Difference between revisions of "64 Kalas of ancient India (प्राचीन भारत में चौंसठ कलाऍं)"

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(सुधार जारि)
(सुधार जारि)
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|गीतम् ॥ गानविद्या
 
|गीतम् ॥ गानविद्या
|नर्तनम् ॥ Nartana (Dancing)
+
|हावभावादिसंयुक्तं नर्त्तनम् - हावभाव के साथ नाचना
 
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|वाद्यम् ॥ भिन्न-भिन्न प्रकार के बाजे बजाना
 
|वाद्यम् ॥ भिन्न-भिन्न प्रकार के बाजे बजाना
|<nowiki>वादनम् || Vadana (Playing musical instruments)</nowiki>
+
|अनेकवाद्यविकृतौ तद्वादने ज्ञानम्-आरकेस्ट्रा में अनेक प्रकार के बाजे बजा लेना
 
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|नृत्यम् ॥ नाचना
 
|नृत्यम् ॥ नाचना
|<nowiki>वस्त्रालङ्कारसन्धानम् || Vastralankara sandhana (Decoration by dress and ornaments)</nowiki>
+
|स्त्रीपुंसोः वस्त्रालंकारसन्धानम्-स्त्री और पुरुषों को वस्त्र - अलंकार पहनाने की कला
 
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|नाट्यम् अभिनय करना
+
|आलेख्यम् चित्रकारी
|<nowiki>अनेकरूपाविर्भावकृतिज्ञानम् || Anekaroopavirbhavakrti jnana (Knowledge of sundry mimicry and antics)</nowiki>
+
|अनेकरूपाविर्भावकृतिज्ञानम्-पत्थर, काठ आदि पर भिन्न-भिन्न आकृतियों का निर्माण ।
 
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|5
|आलेख्यम् चित्रकारी
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|विशेषकच्छेद्यम् तिलकरचना, पत्रावलीरचना के साँचे बनाना
|<nowiki>शय्यस्तरणसंयोगपुष्पादिग्रथनम् || shayyastaranasamyoga pushpadi grathana (Laying out of beds and furniture and weaving of garland)</nowiki>
+
|शय्यास्तरणसंयोगपुष्पादिग्रथनम् - फूल का हार गूंथना और शय्या सजाना।
 
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|6
|विशेषकच्छेद्यम् तिलकरचना, पत्रावलीरचना के साँचे बनाना
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|तण्डुलकुसुमयलिविकाराः पूजा के लिये अक्षत एवं पुष्पों को सजाना
|<nowiki>द्युताद्यनेकक्रीडा || Dyutadyanekakreeda (Entertaining people with gambling and various tricks of magic)</nowiki>
+
|द्यूताद्यनेकक्रीडाभी रञ्जनम् - जुआ इत्यादि से मनोरंजन करना
 
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|तण्डुलकुसुमयलिविकाराः पूजा के लिये अक्षत एवं पुष्पों को सजाना
+
|पुष्पास्तरणम् पुष्पसज्जा
|<nowiki>अनेकासनसन्धानैः रतेः ज्ञानम् || Anekasanasandhanaih rateh jnaana (Knowledge of different aspects of giving pleasure)</nowiki>
+
|अनेकासनसन्धानै रमतेर्ज्ञानम्-कामशास्त्रीय आसनों आदि का ज्ञान
 
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|पुष्पास्तरणम् पुष्पसज्जा
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|दशनवसनाङ्गरागाः दाँत-वस्त्र एवं शरीर के अंगों को रंगना
|<nowiki>मकरन्दादीनां मद्यादीनां कृतिः || Makarandadinam madyadinam krti (Distillation of wines and spirituous liquors from flowers)</nowiki>
+
|मकरन्दासवादीनां मद्यादीनां कृतिः - भिन्न-भिन्न भाँति के शराब बनाना
 
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|दशनवसनाङ्गरागाः दाँत-वस्त्र एवं शरीर के अंगों को रंगना
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|मणिभूमिकाकर्म भूमि को मणियों से सजाना
|<nowiki>शिराव्रणव्याधे शूल्यगूढाहृतौ ज्ञानम् || Shiravranavyadhe shulyagudhahrtau jnana (Extrication of thorns and relieving pain by operating on the wounds of a vein)</nowiki>
+
|शल्यगूढाहृतौ सिराघ्रणव्यधे ज्ञानम्-शरीर में घुसे हुए शल्य को शस्त्रों की सहायता से निकालना, जर्राही
 
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|मणिभूमिकाकर्म भूमि को मणियों से सजाना
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|शयनरचनम् शय्या की रचना
|<nowiki>हिङ्ग्वादिरससंयोगाद् अन्नादिपचनम् || Hingvadi rasasamyogad annadi pachana (Cooking of food by intermixtures of various tastes)</nowiki>
+
|हीनाद्रिरससंयोगान्नादिसम्पाचनम्-नाना रसों का भोजन बनाना ।
 
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|शयनरचनम् शय्या की रचना
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|उदकवाद्यम् जल पर हाथ से इस प्रकार आघात करना कि मृदङ्ग आदि वाद्यों के समान ध्वनि उत्पन्न हो
|<nowiki>वृक्षादिप्रसवारोपपालनादिकृतिः || Vrkshadiprasavaropapalanadi krti Udakaghat (Planting, grafting and preservation of plants)</nowiki>
+
|वृक्षादिप्रसवारोपपालनादिकृतिः- पेड़-पौधों की देखभाल, रोपाई, सिंचाई का ज्ञान ।
 
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|उदकवाद्यम् ॥ जल पर हाथ से इस प्रकार आघात करना कि मृदङ्ग आदि वाद्यों के समान ध्वनि उत्पन्न हो
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|उदकाघातः जलक्रीड़ा के समय कलात्मक ढंग से छींटे मारना या जल को उछालना
|<nowiki>पाषाणधात्वादिहतिस्तद्भस्मोकरणम् || Pashanadhatvadi hatistadbhasmokarana (Melting and powdering of stones and metals)</nowiki>
+
|पाषाणधात्वादिदृतिभस्मकरणम्-पत्थर और धातुओं को गलाना तथा भस्म बनाना ।
 
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|13
|उदकघातः जलक्रीड़ा के समय कलात्मक ढंग से छींटे मारना या जल को उछालना
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|चित्रायोगाः औषधि, मणि, मंत्र आदि के रहस्यमय प्रयोग
|<nowiki>इक्षुविकाराणां कृतिज्ञानम् || Ikshuvikaranam Krtijnana (Using preparations from sugarcanes)</nowiki>
+
|यावदिक्षुविकाराणां कृतिज्ञानम्-फल के रस से मिश्री, चीनी आदि भिन्न-भिन्न चीजें बनाना।
 
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|चित्रायोगाः ॥ औषधि, मणि, मंत्र आदि के रहस्यमय प्रयोग
+
|माल्यग्रथनविकल्पाः ॥ औषधि, मणि, मंत्र आदि के रहस्यमय प्रयोग
|<nowiki>धात्वौषधीनां संयोगक्रियाज्ञानम् || Dhatu Aushadhinam samyoga Kriya jnana (Knowledge of mixtures of metals and medicinal plants)</nowiki>
+
|धात्वोषधीनां संयोगक्रियाज्ञानम्-धातु और औषधों के संयोग से रसायनों का बनाना।
 
