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| यद्यपि इन पांच ग्रन्थों में “पश्चिमीकरण से शिक्षा की मुक्ति' एक ग्रन्थ है, और वह चौथे क्रमांक पर है तो भी शिक्षा | | यद्यपि इन पांच ग्रन्थों में “पश्चिमीकरण से शिक्षा की मुक्ति' एक ग्रन्थ है, और वह चौथे क्रमांक पर है तो भी शिक्षा |
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− | के भारतीयकरण का विषय इससे या इससे भी पूर्व से प्रारम्भ होता है । शिक्षा के पश्चिमीकरण से मुक्ति का विषय तो तब | + | के धार्मिककरण का विषय इससे या इससे भी पूर्व से प्रारम्भ होता है । शिक्षा के पश्चिमीकरण से मुक्ति का विषय तो तब |
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| आता है जब शिक्षा का पश्चिमीकरण हुआ हो । भारत में शिक्षा के पश्चिमीकरण का मामला पाँचसौ वर्ष पूर्व से प्रारम्भ | | आता है जब शिक्षा का पश्चिमीकरण हुआ हो । भारत में शिक्षा के पश्चिमीकरण का मामला पाँचसौ वर्ष पूर्व से प्रारम्भ |
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| दुःस्थिति का प्रारम्भ हुआ । वह लूट के उद्देश्य से आई थी । लूट निरन्तरता से, बिना अवरोध के होती रहे इस दृष्टि से | | दुःस्थिति का प्रारम्भ हुआ । वह लूट के उद्देश्य से आई थी । लूट निरन्तरता से, बिना अवरोध के होती रहे इस दृष्टि से |
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− | उसने व्यापार शुरु किया । व्यापार भारत भी करता था । धर्मपालजी लिखते हैं कि सत्रहवीं और अठारहवीं शताब्दी में चीन | + | उसने व्यापार आरम्भ किया । व्यापार भारत भी करता था । धर्मपालजी लिखते हैं कि सत्रहवीं और अठारहवीं शताब्दी में चीन |
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| और भारत का मिलकर विश्वव्यापार में तिहत्तर प्रतिशत हिस्सा था । अतः भारत को भी व्यापार का अनुभव कम नहीं | | और भारत का मिलकर विश्वव्यापार में तिहत्तर प्रतिशत हिस्सा था । अतः भारत को भी व्यापार का अनुभव कम नहीं |
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| से उन्होंने राज्य हथियाना प्रारम्भ किया । ब्रिटीशों का दूसरा उद्देश्य था भारत का इसाईकरण करना । इस उद्देश्य की पूर्ति | | से उन्होंने राज्य हथियाना प्रारम्भ किया । ब्रिटीशों का दूसरा उद्देश्य था भारत का इसाईकरण करना । इस उद्देश्य की पूर्ति |
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− | के लिये उन्होंने वनवासी, गिरिवासी, निर्धन लोगों को लक्ष्य बनाया, वर्गभेद निर्माण किये, भारत की समाज व्यवस्था को | + | के लिये उन्होंने वनवासी, गिरिवासी, निर्धन लोगोंं को लक्ष्य बनाया, वर्गभेद निर्माण किये, भारत की समाज व्यवस्था को |
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| ऊँचनीच का स्वरूप दिया, एक वर्ग को उच्च और दूसरे वर्ग को नीच बताकर उच्च वर्ग को अत्याचारी और नीच वर्ग को | | ऊँचनीच का स्वरूप दिया, एक वर्ग को उच्च और दूसरे वर्ग को नीच बताकर उच्च वर्ग को अत्याचारी और नीच वर्ग को |
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− | शोषित और पीडित बताकर पीडित वर्ग की सेवा के नाम पर इसाईकरण के प्रयास शुरू किये । उनका तीसरा उद्देश्य था | + | शोषित और पीडित बताकर पीडित वर्ग की सेवा के नाम पर इसाईकरण के प्रयास आरम्भ किये । उनका तीसरा उद्देश्य था |
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| भारत का यूरोपीकरण करना । उनके पहले उद्देश्य को स्थायी स्वरूप देने में भारत का यूरोपीकरण बडा कारगर उपाय था । | | भारत का यूरोपीकरण करना । उनके पहले उद्देश्य को स्थायी स्वरूप देने में भारत का यूरोपीकरण बडा कारगर उपाय था । |
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| यशस्वी हुई कि आज हम जानते तक नहीं है कि हम यूरोपीय शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं और यूरोपीय सोच से जी रहे हैं । | | यशस्वी हुई कि आज हम जानते तक नहीं है कि हम यूरोपीय शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं और यूरोपीय सोच से जी रहे हैं । |
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− | भारत को अभारत बनाने की प्रक्रिया दो सौ वर्ष पूर्व शुरू हुई और आज भी चल रही है । हम निरन्तर उल्टी दिशा में जा | + | भारत को अभारत बनाने की प्रक्रिया दो सौ वर्ष पूर्व आरम्भ हुई और आज भी चल रही है । हम निरन्तर उल्टी दिशा में जा |
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| रहे हैं और उसे विकास कह रहे हैं । अब प्रथम आवश्यकता दिशा बदलने की है । दिशा बदले बिना तो कोई भी प्रयास | | रहे हैं और उसे विकास कह रहे हैं । अब प्रथम आवश्यकता दिशा बदलने की है । दिशा बदले बिना तो कोई भी प्रयास |
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| हैं, उन अवरोधों को कैसे पार करना आदि विषयों की यथासम्भव विस्तार से चर्चा की गई है । | | हैं, उन अवरोधों को कैसे पार करना आदि विषयों की यथासम्भव विस्तार से चर्चा की गई है । |
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− | आज भारत में अच्छी शिक्षा की चर्चा सर्वत्र होती है परन्तु भारतीय शिक्षा की नहीं । अर्थात् एक छोटा वर्ग है जो | + | आज भारत में अच्छी शिक्षा की चर्चा सर्वत्र होती है परन्तु धार्मिक शिक्षा की नहीं । अर्थात् एक छोटा वर्ग है जो |
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− | भारतीय शिक्षा की बात करता है । परन्तु दोनों वर्गों की अपने अपने विषय की कल्पनायें बहुत मजेदार हैं । अच्छी शिक्षा
| + | धार्मिक शिक्षा की बात करता है । परन्तु दोनों वर्गों की अपने अपने विषय की कल्पनायें बहुत मजेदार हैं । अच्छी शिक्षा |
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| के पक्षधर अंग्रेजी माध्यम की शिक्षा को, तो कभी ऊँचे शुल्क वाली शिक्षा को, तो कभी संगणक जैसे भरपूर साधनसामग्री | | के पक्षधर अंग्रेजी माध्यम की शिक्षा को, तो कभी ऊँचे शुल्क वाली शिक्षा को, तो कभी संगणक जैसे भरपूर साधनसामग्री |
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| अच्छी शिक्षा कहते हैं । ये सभी आयाम एक साथ हों तो वह उत्तमोत्तम शिक्षा है। ऐसी शिक्षा देने वाले विद्यालय, | | अच्छी शिक्षा कहते हैं । ये सभी आयाम एक साथ हों तो वह उत्तमोत्तम शिक्षा है। ऐसी शिक्षा देने वाले विद्यालय, |
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− | महाविद्यालय या विश्वविद्यालय श्रेष्ठ हैं । भारतीय शिक्षा के पक्षधर संस्कृत में लिखे गये ज्योतिष, व्याकरण जैसे वेदांगों | + | महाविद्यालय या विश्वविद्यालय श्रेष्ठ हैं । धार्मिक शिक्षा के पक्षधर संस्कृत में लिखे गये ज्योतिष, व्याकरण जैसे वेदांगों |
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− | की, न्यायशास्त्र जैसे ग्रन्थों की, वैदिक गणित जैसे विषयों की शिक्षा को भारतीय शिक्षा कहते हैं । वेदों, dard और | + | की, न्यायशास्त्र जैसे ग्रन्थों की, वैदिक गणित जैसे विषयों की शिक्षा को धार्मिक शिक्षा कहते हैं । वेदों, dard और |
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− | योगदर्शन, उपनिषद आदि की शिक्षा को भारतीय शिक्षा कहते हैं । दोनों ही वर्गों में उत्तम विद्याकेन्द्रों के नमूने हैं । परन्तु | + | योगदर्शन, उपनिषद आदि की शिक्षा को धार्मिक शिक्षा कहते हैं । दोनों ही वर्गों में उत्तम विद्याकेन्द्रों के नमूने हैं । परन्तु |
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| देश और दुनिया की स्थिति तो उत्तरोत्तर बिगडती ही जा रही है, संकट बढ़ते ही जा रहे हैं । | | देश और दुनिया की स्थिति तो उत्तरोत्तर बिगडती ही जा रही है, संकट बढ़ते ही जा रहे हैं । |
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− | जो लोग अच्छी शिक्षा के पक्षधर हैं उन्हें राष्ट्रीय शिक्षा की संकल्पना समझने की और जो लोग भारतीय शिक्षा के | + | जो लोग अच्छी शिक्षा के पक्षधर हैं उन्हें राष्ट्रीय शिक्षा की संकल्पना समझने की और जो लोग धार्मिक शिक्षा के |
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| प्रयासों में रत हैं उन्हें युगानुकूल शिक्षा की संकल्पना समझने की आवश्यकता है । प्रत्येक राष्ट्र का एक विशेष स्वभाव होता | | प्रयासों में रत हैं उन्हें युगानुकूल शिक्षा की संकल्पना समझने की आवश्यकता है । प्रत्येक राष्ट्र का एक विशेष स्वभाव होता |
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| एक पीढ़ी से दूसरी पीढी को हस्तान्तरित होते होते उसकी परम्परा बनती है । शिक्षा संस्कृति की परम्परा बनाये रखने का, | | एक पीढ़ी से दूसरी पीढी को हस्तान्तरित होते होते उसकी परम्परा बनती है । शिक्षा संस्कृति की परम्परा बनाये रखने का, |
