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अयोध्या के इक्ष्वाकुवंशी राजा, जिन्होंने सत्य के दृढ़ व्रत का पालन किया। वसिष्ठ ऋषि से इनके सत्यव्रत की प्रशंसा सुनकर ईर्ष्या से विश्वामित्र ऋषि ने इनके सत्यव्रत की परीक्षा ली और इनसे राज्यदान करवाया। दान के पश्चात्दक्षिणा-पूर्ति के लिए हरिश्चन्द्र ने पुत्र रोहित, पत्नी तारामती तथा स्वयं को भी बेच डाला और एक चाण्डाल के दास बनकर शमशान-भूमि पर शव जलाने का काम करने लगे। पुत्र रोहित सर्पदंश से मर गया तो तारामती उसे दाह-संस्कार हेतु उसी शमशान में लेकर आयी। हरिश्चन्द्र ने दाह-संस्कार का शुल्क लिये बिना रोहित का दाह-संस्कार करने देने से इन्कार कर दिया। सत्य-परीक्षा में उन्हें खरा उतरा देखकर विश्वामित्र प्रसन्न हुए। उन्होंने रोहित को जीवित किया और हरिश्चन्द्र को न केवल पूर्वस्थिति अपितु अक्षय कीर्ति प्राप्त हुई।
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