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| == विद्यालय में मध्यावकाश का भोजन == | | == विद्यालय में मध्यावकाश का भोजन == |
− | 1. विद्यालय में मध्यावकाश के भोजन सम्बन्ध में कितने प्रकार की व्यवस्था होती है<ref>भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम (भारतीय शिक्षा ग्रन्थमाला ३), प्रकाशक: पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, लेखन एवं संपादन: श्रीमती इंदुमती काटदरे</ref> ? | + | 1. विद्यालय में मध्यावकाश के भोजन सम्बन्ध में कितने प्रकार की व्यवस्था होती है<ref>धार्मिक शिक्षा के व्यावहारिक आयाम (धार्मिक शिक्षा ग्रन्थमाला ३): पर्व ३: अध्याय १०, प्रकाशक: पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, लेखन एवं संपादन: श्रीमती इंदुमती काटदरे</ref> ? |
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| 2. विद्यालय में मध्यावकाश के भोजन की सबसे अच्छी व्यवस्था क्या हो सकती है ? | | 2. विद्यालय में मध्यावकाश के भोजन की सबसे अच्छी व्यवस्था क्या हो सकती है ? |
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| पहला प्रश्न था. विद्यालय में मध्यावकाश के भोजनसंबंध मे कितने प्रकार की व्यवस्था होती है ? इस प्रश्न के उत्तर में लगभग सभी ने अलग अलग प्रकार के मेनू ही लिखे हैं । वास्तव में समूहभोजन, वनभोजन, देवासुर भोजन, स्वेच्छाभोजन, कृष्ण और गोपी भोजन ऐसी अनेकविध व्यवस्थायें भोजन लेने में आनंद, संस्कार, विविधता की मजा का अनुभव देती है । | | पहला प्रश्न था. विद्यालय में मध्यावकाश के भोजनसंबंध मे कितने प्रकार की व्यवस्था होती है ? इस प्रश्न के उत्तर में लगभग सभी ने अलग अलग प्रकार के मेनू ही लिखे हैं । वास्तव में समूहभोजन, वनभोजन, देवासुर भोजन, स्वेच्छाभोजन, कृष्ण और गोपी भोजन ऐसी अनेकविध व्यवस्थायें भोजन लेने में आनंद, संस्कार, विविधता की मजा का अनुभव देती है । |
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− | बाकी बचे ९ प्रश्नों के उत्तर सभी उत्तरदाताओंने सही ढंग से, आदर्श व्यवहार के रूप में लिखे हैं । परन्तु आदर्शों का वर्णन करना और उनका प्रत्यक्ष व्यवहार इन दोनों में बहुत अंतर नजर आता है । उपदेश देना सरल है परंतु तदनुसार व्यवहार मे आचरण करना कठिन होता है; उसके प्रति आग्रही रहना चाहिये । शिक्षा की आधी समस्यायें खत्म हो जाएगी । घर और विद्यालयों में भारतीय विचारों का आदर्श रखना परंतु पाश्चात्य खानपान का सेवन करना यह तो अपने आपको दिया गया धोखा है । उसके ही परिणाम हम भुगत रहे हैं ऐसा लगता है । | + | बाकी बचे ९ प्रश्नों के उत्तर सभी उत्तरदाताओंने सही ढंग से, आदर्श व्यवहार के रूप में लिखे हैं । परन्तु आदर्शों का वर्णन करना और उनका प्रत्यक्ष व्यवहार इन दोनों में बहुत अंतर नजर आता है । उपदेश देना सरल है परंतु तदनुसार व्यवहार मे आचरण करना कठिन होता है; उसके प्रति आग्रही रहना चाहिये । शिक्षा की आधी समस्यायें खत्म हो जाएगी । घर और विद्यालयों में धार्मिक विचारों का आदर्श रखना परंतु पाश्चात्य खानपान का सेवन करना यह तो अपने आपको दिया गया धोखा है । उसके ही परिणाम हम भुगत रहे हैं ऐसा लगता है । |
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| ==== अभिमत ==== | | ==== अभिमत ==== |
| विद्यालय में मध्यावकाश के भोजन के लिए स्वतंत्र भोजन शाला हो, जहाँ पढ़ना उसी कक्षा में भोजन करना ठीक नहीं है । यह भोजनशाला स्वच्छ, खुली हवा में, गोबर से लिपी हुई हो तो अच्छा है । सब छात्र पंगती में बैठकर भोजन कर सके इतनी पर्याप्त भोजनपड्टी, भोजनमंत्र और गाय के लिए खाना निकालने की व्यवस्था हो सकती है। | | विद्यालय में मध्यावकाश के भोजन के लिए स्वतंत्र भोजन शाला हो, जहाँ पढ़ना उसी कक्षा में भोजन करना ठीक नहीं है । यह भोजनशाला स्वच्छ, खुली हवा में, गोबर से लिपी हुई हो तो अच्छा है । सब छात्र पंगती में बैठकर भोजन कर सके इतनी पर्याप्त भोजनपड्टी, भोजनमंत्र और गाय के लिए खाना निकालने की व्यवस्था हो सकती है। |
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− | अन्न से शरीर मे बल आता है, प्राण भी बलवान होते हैं । योग्य आहार से शरीर स्वास्थ्य बना रहता है । चित्त पर संस्कार होते है इसलिए भोजन शुद्ध हो रुचिपूर्ण हो तामसी न हो । भोजन करते समय मन प्रसन्न होना चाहिये । | + | अन्न से शरीर मे बल आता है, प्राण भी बलवान होते हैं । योग्य आहार से शरीर स्वास्थ्य बना रहता है । चित्त पर संस्कार होते है अतः भोजन शुद्ध हो रुचिपूर्ण हो तामसी न हो । भोजन करते समय मन प्रसन्न होना चाहिये । |
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| ==== विमर्श ==== | | ==== विमर्श ==== |
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| आहारशुद्धो सत्त्वशुद्धि : ऐसा शास्त्रवचन है । इसका अर्थ है शुद्ध आहार से सत्व शुद्ध बनता है । सत्व का अर्थ है अपना आन्तरिक व्यक्तित्व, अपना अन्तःकरण । सम्पूर्ण सृष्टि में केवल मनुष्य को ही सक्रिय अन्तःकरण मिला है । अन्तःकरण की शुद्धी करे ऐसा शुद्ध आहार लेना चाहिये । इस प्रकार आहार के तीन गुण हुए । मन को अच्छा बनाने वाला सात्तिक आहार, शरीर और प्राण का पोषण करने वाला पौष्टिक आहार और अन्तःकरण को शुद्ध करनेवाला शुद्ध आहार | | | आहारशुद्धो सत्त्वशुद्धि : ऐसा शास्त्रवचन है । इसका अर्थ है शुद्ध आहार से सत्व शुद्ध बनता है । सत्व का अर्थ है अपना आन्तरिक व्यक्तित्व, अपना अन्तःकरण । सम्पूर्ण सृष्टि में केवल मनुष्य को ही सक्रिय अन्तःकरण मिला है । अन्तःकरण की शुद्धी करे ऐसा शुद्ध आहार लेना चाहिये । इस प्रकार आहार के तीन गुण हुए । मन को अच्छा बनाने वाला सात्तिक आहार, शरीर और प्राण का पोषण करने वाला पौष्टिक आहार और अन्तःकरण को शुद्ध करनेवाला शुद्ध आहार | |
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− | वर्तमान समय की चर्चाओं में शुद्ध और पौष्टिक आहार की तो चर्चा होती है परन्तु सात्चिकता की संकल्पना नहीं है । यदि है भी तो वह नकारात्मक अर्थ में । सात्विक आहार रोगियों के लिये, योगियों के लिये, साधुओं के लिये होता है, सात्त्तिक आहार स्वाददहदीन और सादा होता है, सात्त्विक आहार वैविध्यपूर्ण नहीं होता, घास जैसा होता है आदि आदि बातें सात्तिक आहार के विषय में कही जाती हैं जो सर्वथा अज्ञानजनित हैं । हमें उसके सम्बन्ध में भी ठीक से समझना होगा । | + | वर्तमान समय की चर्चाओं में शुद्ध और पौष्टिक आहार की तो चर्चा होती है परन्तु सात्चिकता की संकल्पना नहीं है । यदि है भी तो वह नकारात्मक अर्थ में । सात्विक आहार रोगियों के लिये, योगियों के लिये, साधुओं के लिये होता है, सात्विक आहार स्वादहीन और सादा होता है, सात्विक आहार वैविध्यपूर्ण नहीं होता, घास जैसा होता है आदि आदि बातें सात्विकआहार के विषय में कही जाती हैं जो सर्वथा अज्ञानजनित हैं । हमें उसके सम्बन्ध में भी ठीक से समझना होगा । |
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| ==== सात्विक आहार के लक्षण ==== | | ==== सात्विक आहार के लक्षण ==== |
− | सात्विक स्वभाव के मनुष्यों को जो प्रिय है वह सात्विक आहार है ऐसा श्रीमद भगवदगीता <ref name=":0">श्रीमद भगवदगीता श्लोक 17.8 </ref><ref name=":0" />में कहा है । ऐसे आहार का वर्णन इस प्रकार किया गया है: <blockquote>आयुःसत्त्वबलारोग्यसुखप्रीतिविवर्धनाः।</blockquote><blockquote>रस्याः स्निग्धाः स्थिरा हृद्या आहाराः सात्त्विकप्रियाः।।17.8।।</blockquote><blockquote>अर्थात् आयु, सत्त्व (शुद्धि), बल, आरोग्य, सुख और प्रीति को प्रवृद्ध करने वाले एवं रसयुक्त, स्निग्ध ( घी आदि की चिकनाई से युक्त) स्थिर तथा मन को प्रसन्न करने वाले आहार अर्थात् भोज्य पदार्थ सात्त्विक पुरुषों को प्रिय होते हैं।।<ref name=":1"><nowiki>https://www.gitasupersite.iitk.ac.in/srimad?language=dv&field_chapter_value=17&field_nsutra_value=8&htrskd=1&httyn=1&htshg=1&scsh=1&etsiva=1&etpurohit=1</nowiki> (स्वामी तेजोमायानंद द्वारा हिन्दी अनुवाद) </ref><ref name=":1" /></blockquote> | + | सात्विक स्वभाव के मनुष्यों को जो प्रिय है वह सात्विक आहार है ऐसा श्रीमद भगवदगीता <ref name=":0">श्रीमद भगवदगीता श्लोक 17.8 </ref> में कहा है । ऐसे आहार का वर्णन इस प्रकार किया गया है: <blockquote>आयुःसत्त्वबलारोग्यसुखप्रीतिविवर्धनाः।</blockquote><blockquote>रस्याः स्निग्धाः स्थिरा हृद्या आहाराः सात्विकप्रियाः।।17.8।।</blockquote><blockquote>अर्थात् आयु, सत्त्व (शुद्धि), बल, आरोग्य, सुख और प्रीति को प्रवृद्ध करने वाले एवं रसयुक्त, स्निग्ध ( घी आदि की चिकनाई से युक्त) स्थिर तथा मन को प्रसन्न करने वाले आहार अर्थात् भोज्य पदार्थ सात्विक पुरुषों को प्रिय होते हैं।।<ref name=":1">https://bit.ly/331PDBO (स्वामी तेजोमयानंद द्वारा हिन्दी अनुवाद) </ref></blockquote> |
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− | ==== स्निग्ध आहार किसे कहते हैं ? सात्त्विक आहार क्या-क्या बढ़ाता है ? ==== | + | ==== स्निग्ध आहार किसे कहते हैं ? सात्विक आहार क्या-क्या बढ़ाता है ? ==== |
| * आयुष्य बढाने वाला | | * आयुष्य बढाने वाला |
| * सत्व में वृद्धि करने वाला | | * सत्व में वृद्धि करने वाला |
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| * प्रसन्नता बढाने वाला होता है । | | * प्रसन्नता बढाने वाला होता है । |
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− | ==== सात्त्विक आहार के गुण क्या-क्या हैं ==== | + | ==== सात्विक आहार के गुण क्या-क्या हैं ==== |
| * रस्य अर्थात् रसपूर्ण | | * रस्य अर्थात् रसपूर्ण |
| * स्निग्ध अर्थात् चिकनाई वाला | | * स्निग्ध अर्थात् चिकनाई वाला |
| * स्थिर अर्थात् स्थिरता प्रदान करने वाला | | * स्थिर अर्थात् स्थिरता प्रदान करने वाला |
| * हृद्य अर्थात् हृदय को बहुत बल देने वाला होता है । | | * हृद्य अर्थात् हृदय को बहुत बल देने वाला होता है । |
− | सात्त्विक आहार के ये गुण अद्भुत हैं। इनमें पौष्टिकता का भी समावेश हो जाता है।
| + | सात्विक आहार के ये गुण अद्भुत हैं। इनमें पौष्टिकता का भी समावेश हो जाता है। |
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| ==== रस्य आहार का क्या अर्थ है ? ==== | | ==== रस्य आहार का क्या अर्थ है ? ==== |
| सामान्य रूप से जिसमें तरलता की मात्रा अधिक है ऐसे पदार्थ को रसपूर्ण अथवा रस्य कहने की पद्धति बन गई है । इस अर्थ में पानी, दूध, खीर, दाल आदि रस्य आहार कहे जायेंगे । परन्तु यह बहुत सीमित अर्थ है । | | सामान्य रूप से जिसमें तरलता की मात्रा अधिक है ऐसे पदार्थ को रसपूर्ण अथवा रस्य कहने की पद्धति बन गई है । इस अर्थ में पानी, दूध, खीर, दाल आदि रस्य आहार कहे जायेंगे । परन्तु यह बहुत सीमित अर्थ है । |