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− | उसे निरन्तर परिष्कृत करने का, उसे नष्ट नहीं होने देने का एकमात्र साधन है । अच्छी शिक्षा और भारतीय शिक्षा दोनों के | + | उसे निरन्तर परिष्कृत करने का, उसे नष्ट नहीं होने देने का एकमात्र साधन है । अच्छी शिक्षा और धार्मिक शिक्षा दोनों के |
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| पक्षधरों को राष्ट्रीता और उसके सभी व्यावहारिक आयामों को एक साथ रखकर समग्रता में अपना चिन्तन विकसित करने की | | पक्षधरों को राष्ट्रीता और उसके सभी व्यावहारिक आयामों को एक साथ रखकर समग्रता में अपना चिन्तन विकसित करने की |
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| आवश्यकता है । यह ग्रन्थमाला इसके लिये संकेत मात्र देने का प्रयास करती है । | | आवश्यकता है । यह ग्रन्थमाला इसके लिये संकेत मात्र देने का प्रयास करती है । |
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− | शिक्षा का भारतीयकरण करने की दिशा में यदि समग्रता में प्रयास करना है तो हमें एक सर्वआयामी प्रतिमान का | + | शिक्षा का धार्मिककरण करने की दिशा में यदि समग्रता में प्रयास करना है तो हमें एक सर्वआयामी प्रतिमान का |
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| विचार करना होगा । इस बात का विशेष उल्लेख इसलिये करना है क्योंकि भारत में एक बहुत बडा वर्ग ऐसा है जो | | विचार करना होगा । इस बात का विशेष उल्लेख इसलिये करना है क्योंकि भारत में एक बहुत बडा वर्ग ऐसा है जो |
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− | वर्तमान ढाँचे में ही भारतीय जीवन मूल्यों के अनुसार कुछ बातें जोडने का आग्रह रखता है । सरकार भी इनमें एक है । ये | + | वर्तमान ढाँचे में ही धार्मिक जीवन मूल्यों के अनुसार कुछ बातें जोडने का आग्रह रखता है । सरकार भी इनमें एक है । ये |
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| प्रयास उपयोगी नहीं हैं ऐसा तो नहीं कहा जा सकता क्योंकि आज सर्वथा विपरीत स्थिति में भी भारत जीवित है तो इन | | प्रयास उपयोगी नहीं हैं ऐसा तो नहीं कहा जा सकता क्योंकि आज सर्वथा विपरीत स्थिति में भी भारत जीवित है तो इन |
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| पश्चिमीकरण से मुक्ति का क्या स्वरूप है । पश्चीमी प्रभाव को नष्ट करने का अर्थ क्या होता है इसको समझने के लिये हमें | | पश्चिमीकरण से मुक्ति का क्या स्वरूप है । पश्चीमी प्रभाव को नष्ट करने का अर्थ क्या होता है इसको समझने के लिये हमें |
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− | बहुत पुरुषार्थ करना पडेगा । हम उल्टी दिशा में अर्थात् पश्चिमीकरण की दिशा में इतने दूर निकल गये है कि सही मार्ग पर | + | बहुत पुरुषार्थ करना पड़ेगा । हम उल्टी दिशा में अर्थात् पश्चिमीकरण की दिशा में इतने दूर निकल गये है कि सही मार्ग पर |
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| का एक एक पडाव, छोटे से छोटा कदम भी हमें अव्यावहारिक लगने लगेगा । उदाहरण के लिये यदि हम कहें कि शिक्षा | | का एक एक पडाव, छोटे से छोटा कदम भी हमें अव्यावहारिक लगने लगेगा । उदाहरण के लिये यदि हम कहें कि शिक्षा |
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− | की भारतीय संकल्पना के अनुसार शिक्षा निःशुल्क होनी चाहिये तो यह बात सर्वथा अव्यावहारिक लगेगी । यदि हम कहें | + | की धार्मिक संकल्पना के अनुसार शिक्षा निःशुल्क होनी चाहिये तो यह बात सर्वथा अव्यावहारिक लगेगी । यदि हम कहें |
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| कि अंग्रेजी से अध्ययन को मुक्त करना चाहिये तो वह भी अव्यावहारिक लगेगा । यदि कहा जाय कि साधनसामग्री की | | कि अंग्रेजी से अध्ययन को मुक्त करना चाहिये तो वह भी अव्यावहारिक लगेगा । यदि कहा जाय कि साधनसामग्री की |
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| हृदयस्थ और मस्तिष्कस्थ करना होगा । बाद में उसके क्रियान्वयन की भी बात आयेगी । दूसरा चरण होगा पश्चिमीकरण से | | हृदयस्थ और मस्तिष्कस्थ करना होगा । बाद में उसके क्रियान्वयन की भी बात आयेगी । दूसरा चरण होगा पश्चिमीकरण से |
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− | शिक्षा को मुक्त कर उसे भारतीय बनाना । यह भी पर्याप्त अध्ययन की अपेक्षा करेगा । इस प्रकार शिक्षा के भारतीयकरण | + | शिक्षा को मुक्त कर उसे धार्मिक बनाना । यह भी पर्याप्त अध्ययन की अपेक्षा करेगा । इस प्रकार शिक्षा के धार्मिककरण |
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| का विषय विश्लेषणपूर्वक समझना होगा । | | का विषय विश्लेषणपूर्वक समझना होगा । |
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− | एक बार भारतीय शिक्षा की भारत में प्रतिष्ठा होगी और भारत भारत बनेगा तब फिर भारत की विश्व में क्या भूमिका | + | एक बार धार्मिक शिक्षा की भारत में प्रतिष्ठा होगी और भारत भारत बनेगा तब फिर भारत की विश्व में क्या भूमिका |
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| है इस विषय का विचार करने का विषय आता है। आज विश्व संकटों से ग्रस्त है उसका सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कारण | | है इस विषय का विचार करने का विषय आता है। आज विश्व संकटों से ग्रस्त है उसका सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कारण |
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| पश्चिमी जीवनदृष्टि का प्रभाव ही है । पश्चिम की जीवनदृष्टि शेष विश्व के लिये ही नहीं तो उसके अपने लिये भी विनाशक | | पश्चिमी जीवनदृष्टि का प्रभाव ही है । पश्चिम की जीवनदृष्टि शेष विश्व के लिये ही नहीं तो उसके अपने लिये भी विनाशक |
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− | ही है । विश्व को और पश्चिम को बचाने वाली तो भारतीय जीवनदृष्टि ही है । हमें चार आयामों में विश्वस्थिति और भारत | + | ही है । विश्व को और पश्चिम को बचाने वाली तो धार्मिक जीवनदृष्टि ही है । हमें चार आयामों में विश्वस्थिति और भारत |
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| के बारे में विचार करना होगा । एक, पश्चिम की दृष्टि में पश्चिम, दो, पश्चिम की दृष्टि में भारत, तीन, भारत की दृष्टि में | | के बारे में विचार करना होगा । एक, पश्चिम की दृष्टि में पश्चिम, दो, पश्चिम की दृष्टि में भारत, तीन, भारत की दृष्टि में |
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| में भारत विश्व का कल्याण कर सकता है । | | में भारत विश्व का कल्याण कर सकता है । |
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− | इस प्रकार सभी आयामों में शिक्षा के भारतीय करण का विचार इस ग्रन्थमाला में किया गया है । | + | इस प्रकार सभी आयामों में शिक्षा के धार्मिक करण का विचार इस ग्रन्थमाला में किया गया है । |
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| ग्रन्थों के विभिन्न विषयों पर प्रश्नावलियाँ बनाकर सम्बन्धित समूहों को भेज कर उनसे उत्तर मँगवाकर उनका संकलन किया | | ग्रन्थों के विभिन्न विषयों पर प्रश्नावलियाँ बनाकर सम्बन्धित समूहों को भेज कर उनसे उत्तर मँगवाकर उनका संकलन किया |
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− | गया और निष्कर्ष निकाले गये । इन प्रश्नावलियों के माध्यम से कम से कम पाँच हजार लोगों तक पहुंचना हुआ । इसी | + | गया और निष्कर्ष निकाले गये । इन प्रश्नावलियों के माध्यम से कम से कम पाँच हजार लोगोंं तक पहुंचना हुआ । इसी |
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| प्रकार से अध्ययन यात्रा का आयोजन किया गया जिसमें देश के विभिन्न महानगरों में जाकर विद्वान प्राध्यापकों से मार्गदर्शन | | प्रकार से अध्ययन यात्रा का आयोजन किया गया जिसमें देश के विभिन्न महानगरों में जाकर विद्वान प्राध्यापकों से मार्गदर्शन |
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− | प्राप्त किया गया | तीसरा माध्यम था विट्रतू गोष्टियों का । प्रत्येक ग्रन्थ के विषय में एक, ऐसी पाँच अखिल भारतीय स्तर | + | प्राप्त किया गया | तीसरा माध्यम था विट्रतू गोष्टियों का । प्रत्येक ग्रन्थ के विषय में एक, ऐसी पाँच अखिल धार्मिक स्तर |
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| आधार पर निष्कर्ष, मुद्रित शोधन, चिकित्सक बुद्धि से पठन, आदि सन्दर्भ कार्यों में अनेकानेक लोग सहभागी हुए । इस | | आधार पर निष्कर्ष, मुद्रित शोधन, चिकित्सक बुद्धि से पठन, आदि सन्दर्भ कार्यों में अनेकानेक लोग सहभागी हुए । इस |
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− | प्रकार इन ग्रन्थों का निर्माण सामूहिक प्रयास का फल है । इसमें सहभागी प्रमुख लोगों की सूची भी इतनी लम्बी है कि | + | प्रकार इन ग्रन्थों का निर्माण सामूहिक प्रयास का फल है । इसमें सहभागी प्रमुख लोगोंं की सूची भी इतनी लम्बी है कि |