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|15
 
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|माल्यग्रथनविकल्पाः ॥ औषधि, मणि, मंत्र आदि के रहस्यमय प्रयोग
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|शेखरकापीडयोजनम् ॥ शेखरक और आपीड (शिर पर धारण किये जाने वाले पुष्पाभरण) की योजना
|<nowiki>धातुसाङ्कर्य्यपार्थक्यकरणम् || Dhatu sankaryaparthakya karana (Analysis and synthesis of metals)</nowiki>
+
|धातुसाङ्कर्यपार्थक्यकरणम्-धातुओं के मिलाने और अलग करने की विद्या । के नये संयोग बनाना ।
 
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|शेखरकापीडयोजनम् ॥ शेखरक और आपीड (शिर पर धारण किये जाने वाले पुष्पाभरण) की योजना
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|नेपथ्ययोगाः ॥ वेश-भूषा धारण की कला
|<nowiki>धात्वादीनां संयोगापूर्वज्ञानम् || Dhatu adinam samyogapoorva jnana (Preparation of alloys)</nowiki>
+
|धात्वादीनां संयोगापूर्वविज्ञानम्-धातुओं के नये संयोग बनाना ।
 
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|नेपथ्ययोगाः वेश-भूषा धारण की कला
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|कर्णपत्रभङ्गाः हाथीदाँत के पत्तरों आदि से कर्णाभूषण की रचना
|<nowiki>क्षारनिष्कासनज्ञानम् || ksharanishkasana jnana (Preparation of salts)</nowiki>
+
|क्षारनिष्कासनज्ञानम्-खार बनाना ।
 
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|कर्णपत्रभङ्गाः हाथीदाँत के पत्तरों आदि से कर्णाभूषण की रचना
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|गन्धयुक्तिः सुगंध की योजना
|<nowiki>पदादिन्यासतः शस्त्रसन्धानविक्षेपः || Padadinyasata shastrasandhana vikshepa (Use and arrangement of arms by proper arrangement of legs). </nowiki>
+
|पदादिन्यासतः शस्त्रसन्धाननिक्षेपः-पैर ठीक करके धनुष चढ़ाना और बाण फेंकना।
 
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|19
|गन्धयुक्तिः सुगंध की योजना
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|भूषणयोजनम् आभूषण निर्माण की कला
|<nowiki>सन्ध्याघाताकृष्टिभेदैः मल्लयुद्धम् || Sandhyaghatakrshribhedaih Mallayuddha (Duelling with various artifices)</nowiki>
+
|सन्ध्याघाताकृष्टिभेदैः मल्लयुद्धम्-तरह-तरह के दाँव-पेंच के साथ कुश्ती लड़ना ।
 
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|20
|भूषणयोजनम् ॥ आभूषण निर्माण की कला
+
|ऐन्द्रजालम् ॥ इन्द्रजाल या जादू का खेल
|<nowiki>मल्लानामशस्त्रं मुष्टिभिः बाहुयुद्धम् || Mallanamashastram mushtibhih bahuyuddha (Hand to hand fight)</nowiki>
+
|अभिलक्षिते देशे यन्त्राद्यस्त्रनिपातनम्-शस्त्रों को निशाने पर फेंकना ।
 
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|21
|इन्द्रजालम् ॥ इन्द्रजाल या जादू का खेल
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|कौचुमारयोगाः ॥ कुचुमारतंत्र में बताये गये वाजीकरण आदि प्रयोग
|<nowiki>बलदर्पविनाशान्तं नियुद्धम् || Baladarpavinashantam Niyuddha (Niyuddha for destruction of enemy's power and vanity)</nowiki>
+
|वाद्यसंकेततो व्यूहरचनादि-बाजे के संकेत से सेना की व्यूह रचना।
 
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|22
|कौचुमारयोगाः कुचुमारतंत्र में बताये गये वाजीकरण आदि प्रयोग
+
|हस्तलाघवम् हाथ की सफाई
|<nowiki>सन्निपातावघातैश्च कृतं निपीडनम् तन्मुक्तिः || Sannipatavaghataishcha Krtam nipeedanam tanmukti (Attack by duellers and method of extricating oneself from these)</nowiki>
+
|गजाश्वरथगत्या तु युद्धसंयोजनम्-हाथी, घोड़े या रथ से युद्ध करना ।
 
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|23
 
|23
|हस्तलाघवम् ॥ हाथ की सफाई
+
|विचित्रशाकयूषभक्ष्यविकारक्रिया ॥ नाना प्रकार के व्यंजन, यूष-सूप आदि बनाने की कला ।
|<nowiki>अभिलक्षिते देशे यन्त्राद्यस्वनिपातनम् || Abhilakshite deshe yantradyasvanipatana (Throwing of arms and implements towards some fixed point)</nowiki>
+
|विविधासनमुद्राभिः देवतातोषणम्-विभिन्न आसनों तथा मुद्राओं के द्वारा देवता को प्रसन्न करना।
 
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|24
 
|24
|विचित्रशाकापूपभक्ष्यविकारक्रिया ॥ नाना प्रकार के व्यंजन, यूष-सूप आदि बनाने की कला
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|पानकरसरागासवयोजनम् ॥ प्रपाणक, आराव आदि पेय बनाने की कला
|<nowiki>वाद्यसङ्केततो व्यूहरचना || Vadyasanketato Vyuharachana (Formation of battle arrays according to signals given by musical instruments)</nowiki>
+
|सारथ्यम् रथ हाँकना, वाहन चलाना।
 +
 
 
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|25
 
|25
|पानकरसरागासवयोजनम् ॥ प्रपाणक, आराव आदि पेय बनाने की कला
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|[[Textile Technology (तन्तुकार्यम्)|सूचीवापकर्म]] ॥  वस्त्ररचना एवं कढ़ाई का शिल्प
|<nowiki>गजाश्वरथगत्या युद्धसंयोजनम् || Gajashvarathagatya Yuddhasamyojana (Arrangement of horses, elephants and chariots in war)</nowiki>
+
|गजाश्वादे: गतिशिक्षा- हाथी-घोड़ों आदि की चाल सिखाना।
 
 
 
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|26
 
|26
|[[Textile Technology (तन्तुकार्यम्)|सूचीवापकर्म]] ॥  वस्त्ररचना एवं कढ़ाई का शिल्प
+
|सूत्रक्रीडा ॥ हाथ के सूत्र (धागा आदि) से नानाप्रकार की आकृतियॉं बुनना
|<nowiki>विविधासनमुद्राभिः देवतातोषणम् || Vividhasanamudrabhih devatatoshana (Propitiation of Gods by various seats and postures)</nowiki>
+
|मृत्तिकाकाष्ठपाषाणधातुभाण्डादिसत्क्रिया-मिट्टी, लकड़ी पत्थर और धातु के बर्तन बनाना ।
 
|-
 
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|27
 
|27
|वीणाडमरुकसूत्रक्रीडा ॥ वीणा, डमरु आदि बजाना
+
|वीणाडमरुकवाद्यानि ॥ वीणा, डमरु आदि बजाना
|<nowiki>सारथ्यं च गजाश्वादेर्गतिशिक्षा || Sarathyam cha Gajashvadergatishiksha (Driving horses and elephants)</nowiki>
+
|चित्राद्यालेखनम् - चित्र बनाना।
  