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− | हम जो भी पदार्थ खाते हैं वह पचने पर दो भागों में बँट जाता है । जो शरीर के लिये उपयोगी होता है वही रस बनता है और जो निरुपयोगी होता है वह कचरा अर्थात्म ल है । रस रक्त में मिल जाता है और रक्त में ही परिवर्तित हो जाता है। जिस आहार से रस अधिक बनता है और कचरा कम बचता है वह रस्य आहार है। उदाहरण के लिये आटा जब अच्छी तरह सेंका जाता है और उसका हलुवा बनाया जाता है तब वह रस्य होता है जबकि अच्छी तरह से नहीं पकी दाल उतनी रस्य नहीं होती। रस शरीर के सप्तधातुओं में एक धातु है । आहार से सब से पहले रस बनता है, बाद में रक्त । रस जिससे अधिक बनता है वह रस्य आहार है । सात्त्विक आहार का प्रथम लक्षण उसका रस्य होना है। | + | हम जो भी पदार्थ खाते हैं वह पचने पर दो भागों में बँट जाता है । जो शरीर के लिये उपयोगी होता है वही रस बनता है और जो निरुपयोगी होता है वह कचरा अर्थात्म ल है । रस रक्त में मिल जाता है और रक्त में ही परिवर्तित हो जाता है। जिस आहार से रस अधिक बनता है और कचरा कम बचता है वह रस्य आहार है। उदाहरण के लिये आटा जब अच्छी तरह सेंका जाता है और उसका हलुवा बनाया जाता है तब वह रस्य होता है जबकि अच्छी तरह से नहीं पकी दाल उतनी रस्य नहीं होती। रस शरीर के सप्तधातुओं में एक धातु है । आहार से सब से पहले रस बनता है, बाद में रक्त । रस जिससे अधिक बनता है वह रस्य आहार है । सात्विक आहार का प्रथम लक्षण उसका रस्य होना है। |
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| ==== स्निग्ध आहार किसे कहते हैं ? ==== | | ==== स्निग्ध आहार किसे कहते हैं ? ==== |
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| ==== बल भी बढ़ता है। ==== | | ==== बल भी बढ़ता है। ==== |
− | परन्तु यह केवल शारीरिक स्तर की स्निग्धता है सात्त्विक आहार का सम्बन्ध शरीर से अधिक मन के साथ है। आहार तैयार होने की प्रक्रिया में जिन जिन की सहभागिता होती है उनके हृदय में यदि स्नेह है तो आहार स्नेहयुक्त अर्थात् स्निग्ध बनता है। ऐसा स्निग्ध आहार सात्त्विक होता है। | + | परन्तु यह केवल शारीरिक स्तर की स्निग्धता है सात्विक आहार का सम्बन्ध शरीर से अधिक मन के साथ है। आहार तैयार होने की प्रक्रिया में जिन जिन की सहभागिता होती है उनके हृदय में यदि स्नेह है तो आहार स्नेहयुक्त अर्थात् स्निग्ध बनता है। ऐसा स्निग्ध आहार सात्विक होता है। |
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| आजकल डॉक्टर अधिक घी और तेल खाने को मना करते हैं। उससे मेद बढता है ऐसा कहते हैं। उसकी विस्तृत चर्चा में उतरने का तो यहाँ प्रयोजन नहीं है परन्तु एक दो बातों की स्पष्टता होना अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। | | आजकल डॉक्टर अधिक घी और तेल खाने को मना करते हैं। उससे मेद बढता है ऐसा कहते हैं। उसकी विस्तृत चर्चा में उतरने का तो यहाँ प्रयोजन नहीं है परन्तु एक दो बातों की स्पष्टता होना अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। |
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| प्रथम तो यह कि घी और तेल एक ही विभाग में नहीं आते । दोनों के मूल पदार्थों का स्वभाव भिन्न है, प्रक्रिया भी भिन्न है । घी ओजगुण बढाता है । सात धातुओं में ओज अन्तिम है और सूक्ष्मतम है। शरीर की सर्व प्रकार की शक्ति का सार ओज है। घी से प्राण का सर्वाधिक पोषण होता है। आयुर्वेद कहता है ‘घृतमायुः' अर्थात् घी ही आयुष्य है अर्थात् प्राणशक्ति बढाने वाला है । घी से ही वृद्धावस्था में भी शक्ति बनी रहती है । इसलिये छोटी आयु से ही घी खाना चाहिये । मेद घी से नहीं बढता । यह आज के समय में फैला हुआ भ्रम है कि घी से हृदय को कष्ट होता है। यह भ्रम फैलने का कारण भी घी को लेकर जो अनुचित प्रक्रिया निर्माण हुई है वह है । घी का अर्थ है गाय के दूध से दही, दही मथकर निकले मक्खन से बना घी है । गाय का दूध और घी बनाने की सही प्रक्रिया ही घी को घी बनाती है। इसे छोडकर घी नहीं है ऐसे अनेक पदार्थों को जब से घी कहा जाने लगा तबसे ‘घी' स्वास्थ्य के लिये हानिकारक हो गया । आज घी विषयक भ्रान्त धारणा से बचने की और नकली घी से पिण्ड छुडाने की बहुत आवश्यकता है। | | प्रथम तो यह कि घी और तेल एक ही विभाग में नहीं आते । दोनों के मूल पदार्थों का स्वभाव भिन्न है, प्रक्रिया भी भिन्न है । घी ओजगुण बढाता है । सात धातुओं में ओज अन्तिम है और सूक्ष्मतम है। शरीर की सर्व प्रकार की शक्ति का सार ओज है। घी से प्राण का सर्वाधिक पोषण होता है। आयुर्वेद कहता है ‘घृतमायुः' अर्थात् घी ही आयुष्य है अर्थात् प्राणशक्ति बढाने वाला है । घी से ही वृद्धावस्था में भी शक्ति बनी रहती है । इसलिये छोटी आयु से ही घी खाना चाहिये । मेद घी से नहीं बढता । यह आज के समय में फैला हुआ भ्रम है कि घी से हृदय को कष्ट होता है। यह भ्रम फैलने का कारण भी घी को लेकर जो अनुचित प्रक्रिया निर्माण हुई है वह है । घी का अर्थ है गाय के दूध से दही, दही मथकर निकले मक्खन से बना घी है । गाय का दूध और घी बनाने की सही प्रक्रिया ही घी को घी बनाती है। इसे छोडकर घी नहीं है ऐसे अनेक पदार्थों को जब से घी कहा जाने लगा तबसे ‘घी' स्वास्थ्य के लिये हानिकारक हो गया । आज घी विषयक भ्रान्त धारणा से बचने की और नकली घी से पिण्ड छुडाने की बहुत आवश्यकता है। |
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− | दूसरी बात यह है कि स्निग्धता और मेद अलग बात है । स्निग्धता शरीर में सूखापन नहीं आने देती । वातरोग नहीं होने देती, शूल पैदा नहीं करती । तेल स्नेहन करता है । शरीर का अन्दर और बाहर का स्नेहन शरीर की कान्ति और तेज बना रहने के लिये, शरीर के अंगों को सुख पहुँचाने के लिये अत्यन्त आवश्यक है। इसलिये आहार के साथ ही शरीर को मालीश करने के लिये भी तेल का उपयोग है । सिर और पैर के तलवों में तो घी से भी मालीश किया जाता है। जिन्हें आयुर्वेद में श्रद्धा नहीं है अथवा आयुर्वेद विषयक ज्ञान ही नहीं है वे घी और तेल की निन्दा करते हैं । परन्तु भारत में तो शास्त्र, परम्परा और लोगों का अनुभव सिद्ध करता है कि घी और तेल शरीर और प्राण के सख और शक्ति के लिये अत्यन्त लाभकारी हैं। | + | दूसरी बात यह है कि स्निग्धता और मेद अलग बात है । स्निग्धता शरीर में सूखापन नहीं आने देती । वातरोग नहीं होने देती, शूल पैदा नहीं करती । तेल स्नेहन करता है । शरीर का अन्दर और बाहर का स्नेहन शरीर की कान्ति और तेज बना रहने के लिये, शरीर के अंगों को सुख पहुँचाने के लिये अत्यन्त आवश्यक है। इसलिये आहार के साथ ही शरीर को मालीश करने के लिये भी तेल का उपयोग है । सिर और पैर के तलवों में तो घी से भी मालीश किया जाता है। जिन्हें आयुर्वेद में श्रद्धा नहीं है अथवा आयुर्वेद विषयक ज्ञान ही नहीं है वे घी और तेल की निन्दा करते हैं । परन्तु भारत में तो शास्त्र, परम्परा और लोगोंं का अनुभव सिद्ध करता है कि घी और तेल शरीर और प्राण के सख और शक्ति के लिये अत्यन्त लाभकारी हैं। |
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| यह बात तो ठीक ही है कि आवश्यकता से अधिक, अनुचित प्रक्रिया के लिये, अनुचित पद्धति से किया गया प्रयोग लाभकारी नहीं होता । परन्तु यह तो सभी अच्छी बातों के लिये समान रूप से लागू है। | | यह बात तो ठीक ही है कि आवश्यकता से अधिक, अनुचित प्रक्रिया के लिये, अनुचित पद्धति से किया गया प्रयोग लाभकारी नहीं होता । परन्तु यह तो सभी अच्छी बातों के लिये समान रूप से लागू है। |
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− | अच्छा आहार भी भूख से अधिक लिया तो लाभ नहीं करता। नींद आवश्यक है परन्तु आवश्यकता से अधिक नींद लाभकारी नहीं है। व्यायाम अच्छा है परन्तु आवश्यकता से अधिक व्यायाम लाभकारी नहीं है। आटे में तेल का मोयन, छोंक में आवश्यकता है उतना तेल, बेसन के पदार्थों में कुछ अधिक मात्रा में तेल लाभकारी है परन्तु तली हुई पूरी, पकौडी, कचौरी जैसी वस्तुयें लाभकारी नहीं होतीं। अर्थात् घी और तेल का विवेकपूर्ण प्रयोग लाभकारी होता है। अतः विद्यार्थियों को सात्त्विक आहार शरीर, मन, बुद्धि, आदि की शक्ति बढाने के लिये आवश्यक होता है । | + | अच्छा आहार भी भूख से अधिक लिया तो लाभ नहीं करता। नींद आवश्यक है परन्तु आवश्यकता से अधिक नींद लाभकारी नहीं है। व्यायाम अच्छा है परन्तु आवश्यकता से अधिक व्यायाम लाभकारी नहीं है। आटे में तेल का मोयन, छोंक में आवश्यकता है उतना तेल, बेसन के पदार्थों में कुछ अधिक मात्रा में तेल लाभकारी है परन्तु तली हुई पूरी, पकौडी, कचौरी जैसी वस्तुयें लाभकारी नहीं होतीं। अर्थात् घी और तेल का विवेकपूर्ण प्रयोग लाभकारी होता है। अतः विद्यार्थियों को सात्विक आहार शरीर, मन, बुद्धि, आदि की शक्ति बढाने के लिये आवश्यक होता है । |
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| स्थिर आहार शरीर और मन को स्थिरता देता है, चंचलता कम करता है । शरीर की हलचल को सन्तुलित और लयबद्ध बनाता है, मन को एकाग्र होने में सहायता करता है। हृद्य आहार मन को प्रसन्न रखता है । अच्छे मन से, अच्छी सामग्री से, अच्छी पद्धति से, अच्छे पात्रों में बनाया गया आहार हृद्य होता है। ऐसे आहार से सुख, आयु, बल और प्रेम बढ़ता है । | | स्थिर आहार शरीर और मन को स्थिरता देता है, चंचलता कम करता है । शरीर की हलचल को सन्तुलित और लयबद्ध बनाता है, मन को एकाग्र होने में सहायता करता है। हृद्य आहार मन को प्रसन्न रखता है । अच्छे मन से, अच्छी सामग्री से, अच्छी पद्धति से, अच्छे पात्रों में बनाया गया आहार हृद्य होता है। ऐसे आहार से सुख, आयु, बल और प्रेम बढ़ता है । |
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− | यहाँ एक बात स्पष्ट होती है कि सात्त्विक आहार पौष्टिक और शुद्ध दोनो होता है । | + | यहाँ एक बात स्पष्ट होती है कि सात्विक आहार पौष्टिक और शुद्ध दोनो होता है । |
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| === कब खायें === | | === कब खायें === |
− | आहार लेने के बाद उसका पाचन होनी चाहिये । शरीर में पाचनतन्त्र होता है। साथ ही अन्न को पचाकर उसका रस बनाने वाला जठराग्नि होता है । आंतें, आमाशय, अन्ननलिका, दाँत आदि तथा विभिन्न प्रकार के पाचनरस अपने आप अन्न को नहीं पचाते, जठराग्नि ही अन्न को पचाती है। शरीर के अंग पात्र हैं और विभिन्न पाचक रस मानो मसाले हैं । जठराग्नि नहीं है तो पात्र और मसाले क्या काम आयेंगे ? | + | आहार लेने के बाद उसका पाचन होनी चाहिये । शरीर में पाचनतन्त्र होता है। साथ ही अन्न को पचाकर उसका रस बनाने वाला जठराग्नि होता है । आंतें, आमाशय, अन्ननलिका, दाँत आदि तथा विभिन्न प्रकार के पाचनरस अपने आप अन्न को नहीं पचाते, जठराग्नि ही अन्न को पचाती है। शरीर के अंग पात्र हैं और विभिन्न पाचक रस मानो मसाले हैं । जठराग्नि नहीं है तो पात्र और मसाले क्या काम आयेंगे ? अतः जठराग्नि अच्छा होना चाहिये, प्रदीप्त होना चाहिये। |