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| उसे यहाँ नहीं दी जा सकती । उसे परिशिष्ट में दिया गया है । पुनरुत्थान विद्यापीठ उन सभी सहायकों और सहभागियों का | | उसे यहाँ नहीं दी जा सकती । उसे परिशिष्ट में दिया गया है । पुनरुत्थान विद्यापीठ उन सभी सहायकों और सहभागियों का |
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| v. | | v. |
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− | यह ग्रन्थमाला किसके लिये है इस प्रश्न का सरल उत्तर होगा “सबके लिये । फिर भी कुछ स्पष्टताओं की | + | यह ग्रन्थमाला किसके लिये है इस प्रश्न का सरल उत्तर होगा “सबके लिये । तथापि कुछ स्पष्टताओं की |
| | | |
| आवश्यकता है । | | आवश्यकता है । |
| | | |
− | -. यह ग्रन्थमाला भारतीय शिक्षा के प्रश्न को समग्रता में समझना और सुलझाना चाहते हैं उनके लिये है । | + | -. यह ग्रन्थमाला धार्मिक शिक्षा के प्रश्न को समग्रता में समझना और सुलझाना चाहते हैं उनके लिये है । |
| | | |
− | -. यह ग्रन्थमाला भारतीय शिक्षा के विषय में अनुसन्धान करना चाहते हैं उनके लिये है । | + | -. यह ग्रन्थमाला धार्मिक शिक्षा के विषय में अनुसन्धान करना चाहते हैं उनके लिये है । |
| | | |
− | -. यह ग्रन्थमाला शिक्षा के भारतीय प्रतिमान को लेकर जो प्रयोग करना चाहते हैं उनके लिये चिन्तन प्रस्तुत करती | + | -. यह ग्रन्थमाला शिक्षा के धार्मिक प्रतिमान को लेकर जो प्रयोग करना चाहते हैं उनके लिये चिन्तन प्रस्तुत करती |
| | | |
| है । | | है । |
| | | |
− | -. यह verre विश्वविद्यालयों के अध्ययन मण्डलों को भारतीय संकल्पना के अनुसार विभिन्न विषयों के स्वरूप | + | -. यह verre विश्वविद्यालयों के अध्ययन मण्डलों को धार्मिक संकल्पना के अनुसार विभिन्न विषयों के स्वरूप |
| | | |
| Tet Sg सूत्र देने का प्रयास करती है । | | Tet Sg सूत्र देने का प्रयास करती है । |
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| हेतु, कार्ययोजना की एक रूपरेखा प्रस्तुत करती है । | | हेतु, कार्ययोजना की एक रूपरेखा प्रस्तुत करती है । |
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− | -. यह ग्रन्थमाला पश्चिमीकरण से भारतीय मानस की मुक्ति हेतु प्रयास करने वाले सबको एक सन्दर्भ प्रस्तुत करने | + | -. यह ग्रन्थमाला पश्चिमीकरण से धार्मिक मानस की मुक्ति हेतु प्रयास करने वाले सबको एक सन्दर्भ प्रस्तुत करने |
| | | |
| का प्रयास करती है । | | का प्रयास करती है । |
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− | अधिकांश ऐसा समझा जाता है कि शिक्षा का भारतीयकरण शिक्षा विभाग का विषय है । इसलिये इस विषय की | + | अधिकांश ऐसा समझा जाता है कि शिक्षा का धार्मिककरण शिक्षा विभाग का विषय है । इसलिये इस विषय की |
| | | |
| चर्चा विश्वविद्यालयों के शिक्षाविभाग में, बी.एड. या एम.एड. कोलेजों में, शिक्षकों की सभाओं में की जाती है । गोष्टियों | | चर्चा विश्वविद्यालयों के शिक्षाविभाग में, बी.एड. या एम.एड. कोलेजों में, शिक्षकों की सभाओं में की जाती है । गोष्टियों |
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| पाठ्यक्रमों की चर्चा नहीं होती क्योंकि उनके विषय में तो उन उन विषयों के शास्त्रों के जानकार विद्वानों की भूमिका होती | | पाठ्यक्रमों की चर्चा नहीं होती क्योंकि उनके विषय में तो उन उन विषयों के शास्त्रों के जानकार विद्वानों की भूमिका होती |
| | | |
− | है शिक्षाशास्र विषय के अध्यापकों की नहीं । आश्चर्य की बात यह है कि शिक्षाशास्त्र अपने आपको अध्ययन और | + | है शिक्षाशास्त्र विषय के अध्यापकों की नहीं । आश्चर्य की बात यह है कि शिक्षाशास्त्र अपने आपको अध्ययन और |
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| अध्यापन तक सीमित रखता है, क्या पढाना है उसके विषय में अपने आपको जिम्मेदार नहीं मानता । अर्थात् शिक्षा | | अध्यापन तक सीमित रखता है, क्या पढाना है उसके विषय में अपने आपको जिम्मेदार नहीं मानता । अर्थात् शिक्षा |
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− | शिक्षा के भारतीयकरण हेतु इतनी सीमित भूमिका से काम नहीं चलेगा । उस अर्थ में यह एक वैचारिक विषय है | + | शिक्षा के धार्मिककरण हेतु इतनी सीमित भूमिका से काम नहीं चलेगा । उस अर्थ में यह एक वैचारिक विषय है |
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| और देश के सर्वसामान्य बौद्धिक वर्ग के लिये इसकी चिन्ता और चिन्तन करने की आवश्यकता है । पढने वाले छोटे से | | और देश के सर्वसामान्य बौद्धिक वर्ग के लिये इसकी चिन्ता और चिन्तन करने की आवश्यकता है । पढने वाले छोटे से |
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| विद्यार्थी से लेकर किसी भी विषय का अध्ययन करने वाले अध्यापक अथवा किसी भी क्षेत्र में कार्यरत विद्वानों, समाज | | विद्यार्थी से लेकर किसी भी विषय का अध्ययन करने वाले अध्यापक अथवा किसी भी क्षेत्र में कार्यरत विद्वानों, समाज |
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− | का हित चाहने वाले राजनीति के क्षेत्र के लोगों तथा सन्तों, धर्माचार्यो, आदि सबका यह विषय बनता है । शिक्षा के | + | का हित चाहने वाले राजनीति के क्षेत्र के लोगोंं तथा सन्तों, धर्माचार्यो, आदि सबका यह विषय बनता है । शिक्षा के |
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− | पश्चिमीकरण ने अर्थक्षेत्र, राजनीति, शासन, समाज व्यवस्था, कुट्म्ब जीवन, उद्योगतन्त्र आदि सभी क्षेत्रों को प्रभावित किया | + | पश्चिमीकरण ने अर्थक्षेत्र, राजनीति, शासन, समाज व्यवस्था, कुटुम्ब जीवन, उद्योगतन्त्र आदि सभी क्षेत्रों को प्रभावित किया |
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− | है इसलिये भारतीयकरण भी सभी क्षेत्रों के सरोकार का विषय बनेगा । शिक्षा अपने आपमें तो ऐसा कोई विषय नहीं है । | + | है इसलिये धार्मिककरण भी सभी क्षेत्रों के सरोकार का विषय बनेगा । शिक्षा अपने आपमें तो ऐसा कोई विषय नहीं है । |
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− | अतः सभी क्षेत्रों में कार्यरत लोगों को अपने अपने क्षेत्र के विचार और व्यवस्था के सम्बन्ध में तथा शिक्षा के सम्बन्ध में | + | अतः सभी क्षेत्रों में कार्यरत लोगोंं को अपने अपने क्षेत्र के विचार और व्यवस्था के सम्बन्ध में तथा शिक्षा के सम्बन्ध में |
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− | साथ साथ विचार करना होगा । भारतीयकरण का विचार भी समग्रता में ही हो सकता है । | + | साथ साथ विचार करना होगा । धार्मिककरण का विचार भी समग्रता में ही हो सकता है । |
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| इस ग्रन्थमाला में इसी प्रकार की भूमिका अपनाई गई है । | | इस ग्रन्थमाला में इसी प्रकार की भूमिका अपनाई गई है । |
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− | यह ग्रन्थमला कुछ विस्तृत सी लगती है फिर भी यह प्राथमिक स्वरूप का ही प्रतिपादन है । | + | यह ग्रन्थमला कुछ विस्तृत सी लगती है तथापि यह प्राथमिक स्वरूप का ही प्रतिपादन है । |
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| इस ग्रन्थमाला का कथन एक ग्रन्थ में भी हो सकता है और कोई चाहे तो आधे ग्रन्थ में भी हो सकता है परन्तु | | इस ग्रन्थमाला का कथन एक ग्रन्थ में भी हो सकता है और कोई चाहे तो आधे ग्रन्थ में भी हो सकता है परन्तु |
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| सुधी लोग आवश्यकता के अनुसार इस विषय को आगे बढ़ाते ही रहेंगे ऐसा विश्वास है । | | सुधी लोग आवश्यकता के अनुसार इस विषय को आगे बढ़ाते ही रहेंगे ऐसा विश्वास है । |
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− | इस ग्रन्थमाला के माध्यम से विद्यापीठ ऐसे सभी लोगों का भारतीय शिक्षा के विषय पर ध्रुवीकरण करना चाहता है | + | इस ग्रन्थमाला के माध्यम से विद्यापीठ ऐसे सभी लोगोंं का धार्मिक शिक्षा के विषय पर ध्रुवीकरण करना चाहता है |
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− | जो भारतीय शिक्षा के विषय में चिन्तित हैं, कुछ करना चाहते हैं, अन्यान्य प्रकार से कुछ कर रहे हैं और जिज्ञासु और | + | जो धार्मिक शिक्षा के विषय में चिन्तित हैं, कुछ करना चाहते हैं, अन्यान्य प्रकार से कुछ कर रहे हैं और जिज्ञासु और |
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| प्रयोगशील हैं । इस दृष्टि से भविष्य में इसका भारत की अन्याय भाषाओं में अनुवाद हो यह पुनरुत्थान विद्यापीठ की | | प्रयोगशील हैं । इस दृष्टि से भविष्य में इसका भारत की अन्याय भाषाओं में अनुवाद हो यह पुनरुत्थान विद्यापीठ की |
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| हो ऐसी भी अपेक्षा रहेगी । | | हो ऐसी भी अपेक्षा रहेगी । |
