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== जीवन का पूरा प्रतिमान ही अधार्मिक ==
 
== जीवन का पूरा प्रतिमान ही अधार्मिक ==
अंग्रेजों ने हमारे पूरे जीवन के धार्मिक (भारतीय) प्रतिमान को ही नष्ट कर उस के स्थान पर अपना अंग्रेजी जीवन का प्रतिमान स्थापित कर दिया है। जीवन दृष्टि, जीवन शैली (व्यवहार सूत्र) और सामाजिक जीवन की व्यवस्थाएं इन को मिलाकर जीवन का प्रतिमान बनता है। हमारी जीवन दृष्टि, जीवन शैली (व्यवहार सूत्र) और सामाजिक जीवन की व्यवस्थाएं सभी अधार्मिक (अधार्मिक) बन गये हैं। यदि कुछ शेष है तो पिछली पीढियों के कुछ लोग जो धार्मिक (भारतीय) जीवनदृष्टि को जानने वाले हैं। व्यवहार तो उन के भी मोटे तौर पर अधार्मिक (अधार्मिक) जीवनदृष्टि के अनुरूप ही होते हैं। युवा पीढी के तो शायद ही कोई धार्मिक (भारतीय) जीवन दृष्टि से परिचित होंगे। जब जीवन दृष्टि से ही युवा पीढी अपरिचित है तो धार्मिक (भारतीय) जीवनशैली और जीवन व्यवस्थाओं की समझ की उन से अपेक्षा भी नहीं की जा सकती।
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अंग्रेजों ने हमारे पूरे जीवन के धार्मिक (भारतीय) प्रतिमान को ही नष्ट कर उस के स्थान पर अपना अंग्रेजी जीवन का प्रतिमान स्थापित कर दिया है। जीवन दृष्टि, जीवन शैली (व्यवहार सूत्र) और सामाजिक जीवन की व्यवस्थाएं इन को मिलाकर जीवन का प्रतिमान बनता है। हमारी जीवन दृष्टि, जीवन शैली (व्यवहार सूत्र) और सामाजिक जीवन की व्यवस्थाएं सभी अधार्मिक (अधार्मिक) बन गये हैं। यदि कुछ शेष है तो पिछली पीढियों के कुछ लोग जो धार्मिक (भारतीय) जीवनदृष्टि को जानने वाले हैं। व्यवहार तो उन के भी मोटे तौर पर अधार्मिक (अधार्मिक) जीवनदृष्टि के अनुरूप ही होते हैं। युवा पीढी के तो संभवतः ही कोई धार्मिक (भारतीय) जीवन दृष्टि से परिचित होंगे। जब जीवन दृष्टि से ही युवा पीढी अपरिचित है तो धार्मिक (भारतीय) जीवनशैली और जीवन व्यवस्थाओं की समझ की उन से अपेक्षा भी नहीं की जा सकती।
    
१९४७ में हम स्वाधीन हुए। स्वतंत्र नहीं। स्वतंत्र होने का तो कोई विचार भी हमारे मन में कभी आता नहीं है। स्वतंत्र का अर्थ है अपने तंत्रों के साथ याने अपनी व्यवस्थाओं के साथ जीनेवाले। अंग्रेजों ने भारत में स्थापित की हुई शासन, प्रशासन, न्याय, अर्थ, उद्योग, कृषि, जल प्रबंधन, शिक्षा आदि में से एक भी व्यवस्था को हमने अपनी जीवन दृष्टि और जीवन शैली के अनुसार बदलने का विचार भी नहीं किया है। प्रत्यक्ष बदलना तो बहुत दूर की बात है।
 
१९४७ में हम स्वाधीन हुए। स्वतंत्र नहीं। स्वतंत्र होने का तो कोई विचार भी हमारे मन में कभी आता नहीं है। स्वतंत्र का अर्थ है अपने तंत्रों के साथ याने अपनी व्यवस्थाओं के साथ जीनेवाले। अंग्रेजों ने भारत में स्थापित की हुई शासन, प्रशासन, न्याय, अर्थ, उद्योग, कृषि, जल प्रबंधन, शिक्षा आदि में से एक भी व्यवस्था को हमने अपनी जीवन दृष्टि और जीवन शैली के अनुसार बदलने का विचार भी नहीं किया है। प्रत्यक्ष बदलना तो बहुत दूर की बात है।
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== वर्तमान साईंस के विकास की पृष्ठभूमि ==
 
