Difference between revisions of "Garbhadhan ( गर्भाधान )"
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Revision as of 12:04, 24 March 2022
अर्थ
मानव का सम्पूर्ण जीवन संस्कारों का क्षेत्र है । इसलिए प्रजनन भी इसके अन्तर्गत आता है । धर्मशास्त्र के अनुसार इसके साथ कोई अशुचिता का भाव नहीं लगा है । इसलिए अधिकांश गृह्यसूत्र गर्भाधान के साथ ही संस्कारों को प्रारम्भ करते हैं।
जिस कर्म के द्वारा पुरुष स्त्री में अपना बीज स्थापित करता है उसे गर्भाधान कहते थे ।' शौनक भी कुछ भिन्न शब्दों में ऐसी ही परिभाषा देते हैं । 'जिस कर्म की पूर्ति में स्त्री ( पति द्वारा ) प्रदत्त शुक्र धारण करती है उसे गर्भालम्भन या गर्भाधान कहते हैं। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि यह कर्म कोई काल्पनिक धार्मिक कृत्य नहीं था, अपितु एक यथार्थ कर्म था । इस प्रजनन-कार्य को सोद्देश्य और संस्कृत बनाने के निमित्त गर्भाधान संस्कार किया जाता था। हमें ज्ञात नहीं कि पूर्व वैदिककाल में बच्चों के प्रसव-सम्बन्धी क्या भाव और कर्म थे। इस संस्कार का विकास होने में अवश्य ही अति दीर्घकाल लगा होगा। आदिम युग में तो प्रसव एक प्राकृतिक कर्म था। शारीरिक आवश्यकता प्रतीत होने पर मानव-युगल संतानप्राप्ति की किसी पूर्वकल्पना के बिना सहवास कर लेता था, यद्यपि था यह स्वाभाविक परिणाम । किन्तु गर्भाधान संस्कार से पूर्व एक सुव्यवस्थित घर की भावना, विवाह अथवा सन्तति होने की अभिलाषा और यह विश्वास कि देवता मनुष्य को सन्तति- प्राप्ति में सहायता करते हैं, अस्तित्व में आ चुके थे। इस प्रकार इस संस्कार की प्रक्रिया उस काल से सम्बन्धित है जब कि आर्य अपनी आदिम अवस्था से बहुत आगे बढ़ चुके थे।