 
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|प्रहेलिका ॥ पहेलियाँ बुझाना
 
|प्रहेलिका ॥ पहेलियाँ बुझाना
|<nowiki>मृत्तिकाभाण्डादिसत्क्रिया || Mrttika bhandadi satkrya (Cleansing, etc of earthen vessels)</nowiki>
+
|तटाकवापीप्रसादसमभूमिक्रिया-कुँआ, पोखरे खोदना तथा जमीन बराबर करना
 
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|29
 
|प्रतिमा* ॥ अंत्याक्षरी
 
|प्रतिमा* ॥ अंत्याक्षरी
|<nowiki>काष्ठभाण्डादिसत्क्रिया || Kashtha bhandadi satkrya (Cleansing, etc of wooden vessels)</nowiki>
+
|घट्याद्यनेकयन्त्राणां वाद्यानां कृतिः - वाद्य - यन्त्र तथा पनचक्की जैसी मशीनों का बनाना ।
 
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|30
|दुर्वचकयोगाः ॥ कठिन उच्चारण और गूढ अर्थों वाले श्लोको
+
|दुर्वाचकयोगाः ॥ कठिन उच्चारण और गूढ अर्थों वाले श्लोकों की रचना
की रचना
+
|हीनमध्यादिसंयोगवर्णाद्यै रंजनम् - रंगों के भिन्न-भिन्न मिश्रणों से चित्र रँगना
|<nowiki>पाषाणभाण्डादिसत्क्रिया || Pashana bhandadi satkrya (Cleansing, etc of stone vessels)</nowiki>
 
 
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|पुस्तकवाचनम् ॥ पुस्तक बाँचने का शिल्प
 
|पुस्तकवाचनम् ॥ पुस्तक बाँचने का शिल्प
|<nowiki>धातुभाण्डादिसत्क्रिया || Dhatu bhandadi satkrya (Cleansing, etc of metal vessels)</nowiki>
+
|जलवाटवग्निसंयोगनिरोधैः क्रिया- जल, वायु, अग्नि को साथ मिलाकर और अलग-अलग रखकर कार्य करना, इन्हें बाँधना ।
 
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|नाटिकाख्यायिकादर्शनम्  ॥ नाट्य एवं कथा-काव्यों का रसास्वादन  
 
|नाटिकाख्यायिकादर्शनम्  ॥ नाट्य एवं कथा-काव्यों का रसास्वादन  
|<nowiki>चित्राद्यालिखनम् || Chitradyalikhana (Picture drawing)</nowiki>
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|नौकारथादियानानां कृतिज्ञानम् - नौका, रथ आदि सवारियों का बनाना।
 
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|काव्यसमस्यापूरणम् ॥ समस्यापूर्ति
 
|काव्यसमस्यापूरणम् ॥ समस्यापूर्ति
|<nowiki>तडागवापीप्रासादसमभूमिक्रिया || Tadagavapiprasada samabhumi krya (Construction of tanks, canals, palaces and squares)</nowiki>
+
|सूत्रादिरज्जुकरणविज्ञानम्- सूत और रस्सी बनाने का ज्ञान ।
 
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|पट्टिकावेत्रवाणविकल्पाः ॥ बेंत ओर बाँस का शिल्प
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|पट्टिकावानवेत्रविकल्पाः ॥ बेंत ओर बाँस का शिल्प
|<nowiki>घट्यादानेकयन्त्राणां वाद्यानां कृतिः || Ghatyadanekayantranam vadyanam krtih (Construction of clocks, watches and musical instruments)</nowiki>
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|अनेकतन्तुसंयोगैः पटबन्धः- सूत से कपड़ा बुनना ।
 
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|35
 
|तक्षकर्माणि ॥ नक्काशी का काम
 
|तक्षकर्माणि ॥ नक्काशी का काम
|<nowiki>हीनमध्यादिसंयोगवर्णाद्यै रञ्जनम् || Hinamadhyadisamyogavarnadyai ranjana (Dyeing by application of inferior, middling and other colours)</nowiki>
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|रत्नानां वेधादिसदसद्ज्ञानम् रत्नों की परीक्षा, उन्हें काटना- छेदना आदि।
 
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|36
 
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|तक्षणम् ॥ काष्ठकर्म  
 
|तक्षणम् ॥ काष्ठकर्म  
|<nowiki>जलवाय्वग्निसंयोगनिरोधैश्च क्रिया || Jalavayvanisamyoga nirodhaishcha krya (Putting down actions of water, air and fire)</nowiki>
+
|स्वर्णादीनान्तु याथार्थ्यविज्ञानम् - सोने आदि के जाँचने का ज्ञान।
 
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|वास्तुविद्या ॥ स्थापत्य शिल्प
 
|वास्तुविद्या ॥ स्थापत्य शिल्प
|<nowiki>नौकारथादियानानां कृतिज्ञानम् || naukarathadiyananam krti jnana (Preparation of boats, chariots and conveyances)</nowiki>
+
|कृत्रिमस्वर्णरत्नादिक्रियाज्ञानम् - बनावटी सोना, रत्न (इमिटेशन) आदि बनाना।
 
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|38
 
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|रूप्यरत्नपरीक्षा  ॥ चाँदी-सोना आदि धातुओं तथा रत्नों की परीक्षा
 
|रूप्यरत्नपरीक्षा  ॥ चाँदी-सोना आदि धातुओं तथा रत्नों की परीक्षा
|<nowiki>सूत्रादिरज्जुकरणविज्ञानम् || Sutradirajjukarana vijnana (Preparation of threads and ropes)</nowiki>
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|स्वर्णाद्यलंकारकृतिः - सोने आदि का गहना बनाना।
 
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|39
 
|धातुवादः  ॥  धातु-शोधन, मिश्रण आदि  
 
|धातुवादः  ॥  धातु-शोधन, मिश्रण आदि  
|<nowiki>अनेकतन्त्तुसंयोगैः पटबन्धः || Anekatantusamyogaih Patabandha (Weaving of fabrics)</nowiki>
+
|लेपादिसत्कृतिः- मुलम्मा देना, पानी चढ़ाना।
 
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|40
|मणिरागज्ञानम्  ॥ मणियों को रंगना एवं उनके आकर का ज्ञान
+
|मणिरागाकरज्ञानम् ॥ मणियों को रंगना एवं उनके आकर का ज्ञान
|<nowiki>रत्नानां वेधादिसदसज्ज्ञानम् || Ratnanam vedhadisadasad jnana (Testing of gems)</nowiki>
+
|चर्मणां मार्दवादिक्रियाज्ञानम् चमड़े को नर्म बनाना।
 