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− | शिशुअवस्था में घर से प्रास्भ कर विश्वविद्यालय तक और बाद में समाज के व्यापक क्षेत्र में शिक्षा के भारतीयकरण के | + | शिशुअवस्था में घर से प्रास्भ कर विश्वविद्यालय तक और बाद में समाज के व्यापक क्षेत्र में शिक्षा के धार्मिककरण के |
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| प्रभावी प्रयास हो इस दृष्टि से इस ग्रन्थमाला जैसे सैंकडों ग्रन्थों की स्वना करने की आवश्यकता रहेगी । श्रेष्ठ विद्वानों से लेकर | | प्रभावी प्रयास हो इस दृष्टि से इस ग्रन्थमाला जैसे सैंकडों ग्रन्थों की स्वना करने की आवश्यकता रहेगी । श्रेष्ठ विद्वानों से लेकर |
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| जो सद्यग्राही होते हैं उनके लिये समासशैली अनुकूल होती है, वे व्यासशैली से कभी कभी चिढते भी हैं परन्तु सर्वसामान्य | | जो सद्यग्राही होते हैं उनके लिये समासशैली अनुकूल होती है, वे व्यासशैली से कभी कभी चिढते भी हैं परन्तु सर्वसामान्य |
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− | पाठक वर्ग के लिये व्यासशैली अनुकूल होती है । भारतीय शिक्षा का विषय ज्ञानात्मक दृष्टि से गम्भीर है, व्यवहार की | + | पाठक वर्ग के लिये व्यासशैली अनुकूल होती है । धार्मिक शिक्षा का विषय ज्ञानात्मक दृष्टि से गम्भीर है, व्यवहार की |
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| दृष्टि से तो और भी गम्भीर और उलझा हुआ है इसलिये उसे सलझाने के लिये व्यासशैली ही चाहिये । कभी कभी तो यह | | दृष्टि से तो और भी गम्भीर और उलझा हुआ है इसलिये उसे सलझाने के लिये व्यासशैली ही चाहिये । कभी कभी तो यह |
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− | हम सबका सौभाग्य है कि इस ग्रन्थमाला का लोकार्पण राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के परम पूजनीय सरसंघवालक
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− | माननीय मोहनजी भागवत के करकमलों से हो रहा है ।
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− | पुनश्च सभी परामर्शकों, मार्गदर्शकों, सहभागियों, सहयोगियों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हुए यह ग्रन्थमाला पाठकों
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− | के हाथों सौंप रहे हैं ।
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− | ग्रन्थ में विषय प्रतिपादन, निरूपण शैली, रचना, भाषाशुद्धि की दृष्टि से दोष रहे ही होंगे । सम्पादकों की मर्यादा
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− | समझकर पाठक इसे क्षमा करें, स्वयं सुधार कर लें और उनकी ओर हमारा ध्यान आकर्षित करें यही निवेदन हैं ।
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− | इति शुभम् ।
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− | व्यासपूर्णिमा सम्पादकमण्डल
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− | युगाब्दू ५११८
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− | ९ जुलाई २०२१७
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| श्री ज्ञानसरस्वती मंदिर क्षेत्र बासर का क्षेत्रमहात्म्य | | श्री ज्ञानसरस्वती मंदिर क्षेत्र बासर का क्षेत्रमहात्म्य |
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| से निराश और उदास होकर महर्षि व्यास, उनके पुत्र शुकदेवजी एवं | | से निराश और उदास होकर महर्षि व्यास, उनके पुत्र शुकदेवजी एवं |
| | | |
− | अन्य अनुयायी दक्षिण की ओर तीर्थयात्रा पर चल पडे और | + | अन्य अनुयायी दक्षिण की ओर तीर्थयात्रा पर चल पड़े और |
| | | |
| गोदावरी के तट पर तप के लिए उन्हों ने डेरा डाल दिया । उनके | | गोदावरी के तट पर तप के लिए उन्हों ने डेरा डाल दिया । उनके |
Line 456: |
Line 436: |
| त्रिस्तरीय कार्य का यथार्थ बोध होता है । | | त्रिस्तरीय कार्य का यथार्थ बोध होता है । |
| | | |
− | इस अंक यन्त्र में ज्ञानशक्ति सांख्यब्रह्म है । बीच के स्तर में वलयांकित रेखाओं से जुड़े हुए अंक क्रियाशक्ति के हलचल | + | इस अंक यन्त्र में ज्ञानशक्ति सांख्यब्रह्म है । मध्य के स्तर में वलयांकित रेखाओं से जुड़े हुए अंक क्रियाशक्ति के हलचल |
| | | |
| की दिशा स्पष्ट करते हैं । चक्राकार एवं वलयांकित रेखाएँ शक्ति के केंद्रीकरण की सूचक हैं, जो समग्रता का संकेत होकर | | की दिशा स्पष्ट करते हैं । चक्राकार एवं वलयांकित रेखाएँ शक्ति के केंद्रीकरण की सूचक हैं, जो समग्रता का संकेत होकर |
Line 488: |
Line 468: |
| सृष्टि परमात्मा का विश्वरूप है, अंगांगी सम्बन्ध, समग्रता की | | सृष्टि परमात्मा का विश्वरूप है, अंगांगी सम्बन्ध, समग्रता की |
| | | |
− | आवश्यकता, सृष्टि का समग्र स्वरूप, चिज्जडग्रन्थि, मनुष्य का | + | आवश्यकता, सृष्टि का समग्र स्वरूप, चिज्जड़ग्रन्थि, मनुष्य का |
| | | |
| दायित्व, अनुप्रश्न | | दायित्व, अनुप्रश्न |
Line 500: |
Line 480: |
| और स्पर्धा, विकास और यास्त्रकीकरण | | और स्पर्धा, विकास और यास्त्रकीकरण |
| | | |
− | 'विकास की भारतीय संकल्पना एवं स्वरूप ३१ | + | 'विकास की धार्मिक संकल्पना एवं स्वरूप ३१ |
| | | |
| समन्वित विकास | | समन्वित विकास |
Line 604: |
Line 584: |
| समावर्तन उपदेश, जीवन का अधिष्ठान सत्य और धर्म, गृहस्थ के | | समावर्तन उपदेश, जीवन का अधिष्ठान सत्य और धर्म, गृहस्थ के |
| | | |
− | कार्य अथर्जिन एवं सन्तानोत्पत्ति, अध्ययन प्रयोग से परिपक्क होता | + | कार्य अर्थार्जन एवं सन्तानोत्पत्ति, अध्ययन प्रयोग से परिपक्क होता |
| | | |
| है, व्यवहार जीवन के अवरोध, संस्कार देने के कौशल, अपने | | है, व्यवहार जीवन के अवरोध, संस्कार देने के कौशल, अपने |
Line 671: |
Line 651: |
| ३. पाश्चात्य देशों में शिशुशिक्षा की व्यवस्था, ४. वर्तमान भारत | | ३. पाश्चात्य देशों में शिशुशिक्षा की व्यवस्था, ४. वर्तमान भारत |
| | | |
− | में शिशुशिक्षा की स्थिति, ५. भारतीय वातावरण में शिशुशिक्षा | + | में शिशुशिक्षा की स्थिति, ५. धार्मिक वातावरण में शिशुशिक्षा |
| | | |
| का स्वरूप, शिशु शिक्षा का पाठ्यक्रम, आत्मतत्त्व की अनुभूति | | का स्वरूप, शिशु शिक्षा का पाठ्यक्रम, आत्मतत्त्व की अनुभूति |
Line 880: |
Line 860: |
| 8. | | 8. |
| | | |
− | ७. वैज्ञानिकों का परिचय, ८. विज्ञान कथाएँ, संदर्भ, पाठ्यक्रम, | + | ७. वैज्ञानिकों का परिचय, ८. विज्ञान कथाएँँ, संदर्भ, पाठ्यक्रम, |
| | | |
| विस्तार, १. याद करना, २. गणना करना (गिनती करना) , | | विस्तार, १. याद करना, २. गणना करना (गिनती करना) , |
Line 892: |
Line 872: |
| ३. चलना, ४. उठना, ४. सोना, २ (क) ज्ञानिन्द्रियाँ, १. आँख, | | ३. चलना, ४. उठना, ४. सोना, २ (क) ज्ञानिन्द्रियाँ, १. आँख, |
| | | |
− | २. कान, ३. नाक, ४. जिद्दा, ५. त्वचा, २ (ख) कर्मेन्ट्रियाँ, | + | २. कान, ३. नाक, ४. जिद्दा, ५. त्वचा, २ (ख) कर्मेन्द्रियाँ, |
| | | |
| हाथ, १, फैंकना, ३. शारीरिक संतुलन व संचालन, ४. शरीर | | हाथ, १, फैंकना, ३. शारीरिक संतुलन व संचालन, ४. शरीर |
Line 1,023: |
Line 1,003: |
| ६. वरवधूचयन और विवाहसंस्कार Bey | | ६. वरवधूचयन और विवाहसंस्कार Bey |
| | | |
− | पाठ्यक्रम, विवाहविषयक पाश्चात्य एवं भारतीय दृष्टिकोण, | + | पाठ्यक्रम, विवाहविषयक पाश्चात्य एवं धार्मिक दृष्टिकोण, |
| | | |
− | पाश्चात्य दृष्टिकोण, भारतीय दृष्टिकोण, गृहस्थाश्रम : पति पत्नी | + | पाश्चात्य दृष्टिकोण, धार्मिक दृष्टिकोण, गृहस्थाश्रम : पति पत्नी |
| | | |
| का सम्बन्ध | | का सम्बन्ध |
Line 1,077: |
Line 1,057: |
| महाविद्यालयीन शिक्षा, अध्ययन के विषयनवकृति, अनुसन्धान, | | महाविद्यालयीन शिक्षा, अध्ययन के विषयनवकृति, अनुसन्धान, |
| | | |
− | १, हम है भारतीय गायें, २. देशी और विदेशी गाय का अन्तर, | + | १, हम है धार्मिक गायें, २. देशी और विदेशी गाय का अन्तर, |
| | | |
| अद्भुत गाय, गाय की Asya A, 3. अद्भुत गाय | | अद्भुत गाय, गाय की Asya A, 3. अद्भुत गाय |
Line 1,136: |
Line 1,116: |
| तत्त्वचिन्तन | | तत्त्वचिन्तन |
| | | |
− | भारतीय ज्ञानधारा का आधार लेकर शिक्षा के समग्र विकास प्रतिमान की
| + | धार्मिक ज्ञानधारा का आधार लेकर शिक्षा के समग्र विकास प्रतिमान की |
| | | |
− | प्रस्तुति यहाँ की गई है । भारतीय ज्ञानधारा का प्रवाह क्षीण रूप में अभी | + | प्रस्तुति यहाँ की गई है । धार्मिक ज्ञानधारा का प्रवाह क्षीण रूप में अभी |
| | | |
| अस्तित्व में तो है परन्तु शिक्षा तथा अन्य व्यवस्थाओं में वह अनुस्यूत नहीं | | अस्तित्व में तो है परन्तु शिक्षा तथा अन्य व्यवस्थाओं में वह अनुस्यूत नहीं |
Line 1,144: |
Line 1,124: |
| होने के कारण से पुष्ट नहीं हो रहा है । ज्ञानधारा पुष्ट नहीं होने के कारण | | होने के कारण से पुष्ट नहीं हो रहा है । ज्ञानधारा पुष्ट नहीं होने के कारण |