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− | अतः जठराग्नि अच्छा होना चाहिये, प्रदीप्त होना चाहिये। | |
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| जठराग्नि का सम्बन्ध सूर्य के साथ है । सूर्य उगने के बाद जैसे जैसे आगे बढता है वैसे वैसे जठराग्नि भी प्रदीप्त होता जाता है । मध्याहन के समय जठराग्नि सर्वाधिक प्रदीप्त होता है । मध्याह्न के बाद धीरे धीरे शान्त होता जाता है । अतः मध्याह्न से आधा घण्टा पूर्व दिन का मुख्य भोजन करना चाहिये । दिन के सभी समय के आहार दिन दहते ही लेने चाहिये । प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व और सायंकाल सूर्यास्त के बाद भोजन नहीं करना चाहिये । प्रातःकाल का नास्ता और सायंकाल का भोजन लघु अर्थात् हल्का होना चाहिये। समय के विपरीत भोजन करने से लाभ नहीं होता, उल्टे हानि ही होती है। | | जठराग्नि का सम्बन्ध सूर्य के साथ है । सूर्य उगने के बाद जैसे जैसे आगे बढता है वैसे वैसे जठराग्नि भी प्रदीप्त होता जाता है । मध्याहन के समय जठराग्नि सर्वाधिक प्रदीप्त होता है । मध्याह्न के बाद धीरे धीरे शान्त होता जाता है । अतः मध्याह्न से आधा घण्टा पूर्व दिन का मुख्य भोजन करना चाहिये । दिन के सभी समय के आहार दिन दहते ही लेने चाहिये । प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व और सायंकाल सूर्यास्त के बाद भोजन नहीं करना चाहिये । प्रातःकाल का नास्ता और सायंकाल का भोजन लघु अर्थात् हल्का होना चाहिये। समय के विपरीत भोजन करने से लाभ नहीं होता, उल्टे हानि ही होती है। |
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| # प्लास्टीक के डिब्बे में या थैली में खाना और प्लास्टीक की बोतल में पानी का निषेध होना चाहिये । इस सम्बन्ध में आग्रहपूर्वक प्रशिक्षण भी होना चाहिये। इस सम्बन्ध में आग्रहपूर्वक प्रशिक्षण भी होना चाहिये। | | # प्लास्टीक के डिब्बे में या थैली में खाना और प्लास्टीक की बोतल में पानी का निषेध होना चाहिये । इस सम्बन्ध में आग्रहपूर्वक प्रशिक्षण भी होना चाहिये। इस सम्बन्ध में आग्रहपूर्वक प्रशिक्षण भी होना चाहिये। |
| # प्लास्टीक के साथ साथ एल्यूमिनियम के पात्र भी वर्जित होने चाहिये। | | # प्लास्टीक के साथ साथ एल्यूमिनियम के पात्र भी वर्जित होने चाहिये। |
− | # विद्यार्थियों को घर से पानी न लाना पडे ऐसी व्यवस्था विद्यालय में करनी चाहिये । | + | # विद्यार्थियों को घर से पानी न लाना पड़े ऐसी व्यवस्था विद्यालय में करनी चाहिये । |
| # बजार की खाद्यसामग्री लाना मना होना चाहिये । यह तामसी आहार है। | | # बजार की खाद्यसामग्री लाना मना होना चाहिये । यह तामसी आहार है। |
| # इसी प्रकार भले घर में बना हो तब भी बासी भोजन नहीं लाना चाहिये । जिसमें पानी है ऐसा दाल, चावल, रसदार सब्जी बनने के बाद चार घण्टे में बासी हो जाती है। विद्यालय में भोजन का समय और घर में भोजन बनने का समय देखकर कैसा भोजन साथ लायें यह निश्चित करना चाहिये । | | # इसी प्रकार भले घर में बना हो तब भी बासी भोजन नहीं लाना चाहिये । जिसमें पानी है ऐसा दाल, चावल, रसदार सब्जी बनने के बाद चार घण्टे में बासी हो जाती है। विद्यालय में भोजन का समय और घर में भोजन बनने का समय देखकर कैसा भोजन साथ लायें यह निश्चित करना चाहिये । |
− | # विद्यार्थी और अध्यापक दोनों ही ज्ञान के उपासक ही हैं। अतः दोनों का आहार सात्त्विक ही होना चाहिये । | + | # विद्यार्थी और अध्यापक दोनों ही ज्ञान के उपासक ही हैं। अतः दोनों का आहार सात्विक ही होना चाहिये । |
− | # भोजन के साथ संस्कार भी जुडे हैं । इसलिये इन बातों का ध्यान करना चाहिये | + | # भोजन के साथ संस्कार भी जुड़े हैं । इसलिये इन बातों का ध्यान करना चाहिये |
| ## प्रार्थना करके ही भोजन करना चाहिये । | | ## प्रार्थना करके ही भोजन करना चाहिये । |
| ## पंक्ति में बैठकर भोजन करना चाहिये । | | ## पंक्ति में बैठकर भोजन करना चाहिये । |
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| == भोजन को लेकर समस्याओं तथा उनके समाधान विषयक ज्ञान == | | == भोजन को लेकर समस्याओं तथा उनके समाधान विषयक ज्ञान == |
| भोजन की सारी व्यवस्था आज अस्तव्यस्त हो गई है। इस भारी गडबड का स्वरूप प्रथम ध्यान में आना चाहिये । कुछ बिन्दु इस प्रकार है । | | भोजन की सारी व्यवस्था आज अस्तव्यस्त हो गई है। इस भारी गडबड का स्वरूप प्रथम ध्यान में आना चाहिये । कुछ बिन्दु इस प्रकार है । |
− | * अन्न पवित्र है ऐसा अब नहीं माना जाता है। वह एक जड पदार्थ है। | + | * अन्न पवित्र है ऐसा अब नहीं माना जाता है। वह एक जड़ पदार्थ है। |
− | * भारतीय परम्परा में अनाज भले ही बेचा जाता हो, अन्न कभी बेचा नहीं जाता था । अन्न पर भूख का और भूखे का स्वाभाविक अधिकार है, पैसे का या अन्न के मालिक का नहीं । आज यह बात सर्वथा विस्मृत हो गई है। | + | * धार्मिक परम्परा में अनाज भले ही बेचा जाता हो, अन्न कभी बेचा नहीं जाता था । अन्न पर भूख का और भूखे का स्वाभाविक अधिकार है, पैसे का या अन्न के मालिक का नहीं । आज यह बात सर्वथा विस्मृत हो गई है। |
| * अन्नदान महादान है यह विस्मृत हो गया है। | | * अन्नदान महादान है यह विस्मृत हो गया है। |
| * होटल उद्योग अपसंस्कृति की निशानी है। इसे अधिकाधिक प्रतिष्ठा मिल रही है। | | * होटल उद्योग अपसंस्कृति की निशानी है। इसे अधिकाधिक प्रतिष्ठा मिल रही है। |
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| * भोजन का स्वास्थ्य, संस्कार और संस्कृति के साथ सम्बन्ध है इस बात का विस्मरण हो गया है। | | * भोजन का स्वास्थ्य, संस्कार और संस्कृति के साथ सम्बन्ध है इस बात का विस्मरण हो गया है। |
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− | == भारतीय इन्स्टंट फ़ूड एवं जंक फ़ूड == | + | == धार्मिक इन्स्टंट फ़ूड एवं जंक फ़ूड == |
| इन सभी समस्याओं का समाधान विद्यालय में विभिन्न स्तरों पर सोचा जाना चाहिये । विद्यालय में भोजन केवल विद्यार्थियों के नास्ते तक सीमित नहीं है, भोजन से सम्बन्धित कार्य, भोजन से सम्बन्धित दृष्टि एवं मानसिकता तथा भोजन विषयक समस्याओं एवं उनके समाधान आदि सभी विषयों का समावेश इसमें होता है। | | इन सभी समस्याओं का समाधान विद्यालय में विभिन्न स्तरों पर सोचा जाना चाहिये । विद्यालय में भोजन केवल विद्यार्थियों के नास्ते तक सीमित नहीं है, भोजन से सम्बन्धित कार्य, भोजन से सम्बन्धित दृष्टि एवं मानसिकता तथा भोजन विषयक समस्याओं एवं उनके समाधान आदि सभी विषयों का समावेश इसमें होता है। |
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| इन्स्टण्ट फूड का अर्थ है झटपट तैयार होने वाला पदार्थ। झटपट अर्थात् दो मिनिट से लेकर पन्द्रह-बीस मिनिट में तैयार हो जाने वाला। | | इन्स्टण्ट फूड का अर्थ है झटपट तैयार होने वाला पदार्थ। झटपट अर्थात् दो मिनिट से लेकर पन्द्रह-बीस मिनिट में तैयार हो जाने वाला। |
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− | आजकल दौडधूपकी जिंदगी में ऐसे तुरन्त बनने वाले पदार्थों की आवश्यकता अधिक रहती है । गृहिणी को स्वयं भी शीघ्रातिशीघ्र काम निपटकर नौकरी पर निकलना होता है अथवा बच्चों और पति को भेजना होता है। | + | आजकल दौडधूपकी जिंदगी में ऐसे तुरन्त बनने वाले पदार्थों की आवश्यकता अधिक रहती है । गृहिणी को स्वयं भी शीघ्रातिशीघ्र काम निपटकर नौकरी पर निकलना होता है अथवा बच्चोंं और पति को भेजना होता है। |
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− | छाप ऐसी पडती है कि इन्स्टण्ट फूड का आविष्कार आज के जमाने में ही हुआ है। परन्तु ऐसा है नही। झटपट भोजन की आवश्यकता तो कहीं भी और कभी भी रह सकती है। इसलिये भारतीय गृहिणी भी इस कला में माहिर होगी ही। ऐसे कई पदार्थों की सूची यहाँ दी गई है। यह सूची सबको परिचित है, घर घर में प्रचलित भी है। परन्तु ध्यान इस बातकी ओर आकर्षित करना है कि ये सब पदार्थ झटपट तैयार होने वाले होने के साथ साथ पोषक एवं स्वादिष्ट भी होते हैं, बनाने में सरल हैं और आर्थिक दृष्टि से देखा जाय तो सर्वसामान्य गृहिणी बना सकेगी ऐसे भी हैं। | + | छाप ऐसी पडती है कि इन्स्टण्ट फूड का आविष्कार आज के जमाने में ही हुआ है। परन्तु ऐसा है नही। झटपट भोजन की आवश्यकता तो कहीं भी और कभी भी रह सकती है। इसलिये धार्मिक गृहिणी भी इस कला में माहिर होगी ही। ऐसे कई पदार्थों की सूची यहाँ दी गई है। यह सूची सबको परिचित है, घर घर में प्रचलित भी है। परन्तु ध्यान इस बातकी ओर आकर्षित करना है कि ये सब पदार्थ झटपट तैयार होने वाले होने के साथ साथ पोषक एवं स्वादिष्ट भी होते हैं, बनाने में सरल हैं और आर्थिक दृष्टि से देखा जाय तो सर्वसामान्य गृहिणी बना सकेगी ऐसे भी हैं। |
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| ==== हलवा ==== | | ==== हलवा ==== |
| आटे को घी में सेंककर उसमें पानी तथा गुड या शक्कर मिलाकर पकाया जाता है वह हलवा है। | | आटे को घी में सेंककर उसमें पानी तथा गुड या शक्कर मिलाकर पकाया जाता है वह हलवा है। |
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− | आबालवृध्ध सब खा सकते हैं। मेहमान को भी परोस सकते हैं, किसी भी समय पर किसी भी ऋतु में किसी भी अवसर पर नाश्ते अथवा भोजन में भी खाया जाता है। किसी भी पदार्थ के साथ खाया जाता है, जो सादा भी होता है, पानी के स्थान पर दूध मिलाकर भी हो सकता है, उसमें बदाम-केसर-पिस्ता चारोली इलायची जैसा सूखा मेवा भी डाल सकते हैं। और सत्यनारायण का प्रसाद भी बन सके ऐसा यह अदभुत पदार्थ बनाने में सरल, झटपट, स्वाद में रुचिकर और पाचन में भी लघु और पौष्टिक है।
| + | आबालवृद्ध सब खा सकते हैं। अतिथि को भी परोस सकते हैं, किसी भी समय पर किसी भी ऋतु में किसी भी अवसर पर नाश्ते अथवा भोजन में भी खाया जाता है। किसी भी पदार्थ के साथ खाया जाता है, जो सादा भी होता है, पानी के स्थान पर दूध मिलाकर भी हो सकता है, उसमें बदाम-केसर-पिस्ता चारोली इलायची जैसा सूखा मेवा भी डाल सकते हैं। और सत्यनारायण का प्रसाद भी बन सके ऐसा यह अदभुत पदार्थ बनाने में सरल, झटपट, स्वाद में रुचिकर और पाचन में भी लघु और पौष्टिक है। |
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| ==== सुखडी ==== | | ==== सुखडी ==== |
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| गेहूं के आटे को पानी में भिगोकर घोल तैयार किया जाता है। उसमें गुड मिलाया जाता है। बादमें चीले की तरह ही पकाया जाता है। इसमें तेलके स्थान पर घी का उपयोग होता है। | | गेहूं के आटे को पानी में भिगोकर घोल तैयार किया जाता है। उसमें गुड मिलाया जाता है। बादमें चीले की तरह ही पकाया जाता है। इसमें तेलके स्थान पर घी का उपयोग होता है। |