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|41
 
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|आकरज्ञानम् Akara jnana (Knowledge of latent minerals)
+
|वृक्षायुर्वेदयोगाः वृक्षों के दीर्घायुष्य का शिल्प एवं उपवन लगाने की कला
|<nowiki>स्वर्णादीनां याथात्म्यविज्ञानम् || Svarnadinam yathatmya vijnana (Testing of gold and other metals)</nowiki>
+
|पशुचर्माङ्गनिर्हारज्ञानम्-पशु के शरीर से चमड़ा, मांस आदि को अलग कर सकना।
 
|-
 
|-
 
|42
 
|42
|वृक्षायुर्वेदयोगाः ॥ मेष आदि पशु पक्षियों को लड़ाना
+
|मेषकुक्कुटलावकयुद्धविधिः ॥ मेष आदि पशु पक्षियों को लड़ाना
|<nowiki>कृत्रिमस्वर्णरत्नादिक्रियाज्ञानम् || Krtrimasvarnaratnadi krya jnana (Preparation of artificial gold and gems) and स्वर्णाद्यलङ्कारकृतिः लेपादिसत्कृतिः ॥ Svarnadi alankara krti lepadisatkrti (Making of ornaments with gold and other metals and enamelling)</nowiki>
+
|दुग्धदोहादिघृतान्तं विज्ञानम् - दूध दुहना और उससे घी आदि निकालना।
 
|-
 
|-
 
|43
 
|43
|मेषकुक्कुटलावकयुद्धविधिः मेष आदि पशु पक्षियों को लड़ाना
+
|शुकसारिकाप्रलापनम्  तोता-मैना आदि को बोलना सिखाना
|<nowiki>चर्मणां मार्दवादिक्रियाज्ञानम् || Charmanam mardavadi krya jnana (Softening of leathers)</nowiki>
+
|कञ्चुकादीनां सीवने विज्ञानम् - चोली आदि का सीना ।
 
|-
 
|-
 
|44
 
|44
|शुकसारिकाप्रलापनम्  ॥ तोता-मैना आदि को बोलना सिखाना
+
|उत्सादने संवाहने केशमर्दने च कौशलम् ॥ शरीर दबाने, सिर पर तेल लगाने आदि की
|<nowiki>पशुचर्माङ्गनिर्हारक्रियाज्ञानम् || Pashucharmanganirhara krya jnana (Flaying of skins from the bodies of the beasts)</nowiki>
+
|जले बाह्वादिभिस्तरणम् हाथ की सहायता से तैरना। ।
 
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|-
 
|45
 
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|उत्सादनम्  शरीर दबाने, सिर पर तेल लगाने आदि की
+
|अक्षरमुष्टिकाकथनम् संकेत भाषा का ज्ञान
|<nowiki>दुग्धदोहादिविज्ञानम् || Dugdhadohadi vijnana (Milking)</nowiki>
+
|गृहभाण्डादेर्मार्जने विज्ञानम् - घर तथा घर के बर्तनों को साफ करने में निपुणता।
 
 
 
|-
 
|-
 
|46
 
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|केशमार्जनकौशलम्  Keshamarjana kaushala (Cleaning and dressing the hair)
+
|म्लेच्छितकविकल्पाः गुप्तभाषा का ज्ञान
|<nowiki>घृतान्तम् || Grtanta (Churning)</nowiki>
+
|वस्त्रसंमार्जनम् - कपड़ा साफ करना
 
|-
 
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|47
 
|47
|अक्षरमुष्टिकाकथनम् Aksharamushtika kathana (Reading letters removed from one's sight and divining the nature of substances held within one's palm)
+
|देशभाषाज्ञानम्  लोकभाषाओं का ज्ञान
|<nowiki>सीवने कञ्चुकादीनां विज्ञानम् || Seevane Kanchukadinam Vijnana (Sewing of covers)</nowiki>
+
|क्षुरकर्म - हजामत बनाना ।
 
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|म्लेच्छितकविकल्पाः ॥ Mlecchitaka vikalpa (Knowledge of books written in the language of Barbarians)
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|पुष्पशकटिका॥ पुष्पों से गाड़ी आदि बनाना या सजाना
|<nowiki>बाह्वादिभिः जले तरणम् || Bahvadibhih jale tarana (Swimming)</nowiki>
+
|तिलमांसादिस्नेहानां निष्कासने कृतिः-तिल और मांस आदि से तेल निकालना।
 
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|49
 
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|देशभाषाज्ञानम्  Deshabhasha jnana (Fluently talking in the different Bharat's dialects)
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|निमित्तज्ञानम् शकुन ज्ञानम्
|<nowiki>मार्जने गृहभाण्डादेः विज्ञानम् || Marjane Grhabhandadeh Vijnana (Cleansing of domestic utensils)</nowiki>
+
|सीराद्याकर्षणे ज्ञानम्-खेत जोतना, निराना आदि।
 
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|50
 
|50
|पुष्पशकटिकानिमित्तज्ञानम् Pushpashakatika nimitta jnana (Decoration of vehicles with flowers and Reading good or bad omens)
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|यन्त्रमातृका यंत्ररचना का शिल्प
|<nowiki>वस्त्रसम्मार्जनम् || Vastrasammarjana (Cleaning of clothes)</nowiki>
+
|वृक्षाद्यारोहणे ज्ञानम् - वृक्ष आदि पर चढ़ना।
 
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|-
 
|51
 
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|यन्त्रमातृका Yantramatrka (Making diagrams by means of letters arranged in different orders as mystical formulae to be worshipped or worn as an amulet)
+
|धारणमातृका स्मरणशक्ति बढ़ाने की कला
|<nowiki>क्षुरकर्म || Kshurakarma (Shaving)</nowiki>
+
|मनोनुकूलसेवायाः कृतिज्ञानम् - अनुकूल सेवा द्वारा दूसरों को प्रसन्न करना ।
 
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|धारणमातृका Dharanamatrka (Remembering heard sentences)
+
|सम्पाठ्यम् काव्यपाठ की कला
|<nowiki>तिलमांसादिस्नेहानां निष्कासने कृतिः || Tilamamsadisnehanam nishkasane krti ((Extraction of oil from seeds and fats from flesh)</nowiki>
+
|वेणुतृणादिपात्राणां कृतिज्ञानम् -बाँस, नरकट आदि से बर्तन आदि बना लेना।
 
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|सम्पाट्यम् ॥ Sampatya (Splitting hard substances such as diamonds into two or more pieces of different shapes)
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|मानसीकाव्यक्रिया ॥ मौखिक काव्यरचना
|<nowiki>सीराद्याकर्षणे ज्ञानम् || Seeradyakarshane jnana (Drawing of ploughs)</nowiki>
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|काचपात्रादिकरणविज्ञानम् - शीशे का बर्तन आदि बनाना
 
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|मानसीकाव्यक्रिया ॥ Manasikavya kriya (Reading the thoughts of others and bringing them out in a verse)
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|अभिधानकोष ॥ शब्दकोष
|<nowiki>वृक्षाद्यारोहणे कला || Vrkshadyarohane kala (Climbing of trees)</nowiki>
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|लोहाभिसारशस्त्राकृतिज्ञानम्-धातुओं से हथियार बनाना।
 
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|क्रियाविकल्पाः ॥ Kriyavikalpa (Poetry forms)
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|छ्न्दोज्ञानम् ॥ छन्द का ज्ञान
|<nowiki>मनोऽनुकूलसेवायाः कृतिज्ञानम् || Manonukulasevayah krti jnana (Knowledge of pleasing in work)</nowiki>
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|गजाश्ववृषभोष्ट्राणां पल्याणादिक्रिया - हाथी, घोड़ा, बैल, ऊँट आदि का जीन, चारजामाओं का हौदा बनाना ।
 