| | | |
− | भारतीय जीवन को भी स्वाभाविक पोषण नहीं मिलता है । इसका परिणाम यह
| + | धार्मिक जीवन को भी स्वाभाविक पोषण नहीं मिलता है । इसका परिणाम यह |
| | | |
− | होता है कि भारत का जनजीवन अभारतीय ज्ञानधारा से आप्लावित होता है । | + | होता है कि भारत का जनजीवन अधार्मिक ज्ञानधारा से आप्लावित होता है । |
| | | |
| इससे बचना चाहिये । बचने का उपाय शिक्षा में ही प्राप्त हो सकता है । कारण | | इससे बचना चाहिये । बचने का उपाय शिक्षा में ही प्राप्त हो सकता है । कारण |
Line 1,162: |
Line 1,142: |
| तत्त्वचिन्तन के इस खण्ड में समग्र विकास प्रतिमान की शब्दावली की | | तत्त्वचिन्तन के इस खण्ड में समग्र विकास प्रतिमान की शब्दावली की |
| | | |
− | व्याख्या की गई है । जहाँ आवश्यक है वहाँ अभारतीय अर्थ भी बताया गया | + | व्याख्या की गई है । जहाँ आवश्यक है वहाँ अधार्मिक अर्थ भी बताया गया |
| | | |
− | है । परन्तु अभारतीय व्याख्याओं का विवेचन करना यह मुख्य लक्ष्य नहीं है । | + | है । परन्तु अधार्मिक व्याख्याओं का विवेचन करना यह मुख्य लक्ष्य नहीं है । |
| | | |
| यथासम्भव निरूपण को सरल बनाने का प्रयास भी किया गया है । | | यथासम्भव निरूपण को सरल बनाने का प्रयास भी किया गया है । |
| | | |
− | कदाचित यह निरूपण संक्षिप्त भी लग सकता है । संक्षिप्त इसलिए है | + | कदाचित यह निरूपण संक्षिप्त भी लग सकता है । संक्षिप्त अतः है |
| | | |
| क्योंकि व्यवहारपक्ष अधिक विस्तार से आना आवश्यक है । | | क्योंकि व्यवहारपक्ष अधिक विस्तार से आना आवश्यक है । |
Line 1,188: |
Line 1,168: |
| ३. ... विकास की वर्तमान संकल्पना एवं स्वरूप 83 | | ३. ... विकास की वर्तमान संकल्पना एवं स्वरूप 83 |
| | | |
− | ४... विकास की भारतीय संकल्पना एवं स्वरूप ३१ | + | ४... विकास की धार्मिक संकल्पना एवं स्वरूप ३१ |
| | | |
| ५. .... व्यक्तित्व मीमांसा ¥¥ | | ५. .... व्यक्तित्व मीमांसा ¥¥ |
Line 1,213: |
Line 1,193: |
| हुई हैं उन्हें दूर करने हेतु, विद्याक्षेत्र को परिष्कृत करने हेतु, | | हुई हैं उन्हें दूर करने हेतु, विद्याक्षेत्र को परिष्कृत करने हेतु, |
| | | |
− | भारतीय ज्ञानधारा के अवरुद्ध प्रवाह को पुन: प्रवाहित करने
| + | धार्मिक ज्ञानधारा के अवरुद्ध प्रवाह को पुन: प्रवाहित करने |
| | | |
| हेतु, शिक्षा के विषय में जो भी जिज्ञासु, अभ्यासु और | | हेतु, शिक्षा के विषय में जो भी जिज्ञासु, अभ्यासु और |
Line 1,219: |
Line 1,199: |
| कार्यच्छु हैं उनकी सहायता और सेवा करने हेतु तथा | | कार्यच्छु हैं उनकी सहायता और सेवा करने हेतु तथा |
| | | |
− | भारतीय ज्ञानधारा की प्रतिष्ठा कर विश्वकल्याण का मार्ग
| + | धार्मिक ज्ञानधारा की प्रतिष्ठा कर विश्वकल्याण का मार्ग |
| | | |
| प्रशस्त करने हेतु “शिक्षा का समग्र विकास प्रतिमान के | | प्रशस्त करने हेतु “शिक्षा का समग्र विकास प्रतिमान के |
Line 1,229: |
Line 1,209: |
| वर्षों की उसकी ज्ञानपर््परा । सर्व शास्त्रों के ज्ञाता, | | वर्षों की उसकी ज्ञानपर््परा । सर्व शास्त्रों के ज्ञाता, |
| | | |
− | जगत्कल्याणकारी ज्ञान के उपासक और ज्ञानपरम्परा को
| + | जगतकल्याणकारी ज्ञान के उपासक और ज्ञानपरम्परा को |
| | | |
| अक्षुण्ण रखने हेतु समर्थ शिष्यों का अध्यापन करने वाले | | अक्षुण्ण रखने हेतु समर्थ शिष्यों का अध्यापन करने वाले |
Line 1,273: |
Line 1,253: |
| हमारे देश को शिक्षा के एक ऐसे प्रतिमान की आवश्यकता | | हमारे देश को शिक्षा के एक ऐसे प्रतिमान की आवश्यकता |
| | | |
− | है जो शत प्रतिशत भारतीय हो । शिक्षा का भारतीयकारण | + | है जो शत प्रतिशत धार्मिक हो । शिक्षा का धार्मिककारण |
| | | |
| करने के देशभर में अनेक प्रकार से प्रयास चल रहे हैं । उन | | करने के देशभर में अनेक प्रकार से प्रयास चल रहे हैं । उन |
Line 1,293: |
Line 1,273: |
| अभाव में शब्द तो गढ़े जाते हैं परन्तु वे अपेक्षित प्रयोजन | | अभाव में शब्द तो गढ़े जाते हैं परन्तु वे अपेक्षित प्रयोजन |
| | | |
− | को पूर्ण कर सर्के ऐसे सार्थक नहीं होते । इसलिए हमने | + | को पूर्ण कर सर्के ऐसे सार्थक नहीं होते । अतः हमने |
| | | |
| शब्दावली निश्चित कर उनके अर्थों और सन्दर्भो को स्पष्ट | | शब्दावली निश्चित कर उनके अर्थों और सन्दर्भो को स्पष्ट |
Line 1,303: |
Line 1,283: |
| में समग्रता में विचार किया जाय । शिक्षा के केवल शैक्षिक | | में समग्रता में विचार किया जाय । शिक्षा के केवल शैक्षिक |
| | | |
− | पक्ष का विचार करने से शिक्षा का भारतीयकरण नहीं | + | पक्ष का विचार करने से शिक्षा का धार्मिककरण नहीं |
| | | |
| होगा । शिक्षा का व्यवस्था पक्ष और आर्थिक पक्ष भी | | होगा । शिक्षा का व्यवस्था पक्ष और आर्थिक पक्ष भी |
Line 1,309: |
Line 1,289: |
| सम्पूर्ण तंत्र को बहुत प्रभावित करता है । अत: इन दोनों | | सम्पूर्ण तंत्र को बहुत प्रभावित करता है । अत: इन दोनों |
| | | |
− | पक्षों के भी भारतीयकरण की आवश्यकता है। ऐसी | + | पक्षों के भी धार्मिककरण की आवश्यकता है। ऐसी |
| | | |
− | भारतीय व्यवस्थाओं के सन्दर्भ में प्रतिष्ठित हो सके ऐसे
| + | धार्मिक व्यवस्थाओं के सन्दर्भ में प्रतिष्ठित हो सके ऐसे |
| | | |
| शैक्षिक प्रतिमान का विचार करने का मानस हमने बनाया | | शैक्षिक प्रतिमान का विचार करने का मानस हमने बनाया |
Line 1,378: |
Line 1,358: |
| उसने वास किया । जो आश्रयरूप है या नहीं है, जिसका | | उसने वास किया । जो आश्रयरूप है या नहीं है, जिसका |
| | | |
− | वर्णन किया जाता है या नहीं किया जाता है, जो जड़ है या | + | वर्णन किया जाता है या नहीं किया जाता है, जो जड़़ है या |
| | | |
| चेतन है, जो सत्य है या अनृत अर्थात् असत्य है । ये सारे | | चेतन है, जो सत्य है या अनृत अर्थात् असत्य है । ये सारे |
Line 1,388: |
Line 1,368: |
| सृष्टि परमात्मा का विश्वरूप है | | सृष्टि परमात्मा का विश्वरूप है |
| | | |
− | भारतीय विचारविश्व का यह सर्वस्वीकृत, आधारभूत
| + | धार्मिक विचारविश्व का यह सर्वस्वीकृत, आधारभूत |
| | | |
| और प्रिय सिद्धान्त है । यह सारी सृष्टि परमात्मा ने बनाई | | और प्रिय सिद्धान्त है । यह सारी सृष्टि परमात्मा ने बनाई |
Line 1,394: |
Line 1,374: |
| यह तो ठीक है । विश्व की अन्यान्य विचारधारायें यह तो | | यह तो ठीक है । विश्व की अन्यान्य विचारधारायें यह तो |
| | | |
− | मानती ही हैं । परन्तु भारतीय विचार विशेष रूप से यह | + | मानती ही हैं । परन्तु धार्मिक विचार विशेष रूप से यह |
| | | |
| कहता है कि परमात्मा ने अपने में से ही यह सृष्टि बनाई | | कहता है कि परमात्मा ने अपने में से ही यह सृष्टि बनाई |
Line 1,668: |
Line 1,648: |
| नहीं होने लगती है, उसकी योजना करनी होती है । किसी | | नहीं होने लगती है, उसकी योजना करनी होती है । किसी |
| | | |
− | भी प्रकार से शुरू हो भी गई हो तो भी समय के साथ | + | भी प्रकार से आरम्भ हो भी गई हो तो भी समय के साथ |
| | | |
| अनुभव और बुद्धिपूर्वक विचार से वह परिष्कृत होती है | | अनुभव और बुद्धिपूर्वक विचार से वह परिष्कृत होती है |
Line 1,724: |
Line 1,704: |
| और प्रकृति ऐसी तीन इकाइयाँ हुईं । पुरुष चेतन तत्त्व है, | | और प्रकृति ऐसी तीन इकाइयाँ हुईं । पुरुष चेतन तत्त्व है, |
| | | |
− | प्रकृति जड़ तत्त्व है और परमात्मा जड़ और चेतन दोनों से | + | प्रकृति जड़़ तत्त्व है और परमात्मा जड़़ और चेतन दोनों से |
| | | |
| ............. page-23 ............. | | ............. page-23 ............. |
Line 1,730: |
Line 1,710: |
| we : १ तत्त्वचिन्तन | | we : १ तत्त्वचिन्तन |
| | | |
− | परे है । वह जड़ भी है, चेतन भी है । अथवा जड़ भी नहीं | + | परे है । वह जड़़ भी है, चेतन भी है । अथवा जड़़ भी नहीं |
| | | |
| है, चेतन भी नहीं है। “नहीं है' कहने से 'है' कहना | | है, चेतन भी नहीं है। “नहीं है' कहने से 'है' कहना |
Line 1,736: |
Line 1,716: |
| अधिक युक्तिसंगत है क्योंकि जो नहीं है उसमें से 'है' कैसे | | अधिक युक्तिसंगत है क्योंकि जो नहीं है उसमें से 'है' कैसे |
| | | |
− | उत्पन्न होगा ? इसलिये परमात्मा जड़ भी है और चेतन भी | + | उत्पन्न होगा ? इसलिये परमात्मा जड़़ भी है और चेतन भी |
| | | |
| है। | | है। |
Line 1,746: |
Line 1,726: |
| प्रकृति सक्रिय हैं । दोनों मिलकर सृष्टि के रूप में विकसित | | प्रकृति सक्रिय हैं । दोनों मिलकर सृष्टि के रूप में विकसित |
| | | |
− | होते हैं । दोनों के मिलन को चिज्जडग्रन्थि अर्थात् चेतन | + | होते हैं । दोनों के मिलन को चिज्जड़ग्रन्थि अर्थात् चेतन |
| | | |
− | और जड़ की गाँठ कहते हैं । यह गाँठ ऐसी है कि अब | + | और जड़़ की गाँठ कहते हैं । यह गाँठ ऐसी है कि अब |
| | | |
