्जातोऽतिगण्डे धनी धर्माचाररतः सुकर्मजनितो धृत्यां परस्त्रीधनः॥

शूले कोपवशानुगः कलहकृद्गण्डे दुराचारवान् , वृद्धौ पण्डितवाग् ध्रुवेऽतिधनवान् व्याघातजो घातकः।

ज्ञानी हर्षणयोगजः पृथुयशा वज्रे धनी कामुकः, सिद्धौ सर्वजनाश्रितः प्रभुसमो मायी व्यतीपातजः॥

दुष्कामी च वरीयजस्तु परिघे विद्वेषको वित्तवान् , शास्त्रज्ञः शिवयोगजनश्च धनवान् शान्तोऽवनीशप्रियः।

सिद्धे धर्मपरायणः क्रतुपरः साध्ये शुभाचारवान् , चार्वंगः शुभयोगजश्च धनवान् कामातुरः श्लेष्मकः॥

शुक्ले धर्मरतः पटुत्ववचनः कोपी चलः पण्डितो, मानी ब्रह्मभवोऽतिगुप्तधनिकस्त्यागी विवेकप्रभुः।

ऐन्द्रे सर्वजनोपकारचरितः सर्वज्ञधीतिर्वत्तवान् , मायावी परदूषकश्च बलवान् त्यागी धनी वैधृतौ॥

विचार-विमर्श

सन्दर्भ