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|छलितकयोगाः ॥ Chalitayoga (Conceal body or speech)
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|क्रियाकल्पः ॥ काव्यालंकार का ज्ञान
|<nowiki>वेणुतृणादिपात्राणां कृतिज्ञानम् || Venutrnadipatranam krti jnana (Making of vessels with bamboo straws)</nowiki>
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|शिशोस्संरक्षणे धारणे क्रीडने ज्ञानम्-बच्चों को पालना और खेलाना।
 
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|अभिधानकोषच्छन्दोज्ञानम् Abhidhanakosh chanda jnana (lexicography and prosody)
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|छलितकयोगाः छलने का कौशल
|<nowiki>काचपात्रादिकरणविज्ञानम् || Kacapatradikarana vijnana (Making of glass vessels)</nowiki>
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|अपराधिजनेषु युक्तताडनज्ञानम्-अपराधियों को ढंग से दण्ड देना।
 
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|वस्त्रगोपनानि ॥ Vastragopana (Showing off one's clothes as made of a superior texture than what they actually are)
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|वस्त्रगोपनानि ॥ असुंदर को छिपाते हुये वस्त्रधारण का कौशल
|<nowiki>जलानां संसेचनं संहरणम् || Jalanam sansechanam saharana (Pumping and withdrawing water)</nowiki>
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|नानादेशीयवर्णानां सुसम्यग्लेखने ज्ञानम्-भिन्न-भिन्न देशीय लिपियों का लिखना।
 
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|द्यूतविशेषः ॥ Dyutavishesha (Playing at dice)
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|द्यूतविशेषः ॥ द्यूतक्रीडा
|<nowiki>लोहाभिसारशस्त्रास्त्रकृतिज्ञानम् || Lohabhisarashastrastra krti jnana (Preparation of tools and implements from iron)</nowiki>
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|ताम्बूलरक्षादिकृतिविज्ञानम्-पान को रखने, बीड़ा बनाने की विधि।
 
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|आकर्षणक्रीडा ॥ Akarshana kreeda (Attracting remote objects)
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|आकर्षक्रीडा ॥ पासे का खेल
|<nowiki>गजाश्ववृषभोष्ट्राणां पल्याणादिक्रिया || Gajashvavrshbhoshtranam palyanadi krya (Preparation of saddles for horses, elephants, bulls and camels)</nowiki>
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|आदानम् - कलामर्मज्ञता।
 
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|बालकक्रीडनकानि ॥ Balaka kreedanaka (Playing childrens' games)
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|बालकक्रीडनकानि ॥ बच्चों की विभिन्न क्रीडाओं का ज्ञान
|<nowiki>शिशोः संरक्षणे धारणे क्रीडने ज्ञानम् || Shisho samrakshane dharane kreedane jnana (Maintenance, entertainment and nursing of children)</nowiki>
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|आशुकारित्वम् - शीघ्र काम कर सकना ।
 
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|वैनायिकीनां विद्यानां ज्ञानम् ॥ Vainaayiki vidya jnana (The Practice of charms)
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|वैनायिकीनां विद्यानां ज्ञानम् ॥ विनय सिखाने वाली विद्याओं का ज्ञान
|<nowiki>अपराधिजने मुयुक्ताताडनज्ञानम् || Aparadhijane muyuktatadana jnana (Punishment of offenders)</nowiki>
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|प्रतिदानम् - कलाओं को सिखा सकना ।
 
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|वैजयिकीनां विद्यानां ज्ञानम् ॥ Vaijayiki vidya jnana (Fore knowledge of the party going to win in a debate)
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|वैजयिकीनां विद्यानां ज्ञानम् ॥ विजय दिलाने वाली विद्याओं का ज्ञान
|<nowiki>नानादेशीयवर्णानां सुसम्यग् लेखने || Nanadeseeyavarnanam susamyag lekhane (Writing characters of various languages)</nowiki>
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|वैतालिकीनां विद्यानां ज्ञानम्  ॥ Vaitaliki vidya jnana (Keeping goblins and vampires under one's control)
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|व्यायामिकीनां नांविद्यानां ज्ञानम्  ॥ व्यायामविद्या का ज्ञान
|<nowiki>ताम्बूलरक्षादिकृतिविज्ञानम् || Tambularakshadi krti vijnana (Making and preservation of betels)</nowiki>
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|चिरक्रिया - देर-देर से काम करना।
 
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<nowiki>*</nowiki>The शब्दकल्पद्रुमः ॥ Shabdakalpadruma mentions प्रतिमाला ॥ Pratimala (Capping verses) instead of प्रतिमा ॥ Pratima (Sculpture)
 
<nowiki>*</nowiki>The शब्दकल्पद्रुमः ॥ Shabdakalpadruma mentions प्रतिमाला ॥ Pratimala (Capping verses) instead of प्रतिमा ॥ Pratima (Sculpture)

Revision as of 09:33, 2 October 2022

कला भारतीय शिक्षाप्रणाली का महत्त्वपूर्ण भाग हुआ करता है। शिक्षामें कलाओंकी शिक्षा महत्त्वपूर्ण पक्ष है जो मानव जीवन को सुन्दर, प्राञ्जल एवं परिष्कृत बनाने में सर्वाधिक सहायक हैं। कला एक विशेष साधना है जिसके द्वारा मनुष्य अपनी उपलब्धियों को सुन्दरतम रूप में दूसरों तक सम्प्रेषित कर सकने में समर्थ होता है। कलाओंके ज्ञान होने मात्र से ही मानव अनुशासित जीवन जीने में अपनी भूमिका निभा पाता है। विद्यार्थी अपने अध्ययन काल में गुरुकुल में इनका ज्ञान प्राप्त करते हैं। इनकी संख्या चौंसठ होने के कारण इन्हैं चतुष्षष्टिः कला कहा जाता है।

परिचय॥ Introduction

भारतवर्ष ने हमेशा ज्ञान को बहुत महत्व दिया है। प्राचीन काल में भारतीय शिक्षाका क्षेत्र बहुत विस्तृत था। कलाओंमें शिक्षा भी महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है कलाओं के सम्बन्ध में रामायण, महाभारत, पुराण नीतिग्रन्थ आदि में विस्तृत वर्णन प्राप्त होता है। भारतके ज्ञान परंपरा की बात करते हुए कपिल कपूर कहते हैं- ''भारत की ज्ञान परंपरा गंगा नदी के प्रवाह की तरह प्राचीन और अबाधित है''।[1]

शुक्राचार्यजी के नीतिसार नामक ग्रन्थ के चौथे अध्याय के तीसरे प्रकरण में सुन्दर प्रकार से सीमित शब्दों में विवरण प्राप्त होता है। उनके अनुसार कलाऍं अनन्त हैं उन सभी का परिगणनन भी क्लिष्ट है परन्तु उनमें 64 कलाऍं प्रमुख हैं। सभी मनुष्योंका स्वभाव एकसा नहीं होता, किसी की प्रवृत्ति किसी ओर तो किसी की किसी ओर होती है। जिसकी जिस ओर प्रवृत्ति है, उसी में अभ्यास करने से कुशलता प्राप्त होती है। शुक्राचार्य जी लिखते हैं—

यां यां कलां समाश्रित्य निपुणो यो हि मानवः। नैपुण्यकरणे सम्यक् तां तां कुर्यात् स एव हि॥

