हमारा देश अपनी ज्ञानगरिमा के कारण जहां सब देशो का सिरमौर और विश्वगुरु कहलाता रहा है, वहां बल एवं शक्ति में भी वह कभी किसी से पीछे नहीं रहा है। शक्तिशाली चक्रवर्ती सम्राटो के अतिरिक्त भारतीय इतिहास के देदीप्यमान रत्न श्री रामभक्त हनुमान् अपनी शूर वीरता में विश्व इतिहास के एक ही व्यक्ति हैं, जिनके नाम पर भारतीय सेना का सर्वश्रेष्ठ पदक महावीर चक्र प्रदान किया जाता है। प्राचीन भारतीय इतिहास के ब्रह्मचारी भीष्म और महाबलशाली भीमार्जुन आदि की गाथायें तो विश्वविश्रुत हैं।
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प्राचीन भारत में, न हि बलशाली पुरुषो की कमी थी और न बल के साधन व्यायामों की। व्यायाम को लोग धार्मिक कृत्य समझते थे। बडी पुण्यभावना से उसमें सहभागिता ग्रहण करते थे। सार्वजनिक व्यायाम शालाएँ होती थीं और समय समय पर अन्यप्रांतीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय मल्ल-प्रतियोगिता होती थी जिसमें देश विदेशों के पहलवान उपस्थित होकर अपने शारीरिक बल का परिचय दिया करते थे। ऐसी ही एक मल्ल प्रतियोगिता के निमन्त्रण पर भगवान् श्री कृष्ण ने मथुरा पहुंचकर कंस का वध किया था, तथा ऐसी ही एक मल्ल प्रतियोगिता में जरासंध की मृत्यु हुई थी। कुश्तियों के अलावा दण्ड बैठक, मुग्दर परिचालन, कबड्डी, आसन और सूर्य प्रणामादि वे भारतीय व्यायाम विधि हैं। जिनके द्वारा प्रत्येक व्यक्ति स्वास्थ्य लाभ करके यावज्जीवन नीरोग रह सकता है।
== भारतीय व्यायाम पद्धति ==
== भारतीय व्यायाम पद्धति ==
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भारतीय व्यायाम की दृष्टि से पश्चिमी देशों की अपेक्षा भारत की प्राचीन अवस्था का जहां तक ज्ञान होता है वहां तक व्यायाम के बहुत प्रमाण प्राप्त होते हैं। हमारे देश के प्राचीन से प्राचीन ग्रन्थों के अवलोकन से यह स्पष्ट हो जाता है कि यहां व्यायाम प्रारम्भ काल से ही व्याप्त है। व्यायाम के मुख्य प्रकार थे- सूर्य नमस्कार, आसन, डंड बैठक, मुग्दर परिचालन, गदाअ, मल्लयुद्ध आदि का विशेष प्रचार-प्रसार था।
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समाज में व्यायाम का सूत्रपात कहां से हुआ इसके सम्बन्ध में जानकारी नहीं प्राप्त होती है। फिर भी मानवजीवन का अनुशीलन करने से ज्ञात होता है कि मनुष्य आदि काल में कुछ खेल खेला करते थे और उन्हीं खेलों के उन्नत रूप ही आज समाज में दृष्टि गोचर होते हैं।<ref>श्री केशवकुमार ठाकुर, (१९४८) स्वास्थ्य और व्यायाम अध्याय-७ (पृ०५९/६०)।</ref>
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==== भारतीय व्यायामों के भेद ====
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भारतीय व्यायाम दो बृहद् भागों में एवं कई उपविभागों में विभाजित हैं। दोनों का उद्देश्य है शारीरिक उन्नति। किन्तु उन दोनों प्रकार के व्यायामों में एक भाग आसन एवं दूसरा व्यायाम के नाम से पुकारा जाता है। आसनों का कार्य शरीर को निर्मल, निरोग, एवं उन कारणों को जिनसे रोग उत्पन्न होते हैं उन्हैं दूर करके शारीरिक उन्नति करना।