== वर्तमान साईंस के विकास की पृष्ठभूमि ==
वर्तमान साईंस का विकास युरोपीय देशों में अभी २००-२५० वर्ष में ही हुआ है। इस विकास में ईसाई मत के करण कई साईंटिस्टों को कष्ट सहन करने पड़े। ब्रूनो जैसे वैज्ञानिकों को जान से हाथ धोना पडा। गॅलिलियो जैसे साईंटिस्ट को मृत्यू के डर से क्षमा माँगनी पडी। फिर भी यूरोप के साईंटिस्टों ने हार नहीं मानी। साईंस के क्षेत्र में अद्वितीय पराक्रम कर दिखाया। तन्त्रज्ञान के क्षेत्र में भी मुश्किल से २५० वर्षों में जो प्रगति हुई है वह स्तंभित करने वाली है।
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वर्तमान साईंस का विकास युरोपीय देशों में अभी २००-२५० वर्ष में ही हुआ है। इस विकास में ईसाई मत के करण कई साईंटिस्टों को कष्ट सहन करने पड़े। ब्रूनो जैसे वैज्ञानिकों को जान से हाथ धोना पडा। गॅलिलियो जैसे साईंटिस्ट को मृत्यू के डर से क्षमा माँगनी पडी। तथापि यूरोप के साईंटिस्टों ने हार नहीं मानी। साईंस के क्षेत्र में अद्वितीय पराक्रम कर दिखाया। तन्त्रज्ञान के क्षेत्र में भी मुश्किल से २५० वर्षों में जो प्रगति हुई है वह स्तंभित करने वाली है।
    
रेने देकार्ते को इस साईंटिफिक टेम्परामेंट का जनक माना जाता है। रेने देकार्ते एक गणिति तथा फिलॉसॉफर था। इस साईंटिफिक टेम्परामेंट के महत्वपूर्ण पहलू निम्न है:
 
रेने देकार्ते को इस साईंटिफिक टेम्परामेंट का जनक माना जाता है। रेने देकार्ते एक गणिति तथा फिलॉसॉफर था। इस साईंटिफिक टेम्परामेंट के महत्वपूर्ण पहलू निम्न है:
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वर्तमान साईंस के विकास से पहले तक यानी मुश्किल से २००-२५० वर्ष पूर्व तक भारत में प्रस्थान त्रयी को ही जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में प्रमाण माना जाता था। किन्तु साईंस के विकास के कारण आज इसे कोई महत्व नहीं दिया जाता। ऐसा क्यों? वर्तमान साईंस के विकास के कारण या अन्य कारणों से गत २००-२५० वर्षों में ऐसे कौन से घटक निर्माण हो गये है जिन्हें हम प्रस्थान त्रयी की कसौटी पर नहीं तौल सकते?
 
वर्तमान साईंस के विकास से पहले तक यानी मुश्किल से २००-२५० वर्ष पूर्व तक भारत में प्रस्थान त्रयी को ही जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में प्रमाण माना जाता था। किन्तु साईंस के विकास के कारण आज इसे कोई महत्व नहीं दिया जाता। ऐसा क्यों? वर्तमान साईंस के विकास के कारण या अन्य कारणों से गत २००-२५० वर्षों में ऐसे कौन से घटक निर्माण हो गये है जिन्हें हम प्रस्थान त्रयी की कसौटी पर नहीं तौल सकते?
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शायद साईंटिस्टों का कहना है कि निम्न बातों में साईंस ने जो प्रगति की है उस के कारण प्रस्थान त्रयी को प्रमाण के क्षेत्र में कोई स्थान नहीं दिया जा सकता:
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संभवतः साईंटिस्टों का कहना है कि निम्न बातों में साईंस ने जो प्रगति की है उस के कारण प्रस्थान त्रयी को प्रमाण के क्षेत्र में कोई स्थान नहीं दिया जा सकता:
 
# साईंस ने सूक्ष्मता(नॅनो) के क्षेत्र में और सृष्टि के मूल द्रव्य को जानने की दिशा में बहुत प्रगति की है।
 
# साईंस ने सूक्ष्मता(नॅनो) के क्षेत्र में और सृष्टि के मूल द्रव्य को जानने की दिशा में बहुत प्रगति की है।
 
# साईंस ने विशालता (कॉसमॉस) के क्षेत्र में बहुत प्रगति की है।
 
# साईंस ने विशालता (कॉसमॉस) के क्षेत्र में बहुत प्रगति की है।
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[[Category:Dharmik Jeevan Pratiman (धार्मिक जीवन प्रतिमान - भाग २)]]
 
[[Category:Dharmik Jeevan Pratiman (धार्मिक जीवन प्रतिमान - भाग २)]]
 
[[Category:Dharmik Jeevan Pratiman (धार्मिक जीवन प्रतिमान)]]
 
[[Category:Dharmik Jeevan Pratiman (धार्मिक जीवन प्रतिमान)]]
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[[Category:Dharmik Jeevan Pratimaan Paathykram]]

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