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− | मालपुआ बनाने में थोडा कौशल्य आवश्यक है। इसकी गणना मिष्टान्न में होती है और साधुओं को अतिप्रिय है। इसे दूधपाक के साथ खाया जाता है। घर में भी अनेक लोगों को पसंद होने पर भी चीले जितना यह पदार्थ प्रसिद्ध एवं प्रचलित नहीं है। | + | मालपुआ बनाने में थोडा कौशल्य आवश्यक है। इसकी गणना मिष्टान्न में होती है और साधुओं को अतिप्रिय है। इसे दूधपाक के साथ खाया जाता है। घर में भी अनेक लोगोंं को पसंद होने पर भी चीले जितना यह पदार्थ प्रसिद्ध एवं प्रचलित नहीं है। |
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| ==== पकोड़े ==== | | ==== पकोड़े ==== |
− | बेसन के आटे का घोल बनाते हैं। आलू, केला, बेंगन, मिर्ची, प्याज ऐसी कई सब्जियों से पतले टुकडे कर उन्हें घोल में डूबोकर तलने से पकोडे तैयार होते हैं। इसका पोषणमूल्य कम है पर खाने में अतिशय स्वादिष्ट है। बनाने में सरल, अल्पाहार एवं भोजन दोनो में चलते हैं। मेहमानदारी भी की जा सकती है। गृहिणी कुशल है तो सोडा जैसी कोई चीज डाले बिना भी पकोडे खस्ता हो सकते हैं। | + | बेसन के आटे का घोल बनाते हैं। आलू, केला, बेंगन, मिर्ची, प्याज ऐसी कई सब्जियों से पतले टुकडे कर उन्हें घोल में डूबोकर तलने से पकोडे तैयार होते हैं। इसका पोषणमूल्य कम है पर खाने में अतिशय स्वादिष्ट है। बनाने में सरल, अल्पाहार एवं भोजन दोनो में चलते हैं। अतिथिदारी भी की जा सकती है। गृहिणी कुशल है तो सोडा जैसी कोई चीज डाले बिना भी पकोडे खस्ता हो सकते हैं। |
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| ==== बड़ा ==== | | ==== बड़ा ==== |
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| ==== मुरमुरे की चटपटी ==== | | ==== मुरमुरे की चटपटी ==== |
− | मुरमुरे भीगोकर पूरा पानी निकालकर सब मसाले एवं गाजर, पत्ता गोभी इत्यादि को मिलाकर थोडी देर पकाया हुआ पदार्थ। मनचाहे मसाले डालकर स्वादिष्ट बनाया जाता है। माध्यम पौष्टिक, बनाने में सरल परन्तु पोहे से कम प्रचलित। | + | मुरमुरे भीगोकर पूरा पानी निकालकर सब मसाले एवं गाजर, पत्ता गोभी इत्यादि को मिलाकर थोडी देर पकाया हुआ पदार्थ। मनचाहे मसाले डालकर स्वादिष्ट बनाया जाता है। माध्यम पौष्टिक, बनाने में सरल परन्तु पोहे से कम प्रचलित। मनचाहे मसाले डालकर स्वादिष्ट बनाया जाता है। मध्यम पौष्टिक, बनाने में सरल परन्तु पोहे से कम पौष्टिक। |
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− | हुआ पदार्थ । मनचाहे मसाले डालकर स्वादिष्ट बनाया जाता है। मध्यम पौष्टिक, बनाने में सरल परन्तु पोहे से कम
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| ==== उपमा ==== | | ==== उपमा ==== |
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| ==== पूरी, थेपला इत्यादि ==== | | ==== पूरी, थेपला इत्यादि ==== |
− | गेहूं का आटा मोन लगाकर, आवश्यक मसाला डालकर, आवश्यकता के अनुसार पानी से गूंदकर बेलकर के बनाया जाता हैं। पूरी अथवा थेपला, जो बनाना है उसके अनुसार उसका आकार छोटा या बडा, पतला या मोटा हो सकता है। ऐसा बेलने के बाद पूरी बनानी है तो कडाईमे तेल लेकर तलना होता है। और थेपला बनाना है तो तवे पर तेल डालकर सेंकना होता है। खट्टे अथवा मीठे अचार के साथ, दूध अथवा चाय के साथ अथवा सब्जी के साथ भी खा सकते हैं। पौष्टिकता में थेपला प्रथम है, पूरी बादमें । | + | गेहूं का आटा मोन लगाकर, आवश्यक मसाला डालकर, आवश्यकता के अनुसार पानी से गूंदकर बेलकर के बनाया जाता हैं। पूरी अथवा थेपला, जो बनाना है उसके अनुसार उसका आकार छोटा या बडा, पतला या मोटा हो सकता है। ऐसा बेलने के बाद पूरी बनानी है तो कडाईमे तेल लेकर तलना होता है। और थेपला बनाना है तो तवे पर तेल डालकर सेंकना होता है। खट्टे अथवा मीठे अचार के साथ, दूध अथवा चाय के साथ अथवा सब्जी के साथ भी खा सकते हैं। पौष्टिकता में थेपला प्रथम है, पूरी बादमें । गुजरात से लेकर समग्र उत्तर भारत में रोटी अथवा पराठा के विविध रुपों में यह पदार्थ प्रचलित है, परिचित है, और प्रतिष्ठित भी है। |
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− | गुजरात से लेकर समग्र उत्तर भारत में रोटी अथवा पराठा के विविध रुपों में यह पदार्थ प्रचलित है, परिचित है, और प्रतिष्ठित भी है। | |
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| ==== खमण ==== | | ==== खमण ==== |
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| ===== रोटीचूरा ===== | | ===== रोटीचूरा ===== |
− | रात के भोजन से बची हुई रोटी को मसलकर उसका या तो चूर्ण बनाया जाता है, या छोटे छोटे टुकडे। उसमें नमक, मिर्च आदि मनपसन्द मसाला डालकर छौंककर गरम किया जाता है। उसे रोटी का उपमा कह सकते हैं। उसी प्रकार छाछ छौंक कर उसमें रोटी के थोडे बडे टुकडे डाले जाते हैं और रुचि के अनुसार मसाले डाले जाते है। | + | रात के भोजन से बची हुई रोटी को मसलकर उसका या तो चूर्ण बनाया जाता है, या छोटे छोटे टुकडे। उसमें नमक, मिर्च आदि मनपसन्द मसाला डालकर छौंककर गरम किया जाता है। उसे रोटी का उपमा कह सकते हैं। उसी प्रकार छाछ छौंक कर उसमें रोटी के थोडे बड़े टुकडे डाले जाते हैं और रुचि के अनुसार मसाले डाले जाते है। |
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| ===== रोटी का लड्ड ===== | | ===== रोटी का लड्ड ===== |
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| ===== खिचडी के पराठे, पकौडे ===== | | ===== खिचडी के पराठे, पकौडे ===== |
− | बची हुई खिचडी में गेहूं का आटा मिलाकर, अच्छी तरह गँधकर उसके पराठे बनाये जाते हैं। उसमें बेसन मिलाकर पकौडे तले जाते हैं या गेहूँ चने आदि दो तीन प्रकार का आटा मिलाकर उसके छोटे छोटे गोले बनाकर, उन्हे भाँप पर पकाकर फिर छौंक कर बडे या बडियाँ बनाई जाती हैं। खिचडी में इसी प्रकार से आटा मिलाकर, उसे गूंधकर खाखरा या सूखी रोटी बनाई जाती है। | + | बची हुई खिचडी में गेहूं का आटा मिलाकर, अच्छी तरह गँधकर उसके पराठे बनाये जाते हैं। उसमें बेसन मिलाकर पकौडे तले जाते हैं या गेहूँ चने आदि दो तीन प्रकार का आटा मिलाकर उसके छोटे छोटे गोले बनाकर, उन्हे भाँप पर पकाकर फिर छौंक कर बड़े या बडियाँ बनाई जाती हैं। खिचडी में इसी प्रकार से आटा मिलाकर, उसे गूंधकर खाखरा या सूखी रोटी बनाई जाती है। |
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| ===== दालभात मिक्स ===== | | ===== दालभात मिक्स ===== |
− | बचे हुए चावल और दाल अच्छी तरह मिलाकर छौंककर गरम किया जाता है। | + | बचे हुए चावल और दाल अच्छी तरह मिलाकर छौंककर गरम किया जाता है। इसी प्रकार चावल या खिचडी भी मसाला डालकर छौंकी जाती है। |
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− | इसी प्रकार चावल या खिचडी भी मसाला डालकर छौंकी जाती है। | |
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| ===== दाल पापडी ===== | | ===== दाल पापडी ===== |
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| ===== रात की बची हुई रोटी ===== | | ===== रात की बची हुई रोटी ===== |
− | बासी रोटी और दही बहुत लोगों को बहुत अच्छा लगता है। इसलिये सुबह खाने के लिये रात्रि में बनाकर बासी बनाकर खाई जाती है।ये सारे जंकफूड के नमूने हैं क्यों कि ये बासी और बचे हुए पदार्थों से ही बनते हैं। आयुर्वेद इन्हें खाने के लिये स्पष्ट मना करता है क्यों कि स्वास्थ्यकारक आहार की परिभाषा में इसका स्थान नहीं है। | + | बासी रोटी और दही बहुत लोगोंं को बहुत अच्छा लगता है। इसलिये सुबह खाने के लिये रात्रि में बनाकर बासी बनाकर खाई जाती है।ये सारे जंकफूड के नमूने हैं क्यों कि ये बासी और बचे हुए पदार्थों से ही बनते हैं। आयुर्वेद इन्हें खाने के लिये स्पष्ट मना करता है क्यों कि स्वास्थ्यकारक आहार की परिभाषा में इसका स्थान नहीं है। |
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− | फिर भी प्रत्येक घर में ये प्रतिष्ठा प्राप्त हैं। इसका एक कारण यह है कि खाने वाले को ये अत्यन्त रुचिकर लगते हैं। इस प्रकार से ही उसका रुपान्तरण होता है। दूसरा कारण यह है कि बचे हुए पदार्थो को फैंकना गृहिणी को अच्छा नहीं लगता है। आर्थिक रुप से भी वह परवडता नहीं है। अतः बचे हुए अन्न का उपयोग करने में गृहिणी अपना कौशल दिखाती है।
| + | तथापि प्रत्येक घर में ये प्रतिष्ठा प्राप्त हैं। इसका एक कारण यह है कि खाने वाले को ये अत्यन्त रुचिकर लगते हैं। इस प्रकार से ही उसका रुपान्तरण होता है। दूसरा कारण यह है कि बचे हुए पदार्थो को फैंकना गृहिणी को अच्छा नहीं लगता है। आर्थिक रुप से भी वह परवडता नहीं है। अतः बचे हुए अन्न का उपयोग करने में गृहिणी अपना कौशल दिखाती है। |
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− | सम्पूर्ण भारत में घर घर में जंकफूड का प्रचलन है। भारत की गृहिणियाँ भाँति भाँति के जंक व्यंजन बनाने में माहिर होती हैं। घर के सदस्य भी उन्हे चाव से खाते हैं। परन्तु ये पदार्थ बासी हैं और अनारोग्यकर हैं यह बात हमेशा ध्यान में रखना आवश्यक है। | + | सम्पूर्ण भारत में घर घर में जंकफूड का प्रचलन है। भारत की गृहिणियाँ भाँति भाँति के जंक व्यंजन बनाने में माहिर होती हैं। घर के सदस्य भी उन्हे चाव से खाते हैं। परन्तु ये पदार्थ बासी हैं और अनारोग्यकर हैं यह बात सदा ध्यान में रखना आवश्यक है। |
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| === अन्न विचार === | | === अन्न विचार === |
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| # पानी का आर्थिक पक्ष क्या है ? | | # पानी का आर्थिक पक्ष क्या है ? |
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− | === '''प्रश्नावली से पाप्त उत्तर''' === | + | === प्रश्नावली से प्राप्त उत्तर === |
| इस प्रश्नावली में कुल १० प्रश्न थे। ८ शिक्षक, २ प्रधानाचार्य और २४ अभिभावकों ने इन प्रश्नों से सम्बन्धित अपने मत व्यक्त किये हैं। | | इस प्रश्नावली में कुल १० प्रश्न थे। ८ शिक्षक, २ प्रधानाचार्य और २४ अभिभावकों ने इन प्रश्नों से सम्बन्धित अपने मत व्यक्त किये हैं। |
− | # पाँच घण्टे की विद्यालय अवधि में पीने के पानी की व्यवस्था होनी ही चाहिए । छात्रों को भोजनोपरान्त पीने का पानी चाहिए । इसलिए विद्यालय में पीने के पानी की व्यवस्था होना अनिवार्य है । यह मत सबका था । | + | # पाँच घण्टे की विद्यालय अवधि में पीने के पानी की व्यवस्था होनी ही चाहिए । छात्रों को भोजनोपरान्त पीने का पानी चाहिए । अतः विद्यालय में पीने के पानी की व्यवस्था होना अनिवार्य है । यह मत सबका था । |