प्राचीन भारतके शिक्षा पाठ्यक्रमकी परंपरा हमेशा 18 प्रमुख विद्याओं (ज्ञान के विषयों) और 64 कलाओं की बात करती है। ज्ञान और क्रिया के संगम के विना शिक्षा अपूर्ण मानी जाती रही है। ज्ञान एवं कला के प्रचार में गुरुकुलों की भूमिका प्रधान रही है एवं ऋषी महर्षि सन्न्यासी आदि भ्रमणशील रहकर के ज्ञान एवं कला का प्रचार-प्रसार किया करते रहे हैं। गुरुकुल में अध्ययनरत शिक्षार्थियों की मानसिकता उसके परिवार से न बंधकर एक बृहद् कुल की भावना से जुडी हुई होती है जिसके द्वारा वह ज्ञान एवं कला लोकोपयोगी सिद्ध हुआ करता है।

दर्शन का शाब्दिक अर्थ है "एक दृष्टिकोण" जो ज्ञान की ओर ले जाता है। जब यह ज्ञान, एक विशेष डोमेन के बारे में एकत्र किया जाता है, तो इसे चिंतन के उद्देश्यों के लिए व्यवस्थित और व्यवस्थित किया जाता है। चिंतनम् ​​(प्रतिबिंब) और अध्ययन (अध्यापनम् | शिक्षाशास्त्र) यह विद्या (विद्या | अनुशासन) की स्थिति प्राप्त करता है।

ज्ञान से संबंधित सभी चर्चाओं में तीन शब्द दिखाई देते हैं।

  • दर्शनम् ॥ Darshana
  • ज्ञानम् ॥ Jnana
  • विद्या ॥ Vidya

गुरुकुलों में अध्ययन करने वाले शिक्षार्थियों में उच्च नैतिकता एवं जैसा कि पुराण महाभारत आदि में गुरु वसिष्ठ शुक्राचार्य द्रोण आदि के परम्परा में कला एवं ज्ञान आचरणीय योग्यता रखती थी।

विद्या के अट्ठारह प्रकार॥ Kinds of 18 Vidhyas

अष्टादश विद्याओं में शामिल हैं-

अंगानि चतुरो वेदा मीमांसा न्यायविस्तर:। पुराणं धर्मशास्त्रं च विद्या ह्येताश्चतुर्दश।। आयुर्वेदो   धनुर्वेदो  गांधर्वश्चैव    ते त्रयः। अर्थशास्त्रं चतुर्थन्तु विद्या ह्यष्टादशैव ताः।।

  • चतुर्वेदाः- ये ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद चार वेद होते हैं।
  • चत्वारः उपवेदः - ये आयुर्वेद (चिकित्सा), धनुर्वेद (हथियार), गंधर्ववेद (संगीत) और शिल्पशास्त्र (वास्तुकला) चार उपवेद होते हैं।
  • चत्वारि उपाङ्गानि- पुराण, न्याय, मीमांसा और धर्म शास्त्र ये चार उपाङ्ग होते हैं।
  • षड्वेदाङ्गानि- शिक्षा (ध्वन्यात्मकता), व्याकरण, छंद (परिमाण), ज्योतिष (खगोल विज्ञान), कल्प (अनुष्ठान) और निरुक्त (व्युत्पत्ति) ये छः अङ्ग होते हैं।

जहाँ तक कला का संबंध है, वहाँ 64 की प्रतिस्पर्धी गणनाएँ हैं।

कला के चौंसठ प्रकार॥ Kinds of 64 Kalas

जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है, 64 कलाओं की गणना के संबंध में भिन्नताएं हैं। इन कलाओं का उल्लेख इन ग्रन्थोंमें प्राप्त होता है -

  • शैवतन्त्रम् ॥ Shaivatantra
  • महाभारतम् (व्यास महर्षि )॥ Mahabharata by Vyasa Maharshi
  • कामसूत्रम् (वात्स्यायन)॥ Kamasutra by Vatsyayana
  • नाट्यशास्त्रम् (भरतमुनि)॥ Natya Shastra by Bharatamuni
  • भगवतपुराणम् (टिप्पणी)॥ Bhagavata Purana (Commentary)
  • शुक्रनीतिः (शुक्राचार्य)॥ Shukraneeti by Shukracharya
  • शिवतत्त्वरत्नाकरः (बसवराजेन्द्र)॥ Shivatattvaratnakara by Basavarajendra