| दोनों को एकदूसरे से अलग पहचाना नहीं जाता है । जहाँ | | दोनों को एकदूसरे से अलग पहचाना नहीं जाता है । जहाँ |
| | | |
− | भी हो दोनों साथ में रहते हैं । यह चेतन और जड़ का आदि | + | भी हो दोनों साथ में रहते हैं । यह चेतन और जड़़ का आदि |
| | | |
| ग्रन्थन है जहाँ से सृष्टि रचना प्रारम्भ होती है । | | ग्रन्थन है जहाँ से सृष्टि रचना प्रारम्भ होती है । |
Line 1,772: |
Line 1,752: |
| oft. rai. at. 23/28 | | oft. rai. at. 23/28 |
| | | |
− | चेतन और जड़ के संयोग से अब प्रकृति में परिवर्तन | + | चेतन और जड़़ के संयोग से अब प्रकृति में परिवर्तन |
| | | |
| प्रारम्भ होता है । इस अनन्त वैविध्यपूर्ण सृष्टि के मूल रूप | | प्रारम्भ होता है । इस अनन्त वैविध्यपूर्ण सृष्टि के मूल रूप |
Line 2,088: |
Line 2,068: |
| वृत्त बनता है वह विस्तृत होतेहोते | | वृत्त बनता है वह विस्तृत होतेहोते |
| | | |
− | वसुधैव कुट्म्बकम् तक पहुँचता है । समग्रता की दृष्टि से | + | वसुधैव कुटुम्बकम् तक पहुँचता है । समग्रता की दृष्टि से |
| | | |
| जब अर्थव्यवस्था बनती है तब वह समाज की समृद्धि का | | जब अर्थव्यवस्था बनती है तब वह समाज की समृद्धि का |
Line 2,100: |
Line 2,080: |
| समृद्धि का रक्षण और संवर्धन उसका लक्ष्य रहता है। | | समृद्धि का रक्षण और संवर्धन उसका लक्ष्य रहता है। |
| | | |
− | समग्रता की दृष्टि से जब व्यक्ति अथर्जिन करता है तब वह | + | समग्रता की दृष्टि से जब व्यक्ति अर्थार्जन करता है तब वह |
| | | |
| समाज के लिये उपयोगी वस्तुओं के उत्पादन को माध्यम | | समाज के लिये उपयोगी वस्तुओं के उत्पादन को माध्यम |
Line 2,108: |
Line 2,088: |
| किसीकी रोजगारी और स्वतन्त्रता का हरण न हो इसकी | | किसीकी रोजगारी और स्वतन्त्रता का हरण न हो इसकी |
| | | |
− | चिन्ता करता है, दान को अथर्जिन का अंग बनाता है। | + | चिन्ता करता है, दान को अर्थार्जन का अंग बनाता है। |
| | | |
| समग्रता की दृष्टि से जब वह पंचमहाभूतों की ओर देखता है | | समग्रता की दृष्टि से जब वह पंचमहाभूतों की ओर देखता है |
Line 2,160: |
Line 2,140: |
| समग्रता की चर्चा हुए पाँच दिन बीत गये थे । भारत | | समग्रता की चर्चा हुए पाँच दिन बीत गये थे । भारत |
| | | |
− | के सामान्य लोगों के सामान्य व्यवहार में भी समग्रता की | + | के सामान्य लोगोंं के सामान्य व्यवहार में भी समग्रता की |
| | | |
| दृष्टि किस प्रकार अनुस्यूत रहती है यह जानकर सब हैरान | | दृष्टि किस प्रकार अनुस्यूत रहती है यह जानकर सब हैरान |
Line 2,186: |
Line 2,166: |
| हमने आपस में चर्चा की थी । एक दो दिन तो हमने नगर | | हमने आपस में चर्चा की थी । एक दो दिन तो हमने नगर |
| | | |
− | में सर्वसामान्य लोगों से सम्पर्क भी किया । हमने देखा कि | + | में सर्वसामान्य लोगोंं से सम्पर्क भी किया । हमने देखा कि |
| | | |
| शिक्षित, सम्पन्न और अपने आपको आधुनिक और शिक्षित | | शिक्षित, सम्पन्न और अपने आपको आधुनिक और शिक्षित |
Line 2,208: |
Line 2,188: |
| शिक्षित, कम आय वाले, सामान्य काम कर अधथर्जिन करने | | शिक्षित, कम आय वाले, सामान्य काम कर अधथर्जिन करने |
| | | |
− | वाले, अपने आपको आधुनिक न कहने वाले लोगों को | + | वाले, अपने आपको आधुनिक न कहने वाले लोगोंं को |
| | | |
| मिले तब इन विषयों में उनकी आस्था दिखाई दी । वे भी | | मिले तब इन विषयों में उनकी आस्था दिखाई दी । वे भी |
Line 2,242: |
Line 2,222: |
| अज्ञान और अनास्था क्यों दिखाई देते हैं ? यह शिक्षित | | अज्ञान और अनास्था क्यों दिखाई देते हैं ? यह शिक्षित |
| | | |
− | लोगों की समस्या है या उन्होंने समस्या निर्माण की है ?
| + | लोगोंं की समस्या है या उन्होंने समस्या निर्माण की है ? |
| | | |
| हमारी व्यवस्थायें इतनी विपरीत कैसे हो गईं ? यह सब | | हमारी व्यवस्थायें इतनी विपरीत कैसे हो गईं ? यह सब |
Line 2,250: |
Line 2,230: |
| आचार्य ज्ञाननिधि इस प्रकार के प्रश्नों की अपेक्षा कर | | आचार्य ज्ञाननिधि इस प्रकार के प्रश्नों की अपेक्षा कर |
| | | |
− | ही रहे थे । उन्होंने अपना निरूपण शुरू किया... | + | ही रहे थे । उन्होंने अपना निरूपण आरम्भ किया... |
| | | |
| आपके प्रश्न में ही कदाचित उत्तर भी है । समस्या | | आपके प्रश्न में ही कदाचित उत्तर भी है । समस्या |
| | | |
− | शिक्षित लोगों की है और शिक्षित लोगों द्वारा निर्मित भी है । | + | शिक्षित लोगोंं की है और शिक्षित लोगोंं द्वारा निर्मित भी है । |
| | | |
− | कारण यह है कि परम्परा से लोगों को जो दृष्टि प्राप्त होती है | + | कारण यह है कि परम्परा से लोगोंं को जो दृष्टि प्राप्त होती है |
| | | |
| उसका स्रोत विद्याकेन्द्र होते हैं । विद्याकेन्द्रों में जीवन से | | उसका स्रोत विद्याकेन्द्र होते हैं । विद्याकेन्द्रों में जीवन से |
Line 2,294: |
Line 2,274: |
| सौंपकर पाण्डब हिमालय चले गये । उसी समय कलियुग | | सौंपकर पाण्डब हिमालय चले गये । उसी समय कलियुग |
| | | |
− | का प्राम्भ हुआ । कलियुग के प्रभाव से लोगों की | + | का प्राम्भ हुआ । कलियुग के प्रभाव से लोगोंं की |
| | | |
| ............. page-27 ............. | | ............. page-27 ............. |
Line 2,328: |
Line 2,308: |
| आवश्यकता होती है । एक सन्दर्भ है समय का । अब ट्रापर | | आवश्यकता होती है । एक सन्दर्भ है समय का । अब ट्रापर |
| | | |
− | युग नहीं था । पंचमहाभूतों की गुणवत्ता, लोगों की समझ | + | युग नहीं था । पंचमहाभूतों की गुणवत्ता, लोगोंं की समझ |
| | | |
− | और मानस, लोगों की कार्यशक्ति आदि सभी में परिवर्तन | + | और मानस, लोगोंं की कार्यशक्ति आदि सभी में परिवर्तन |
| | | |
| हुआ था । इन कारणों से जो द्वापर युग में स्वाभाविक था | | हुआ था । इन कारणों से जो द्वापर युग में स्वाभाविक था |
Line 2,342: |
Line 2,322: |
| विचार करना था । दूसरा, जो भी निष्कर्ष निकलेंगे उन्हें | | विचार करना था । दूसरा, जो भी निष्कर्ष निकलेंगे उन्हें |
| | | |
− | लोगों तक कैसे पहुँचाना इसका भी विचार करना था । यह
| + | लोगोंं तक कैसे पहुँचाना इसका भी विचार करना था । यह |
| | | |
| कार्य सरल भी नहीं था और शीघ्रता से भी होने वाला नहीं | | कार्य सरल भी नहीं था और शीघ्रता से भी होने वाला नहीं |
Line 2,348: |
Line 2,328: |
| था। बारह वर्ष की दीर्घ अवधि में उन्होंने यह कार्य | | था। बारह वर्ष की दीर्घ अवधि में उन्होंने यह कार्य |
| | | |
− | किया । सर्वसामान्य लोगों के दैनंदिन जीवन की छोटी से | + | किया । सर्वसामान्य लोगोंं के दैनंदिन जीवन की छोटी से |
| | | |
| छोटी व्यवस्थाओं के लिये निर्देश तैयार किये । हम कल्पना | | छोटी व्यवस्थाओं के लिये निर्देश तैयार किये । हम कल्पना |
Line 2,384: |
Line 2,364: |
| इईंधनविवेक, समयविवेक, भावविवेक आदि सभी | | इईंधनविवेक, समयविवेक, भावविवेक आदि सभी |
| | | |
− | बातों का विचार किया । ब्रत, उपवास, स्वादसंयम, | + | बातों का विचार किया । व्रत, उपवास, स्वादसंयम, |
| | | |
| अतिथिसत्कार, अन्नदान, उत्सव, त्योहार आदि | | अतिथिसत्कार, अन्नदान, उत्सव, त्योहार आदि |
Line 2,392: |
Line 2,372: |
| ०... अध्यात्म, . बुद्धिविकास, cle, oe, | | ०... अध्यात्म, . बुद्धिविकास, cle, oe, |
| | | |
− | व्यवहारज्ञान को ध्यान में रखकर सामान्य लोगों को | + | व्यवहारज्ञान को ध्यान में रखकर सामान्य लोगोंं को |
| | | |
| कहीं पर भी सुलभ हों ऐसे खेलों, गीतों, कहानियों | | कहीं पर भी सुलभ हों ऐसे खेलों, गीतों, कहानियों |
Line 2,400: |
Line 2,380: |
| ०... मनःसंयम, पर्यावरणसुरक्षा और सामाजिकता को एक | | ०... मनःसंयम, पर्यावरणसुरक्षा और सामाजिकता को एक |
| | | |
− | साथ लेकर ब्रतों और त्योहारों की स्वना की । | + | साथ लेकर व्रतों और त्योहारों की स्वना की । |
| | | |
| © आचारमूलक मूल्यव्यवस्था बनाई | | | © आचारमूलक मूल्यव्यवस्था बनाई | |
Line 2,438: |
Line 2,418: |
| शिक्षा सर्व प्रकार की परम्पराओं को संजोकर रखने का | | शिक्षा सर्व प्रकार की परम्पराओं को संजोकर रखने का |
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− | माध्यम होती है । जब तक भारत में भारतीय शिक्षा चली ये | + | माध्यम होती है । जब तक भारत में धार्मिक शिक्षा चली ये |
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− | सारी बातें परम्परा के रूप में लोगों के व्यवहार में और मानस | + | सारी बातें परम्परा के रूप में लोगोंं के व्यवहार में और मानस |
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| लगीं । अज्ञान और अनास्था बढ़ते गये और मानसिकता तथा | | लगीं । अज्ञान और अनास्था बढ़ते गये और मानसिकता तथा |
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− | व्यवस्थायें बदलती गईं । स्वाभाविक है कि शिक्षित लोगों में | + | व्यवस्थायें बदलती गईं । स्वाभाविक है कि शिक्षित लोगोंं में |