| # अच्छी व्यवस्था के सन्दर्भ में, मटके को टोटी लगाना, मटके छाया में रखना, सुविधाजनक स्थान पर रखना, पीने के पानी की व्यवस्था एक ही स्थान पर न कर अलग-अलग स्थानों पर करना, पीते समय गिरा हुआ पानी बहकर पौधों में जायें ऐसी व्यवस्था बनाना आदि बातों में तो सर्वानुमति थी, किन्तु पानी पीकर गिलास धो कर रखना किसी ने नहीं सुझाया इसका आश्चर्य है । क्योंकि यह एक आवश्यक संस्कार है। | | # अच्छी व्यवस्था के सन्दर्भ में, मटके को टोटी लगाना, मटके छाया में रखना, सुविधाजनक स्थान पर रखना, पीने के पानी की व्यवस्था एक ही स्थान पर न कर अलग-अलग स्थानों पर करना, पीते समय गिरा हुआ पानी बहकर पौधों में जायें ऐसी व्यवस्था बनाना आदि बातों में तो सर्वानुमति थी, किन्तु पानी पीकर गिलास धो कर रखना किसी ने नहीं सुझाया इसका आश्चर्य है । क्योंकि यह एक आवश्यक संस्कार है। |
− | # जल शुद्धिकरण हेतु पानी में फिटकरी डालना, पानी छानकर उसमें खस डालना, पानी में क्लोरिन की गोलियाँ डालना आदि सुझाव प्राप्त हुए । कुछ लोगों ने पीने का पानी उबालकर रखना, आर.ओ. प्लान्ट लगाकर पानी को शुद्ध करना जैसे सुझाव भी दिये । वर्षा का पानी उचित प्रकार से उचित स्थान पर जमा करना । पीने के लिए वर्षभर इसी पानी का उपयोग करने जैसी अच्छी बातें भी कही । | + | # जल शुद्धिकरण हेतु पानी में फिटकरी डालना, पानी छानकर उसमें खस डालना, पानी में क्लोरिन की गोलियाँ डालना आदि सुझाव प्राप्त हुए । कुछ लोगोंं ने पीने का पानी उबालकर रखना, आर.ओ. प्लान्ट लगाकर पानी को शुद्ध करना जैसे सुझाव भी दिये । वर्षा का पानी उचित प्रकार से उचित स्थान पर जमा करना । पीने के लिए वर्षभर इसी पानी का उपयोग करने जैसी अच्छी बातें भी कही । |
| # पानी ठंडा रखने के लिए मिट्टी के पात्र ही सर्वोत्तम हैं, इस बात का भी सबने आग्रह किया । पानी के पात्र की रोज सफाई करना, उसे हर समय ढककर रखना जैसी सभी बातों की अनिवार्यता भी बताई । पानी की टंकी की सफाई भी प्रति मास होनी चाहिए । | | # पानी ठंडा रखने के लिए मिट्टी के पात्र ही सर्वोत्तम हैं, इस बात का भी सबने आग्रह किया । पानी के पात्र की रोज सफाई करना, उसे हर समय ढककर रखना जैसी सभी बातों की अनिवार्यता भी बताई । पानी की टंकी की सफाई भी प्रति मास होनी चाहिए । |
| # आजकल आचार्य और छात्र पीने का पानी घर से साथ लेकर आते हैं, जो सर्वथा गलत है। | | # आजकल आचार्य और छात्र पीने का पानी घर से साथ लेकर आते हैं, जो सर्वथा गलत है। |
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| === अभिमत === | | === अभिमत === |
− | अन्य प्रश्नावलियों से प्राप्त उत्तरों की तुलना में इस विद्यालय से प्राप्त उत्तर सही एवं भारतीय दृष्टि की पहचान बताने वाले थे । इसका कारण यह था कि इस विद्यालय में समग्र विकास अभ्यासक्रमानुसार शिक्षण होता है । जब शिक्षा से सही दृष्टि मिलती है तो व्यवहार भी तद्नुसार सही ही होता है। दसरी महत्त्वपूर्ण बात यह कि इस प्रश्नावली में अभिभावकों की सहभागिता अधिक रही। उनमें से कुछ अभिभावक कम पढे लिखे भी थे. फिर भी अनेक उत्तर एकदम सटीक थे । यह आश्चर्य की बात थी । अल्पशिक्षित व्यक्ति भी अच्छा व्यवहार कर सकता है बात को उन्होंने सत्यसिद्ध किया। | + | अन्य प्रश्नावलियों से प्राप्त उत्तरों की तुलना में इस विद्यालय से प्राप्त उत्तर सही एवं धार्मिक दृष्टि की पहचान बताने वाले थे । इसका कारण यह था कि इस विद्यालय में समग्र विकास अभ्यासक्रमानुसार शिक्षण होता है । जब शिक्षा से सही दृष्टि मिलती है तो व्यवहार भी तद्नुसार सही ही होता है। दसरी महत्त्वपूर्ण बात यह कि इस प्रश्नावली में अभिभावकों की सहभागिता अधिक रही। उनमें से कुछ अभिभावक कम पढे लिखे भी थे. तथापि अनेक उत्तर एकदम सटीक थे । यह आश्चर्य की बात थी । अल्पशिक्षित व्यक्ति भी अच्छा व्यवहार कर सकता है बात को उन्होंने सत्यसिद्ध किया। |
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− | आज हर कोई कार्यालय में, व्याख्यान में, सिनेमा में जाते समय पानी की बोटल साथ लेकर जाता है । परन्तु यहाँ सब लोगों ने मटके के पानी का उपयोग ही सबके लिए श्रेष्ठ बताया है । प्लास्टिक बोतल में रखा पानी प्रदूषित हो जाता है । ऐसा उनका मत था। | + | आज हर कोई कार्यालय में, व्याख्यान में, सिनेमा में जाते समय पानी की बोटल साथ लेकर जाता है । परन्तु यहाँ सब लोगोंं ने मटके के पानी का उपयोग ही सबके लिए श्रेष्ठ बताया है । प्लास्टिक बोतल में रखा पानी प्रदूषित हो जाता है । ऐसा उनका मत था। |
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− | जैसे घर में पानी की व्यवस्था करना घर के लोगों का दायित्व होता है, वैसे ही विद्यालय में पानी की व्यवस्था करना विद्यालय का दायित्व होता है इस सीधी सादी बात को हम भूल रहे हैं । विद्यालय में पानी भरना, उसकी स्वच्छता रखना यह हमारा काम है, आज के चतुर्थश्रेणी कर्मचारियों को इसका भान ही नहीं है। उधर अभिभावक भी वॉटर बोतल देकर, अपने बालक की सुरक्षा का ध्यान हमें ही रखना है ऐसा मानता है और उसमें धन्यता अनुभव करता है । प्लास्टिक बोतल का उपयोग हानिकर है इसे वे भूल जाते हैं । जल से जुड़े संस्कार जो उसे विद्यालय से मिलने चाहिए उनसे वह वंचित रह जाता है। जैसे कि समूह में कैसा व्यवहार करना, अपने से अधिक प्यासे मित्र को पहले पानी पीने देना, व्यर्थ बहने वाले पानी का कैसे उपयोग करना आदि । | + | जैसे घर में पानी की व्यवस्था करना घर के लोगोंं का दायित्व होता है, वैसे ही विद्यालय में पानी की व्यवस्था करना विद्यालय का दायित्व होता है इस सीधी सादी बात को हम भूल रहे हैं । विद्यालय में पानी भरना, उसकी स्वच्छता रखना यह हमारा काम है, आज के चतुर्थश्रेणी कर्मचारियों को इसका भान ही नहीं है। उधर अभिभावक भी वॉटर बोतल देकर, अपने बालक की सुरक्षा का ध्यान हमें ही रखना है ऐसा मानता है और उसमें धन्यता अनुभव करता है । प्लास्टिक बोतल का उपयोग हानिकर है इसे वे भूल जाते हैं । जल से जुड़े संस्कार जो उसे विद्यालय से मिलने चाहिए उनसे वह वंचित रह जाता है। जैसे कि समूह में कैसा व्यवहार करना, अपने से अधिक प्यासे मित्र को पहले पानी पीने देना, व्यर्थ बहने वाले पानी का कैसे उपयोग करना आदि । |
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| === पानी का आर्थिक पक्ष === | | === पानी का आर्थिक पक्ष === |
− | पानी के आर्थिक पक्ष को देखें तो ईश्वर ने हमारे लिए विपुल मात्रा में जल की व्यवस्था की है। जल पर सबका समान अधिकार है । किसी ने भी पानी माँगा तो उसे सेवाभाव से पानी पिलाना यह भारतीय दृष्टि है । परन्तु पाश्चात्य विचारों के प्रभाव में आकर हमने पानी को भी बिकाऊ बना दिया । बड़ी-बड़ी व्यावसायिक कम्पनियों के मनमोहक विज्ञापनों के सहारे धडल्ले से पानी बिक रहा है । परिणाम स्वरूप सेवाभाव से चलने वाले जलमंदिर बन्द हो रहे हैं। | + | पानी के आर्थिक पक्ष को देखें तो ईश्वर ने हमारे लिए विपुल मात्रा में जल की व्यवस्था की है। जल पर सबका समान अधिकार है । किसी ने भी पानी माँगा तो उसे सेवाभाव से पानी पिलाना यह धार्मिक दृष्टि है । परन्तु पाश्चात्य विचारों के प्रभाव में आकर हमने पानी को भी बिकाऊ बना दिया । बड़ी-बड़ी व्यावसायिक कम्पनियों के मनमोहक विज्ञापनों के सहारे धडल्ले से पानी बिक रहा है । परिणाम स्वरूप सेवाभाव से चलने वाले जलमंदिर बन्द हो रहे हैं। |
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− | तरह तरह के वाटर बेग्ज, उनके आकर्षक रंग व आकार पर मोहित हो अभिभावक अपने पुत्र के नाम पर कितना पैसा व्यर्थ में लुटा देते हैं । आर ओ प्लान्ट के बिना जल शुद्ध हो ही नहीं सकता इस विचार के कारण कितना अनावश्यक धन खर्च होता है इसका अभिभावकों को भान ही नहीं है । मेरा खरीदा हुआ पानी, इसलिए उस पर केवल मेरा अधिकार, मैं जैसा चाहूँगा, वैसा उसका उपयोग करूँगा | + | तरह तरह के वाटर बेग्ज, उनके आकर्षक रंग व आकार पर मोहित हो अभिभावक अपने पुत्र के नाम पर कितना पैसा व्यर्थ में लुटा देते हैं । आर ओ प्लान्ट के बिना जल शुद्ध हो ही नहीं सकता इस विचार के कारण कितना अनावश्यक धन खर्च होता है इसका अभिभावकों को भान ही नहीं है । मेरा खरीदा हुआ पानी, अतः उस पर केवल मेरा अधिकार, मैं जैसा चाहूँगा, वैसा उसका उपयोग करूँगा |
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| यह व्यवहार अत्यन्त सहज हो गया है। । प्यासे को पानी पिलाने के भाव ही अब उत्पन्न नहीं होता । | | यह व्यवहार अत्यन्त सहज हो गया है। । प्यासे को पानी पिलाने के भाव ही अब उत्पन्न नहीं होता । |
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| # कई स्थानों पर टंकी होती है और उसे नल लगे होते हैं । पानी की टंकी या तो सिमेन्ट की होती है अथवा प्लास्टिक की । टंकी में से पानी लाने वाली नलिकायें भी या तो प्लास्टिक की होती हैं या सिमेन्ट की । नल स्टील के, लोहे के अथवा प्लास्टिक के । पानी पीने के प्याले अधिकांश प्लास्टिक के और कभी कभी स्टील के होते हैं। | | # कई स्थानों पर टंकी होती है और उसे नल लगे होते हैं । पानी की टंकी या तो सिमेन्ट की होती है अथवा प्लास्टिक की । टंकी में से पानी लाने वाली नलिकायें भी या तो प्लास्टिक की होती हैं या सिमेन्ट की । नल स्टील के, लोहे के अथवा प्लास्टिक के । पानी पीने के प्याले अधिकांश प्लास्टिक के और कभी कभी स्टील के होते हैं। |
| # अनेक विद्यालयों में पानी शुद्धीकरण के यन्त्र लगाए जाते हैं । कई स्थानों पर मिट्टी के मटके होते हैं । कई स्थानों पर बाजार में जो मिनरल पानी मिलता है वह लाया जाता है । छात्रों को शुद्ध पानी मिले ऐसा आग्रह विद्यालय का और अभिभावकों का होता है। | | # अनेक विद्यालयों में पानी शुद्धीकरण के यन्त्र लगाए जाते हैं । कई स्थानों पर मिट्टी के मटके होते हैं । कई स्थानों पर बाजार में जो मिनरल पानी मिलता है वह लाया जाता है । छात्रों को शुद्ध पानी मिले ऐसा आग्रह विद्यालय का और अभिभावकों का होता है। |
− | # अनेक विद्यालयों में छात्र घर से पानी लेकर आते हैं । वे ऐसा करें इसका आग्रह विद्यालय और अभिभावक दोनों का होता है। विद्यालय कभी कभी विचार करता है कि छात्र यदि घर से पानी लाते हैं तो विद्यालय का बोज कम होगा। अभिभावकों को कभी कभी विद्यालय की व्यवस्था पर सन्देह होता है। वहाँ शुद्ध पानी मिलेगा कि नहीं इसकी आशंका रहती है। इसलिए वे घर से ही पानी भेजते हैं। विद्यालय में भीड़ होने के कारण भी अपना पानी अलग रखने की आवश्यकता उन्हें लगती है। घर से विद्यालय की दूरी भी होती है और रास्ते में पानी की आवश्यकता होती है इसलिए भी अभिभावक पानी घर से देते हैं। | + | # अनेक विद्यालयों में छात्र घर से पानी लेकर आते हैं । वे ऐसा करें इसका आग्रह विद्यालय और अभिभावक दोनों का होता है। विद्यालय कभी कभी विचार करता है कि छात्र यदि घर से पानी लाते हैं तो विद्यालय का बोज कम होगा। अभिभावकों को कभी कभी विद्यालय की व्यवस्था पर सन्देह होता है। वहाँ शुद्ध पानी मिलेगा कि नहीं इसकी आशंका रहती है। अतः वे घर से ही पानी भेजते हैं। विद्यालय में भीड़ होने के कारण भी अपना पानी अलग रखने की आवश्यकता उन्हें लगती है। घर से विद्यालय की दूरी भी होती है और रास्ते में पानी की आवश्यकता होती है अतः भी अभिभावक पानी घर से देते हैं। |