इनमें से कुछ ग्रंथों में 64 कलाओं की सूची को निम्न तालिका में जोड़ा गया है-

चौंसठ कलाऍं॥ Chatusshashti Kala (64 Arts)
क्र.सं. शैवतन्त्रम्[2][3][4] शुक्रनीतिसारः[5][6]
1 गीतम् ॥ गानविद्या हावभावादिसंयुक्तं नर्त्तनम् - हावभाव के साथ नाचना
2 वाद्यम् ॥ भिन्न-भिन्न प्रकार के बाजे बजाना अनेकवाद्यविकृतौ तद्वादने ज्ञानम्-आरकेस्ट्रा में अनेक प्रकार के बाजे बजा लेना
3 नृत्यम् ॥ नाचना स्त्रीपुंसोः वस्त्रालंकारसन्धानम्-स्त्री और पुरुषों को वस्त्र - अलंकार पहनाने की कला
4 आलेख्यम् ॥ चित्रकारी अनेकरूपाविर्भावकृतिज्ञानम्-पत्थर, काठ आदि पर भिन्न-भिन्न आकृतियों का निर्माण ।
5 विशेषकच्छेद्यम् ॥ तिलकरचना, पत्रावलीरचना के साँचे बनाना शय्यास्तरणसंयोगपुष्पादिग्रथनम् - फूल का हार गूंथना और शय्या सजाना।
6 तण्डुलकुसुमयलिविकाराः ॥ पूजा के लिये अक्षत एवं पुष्पों को सजाना द्यूताद्यनेकक्रीडाभी रञ्जनम् - जुआ इत्यादि से मनोरंजन करना
7 पुष्पास्तरणम् ॥ पुष्पसज्जा अनेकासनसन्धानै रमतेर्ज्ञानम्-कामशास्त्रीय आसनों आदि का ज्ञान
8 दशनवसनाङ्गरागाः ॥ दाँत-वस्त्र एवं शरीर के अंगों को रंगना मकरन्दासवादीनां मद्यादीनां कृतिः - भिन्न-भिन्न भाँति के शराब बनाना
9 मणिभूमिकाकर्म ॥ भूमि को मणियों से सजाना शल्यगूढाहृतौ सिराघ्रणव्यधे ज्ञानम्-शरीर में घुसे हुए शल्य को शस्त्रों की सहायता से निकालना, जर्राही
10 शयनरचनम् ॥ शय्या की रचना हीनाद्रिरससंयोगान्नादिसम्पाचनम्-नाना रसों का भोजन बनाना ।
11 उदकवाद्यम् ॥ जल पर हाथ से इस प्रकार आघात करना कि मृदङ्ग आदि वाद्यों के समान ध्वनि उत्पन्न हो वृक्षादिप्रसवारोपपालनादिकृतिः- पेड़-पौधों की देखभाल, रोपाई, सिंचाई का ज्ञान ।
12 उदकाघातः ॥ जलक्रीड़ा के समय कलात्मक ढंग से छींटे मारना या जल को उछालना पाषाणधात्वादिदृतिभस्मकरणम्-पत्थर और धातुओं को गलाना तथा भस्म बनाना ।
13 चित्रायोगाः ॥ औषधि, मणि, मंत्र आदि के रहस्यमय प्रयोग यावदिक्षुविकाराणां कृतिज्ञानम्-फल के रस से मिश्री, चीनी आदि भिन्न-भिन्न चीजें बनाना।
14 माल्यग्रथनविकल्पाः ॥ औषधि, मणि, मंत्र आदि के रहस्यमय प्रयोग धात्वोषधीनां संयोगक्रियाज्ञानम्-धातु और औषधों के संयोग से रसायनों का बनाना।
15 शेखरकापीडयोजनम् ॥ शेखरक और आपीड (शिर पर धारण किये जाने वाले पुष्पाभरण) की योजना धातुसाङ्कर्यपार्थक्यकरणम्-धातुओं के मिलाने और अलग करने की विद्या । के नये संयोग बनाना ।
16 नेपथ्ययोगाः ॥ वेश-भूषा धारण की कला धात्वादीनां संयोगापूर्वविज्ञानम्-धातुओं के नये संयोग बनाना ।
17 कर्णपत्रभङ्गाः ॥ हाथीदाँत के पत्तरों आदि से कर्णाभूषण की रचना क्षारनिष्कासनज्ञानम्-खार बनाना ।
18 गन्धयुक्तिः ॥ सुगंध की योजना पदादिन्यासतः शस्त्रसन्धाननिक्षेपः-पैर ठीक करके धनुष चढ़ाना और बाण फेंकना।
19 भूषणयोजनम् ॥ आभूषण निर्माण की कला सन्ध्याघाताकृष्टिभेदैः मल्लयुद्धम्-तरह-तरह के दाँव-पेंच के साथ कुश्ती लड़ना ।
20 ऐन्द्रजालम् ॥ इन्द्रजाल या जादू का खेल अभिलक्षिते देशे यन्त्राद्यस्त्रनिपातनम्-शस्त्रों को निशाने पर फेंकना ।
21 कौचुमारयोगाः ॥ कुचुमारतंत्र में बताये गये वाजीकरण आदि प्रयोग वाद्यसंकेततो व्यूहरचनादि-बाजे के संकेत से सेना की व्यूह रचना।
22 हस्तलाघवम् ॥ हाथ की सफाई गजाश्वरथगत्या तु युद्धसंयोजनम्-हाथी, घोड़े या रथ से युद्ध करना ।
23 विचित्रशाकयूषभक्ष्यविकारक्रिया ॥ नाना प्रकार के व्यंजन, यूष-सूप आदि बनाने की कला । विविधासनमुद्राभिः देवतातोषणम्-विभिन्न आसनों तथा मुद्राओं के द्वारा देवता को प्रसन्न करना।
24 पानकरसरागासवयोजनम् ॥ प्रपाणक, आराव आदि पेय बनाने की कला सारथ्यम् रथ हाँकना, वाहन चलाना।
25 सूचीवापकर्म ॥ वस्त्ररचना एवं कढ़ाई का शिल्प गजाश्वादे: गतिशिक्षा- हाथी-घोड़ों आदि की चाल सिखाना।
26 सूत्रक्रीडा ॥ हाथ के सूत्र (धागा आदि) से नानाप्रकार की आकृतियॉं बुनना मृत्तिकाकाष्ठपाषाणधातुभाण्डादिसत्क्रिया-मिट्टी, लकड़ी पत्थर और धातु के बर्तन बनाना ।
27 वीणाडमरुकवाद्यानि ॥ वीणा, डमरु आदि बजाना चित्राद्यालेखनम् - चित्र बनाना।
28 प्रहेलिका ॥ पहेलियाँ बुझाना तटाकवापीप्रसादसमभूमिक्रिया-कुँआ, पोखरे खोदना तथा जमीन बराबर करना
29 प्रतिमा* ॥ अंत्याक्षरी घट्याद्यनेकयन्त्राणां वाद्यानां कृतिः - वाद्य - यन्त्र तथा पनचक्की जैसी मशीनों का बनाना ।
30 दुर्वाचकयोगाः ॥ कठिन उच्चारण और गूढ अर्थों वाले श्लोकों की रचना हीनमध्यादिसंयोगवर्णाद्यै रंजनम् - रंगों के भिन्न-भिन्न मिश्रणों से चित्र रँगना
31 पुस्तकवाचनम् ॥ पुस्तक बाँचने का शिल्प जलवाटवग्निसंयोगनिरोधैः क्रिया- जल, वायु, अग्नि को साथ मिलाकर और अलग-अलग रखकर कार्य करना, इन्हें बाँधना ।
32 नाटिकाख्यायिकादर्शनम्  ॥ नाट्य एवं कथा-काव्यों का रसास्वादन नौकारथादियानानां कृतिज्ञानम् - नौका, रथ आदि सवारियों का बनाना।
33 काव्यसमस्यापूरणम् ॥ समस्यापूर्ति सूत्रादिरज्जुकरणविज्ञानम्- सूत और रस्सी बनाने का ज्ञान ।
34 पट्टिकावानवेत्रविकल्पाः ॥ बेंत ओर बाँस का शिल्प अनेकतन्तुसंयोगैः पटबन्धः- सूत से कपड़ा बुनना ।
35 तक्षकर्माणि ॥ नक्काशी का काम रत्नानां वेधादिसदसद्ज्ञानम् रत्नों की परीक्षा, उन्हें काटना- छेदना आदि।
36 तक्षणम् ॥ काष्ठकर्म स्वर्णादीनान्तु याथार्थ्यविज्ञानम् - सोने आदि के जाँचने का ज्ञान।
37 वास्तुविद्या ॥ स्थापत्य शिल्प कृत्रिमस्वर्णरत्नादिक्रियाज्ञानम् - बनावटी सोना, रत्न (इमिटेशन) आदि बनाना।
38 रूप्यरत्नपरीक्षा  ॥ चाँदी-सोना आदि धातुओं तथा रत्नों की परीक्षा स्वर्णाद्यलंकारकृतिः - सोने आदि का गहना बनाना।
39 धातुवादः  ॥ धातु-शोधन, मिश्रण आदि लेपादिसत्कृतिः- मुलम्मा देना, पानी चढ़ाना।
40 मणिरागाकरज्ञानम् ॥ मणियों को रंगना एवं उनके आकर का ज्ञान चर्मणां मार्दवादिक्रियाज्ञानम् चमड़े को नर्म बनाना।
41 वृक्षायुर्वेदयोगाः ॥ वृक्षों के दीर्घायुष्य का शिल्प एवं उपवन लगाने की कला पशुचर्माङ्गनिर्हारज्ञानम्-पशु के शरीर से चमड़ा, मांस आदि को अलग कर सकना।
42 मेषकुक्कुटलावकयुद्धविधिः ॥ मेष आदि पशु पक्षियों को लड़ाना दुग्धदोहादिघृतान्तं विज्ञानम् - दूध दुहना और उससे घी आदि निकालना।
43 शुकसारिकाप्रलापनम्  ॥ तोता-मैना आदि को बोलना सिखाना कञ्चुकादीनां सीवने विज्ञानम् - चोली आदि का सीना ।
44 उत्सादने संवाहने केशमर्दने च कौशलम् ॥ शरीर दबाने, सिर पर तेल लगाने आदि की जले बाह्वादिभिस्तरणम् हाथ की सहायता से तैरना। ।
45 अक्षरमुष्टिकाकथनम् ॥ संकेत भाषा का ज्ञान गृहभाण्डादेर्मार्जने विज्ञानम् - घर तथा घर के बर्तनों को साफ करने में निपुणता।
46 म्लेच्छितकविकल्पाः ॥ गुप्तभाषा का ज्ञान वस्त्रसंमार्जनम् - कपड़ा साफ करना
47 देशभाषाज्ञानम्  ॥ लोकभाषाओं का ज्ञान क्षुरकर्म - हजामत बनाना ।
48 पुष्पशकटिका॥ पुष्पों से गाड़ी आदि बनाना या सजाना तिलमांसादिस्नेहानां निष्कासने कृतिः-तिल और मांस आदि से तेल निकालना।
49 निमित्तज्ञानम् ॥ शकुन ज्ञानम् सीराद्याकर्षणे ज्ञानम्-खेत जोतना, निराना आदि।
50 यन्त्रमातृका ॥ यंत्ररचना का शिल्प वृक्षाद्यारोहणे ज्ञानम् - वृक्ष आदि पर चढ़ना।
51 धारणमातृका ॥ स्मरणशक्ति बढ़ाने की कला मनोनुकूलसेवायाः कृतिज्ञानम् - अनुकूल सेवा द्वारा दूसरों को प्रसन्न करना ।
52 सम्पाठ्यम् ॥ काव्यपाठ की कला वेणुतृणादिपात्राणां कृतिज्ञानम् -बाँस, नरकट आदि से बर्तन आदि बना लेना।
53 मानसीकाव्यक्रिया ॥ मौखिक काव्यरचना काचपात्रादिकरणविज्ञानम् - शीशे का बर्तन आदि बनाना
54 अभिधानकोष ॥ शब्दकोष लोहाभिसारशस्त्राकृतिज्ञानम्-धातुओं से हथियार बनाना।
55 छ्न्दोज्ञानम् ॥ छन्द का ज्ञान गजाश्ववृषभोष्ट्राणां पल्याणादिक्रिया - हाथी, घोड़ा, बैल, ऊँट आदि का जीन, चारजामाओं का हौदा बनाना ।
56 क्रियाकल्पः ॥ काव्यालंकार का ज्ञान शिशोस्संरक्षणे धारणे क्रीडने ज्ञानम्-बच्चों को पालना और खेलाना।
57 छलितकयोगाः ॥ छलने का कौशल अपराधिजनेषु युक्तताडनज्ञानम्-अपराधियों को ढंग से दण्ड देना।
58 वस्त्रगोपनानि ॥ असुंदर को छिपाते हुये वस्त्रधारण का कौशल नानादेशीयवर्णानां सुसम्यग्लेखने ज्ञानम्-भिन्न-भिन्न देशीय लिपियों का लिखना।
59 द्यूतविशेषः ॥ द्यूतक्रीडा ताम्बूलरक्षादिकृतिविज्ञानम्-पान को रखने, बीड़ा बनाने की विधि।
60 आकर्षक्रीडा ॥ पासे का खेल आदानम् - कलामर्मज्ञता।
61 बालकक्रीडनकानि ॥ बच्चों की विभिन्न क्रीडाओं का ज्ञान आशुकारित्वम् - शीघ्र काम कर सकना ।
62 वैनायिकीनां विद्यानां ज्ञानम् ॥ विनय सिखाने वाली विद्याओं का ज्ञान प्रतिदानम् - कलाओं को सिखा सकना ।
63 वैजयिकीनां विद्यानां ज्ञानम् ॥ विजय दिलाने वाली विद्याओं का ज्ञान
64 व्यायामिकीनां नांविद्यानां ज्ञानम्  ॥ व्यायामविद्या का ज्ञान चिरक्रिया - देर-देर से काम करना।