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− | इनकी मात्रा अधिक है । कम शिक्षित लोगों की स्थिति | + | इनकी मात्रा अधिक है । कम शिक्षित लोगोंं की स्थिति |
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| ट्रिधायुक्त है । वे परम्पराओं को आस्थापूर्वक रखना भी चाहते | | ट्रिधायुक्त है । वे परम्पराओं को आस्थापूर्वक रखना भी चाहते |
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− | हैं परन्तु शिक्षित लोगों ने बनाया हुआ सजमाना' ऐसा करने | + | हैं परन्तु शिक्षित लोगोंं ने बनाया हुआ सजमाना' ऐसा करने |
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− | नहीं देता । इसलिये भारतीय व्यवस्था के अवशेष तो दिखाई | + | नहीं देता । इसलिये धार्मिक व्यवस्था के अवशेष तो दिखाई |
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| देते हैं परन्तु उनकी दुर्गति भी त्वरित गति से हो रही है | | | देते हैं परन्तु उनकी दुर्गति भी त्वरित गति से हो रही है | |
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| है । परन्तु परिस्थिति तो सर्वथा विपरीत है । तब यह कार्य | | है । परन्तु परिस्थिति तो सर्वथा विपरीत है । तब यह कार्य |
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− | होगा कैसे ? शिक्षा तो भारतीय बनाकर समाज को ठीक | + | होगा कैसे ? शिक्षा तो धार्मिक बनाकर समाज को ठीक |
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| करने की चर्चा तो की जा सकती है परन्तु व्यवहार और | | करने की चर्चा तो की जा सकती है परन्तु व्यवहार और |
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| we : १ तत्त्वचिन्तन | | we : १ तत्त्वचिन्तन |
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− | भारतीयों के मानस और विचार बदले । बदले हुए विचार और
| + | धार्मिकों के मानस और विचार बदले । बदले हुए विचार और |
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− | मानस ने व्यवस्थायें भी बदलना शुरू किया । परिवर्तन की यह | + | मानस ने व्यवस्थायें भी बदलना आरम्भ किया । परिवर्तन की यह |
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| प्रक्रिया अभी भी जारी है । अभी पूर्ण परिवर्तन नहीं हुआ है । | | प्रक्रिया अभी भी जारी है । अभी पूर्ण परिवर्तन नहीं हुआ है । |
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| परन्तु यह भी महतू आश्चर्य की बात है कि दोसौ वर्ष | | परन्तु यह भी महतू आश्चर्य की बात है कि दोसौ वर्ष |
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− | के आक्रमण के बाद भी हम अभी भी भारतीय बनकर ही | + | के आक्रमण के बाद भी हम अभी भी धार्मिक बनकर ही |
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− | जी रहे हैं। भारतीय प्रज्ञा का एक हिस्सा ऐसा है जो | + | जी रहे हैं। धार्मिक प्रज्ञा का एक हिस्सा ऐसा है जो |
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| ब्रिटीशों और यूरोपीय जीवनदृष्टि से अत्यधिक प्रभावित है । | | ब्रिटीशों और यूरोपीय जीवनदृष्टि से अत्यधिक प्रभावित है । |
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− | परन्तु सामान्य जन अभी भी भारतीय मानस के साथ ही जी | + | परन्तु सामान्य जन अभी भी धार्मिक मानस के साथ ही जी |
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| रहा है। इसका कारण यह है कि भगवती प्रकृति की | | रहा है। इसका कारण यह है कि भगवती प्रकृति की |
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| ऐसा लगता है कि इन अवरोधों को पाटने के लिये | | ऐसा लगता है कि इन अवरोधों को पाटने के लिये |
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− | इस सामान्य जन का बहुत सहयोग प्राप्त होगा । फिर भी | + | इस सामान्य जन का बहुत सहयोग प्राप्त होगा । तथापि |
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− | शिक्षित लोगों को भी साथ में तो लेना ही होगा । कारण | + | शिक्षित लोगोंं को भी साथ में तो लेना ही होगा । कारण |
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| यह है कि इस कठिन परिस्थिति से उबरने के प्रयास तो | | यह है कि इस कठिन परिस्थिति से उबरने के प्रयास तो |
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| 2 ५. | | 2 ५. |
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− | शिक्षित लोगों के सहयोग की | + | शिक्षित लोगोंं के सहयोग की |
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| आवश्यकता रहेगी । हमें अपने शिक्षाक्षेत्र को परिष्कृत | | आवश्यकता रहेगी । हमें अपने शिक्षाक्षेत्र को परिष्कृत |
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| कीर्तिमान भी थे । लगभग सबने कई ग्रन्थों का लेखन किया | | कीर्तिमान भी थे । लगभग सबने कई ग्रन्थों का लेखन किया |
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− | था। कुछ लोगों ने विश्व की अनेक शिक्षासंस्थाओं में | + | था। कुछ लोगोंं ने विश्व की अनेक शिक्षासंस्थाओं में |
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− | व्याख्यान हेतु प्रवास भी किया था । अनेक लोगों को अपने | + | व्याख्यान हेतु प्रवास भी किया था । अनेक लोगोंं को अपने |
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| देश में और अन्य देशों में पुरस्कार भी प्राप्त हुए थे । कुछ | | देश में और अन्य देशों में पुरस्कार भी प्राप्त हुए थे । कुछ |
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| की योजना बननी ही चाहिये | | | की योजना बननी ही चाहिये | |
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− | प्रात:काल ठीक साड़े आठ बजे सभा शुरू हुई । | + | प्रात:काल ठीक साड़े आठ बजे सभा आरम्भ हुई । |
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| कुलपति आचार्य ज्ञाननिधि की अध्यक्षता में यह सभा होने | | कुलपति आचार्य ज्ञाननिधि की अध्यक्षता में यह सभा होने |
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| विकास के साथसाथ होता है ? या एक का विकास | | विकास के साथसाथ होता है ? या एक का विकास |
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− | दूसरे के विकास के कारण नहीं हो सकता है ? कया | + | दूसरे के विकास के कारण नहीं हो सकता है ? क्या |
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| यही बात देशों की है ? क्या विश्व में कुछ देशों की | | यही बात देशों की है ? क्या विश्व में कुछ देशों की |
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| का प्रचलन हुआ । आज अविकसित के स्थान पर | | का प्रचलन हुआ । आज अविकसित के स्थान पर |
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− | विकासशील देश कहना शुरू हुआ है । परन्तु शब्द | + | विकासशील देश कहना आरम्भ हुआ है । परन्तु शब्द |
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| उन्होंने अध्यक्ष महोदय और सभा का अभिवादन कर आधुनिक विश्व की यह विकास यात्रा उन्नीसवीं | | उन्होंने अध्यक्ष महोदय और सभा का अभिवादन कर आधुनिक विश्व की यह विकास यात्रा उन्नीसवीं |
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− | अपनी बात शुरू की ... शताब्दी में यूरोप में शुरू हुई । टेलीफोन और स्टीम इंजिन | + | अपनी बात आरम्भ की ... शताब्दी में यूरोप में आरम्भ हुई । टेलीफोन और स्टीम इंजिन |
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− | आज कुल मिलाकर विश्व ने बहुत विकास किया है ।.. की खोज से शुरू हुई । यह विकासयात्रा आज तक अविरत | + | आज कुल मिलाकर विश्व ने बहुत विकास किया है ।.. की खोज से आरम्भ हुई । यह विकासयात्रा आज तक अविरत |
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− | यह विकास ज्ञान के क्षेत्र का है । ज्ञानात्मक विकास का... शुरू है । दिनोंदिन नये कीर्तिमान स्थापित हो रहे हैं । यहाँ | + | यह विकास ज्ञान के क्षेत्र का है । ज्ञानात्मक विकास का... आरम्भ है । दिनोंदिन नये कीर्तिमान स्थापित हो रहे हैं । यहाँ |
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| मुख्य पहलू विज्ञान के विकास का है । मनुष्य ने अपनी . तक कि अब स्टीफन होकिन््स ने गॉड पार्टिकल की भी | | मुख्य पहलू विज्ञान के विकास का है । मनुष्य ने अपनी . तक कि अब स्टीफन होकिन््स ने गॉड पार्टिकल की भी |
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| अध्ययन व्यापक था और चिन्तन गहरा था । उन्होंने | | अध्ययन व्यापक था और चिन्तन गहरा था । उन्होंने |
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− | भारतीय पण्डित का वेश धारण किया हुआ था । वे वास्तव
| + | धार्मिक पण्डित का वेश धारण किया हुआ था । वे वास्तव |