| # अब इसमें शैक्षिक दृष्टि से विचारणीय बातें कौन सी हैं ?पहली बात तो यह है कि विद्यालय में पानी की व्यवस्था है और वह अच्छी है इस बात पर अभिभावकों का विश्वास बनना चाहिये । इसके आधार पर ही आगे की बातें सम्भव हो सकती हैं। | | # अब इसमें शैक्षिक दृष्टि से विचारणीय बातें कौन सी हैं ?पहली बात तो यह है कि विद्यालय में पानी की व्यवस्था है और वह अच्छी है इस बात पर अभिभावकों का विश्वास बनना चाहिये । इसके आधार पर ही आगे की बातें सम्भव हो सकती हैं। |
− | # आजकल जो बात सर्वाधिक प्रचलन में है वह है प्लास्टिक का प्रयोग । टंकी, बोतल, नलिका और नल, प्याले आदि सबकुछ प्लास्टिक का ही बना होता है। भौतिक विज्ञान स्पष्ट कहता है कि प्लास्टिक पर्यावरण और स्वास्थ्य दोनों के लिए हानिकारक है । इसलिए विद्यालय का यह कर्तव्य है कि प्लास्टिक का इसलिए विद्यालय का यह कर्तव्य है कि प्लास्टिक का प्रयोग न करे और उसके निषेध के लिए छात्रों की सिद्धता बनाए और अभिभावकों का प्रबोधन करे । विद्यालय के शिक्षाक्रम का यह एक महत्त्वपूर्ण अंग होना चाहिये । विश्वभर के संकट मनुष्य की अनुचित मन:स्थिति और उससे प्रेरित होने वाले अनुचित व्यवहार के कारण ही तो निर्माण होते हैं। मन और व्यवहार ठीक करने का प्रमुख अथवा कहो कि एकमेव केन्द्र ही तो विद्यालय है । वहाँ भी यदि प्लास्टिक का प्रयोग किया जाय तो इससे बढ़कर पाप कौनसा होगा। इस सन्दर्भ में सुभाषित देखें | + | # आजकल जो बात सर्वाधिक प्रचलन में है वह है प्लास्टिक का प्रयोग । टंकी, बोतल, नलिका और नल, प्याले आदि सबकुछ प्लास्टिक का ही बना होता है। भौतिक विज्ञान स्पष्ट कहता है कि प्लास्टिक पर्यावरण और स्वास्थ्य दोनों के लिए हानिकारक है । अतः विद्यालय का यह कर्तव्य है कि प्लास्टिक का अतः विद्यालय का यह कर्तव्य है कि प्लास्टिक का प्रयोग न करे और उसके निषेध के लिए छात्रों की सिद्धता बनाए और अभिभावकों का प्रबोधन करे । विद्यालय के शिक्षाक्रम का यह एक महत्त्वपूर्ण अंग होना चाहिये । विश्वभर के संकट मनुष्य की अनुचित मन:स्थिति और उससे प्रेरित होने वाले अनुचित व्यवहार के कारण ही तो निर्माण होते हैं। मन और व्यवहार ठीक करने का प्रमुख अथवा कहो कि एकमेव केन्द्र ही तो विद्यालय है । वहाँ भी यदि प्लास्टिक का प्रयोग किया जाय तो इससे बढ़कर पाप कौनसा होगा। इस सन्दर्भ में सुभाषित देखें |
| <blockquote>अन्यक्षेत्रे कृतं पापं तीर्थक्षेत्रे विनश्यति । </blockquote><blockquote>तीर्थक्षेत्रे कृतं पापं वज्रलेपो भविष्यति ।।</blockquote><blockquote>अर्थात अन्य स्थानों पर किया गया पाप तीर्थक्षेत्र में धुल जाता है परन्तु तीर्थक्षेत्र में किया हुआ पाप वज्रलेप बन जाता है। विद्यालय ज्ञान के क्षेत्र में तीर्थक्षेत्र ही तो है । अतः विद्यालय ने इसे अपना कर्तव्य समझना चाहिये ।</blockquote> | | <blockquote>अन्यक्षेत्रे कृतं पापं तीर्थक्षेत्रे विनश्यति । </blockquote><blockquote>तीर्थक्षेत्रे कृतं पापं वज्रलेपो भविष्यति ।।</blockquote><blockquote>अर्थात अन्य स्थानों पर किया गया पाप तीर्थक्षेत्र में धुल जाता है परन्तु तीर्थक्षेत्र में किया हुआ पाप वज्रलेप बन जाता है। विद्यालय ज्ञान के क्षेत्र में तीर्थक्षेत्र ही तो है । अतः विद्यालय ने इसे अपना कर्तव्य समझना चाहिये ।</blockquote> |
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− | <li> एक ओर प्लास्टीक का आतंक है तो दूसरी ओर शुद्धीकरण का भूत बुद्धि पर सवार हो गया है। हम कहते हैं कि आज का जमाना वैज्ञानिकता का है। परन्तु पानी के शुद्धीकरण के लिए जो यंत्र लगाए जाते हैं और जो प्रक्रिया अपनाई जाती है वह विज्ञापनों ने रची हुई मायाजाल है। विभिन्न प्रकार की प्रक्रियाओं से 'शुद्ध' हुआ पानी शरीर के लिए उपयोगी क्षारों को भी गँवा चुका होता है । अभ्यस्त लोगों को स्वाद से भी इसका पता चल जाता है। हमारे बड़े बड़े कार्यक्रमों में और घरों में शुद्ध पानी के नाम पर मिनरल पानी और प्लास्टिक के पात्र प्रयोग में लाये जाते हैं वह हमारी बुद्धि कितनी विपरीत हो गई है और अतार्किक तर्कों से ग्रस्त हो गई है इसका ही द्योतक है। विद्यालयों ने इस संकट के ज्ञानात्मक और भावनात्मक उपाय करने चाहिए । इस दृष्टि से तो प्रथम इन दोनों बातों का प्रयोग बन्द करना चाहिये । | + | <li> एक ओर प्लास्टीक का आतंक है तो दूसरी ओर शुद्धीकरण का भूत बुद्धि पर सवार हो गया है। हम कहते हैं कि आज का जमाना वैज्ञानिकता का है। परन्तु पानी के शुद्धीकरण के लिए जो यंत्र लगाए जाते हैं और जो प्रक्रिया अपनाई जाती है वह विज्ञापनों ने रची हुई मायाजाल है। विभिन्न प्रकार की प्रक्रियाओं से 'शुद्ध' हुआ पानी शरीर के लिए उपयोगी क्षारों को भी गँवा चुका होता है । अभ्यस्त लोगोंं को स्वाद से भी इसका पता चल जाता है। हमारे बड़े बड़े कार्यक्रमों में और घरों में शुद्ध पानी के नाम पर मिनरल पानी और प्लास्टिक के पात्र प्रयोग में लाये जाते हैं वह हमारी बुद्धि कितनी विपरीत हो गई है और अतार्किक तर्कों से ग्रस्त हो गई है इसका ही द्योतक है। विद्यालयों ने इस संकट के ज्ञानात्मक और भावनात्मक उपाय करने चाहिए । इस दृष्टि से तो प्रथम इन दोनों बातों का प्रयोग बन्द करना चाहिये । |
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| <li> भौतिक विज्ञान के प्रयोगों ने यह सिद्ध किया है कि मिट्टी के पात्र पानी के शुद्धिकारण के लिए बहुत लाभकारी हैं। तांबे के पात्र भी उतने ही लाभकारी हैं । पीने के पानी के लिए गर्मी के दिनों में मिट्टी के और ठंड के दिनों में तांबे के पात्र सर्वाधिक उपयुक्त होते हैं। शुद्धीकरण के कृत्रिम उपायों में पैसा खर्च करने के स्थान पर मिट्टी और तांबे के पात्रों का प्रयोग करना दूरगामी और तात्कालिक दोनों दृष्टि से अधिक समुचित है । टंकियों में भरे पानी को शुद्ध करने के लिए भी रसायनों का प्रयोग करने के स्थान पर सहजन और निर्मली के बीज और फिटकरी जैसे पदार्थों का प्रयोग अधिक लाभकारी होते हैं । छात्रों को कूलर और शीतागार का पानी भी नहीं पिलाना चाहिये। | | <li> भौतिक विज्ञान के प्रयोगों ने यह सिद्ध किया है कि मिट्टी के पात्र पानी के शुद्धिकारण के लिए बहुत लाभकारी हैं। तांबे के पात्र भी उतने ही लाभकारी हैं । पीने के पानी के लिए गर्मी के दिनों में मिट्टी के और ठंड के दिनों में तांबे के पात्र सर्वाधिक उपयुक्त होते हैं। शुद्धीकरण के कृत्रिम उपायों में पैसा खर्च करने के स्थान पर मिट्टी और तांबे के पात्रों का प्रयोग करना दूरगामी और तात्कालिक दोनों दृष्टि से अधिक समुचित है । टंकियों में भरे पानी को शुद्ध करने के लिए भी रसायनों का प्रयोग करने के स्थान पर सहजन और निर्मली के बीज और फिटकरी जैसे पदार्थों का प्रयोग अधिक लाभकारी होते हैं । छात्रों को कूलर और शीतागार का पानी भी नहीं पिलाना चाहिये। |
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| === पानी के सम्बन्ध में क्रियात्मक शिक्षा === | | === पानी के सम्बन्ध में क्रियात्मक शिक्षा === |
− | # पानी को हमेशा शुद्ध रखे, अशुद्ध न करें, शुद्ध पानी ही पियें । | + | # पानी को सदा शुद्ध रखे, अशुद्ध न करें, शुद्ध पानी ही पियें । |
− | # खडे खडे, लेटे लेटे पानी न पियें । हमेशा बैठकर ही पियें। | + | # खडे खडे, लेटे लेटे पानी न पियें । सदा बैठकर ही पियें। |
| # पानी जल्दबाजी में न पियें, धीरे धीरे एक एक बूंट लेकर ही पियें। | | # पानी जल्दबाजी में न पियें, धीरे धीरे एक एक बूंट लेकर ही पियें। |
| # प्लास्टिक की बोतलों में भरा हुआ, यंत्रों और रसायनों से शुद्ध किया हुआ पानी वास्तव में शुद्ध नहीं होता। उसे शुद्ध मानना और कहना हमारी वैज्ञानिक अंधश्रद्धा ही है। ऐसा अशुद्ध पानी अप्राकृतिक बीमारियों को जन्म देता है। | | # प्लास्टिक की बोतलों में भरा हुआ, यंत्रों और रसायनों से शुद्ध किया हुआ पानी वास्तव में शुद्ध नहीं होता। उसे शुद्ध मानना और कहना हमारी वैज्ञानिक अंधश्रद्धा ही है। ऐसा अशुद्ध पानी अप्राकृतिक बीमारियों को जन्म देता है। |
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| # दिनभर में पर्याप्त पानी पीना चाहिये, न बहुत अधिक, न बहुत कम । | | # दिनभर में पर्याप्त पानी पीना चाहिये, न बहुत अधिक, न बहुत कम । |
| # पीने के साथ साथ पानी भोजन बनाने के, स्थान और वस्तुओं को साफ करने के, पेड पौधों का पोषण करने के काम में भी आता है। उन बातों का भी सम्यक विचार करना आवश्यक है। | | # पीने के साथ साथ पानी भोजन बनाने के, स्थान और वस्तुओं को साफ करने के, पेड पौधों का पोषण करने के काम में भी आता है। उन बातों का भी सम्यक विचार करना आवश्यक है। |
− | # भोजन बनाने के लिये हमेशा शुद्ध और पवित्र पानी का ही प्रयोग करना चाहिये । ताँबे या पीतल के पात्र में भरे पानी का प्रयोग करें। स्टील, प्लास्टिक, एल्युमिनियम या अन्य पदार्थों से बने पात्रों में भरे पानी का प्रयोग नहीं करना चाहिये । चाँदी और सुवर्ण तो अति उत्तम हैं ही परन्तु हम व्यवहार में सामान्य रूप से इन पात्रों का प्रयोग नहीं करते । | + | # भोजन बनाने के लिये सदा शुद्ध और पवित्र पानी का ही प्रयोग करना चाहिये । ताँबे या पीतल के पात्र में भरे पानी का प्रयोग करें। स्टील, प्लास्टिक, एल्युमिनियम या अन्य पदार्थों से बने पात्रों में भरे पानी का प्रयोग नहीं करना चाहिये । चाँदी और सुवर्ण तो अति उत्तम हैं ही परन्तु हम व्यवहार में सामान्य रूप से इन पात्रों का प्रयोग नहीं करते । |
| # सिमेन्ट से बनी टाँकियों में भरा पानी भी उतना अधिक शुद्ध नहीं होता है, सिमेन्ट के ऊपर यदि चूने से पुताई की जायतोवह अच्छा है, लाभदायी है ।प्लास्टिक की टँकियाँ किसी भी तरह लाभदायी नहीं हैं। | | # सिमेन्ट से बनी टाँकियों में भरा पानी भी उतना अधिक शुद्ध नहीं होता है, सिमेन्ट के ऊपर यदि चूने से पुताई की जायतोवह अच्छा है, लाभदायी है ।प्लास्टिक की टँकियाँ किसी भी तरह लाभदायी नहीं हैं। |
| # पानी का उपयोग पेड पौधों और प्राणियों के लिये होता है। विद्यार्थियों को इसके क्रियात्मक संस्कार मिलने चाहिये । इस दृष्टि से विद्यालय में पक्षी पानी पी सके ऐसे पात्र टाँगने चाहिये । विद्यार्थी इन पात्रों को साफ करें और उन्हें पानी से भरें ऐसी योजना करना चाहिये । यह व्यवस्था हर विद्यार्थी के घर तक पहुँचे यह देखना चाहिये । साथ ही पशुओं को पानी पीने की व्यवस्था भी करनी चाहिये । रास्ते पर आते जाते पशु इससे पानी पी सकें ऐसी जगह पर यह व्यवस्था होनी चाहिये । इसकी स्वच्छता भी विद्यार्थी ही करें यह देखना चाहिये । | | # पानी का उपयोग पेड पौधों और प्राणियों के लिये होता है। विद्यार्थियों को इसके क्रियात्मक संस्कार मिलने चाहिये । इस दृष्टि से विद्यालय में पक्षी पानी पी सके ऐसे पात्र टाँगने चाहिये । विद्यार्थी इन पात्रों को साफ करें और उन्हें पानी से भरें ऐसी योजना करना चाहिये । यह व्यवस्था हर विद्यार्थी के घर तक पहुँचे यह देखना चाहिये । साथ ही पशुओं को पानी पीने की व्यवस्था भी करनी चाहिये । रास्ते पर आते जाते पशु इससे पानी पी सकें ऐसी जगह पर यह व्यवस्था होनी चाहिये । इसकी स्वच्छता भी विद्यार्थी ही करें यह देखना चाहिये । |
