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भगवान विष्णु के सातवें अवतार के रूप में आराध्य श्री राम का जीवन और चरित्र भारतीय संस्कृति के श्रेष्ठ जीवन-मूल्यों का प्रतीक है। मर्यादा-पालन का सर्वोत्तम आदर्श प्रस्तुत करने के कारण उन्हें मर्यादापुरुषोत्तम के रूप में स्मरण किया जाता है। उन्होंने रावण की अनीतिपूर्ण राजसत्ता समाप्त कर रामराज्य के रूप में आदर्श व्यवस्था स्थापित की। श्री राम का दिव्य चरित्र सत्य, शील और सौन्दर्य से मण्डित है। भारतीय साहित्य में राम के दिव्य गुणों का आदि कवि वाल्मीकि से लेकर आजपर्यन्त अनेकानेक महर्षियों, संतों, दार्शनिकों, लेखकों और कवियों ने नानाविध वर्णन किया है। सूर्यवंशी राम का जन्म इक्ष्वाकु और रघु के कुल में हुआ था। दशरथ-पुत्र रघुकुल-तिलक राम ने भूमि को राक्षस-विहीन बनाने का संकल्प किया था। वनवास-काल में राम ने वनवासियों और वन-जातियों को संगठित एवं सुसंस्कारित कर उनकी सहायता से राक्षसों को पराजित कर लोक को निरापद बनाया। राम भारत के जन-जन के मन में बसे हुए हैं। वे भारतीय अस्मिता की पहचान, उसके हृदय का स्पन्दन और उसकी आकांक्षाओं के प्रतीक एवं केंद्र-बिन्दु हैं। भारत की चिरकालिक अभिलाषा का नाम रामराज्य है।
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