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| में ऋषि ही लग रहे थे । उन्होंने वेदमंत्रों के गान से अपनी | | में ऋषि ही लग रहे थे । उन्होंने वेदमंत्रों के गान से अपनी |
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| वे कहने लगे... | | वे कहने लगे... |
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− | वेद हमेशा सम्पन्नता का उपदेश देते हैं । हमारे भण्डार | + | वेद सदा सम्पन्नता का उपदेश देते हैं । हमारे भण्डार |
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− | धनधान्य से हमेशा भरेपूरे रहें, यही वेद भगवान का | + | धनधान्य से सदा भरेपूरे रहें, यही वेद भगवान का |
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| आशीर्वाद होता है । अत: वेदों के अनुसार आर्थिक विकास | | आशीर्वाद होता है । अत: वेदों के अनुसार आर्थिक विकास |
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| ही सही विकास है । प्राणिमात्र सुख की कामना करता है । | | ही सही विकास है । प्राणिमात्र सुख की कामना करता है । |
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− | मनुष्य भी हमेशा सुख चाहता है । मनुष्य को सुखी होने के | + | मनुष्य भी सदा सुख चाहता है । मनुष्य को सुखी होने के |
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| लिये उसकी हर इच्छा की पूर्ति होना आवश्यक है । अन्न, | | लिये उसकी हर इच्छा की पूर्ति होना आवश्यक है । अन्न, |
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| कम उत्पादन, रोजगार का | | कम उत्पादन, रोजगार का |
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− | अभाव, शिक्षितों को अथर्जिन के अवसरों का अभाव, | + | अभाव, शिक्षितों को अर्थार्जन के अवसरों का अभाव, |
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| पर्यावरण का प्रदूषण, झुग्गी झोंपड़ियों की संख्या में वृद्धि | | पर्यावरण का प्रदूषण, झुग्गी झोंपड़ियों की संख्या में वृद्धि |
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| हैं कि उसने विकास किया । यदि वह पढ़ाई में बहुत अच्छा | | हैं कि उसने विकास किया । यदि वह पढ़ाई में बहुत अच्छा |
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− | है, हमेशा प्रथम क्रमांक पर आता है, बहुत पढ़ाई करता है | + | है, सदा प्रथम क्रमांक पर आता है, बहुत पढ़ाई करता है |
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| परन्तु पढाई पूर्ण होने के बाद उसे नौकरी सामान्य सी | | परन्तु पढाई पूर्ण होने के बाद उसे नौकरी सामान्य सी |
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| a | | | a | |
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− | लोगों के पास जब धन नहीं होता है तब वे अभावों
| + | लोगोंं के पास जब धन नहीं होता है तब वे अभावों |
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| में जीते हैं। अभावों में जीने वाला असन्तुष्ट रहता है, | | में जीते हैं। अभावों में जीने वाला असन्तुष्ट रहता है, |
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| उसका मन कुंठा से ग्रस्त रहता है । समाज में जब कुंठाग्रस्त | | उसका मन कुंठा से ग्रस्त रहता है । समाज में जब कुंठाग्रस्त |
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− | लोगों की संख्या अधिक रहती है तब नैतिकता कम होती
| + | लोगोंं की संख्या अधिक रहती है तब नैतिकता कम होती |
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| है। कहा है न, “बुभुक्षित: कि न करोति पाप॑' - भूखा | | है। कहा है न, “बुभुक्षित: कि न करोति पाप॑' - भूखा |
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| तब लक्ष्मेश नामक एक आचार्य ने कहा ... | | तब लक्ष्मेश नामक एक आचार्य ने कहा ... |
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− | मेरे नाम में ही लक्ष्मी का नाम समाया है फिर भी मेरा | + | मेरे नाम में ही लक्ष्मी का नाम समाया है तथापि मेरा |
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| मत है कि केवल आर्थिक विकास ही विकास नहीं है । | | मत है कि केवल आर्थिक विकास ही विकास नहीं है । |
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Line 3,423: |
| इस प्रकार आचार्य वैभव नारायण के आर्थिक विकास | | इस प्रकार आचार्य वैभव नारायण के आर्थिक विकास |
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− | को ही विकास बताने वाले विचार पर अनेक लोगों ने | + | को ही विकास बताने वाले विचार पर अनेक लोगोंं ने |
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| आपत्ति उठाई । संस्कार पक्ष को आप्रहपूर्वक स्थापित | | आपत्ति उठाई । संस्कार पक्ष को आप्रहपूर्वक स्थापित |
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| श्रीपति कल धर्म, संस्कृति और संस्कार का पक्ष रखेंगे । | | श्रीपति कल धर्म, संस्कृति और संस्कार का पक्ष रखेंगे । |
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− | आप सब्से निवेदन है कि आप भी इस विषय में चिन्तन | + | आप सबसे निवेदन है कि आप भी इस विषय में चिन्तन |
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| करें । | | करें । |
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| दूसरे दिन सूर्योदय के समय यज्ञ हुआ । ठीक साड़े | | दूसरे दिन सूर्योदय के समय यज्ञ हुआ । ठीक साड़े |
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− | आठ बजे सभा शुरू हुई । आचार्य ज्ञाननिधि ने अपना | + | आठ बजे सभा आरम्भ हुई । आचार्य ज्ञाननिधि ने अपना |
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| स्थान ग्रहण किया । कल की तरह ही संगठन मन्त्र का गान | | स्थान ग्रहण किया । कल की तरह ही संगठन मन्त्र का गान |
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| की संख्या कम थी परन्तु उनकी गुणवत्ता और प्रभाव बहुत. विश्वनियम हैं । इन विश्वनियमों को ही धर्म कहते हैं । आज | | की संख्या कम थी परन्तु उनकी गुणवत्ता और प्रभाव बहुत. विश्वनियम हैं । इन विश्वनियमों को ही धर्म कहते हैं । आज |
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− | था । वेद, दर्शनशाख्र और उपनिषदों में उनकी श्रद्धा थी ।... हमने निहित स्वार्थों और अज्ञान, अल्पज्ञान और विपरीत | + | था । वेद, दर्शनशास्त्र और उपनिषदों में उनकी श्रद्धा थी ।... हमने निहित स्वार्थों और अज्ञान, अल्पज्ञान और विपरीत |
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| उन शास्त्रों को ही वे प्रमाण मानते थे । परम्परा में उनकी... ज्ञान के चलते केवल सम्प्रदायों को धर्म कहकर उसे कलह | | उन शास्त्रों को ही वे प्रमाण मानते थे । परम्परा में उनकी... ज्ञान के चलते केवल सम्प्रदायों को धर्म कहकर उसे कलह |
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| विश्वनियम बनकर सृष्टि की धारणा करता है उसी प्रकार वह | | विश्वनियम बनकर सृष्टि की धारणा करता है उसी प्रकार वह |
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− | शाख्रनियम और लोकनियम बनकर समाज की धारणा करता
| + | शास्त्रनियम और लोकनियम बनकर समाज की धारणा करता |
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| नैमिषारण्य के ऋषियों का स्मरण कर उन्होंने अपनी . है। इस धर्म का पालन सबको सर्वत्र, सर्वदा करना ही | | नैमिषारण्य के ऋषियों का स्मरण कर उन्होंने अपनी . है। इस धर्म का पालन सबको सर्वत्र, सर्वदा करना ही |
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− | प्रस्तुति शुरू की । वे कहने लगे ... होता है । भिन्न भिन्न संदर्भों में धर्म कभी कर्तव्य बन जाता | + | प्रस्तुति आरम्भ की । वे कहने लगे ... होता है । भिन्न भिन्न संदर्भों में धर्म कभी कर्तव्य बन जाता |
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| धर्ममय जीवन जीने वाला व्यक्ति या समाज ही... है तो कभी स्वभाव, कभी नीतिमत्ता बन जाता है तो कभी | | धर्ममय जीवन जीने वाला व्यक्ति या समाज ही... है तो कभी स्वभाव, कभी नीतिमत्ता बन जाता है तो कभी |
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| इसके विपरीत धर्म को लेकर विवाद भी बहुत अधिक हो | | इसके विपरीत धर्म को लेकर विवाद भी बहुत अधिक हो |
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− | रहे थे । ऐसे विवादों में इनमें से भी कई लोगों ने भाग लिया | + | रहे थे । ऐसे विवादों में इनमें से भी कई लोगोंं ने भाग लिया |
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| था । इसलिये आचार्य श्रीपति का कथन शान्त पानी में | | था । इसलिये आचार्य श्रीपति का कथन शान्त पानी में |
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