| # मनुष्यों को पानी पिलाने की व्यवस्था भी होना आवश्यक है। इस दृष्टि से प्याऊ की व्यवस्था की जा सकती है। इस प्याऊ की व्यवस्था का संचालन विद्यार्थियों को करना चाहिये । | | # मनुष्यों को पानी पिलाने की व्यवस्था भी होना आवश्यक है। इस दृष्टि से प्याऊ की व्यवस्था की जा सकती है। इस प्याऊ की व्यवस्था का संचालन विद्यार्थियों को करना चाहिये । |
| # हाथ पैर धोने या नहाने के लिये हम कितने कम पानी का प्रयोग कर सकते हैं यह सिखाने की आवश्यकता है। अधिक पानी का प्रयोग करना बुद्धिमानी नहीं है । | | # हाथ पैर धोने या नहाने के लिये हम कितने कम पानी का प्रयोग कर सकते हैं यह सिखाने की आवश्यकता है। अधिक पानी का प्रयोग करना बुद्धिमानी नहीं है । |
− | # इसी प्रकार वर्तन साफ करने के लिये, कपडे धोने के लिये कम पानी का प्रयोग करने की कुशलता प्राप्त करनी चाहिये। | + | # इसी प्रकार वर्तन साफ करने के लिये, कपड़े धोने के लिये कम पानी का प्रयोग करने की कुशलता प्राप्त करनी चाहिये। |
− | # डीटेर्जन्ट से कपडे और बर्तन साफ करने से अधिक पानी का प्रयोग करना पडता है। इससे बचने के | + | # डीटेर्जन्ट से कपड़े और बर्तन साफ करने से अधिक पानी का प्रयोग करना पडता है। इससे बचने के |
− | [[File:Capture20 .png|none|thumb|538x538px]] | + | [[File:Capture20 .png|thumb|538x538px|none]] |
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| लिये डिटर्जन्ट का प्रयोग बन्द कर उसके स्थान पर प्राकृतिक पदार्थों का प्रयोग करना चाहिये । बर्तन की सफाई के लिये मिट्टी या राख तथा कपड़ों की सफाई के लिये साबुन का प्रयोग करने से पानी की बचत भी होती है और प्रदूषण भी नहीं होता। | | लिये डिटर्जन्ट का प्रयोग बन्द कर उसके स्थान पर प्राकृतिक पदार्थों का प्रयोग करना चाहिये । बर्तन की सफाई के लिये मिट्टी या राख तथा कपड़ों की सफाई के लिये साबुन का प्रयोग करने से पानी की बचत भी होती है और प्रदूषण भी नहीं होता। |
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| <li> पीने का पानी पेड पौधों को मिल सके इस प्रकार ही फेंकना चाहिये । पीते समय बचाना नहीं यह तो पहली बात है परन्तु, बच गया तो वह या तो पक्षियों और पशुओं को पीने के लिये या तो बर्तन आदि धोने के लिये अथवा पेड पौधों के लिये काम में आना चाहिये। | | <li> पीने का पानी पेड पौधों को मिल सके इस प्रकार ही फेंकना चाहिये । पीते समय बचाना नहीं यह तो पहली बात है परन्तु, बच गया तो वह या तो पक्षियों और पशुओं को पीने के लिये या तो बर्तन आदि धोने के लिये अथवा पेड पौधों के लिये काम में आना चाहिये। |
| <li> जिनमें पानी भरा जाता है वे बर्तन खाली करते समय भी यह बातें ध्यान में रखना आवश्यक है। | | <li> जिनमें पानी भरा जाता है वे बर्तन खाली करते समय भी यह बातें ध्यान में रखना आवश्यक है। |
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| <li> भोजन के पात्र साफ करते समय प्रथम तो सारी जूठन धोकर वह पानी एक पात्र में इकट्ठा करना चाहिये । वह पानी गाय, बकरी, कुत्ते आदि पशुओं को पिलाना चाहिये । चावल, दाल आदि धोने के बाद उसके पानी का भी ऐसा ही उपयोग करना चाहिये । इससे पशुओं को अन्न के अच्छे अंश मिलते हैं और अन्न का सदुपयोग होता है। | | <li> भोजन के पात्र साफ करते समय प्रथम तो सारी जूठन धोकर वह पानी एक पात्र में इकट्ठा करना चाहिये । वह पानी गाय, बकरी, कुत्ते आदि पशुओं को पिलाना चाहिये । चावल, दाल आदि धोने के बाद उसके पानी का भी ऐसा ही उपयोग करना चाहिये । इससे पशुओं को अन्न के अच्छे अंश मिलते हैं और अन्न का सदुपयोग होता है। |
− | <li> बर्तन साफ किया हुआ पानी पेड पौधों को ही देना चाहिये । कपडे साफ करने के बाद का साबन वाला पानी खुले में रेत या मिट्टी पर या ये दोनों नहीं है तो पथ्थर पर गिराना चाहिये । रेत या मिट्टी पानी को सोख लेते हैं, पथ्थर पर गिरा पानी सूर्यप्रकाश और हवा से सूख जाता है। इससे जमीन की और वातावरण की नमी बनी रहती है और तापमान अप्राकृतिकरूप से नहीं बढता । | + | |
− | <li> पानी की निकासी की भूमिगत व्यवस्था पानी के शुद्धीकरण की दृष्टि से अत्यन्त घातक है यह बात आज किसी को समझ में आना बहुत कठिन है । हमारी सोच इतनी उपरी सतह की हो गई है, कि हमें ऊपरी स्वच्छता तो दिखाई देती । है परन्तु अन्दर की स्वच्छता का विचार भी नहीं आता। बाह्य और अभ्यन्तर स्वच्छता का विषय स्वतन्त्र रूप से विचार करने लायक है । | + | <li> बर्तन साफ किया हुआ पानी पेड पौधों को ही देना चाहिये । कपड़े साफ करने के बाद का साबन वाला पानी खुले में रेत या मिट्टी पर या ये दोनों नहीं है तो पथ्थर पर गिराना चाहिये । रेत या मिट्टी पानी को सोख लेते हैं, पथ्थर पर गिरा पानी सूर्यप्रकाश और हवा से सूख जाता है। इससे जमीन की और वातावरण की नमी बनी रहती है और तापमान अप्राकृतिकरूप से नहीं बढता । |
− | <li> पानी की निकासी के विषय में इतनी सावधानी रखनी चाहिये कि एक बंद भी बर्बाद न हो। | + | |
| + | <li> पानी की निकासी की भूमिगत व्यवस्था पानी के शुद्धीकरण की दृष्टि से अत्यन्त घातक है यह बात आज किसी को समझ में आना बहुत कठिन है । हमारी सोच इतनी उपरी सतह की हो गई है, कि हमें ऊपरी स्वच्छता तो दिखाई देती । है परन्तु अन्दर की स्वच्छता का विचार भी नहीं आता। बाह्य और अभ्यन्तर स्वच्छता का विषय स्वतन्त्र रूप से विचार करने लायक है। |
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| + | <li> पानी की निकासी के विषय में इतनी सावधानी रखनी चाहिये कि एक बूंद भी बर्बाद न हो। |
| + | </ol> |
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| == पानी को शुद्ध करने के प्राकृतिक उपाय == | | == पानी को शुद्ध करने के प्राकृतिक उपाय == |
− | # मोटे खादी के कपडे से पानी को छानना चाहिये । यह कपडा और पानी भरने का पात्र स्वच्छ ही हो यह पहले ही सुनिश्चित करना चाहिये । | + | # मोटे खादी के कपड़े से पानी को छानना चाहिये । यह कपडा और पानी भरने का पात्र स्वच्छ ही हो यह पहले ही सुनिश्चित करना चाहिये । |
| # पानी में यदि अशुद्धि धुलमिल गई हो तो उसमें फिटकरी घुमाना चाहिये । उससे अशुद्धि नीचे बैठ जाती है। उसके बाद पानी को छानना चाहिये । | | # पानी में यदि अशुद्धि धुलमिल गई हो तो उसमें फिटकरी घुमाना चाहिये । उससे अशुद्धि नीचे बैठ जाती है। उसके बाद पानी को छानना चाहिये । |
| # मिट्टी, रेत और कंकड पथ्थर से गुजरा हुआ पानी कचरा रहित हो जाता है। ऐसी व्यवस्था बनानी चाहिये । ऐसे पानी को छान लेना चाहिये । | | # मिट्टी, रेत और कंकड पथ्थर से गुजरा हुआ पानी कचरा रहित हो जाता है। ऐसी व्यवस्था बनानी चाहिये । ऐसे पानी को छान लेना चाहिये । |
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| # कूलर और फ्रीज का पानी पीना । यह प्राकृतिक सीमा से अधिक ठण्डा पानी स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है। यह अज्ञान इतना बढ़ गया है कि अब रेलवे स्थानक जैसी जगहों पर भी कूलर का ठण्डा पानी मिलता है । कूलर और फ्रीज पर्यावरण के लिये तो घातक हैं ही। | | # कूलर और फ्रीज का पानी पीना । यह प्राकृतिक सीमा से अधिक ठण्डा पानी स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है। यह अज्ञान इतना बढ़ गया है कि अब रेलवे स्थानक जैसी जगहों पर भी कूलर का ठण्डा पानी मिलता है । कूलर और फ्रीज पर्यावरण के लिये तो घातक हैं ही। |
| # यंत्रों से शुद्ध किया हुआ पानी पीना । यह भी स्वास्थ्य के लिये घातक है ही। | | # यंत्रों से शुद्ध किया हुआ पानी पीना । यह भी स्वास्थ्य के लिये घातक है ही। |
− | # प्लास्टीक की बोतल का पानी पीना । बोतल सीधी मुँह को लगाकर पानी पीने की आदत असंस्कारिता की निशानी है। प्लास्टिक भी हानिकारक, उसका 'शुद्ध' पानी भी हानिकारक और मुँह लगाकर पीने की पद्धति भी हानिकारक । | + | # प्लास्टीक की बोतल का पानी पीना । बोतल सीधी मुँह को लगाकर पानी पीने की आदत असंस्कारिता की निशानी है। प्लास्टिक भी हानिकारक, उसका 'शुद्ध' पानी भी हानिकारक और मुँह लगाकर पीने की पद्धति भी हानिकारक। |
| # मिनरल वॉटर की बिमारी इतनी फैली हुई है कि लोग मटके का पानी नहीं पिते, स्थानकों पर की हुई पानी की व्यवस्था से प्राप्त पानी नहीं पीते, यात्रा में घर से पानी साथ में नहीं ले जाते । इन सब अच्छी बातों को छोडकर पन्द्रह से बीस रूपये का एक लीटर पानी खरीदने वाली प्रजा असंस्कारी और दरिद्र बन जाने की पूरी सम्भावना है। विद्यालय में सिखाने लायक यह महत्त्वपूर्ण विषय है। | | # मिनरल वॉटर की बिमारी इतनी फैली हुई है कि लोग मटके का पानी नहीं पिते, स्थानकों पर की हुई पानी की व्यवस्था से प्राप्त पानी नहीं पीते, यात्रा में घर से पानी साथ में नहीं ले जाते । इन सब अच्छी बातों को छोडकर पन्द्रह से बीस रूपये का एक लीटर पानी खरीदने वाली प्रजा असंस्कारी और दरिद्र बन जाने की पूरी सम्भावना है। विद्यालय में सिखाने लायक यह महत्त्वपूर्ण विषय है। |
| # विद्यालय के समारोहों में मंच पर जब प्लास्टीक की 'मिनरल वॉटर' की बोतलें दिखाई देती है तब वह व्यापक विचार का और संस्कारयुक्त सोच का अभाव ही दर्शाती है। | | # विद्यालय के समारोहों में मंच पर जब प्लास्टीक की 'मिनरल वॉटर' की बोतलें दिखाई देती है तब वह व्यापक विचार का और संस्कारयुक्त सोच का अभाव ही दर्शाती है। |
− | # साथ में पानी की बोतल रखना और जब मन करे तब बोतल मुँह को लगाकर पानी पीना प्रचलन में आ गया है । तर्क यह दिया जाता है कि पानी स्वास्थ्य के लिये आवश्यक है और प्यास लगे तब पानी पीना ही चाहिये । परन्तु कक्षा चल रही हो या कार्यक्रम, वार्तालाप चल रहा हो या बैठक, मन चाहे तब पानी पीना असभ्यता का ही लक्षण है । साधारण रूप से कोई कक्षा कोई बैठक, कोई कार्यक्रम बिना विराम के दो घण्टे से अधिक चलता नहीं है । इतना समय बिना पानी के रहना असम्भव नहीं है। इतना संयम करना शरीरस्वास्थ्य के लिये हानिकारक नहीं है और मनोस्वास्थ्य के लिये लाभकारी है। बच्चों और बड़ों में बढती हुई इस आदत को जल्दी ही ठीक करने की आवश्यकता है। | + | # साथ में पानी की बोतल रखना और जब मन करे तब बोतल मुँह को लगाकर पानी पीना प्रचलन में आ गया है । तर्क यह दिया जाता है कि पानी स्वास्थ्य के लिये आवश्यक है और प्यास लगे तब पानी पीना ही चाहिये । परन्तु कक्षा चल रही हो या कार्यक्रम, वार्तालाप चल रहा हो या बैठक, मन चाहे तब पानी पीना असभ्यता का ही लक्षण है। साधारण रूप से कोई कक्षा कोई बैठक, कोई कार्यक्रम बिना विराम के दो घण्टे से अधिक चलता नहीं है । इतना समय बिना पानी के रहना असम्भव नहीं है। इतना संयम करना शरीरस्वास्थ्य के लिये हानिकारक नहीं है और मनोस्वास्थ्य के लिये लाभकारी है। बच्चोंं और बड़ों में बढती हुई इस आदत को जल्दी ही ठीक करने की आवश्यकता है। |
