− | कार्तिक मास की कथा सुनने मात्र से मनुष्य के सब पाप नष्ट होकर बैकुण्ठ लोक की प्राप्ति हो जाती है। एक समय श्री नारायणजी ब्रह्मलोक में गये और सारे जगत के कर्ता श्री ब्रह्माजी को अति विनीत भाव से कहने लगे-"आप! सारे जगत के कर्ता और सर्वज्ञ हो, अत: आप धर्मोपदेश की कोई सुन्दर कथा कहिए, क्योंकि मैं भगवान का भक्त और आपका दास हूं तथा आप कार्तिक मास की कथा भी कहिए, क्योंकि मैंने सुना है कि कार्तिक मास भगवान को अति प्रिय है, और इस मास में किया हुआ व्रत नियमन पादन दिया हुआ अनन्त फल को प्राप्त होता है।" ब्राह्माजी कहने लगे-“हे पुत्र, तुमने अति सुन्दर प्रश्न किया है, क्योंकि कुरूक्षेत्र पुष्कर तथा तीर्थों का वास इतना फल नहीं देते हैं। जैसे कि कार्तिक मास का फल है।" प्रात:काल ब्रह्म मुहूर्त में उठकर व्रत करने वाला शौच आदि से निवृत होकर, | + | कार्तिक मास की कथा सुनने मात्र से मनुष्य के सब पाप नष्ट होकर बैकुण्ठ लोक की प्राप्ति हो जाती है। एक समय श्री नारायणजी ब्रह्मलोक में गये और सारे जगत के कर्ता श्री ब्रह्माजी को अति विनीत भाव से कहने लगे-"आप! सारे जगत के कर्ता और सर्वज्ञ हो, अत: आप धर्मोपदेश की कोई सुन्दर कथा कहिए, क्योंकि मैं भगवान का भक्त और आपका दास हूं तथा आप कार्तिक मास की कथा भी कहिए, क्योंकि मैंने सुना है कि कार्तिक मास भगवान को अति प्रिय है, और इस मास में किया हुआ व्रत नियमन पादन दिया हुआ अनन्त फल को प्राप्त होता है।" ब्राह्माजी कहने लगे-“हे पुत्र, तुमने अति सुन्दर प्रश्न किया है, क्योंकि कुरूक्षेत्र पुष्कर तथा तीर्थों का वास इतना फल नहीं देते हैं। जैसे कि कार्तिक मास का फल है।" प्रात:काल ब्रह्म मुहूर्त में उठकर व्रत करने वाला शौच आदि से निवृत होकर, बारह अगुल अथवा सुगन्धित वृक्ष का दातुन करें। श्राद्ध के दिन, सूर्य-चन्द्रमा के ग्रहण के दिन. एकम अमावस्या नवमी, छठ, एकादशी तथा रविवार को दातुन नहीं करना चाहिए | स्नान करने वाला श्री गंगाजी, शिव, सूर्य विष्णु का ध्यान करके स्नान कर जल से बाहर आकर शुद्ध वस्त्र धारण करे। तिल आदि से देवता ऋषि और मनुष्य (फितर) का तर्पण करें। इस प्रकार सान तर्पण के पश्चात् चन्दन, फल और पुष्प आदि से भगवान को अर्घ्य देना चाहिए। ब्रह्माजी करने लगे- हे नारद! प्रती मनुष्य फिर भगवान के मन्दिर में जाकर जोडशोपचार विधि से भगवान का पूजन करे। मंजरी सहित तुलसी भगवान पर बढ़ाये। जो मनुष्य मंजरी सहित भगवान शालिग्राम का एक बूंद भी चरणामृत पान कर लेता है. वह बड़े-बड़े पापों से मुक्त हो जाता है और जो कोई शालिग्राम को मूर्ति के आगे अपने पिटरों का वार करता है. उनके पितर को बैकुण्ठ लोक प्राप्त होता है। अक्षतों से भगवान विष्णु का पूजन, शंख के जल से शिव का पूजन बिल्व पत्र से सूर्य का पूजन, तुलसी से गणेशजो का, धतूरे के पुष्पों से विष्णु का, केतकी के पुष्पों से शिव की पूजा करनी चाहिए। |
| + | गंगा, यमुन और तुलसी का बराबर हैं। इन तीनों से ही यमपुरी के दर्शन नहीं होते। एक समय नारदजो ब्रह्माजी से कहने लगे- हे ब्राह्मण! कार्तिक मास का महत्या आप मुझसे विधिपूर्वक कहिए।" तब ब्रह्माजी कहने लगे-“हे पुत्र! मैं तुम्हें एक समय की बात है श्री सत्याभामाजी ने भगवान श्रीकृष्ण से प्रश्न किया कि भगवान! मैं पहले जन्म में कौन थी? मेरे पिता कौन थे, जिससे मैं आप त्रिलोकीनाथ की सबसे प्रिय अर्धाग्निी बनो? मेरे कहने मात्र से आपने स्वर्ग से कल्प वृक्ष मेरे आंगन में लगा दिया। इतनी बात सुनकर कृष्ण अति प्रेम से हाथ पकड़कर कल्पवृक्ष के नीचे ले गये और बड़े स्नेह से कहने लगे- हे सत्यभामे! आप मुझे सब पलियों में प्रिय है, अत: मैं आपसे गुप्त-अति गुप्त बात कहने में भी संकोच नहीं करूंगा।" |