*The शब्दकल्पद्रुमः ॥ Shabdakalpadruma mentions प्रतिमाला ॥ Pratimala (Capping verses) instead of प्रतिमा ॥ Pratima (Sculpture)

वंशागत कला॥ Traditional Arts

वंशागत कला के सीखने में कितनी सुगमता होती है, यह प्रत्यक्ष है। एक बढ़ई का लड़का बढ़ईगिरी जितनी शीघ्रता और सुगमता के साथ सीखकर उसमें निपुण हो सकता है, उतना दूसरा नहीं, क्योंकि वंश-परम्परा और बालकपन से ही उसके उस कला के योग्य संस्कार बन जाने हैं। इन मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों के आधार पर प्राचीन शिक्षा क्रम की रचना हुई थी। उसमें आजकल की सी धाँधली न थी, जिसका दुष्परिणाम आज सर्वत्र दिखाई पड़ रहा है। प्राय: सभी विषयों में चञ्चुप्रवेश और किसी एक विषय की, जिसमें प्रवृत्ति हो, योग्यता प्राप्त करने से ही पूर्व शिक्षा और यथोचित ज्ञान की प्राप्ति हो सकती है। आज पाश्चात्य विद्वान् भी प्रचलित शिक्षा-पद्धति की अनेक त्रुटियों का अनुभव कर रहे हैं; परंतु हम उस दूषित पद्धति की नकल करने की ही धुन में लगे हुए हैं। वर्तमान शिक्षा से लोगों को अपने वंशागत कार्यों से घृणा तथा अरुचि होती चली जा रही है और वे अपने बाप-दादा के व्यवसायों को बड़ी तेज़ीसे छोड़ते चले जा रहे हैं। शिक्षित युवक ऑफिस में छोटी-छोटी नौकरियों के लिये दर-दर दौड़ते हैं, अपमान सहते हैं, दूसरों की ठोकर खाते हैं और जीवन से निराश होकर कई तो आत्मघात कर बैठते हैं। यदि यही क्रम जारी रहा तो पूरा विनाश सामने है। क्या ही अच्छा होता, यदि हमारे शिक्षा-आयोजकों का ध्यान एक बार हमारी प्राचीन शिक्षा-पद्धति की ओर भी जाता।

निष्कर्ष॥ Discussion

उद्धरण॥ References

  1. Kapoor Kapil and Singh Avadhesh Kumar, Bharat's Knowledge Systems, Vol.1, NewDelhi: D.K.Printworld, Pg.no.11
  2. Vachaspatyam
  3. Shabdakalpadruma
  4. Srimad Bhagavata Mahapurana (Part II), English redition: C.L.Goswami, Gorakhpur: Gita Press, Fourth Edition (1997), Pg.no.294 (annotation)
  5. श्रीमत् शुक्राचार्य्यविरचितः शुक्रनीतिसारः, १८९०: कलिकाताराजधान्याम्, द्वितीयसंस्करणम् ।
  6. B.D.Basu, The Sacred Books of the Hindus, Vol XIII The Sukraniti, Allahabad: The Panini Office, Bhuvaneshwari Asrama, 1914. Pg.no.157