| # यही आदत बिना किसी प्रयोजन के बोतल का पानी फेंक देने की है। केवल मजे मजे में पानी गिराना पैसे बर्बाद करना ही है। इस आदत को भी ठीक करना चाहिये। | | # यही आदत बिना किसी प्रयोजन के बोतल का पानी फेंक देने की है। केवल मजे मजे में पानी गिराना पैसे बर्बाद करना ही है। इस आदत को भी ठीक करना चाहिये। |
| # पैसा खर्च करके खरीदे हुए पानी को एक क्षण में फैंक देने का प्रचलन भी बहुत बढ़ रहा है। पानी की बर्बादी के साथ साथ यह पैसे की भी बर्बादी है। बुद्धि हीनता के साथ साथ यह असंस्कारिता की भी निशानी है। | | # पैसा खर्च करके खरीदे हुए पानी को एक क्षण में फैंक देने का प्रचलन भी बहुत बढ़ रहा है। पानी की बर्बादी के साथ साथ यह पैसे की भी बर्बादी है। बुद्धि हीनता के साथ साथ यह असंस्कारिता की भी निशानी है। |
− | # बडे बडे समारोहों में पीने का पानी और हाथ धोने का पानी एक साथ रखा भी जाता है और गिराया भी जाता है। ऐसे स्थानों पर गन्दगी हो जाती है और | + | # बड़े बड़े समारोहों में पीने का पानी और हाथ धोने का पानी एक साथ रखा भी जाता है और गिराया भी जाता है। ऐसे स्थानों पर गन्दगी हो जाती है और |
| # पानी की बहुत बर्बादी होती है । इसे ठीक करने की क्रियात्मक शिक्षा विद्यालय में ही देने की आवश्यकता है। | | # पानी की बहुत बर्बादी होती है । इसे ठीक करने की क्रियात्मक शिक्षा विद्यालय में ही देने की आवश्यकता है। |
| # पानी के सम्बन्ध में भावात्मक शिक्षा | | # पानी के सम्बन्ध में भावात्मक शिक्षा |
− | # क्रियात्मक शिक्षा के साथ ही भावात्मक शिक्षा भी देनी चाहिये । भावात्मक शिक्षा से क्रिया के साथ श्रद्धा जुडती है और निष्ठा बनती है। कुछ इन बातों पर विचार किया जा सकता है... | + | # क्रियात्मक शिक्षा के साथ ही भावात्मक शिक्षा भी देनी चाहिये । भावात्मक शिक्षा से क्रिया के साथ श्रद्धा जुडती है और निष्ठा बनती है। कुछ इन बातों पर विचार किया जा सकता है: |
− | | + | ## पानी को पवित्र मानना सिखाना चाहिये । पवित्रता केवल शुद्धता नहीं है। शुद्धता के साथ जब सात्विकता जुडती है तब पवित्रता बनती है । |
− | # पानी को पवित्र मानना सिखाना चाहिये । पवित्रता केवल शुद्धता नहीं है। शुद्धता के साथ जब सात्त्विकता जुडती है तब पवित्रता बनती है । | + | ## पवित्र पदार्थ या स्थान के साथ आदरयुक्त व्यवहार होता है। पवित्रता की रक्षा करने के लिये हम अपवित्र शरीर और मन से उसके पास नहीं जाते हैं । उदाहरण के लिये घर में जहाँ पीने का पानी रखा जाता है वहाँ कोई जूते पहनकर या बिना स्नान किये नहीं जाता है। यह दीर्घकाल की परम्परा है। हम विद्यालय में भी ऐसी व्यवस्था कर सकते हैं । |
− | # पवित्र पदार्थ या स्थान के साथ आदरयुक्त व्यवहार होता है। पवित्रता की रक्षा करने के लिये हम अपवित्र शरीर और मन से उसके पास नहीं जाते हैं । उदाहरण के लिये घर में जहाँ पीने का पानी रखा जाता है वहाँ कोई जूते पहनकर या बिना स्नान किये नहीं जाता है। यह दीर्घकाल की परम्परा है। हम विद्यालय में भी ऐसी व्यवस्था कर सकते हैं । | + | ## जहाँ पीने का पानी रखा होता है वहाँ सायंकाल संध्या के समय दीपक जलाया जाता है। इससे पर्यावरण की शुद्धि होती है । पवित्रता की भावना भी निर्माण होती है। |
− | # जहाँ पीने का पानी रखा होता है वहाँ सायंकाल संध्या के समय दीपक जलाया जाता है। इससे पर्यावरण की शुद्धि होती है । पवित्रता की भावना भी निर्माण होती है। | + | ## पानी को जलदेवता मानने का प्रचलन आरम्भ करना चाहिये । जलदेवता की स्तुति करनेवाले मंत्र ऋग्वेद में तो हैं परन्तु हिन्दी में और हर धार्मिक भाषा में रचे जा सकते हैं । जलदेवता की स्तुति के गीत भी रचे जा सकते हैं । पानी का प्रयोग करते समय इन मन्त्रों का उच्चारण करने की प्रथा भी आरम्भ की जा सकती है। |
− | # पानी को जलदेवता मानने का प्रचलन शुरू करना चाहिये । जलदेवता की स्तुति करनेवाले मंत्र ऋग्वेद में तो हैं परन्तु हिन्दी में और हर भारतीय भाषा में रचे जा सकते हैं । जलदेवता की स्तुति के गीत भी रचे जा सकते हैं । पानी का प्रयोग करते समय इन मन्त्रों का उच्चारण करने की प्रथा भी शुरु की जा सकती है। | + | ## पानी का संग्रह जहाँ किया जाता है वहाँ भी जूते पहनकर नहीं जाना, आसपास में गन्दगी नहीं करना, उस स्थान की सफाई के लिये अलग से झाडू आदि की व्यवस्था करना आदि माध्यमो से पवित्रता का भाव जगाया जा सकता है। |
− | # पानी का संग्रह जहाँ किया जाता है वहाँ भी जूते पहनकर नहीं जाना, आसपास में गन्दगी नहीं करना, उस स्थान की सफाई के लिये अलग से झाडू आदि की व्यवस्था करना आदि माध्यमो से पवित्रता का भाव जगाया जा सकता है। | + | ## जलदेवता को सन्तुष्ट और प्रसन्न करने के लिये यज्ञों की रचना करनी चाहिये । यज्ञ में जलदेवता के लिये आहुति देनी चाहिये । जलदेवता प्रसन्न हों इस दृष्टि से जिस प्रकार नये मन्त्रों की रचना होगी उसी प्रकार यज्ञ में होम करने की सामग्री का भी भौतिक विज्ञान की दृष्टि से विचार होगा। यज्ञ तो वैज्ञानिक अनुष्ठान है ही, उसे आज की आवश्यकताओं की पूर्ति कर सके ऐसा स्वरूप दिया जाना चाहिये। |
− | # जलदेवता को सन्तुष्ट और प्रसन्न करने के लिये यज्ञों की रचना करनी चाहिये । यज्ञ में जलदेवता के लिये आहुति देनी चाहिये । जलदेवता प्रसन्न हों इस दृष्टि से जिस प्रकार नये मन्त्रों की रचना होगी उसी प्रकार यज्ञ में होम करने की सामग्री का भी भौतिक विज्ञान की दृष्टि से विचार होगा। यज्ञ तो वैज्ञानिक अनुष्ठान है ही, उसे आज की आवश्यकताओं की पूर्ति कर सके ऐसा स्वरूप दिया जाना चाहिये | + | ## पानी का मुख्य स्रोत वर्षा है। संग्रहित पानी का प्राकृतिक स्रोत नदियाँ हैं। संग्रहित पानी का मानवसर्जिक स्रोत तालाब, कुएँ, बावडी आदि हैं । संग्रहित पानी के इससे भी कृत्रिम स्रोत पानी की टँकियों से लेकर घर के छोटे मटकों तक के पात्र हैं । वर्षा की और नदियों की स्तुति के अनुष्टान किये जाने चाहिये तथा मानव सर्जित पानी के संग्रहस्थानों के सम्बन्ध में विवेकपूर्ण विचार होना चाहिये । यहीं से पानी के विषय में ज्ञानात्मक शिक्षा आरम्भ होती है । |
− | # पानी का मुख्य स्रोत वर्षा है। संग्रहित पानी का प्राकृतिक स्रोत नदियाँ हैं। संग्रहित पानी का मानवसर्जिक स्रोत तालाब, कुएँ, बावडी आदि हैं । संग्रहित पानी के इससे भी कृत्रिम स्रोत पानी की टँकियों से लेकर घर के छोटे मटकों तक के पात्र हैं । वर्षा की और नदियों की स्तुति के अनुष्टान किये जाने चाहिये तथा मानव सर्जित पानी के संग्रहस्थानों के सम्बन्ध में विवेकपूर्ण विचार होना चाहिये । यहीं से पानी के विषय में ज्ञानात्मक शिक्षा शुरू होती है । | |
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| == पानी के विषय में ज्ञानात्मक शिक्षा == | | == पानी के विषय में ज्ञानात्मक शिक्षा == |
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| # खेतों को पानी क्यों नहीं मिलता, पीने के लिये पानी क्यों नहीं मिलता, अनावृष्टि क्यों होती हैं, नदियाँ क्यों सूख जाती हैं इत्यादि बातों की गम्भीर चर्चा होना आवश्यक है। | | # खेतों को पानी क्यों नहीं मिलता, पीने के लिये पानी क्यों नहीं मिलता, अनावृष्टि क्यों होती हैं, नदियाँ क्यों सूख जाती हैं इत्यादि बातों की गम्भीर चर्चा होना आवश्यक है। |
| # पानी की निकासी के लिये जो व्यवस्था बनाई जाती है वह कितनी उचित या अनुचित है इसका विमर्श होना चाहिये। | | # पानी की निकासी के लिये जो व्यवस्था बनाई जाती है वह कितनी उचित या अनुचित है इसका विमर्श होना चाहिये। |
− | # गंगा जैसी पवित्र नदी सहित देश की अन्य नदियों का पानी बडे बडे कारखानों के विषैले रासायनिक कचरे के कारण प्रदूषित होता है। इस कचरे से नदियों को बचाने के क्या उपाय हैं ? सरकार की ओर से अनेक कानून बनाये जाने के बाद भी नदियों को नहीं बचाया जा सकता है इसका कारण क्या है ? इस स्थिति को ठीक करने के लिये विद्यालय या विद्याक्षेत्र क्या कर सकता है इसका विचार होना चाहिये। | + | # गंगा जैसी पवित्र नदी सहित देश की अन्य नदियों का पानी बड़े बड़े कारखानों के विषैले रासायनिक कचरे के कारण प्रदूषित होता है। इस कचरे से नदियों को बचाने के क्या उपाय हैं ? सरकार की ओर से अनेक कानून बनाये जाने के बाद भी नदियों को नहीं बचाया जा सकता है इसका कारण क्या है ? इस स्थिति को ठीक करने के लिये विद्यालय या विद्याक्षेत्र क्या कर सकता है इसका विचार होना चाहिये। |
− | # बडे बडे बाँध बाँधने से क्या वास्तव में देश का जलसंकट दर हो सकता है इसका विचार भी करना चाहिये । यदि संकट दूर नहीं हो सकता है तो फिर हम क्यों बाँधते हैं ? | + | # बड़े बड़े बाँध बाँधने से क्या वास्तव में देश का जलसंकट दर हो सकता है इसका विचार भी करना चाहिये । यदि संकट दूर नहीं हो सकता है तो फिर हम क्यों बाँधते हैं ? |
− | # कुएँ, तालाब, बावडियाँ आदि पुनः निर्माण करने के क्या तरीके हो सकते हैं इसकी भी चर्चा होनी जरूरी | + | # कुएँ, तालाब, बावडियाँ आदि पुनः निर्माण करने के क्या तरीके हो सकते हैं इसकी भी चर्चा होनी आवश्यक |
| # पानी का अमर्याद उपयोग करना, पानी का प्रदूषण करना, पानी बचाने की कोई व्यवस्था न करना, पानी के स्रोतों को अवरुद्ध करना आदि विनाशक गतिविधियों के पीछे कौनसी विचारधारा, कौनसी मनोवृत्ति और कौनसी प्रवृत्ति होती है इसका मूलगामी चिन्तन करना सिखाना चाहिये । पानी को लेकर हमारे छोटे से कार्य के परिणाम दूरगामी होते हैं यह समझने की आवश्यकता है। | | # पानी का अमर्याद उपयोग करना, पानी का प्रदूषण करना, पानी बचाने की कोई व्यवस्था न करना, पानी के स्रोतों को अवरुद्ध करना आदि विनाशक गतिविधियों के पीछे कौनसी विचारधारा, कौनसी मनोवृत्ति और कौनसी प्रवृत्ति होती है इसका मूलगामी चिन्तन करना सिखाना चाहिये । पानी को लेकर हमारे छोटे से कार्य के परिणाम दूरगामी होते हैं यह समझने की आवश्यकता है। |
| ये सारी बातें शिक्षा का सार्थक अंग बनेंगी तभी विश्व कानून बनाये जाने के बाद भी नदियों को नहीं बचाया जा सकता है इसका कारण क्या है ? इस स्थिति को ठीक करने के लिये विद्यालय या विद्याक्षेत्र क्या कर सकता है इसका विचार होना चाहिये । | | ये सारी बातें शिक्षा का सार्थक अंग बनेंगी तभी विश्व कानून बनाये जाने के बाद भी नदियों को नहीं बचाया जा सकता है इसका कारण क्या है ? इस स्थिति को ठीक करने के लिये विद्यालय या विद्याक्षेत्र क्या कर सकता है इसका विचार होना चाहिये । |