Difference between revisions of "Day of the Week-Vara (वार)"

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Revision as of 21:21, 14 November 2022

वार शब्द का अर्थ अवसर अर्थात् नियमानुसार प्राप्त समय होता है। वार शब्द का प्रकृत अर्थ यह होता है कि जो अहोरात्र(सूर्योदय से आरम्भ कर २४ घण्टे अथवा ६० घटी अर्थात् पुनः सूर्योदय होने तक) जिस ग्रह के लिये नियम अनुसार प्राप्त होता है। जो ग्रह जिस अहोरात्र का स्वामी है उसी ग्रह के नाम से वह अहोरात्र अभिहित है। उदाहरणार्थ जिस अहोरात्र का स्वामी सोम है वह सोमवार इत्यादि होगा। यह प्रक्रिया खगोल में ग्रहों की स्थिति के अनुसार नहीं है।

परिचय

आदित्यश्चन्द्रमा भौमो बुधश्चाथ बृहस्पतिः। शुक्रः शनैश्चरश्चैव वासराः परिकीर्तिताः॥(मूहूर्त गणपति)

वार शब्द के शास्त्रों में अनेक समानार्थक शब्द प्राप्त होते हैं जो कि इस प्रकार हैं-

अहन् , घस्र, दिन, दिवस, वासर और दिवा आदि।

वारप्रवृत्ति

जिस समयमें लंकामें (भूमध्य रेखा के ऊपर) सूर्योदय होता है। उस समय से लेकर के सभी जगह रवि आदि वारों का आरम्भ काल जानना चाहिये।

परिभाषा

सुखं वासयति जनान् इति वासरः।(आप्टे)

वारों के भेद

वारों के नाम, पर्यायवाची, वर्ण और वारप्रकृति तालिका
क्र०सं० वार नाम वारों के पर्यायवाची वारवर्ण वारप्रकृति
1 रविवार भानु, सूर्य, बुध्न, भास्कर, दिवाकर, सविता, प्रभाकर, तपन, दिवेश, दिनेश, अर्क, दिवामणि, चण्डांशु, द्युमणि आदि। रक्तवर्ण स्थिर
2 सोमवार चन्द्र, विधु, इन्दु, निशाकर, शीतांशु, हिमरश्मि, जडांशु, मृगांक, शशांक, हरिपाल आदि। गौरवर्ण चर
3 मंगलवार कुज, भूमितनय, आर, भीमवक्त्र, अंगारक आदि। बहुरक्तवर्ण क्रूर
4 बुधवार सौम्य, वित् , ज्ञ, मृगांकजन्मा, कुमारबोधन, तारापुत्र आदि। दूर्वादल की तरह, हरित। शुभाशुभ(सभी कर्म)
5 गुरुवार बृहस्पति, ईज्य, जीव, सुरेन्द्र, सुरपूज्य, चित्रशिखण्डितनय, वाक्पति आदि। सुवर्ण की तरह, पीत। लघु
6 शुक्रवार उशना, आस्फुजित् , कवि, भृगु, भार्गव, दैत्यगुरु आदि। श्वेत वर्ण मृदु
7 शनिवार मन्द, शनैश्चर, रवितनय, रौद्र, आर्कि, सौरि, पंगु, शनि आदि। कृष्णवर्ण तीक्ष्ण

वारों के फल

वारों में रवि स्थिर, सोम चर, भौम क्रूर, बुध शुभाशुभ, गुरु लघु, शुक्र मृदु, शनि चर और तीक्ष्ण धर्मवान् हैं। ये वारधर्म शुभाशुभ कर्मों में जानना चाहिये। जैसे- रविवार में स्थिर और शुभकर्म , सोमवार में चर और शुभ, मंगलवार और शनिवार में क्रूर और तीक्ष्ण कर्म, बुधवार में शुभाशुभ मिश्रित सभी कर्म, गुरुवार और शुक्रवार में मृदु कर्मों को करना चाहिये।

जो ग्रह बलवान् हो उसवार में जो कर्म करेंगे वह सफल होता है। किन्तु जो ग्रह षड्बल हीन है उस वार में बहुत प्रयत्न करने पर भी सफलता नहीं प्राप्त होती है। सोम, बुध, गुरु और शुक्र सभी शुभ कार्यों में शुभ होते हैं। रवि, भौम और शनि क्रूरकर्मों में इष्टसिद्धि देते हैं।

वारों में तैललेपन

रविवार में तैललेपन करने से रोग, सोमवार में कान्तिकी वृद्धि, भौमवारमें व्याधि, बुधवारमें सौभाग्यवृद्धि, गुरुवार और शुक्रवारमें सौभाग्यहानि, शनिवार में धनसम्पत्ति की वृद्धि होती है।

अभ्यक्तो भानुवारे यः स नरः क्लेशवान्भवेत् । ऋक्षेशे कान्तिभाग्भौमे व्याधिः सौभाग्यमिन्दुजे॥जीवे नैःस्वं सिते हानिर्मन्दे सर्वसमृद्धयः॥(ना०सं० श्लो०१५७/१५७)

तैललेपन में दोष परिहार

वारविज्ञान

वारदोष

कालहोरा