Difference between revisions of "Upanishads (उपनिषद्)"

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उपनिषद विभिन्न आध्यात्मिक और धर्मिक सिद्धांतों और तत्त्वों की व्याख्या करते हैं जो साधक को मोक्ष के उच्चतम उद्देश्य की ओर ले जाते हैं और क्योंकि वे वेदों के अंत में मौजूद हैं, उन्हें वेदांत (वेदान्तः) भी कहा जाता है। वे कर्मकांड में निर्धारित संस्कारों को रोकते नहीं किन्तु यह बताते हैं कि मोक्ष प्राप्ति केवल ज्ञान के माध्यम से ही हो सकती है।<ref>Gopal Reddy, Mudiganti and Sujata Reddy, Mudiganti (1997) ''Sanskrita Saahitya Charitra (Vaidika Vangmayam - Loukika Vangamayam, A critical approach)'' Hyderabad : P. S. Telugu University</ref> <blockquote>वेदान्तो नामोपनिषत्प्रमाणं तदनुसारीणि। शारीरकसूत्राणि च<ref>Prof. K. Sundararama Aiyar (1911) ''Vedantasara of Sadananda with Balabodhini Commentary of Apadeva.'' Srirangam : Sri Vani Vilas Press</ref> </blockquote>सदानंद योगिंद्र, अपने वेदांतसार में कहते हैं कि "वेदांत के पास इसके सबूत के लिए उपनिषद हैं और इसमें शरीर सूत्र (वेदांत सूत्र या ब्रह्म सूत्र) और अन्य कार्य शामिल हैं जो इसकी पुष्टि करते हैं"<ref>Sastri, M. N. Dutt (1909) ''Vedanta-sara. A Prose English translation and Explanatory notes and Comments.'' Calcutta : Elysium Press.</ref>
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उपनिषद विभिन्न आध्यात्मिक और धर्मिक सिद्धांतों और तत्त्वों की व्याख्या करते हैं जो साधक को मोक्ष के उच्चतम उद्देश्य की ओर ले जाते हैं और क्योंकि वे वेदों के अंत में मौजूद हैं, उन्हें वेदांत (वेदान्तः) भी कहा जाता है। वे कर्मकांड में निर्धारित संस्कारों को रोकते नहीं किन्तु यह बताते हैं कि मोक्ष प्राप्ति केवल ज्ञान के माध्यम से ही हो सकती है।<ref name=":0">Gopal Reddy, Mudiganti and Sujata Reddy, Mudiganti (1997) ''Sanskrita Saahitya Charitra (Vaidika Vangmayam - Loukika Vangamayam, A critical approach)'' Hyderabad : P. S. Telugu University</ref> <blockquote>वेदान्तो नामोपनिषत्प्रमाणं तदनुसारीणि। शारीरकसूत्राणि च<ref>Prof. K. Sundararama Aiyar (1911) ''Vedantasara of Sadananda with Balabodhini Commentary of Apadeva.'' Srirangam : Sri Vani Vilas Press</ref> </blockquote>सदानंद योगिंद्र, अपने वेदांतसार में कहते हैं कि "वेदांत के पास इसके सबूत के लिए उपनिषद हैं और इसमें शरीर सूत्र (वेदांत सूत्र या ब्रह्म सूत्र) और अन्य कार्य शामिल हैं जो इसकी पुष्टि करते हैं"<ref>Sastri, M. N. Dutt (1909) ''Vedanta-sara. A Prose English translation and Explanatory notes and Comments.'' Calcutta : Elysium Press.</ref>
  
 
== परिचय ==
 
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डॉ. के.एस. नारायणाचार्य के अनुसार, ये एक ही सत्य को व्यक्त करने के चार अलग-अलग तरीके हैं, जिनमें से प्रत्येक को एक क्रॉस चेक के रूप में प्रयुक्त किया जा सकता है ताकि गलत उद्धरण से बचा जा सके - यह ऐसा तरीका है जो आज भी इस्तेमाल किया जाता है और मान्य है।<ref>Insights Into the Taittiriya Upanishad, Dr. K. S. Narayanacharya, Published by Kautilya Institute of National Studies, Mysore, Page 75 (Glossary)</ref>
 
डॉ. के.एस. नारायणाचार्य के अनुसार, ये एक ही सत्य को व्यक्त करने के चार अलग-अलग तरीके हैं, जिनमें से प्रत्येक को एक क्रॉस चेक के रूप में प्रयुक्त किया जा सकता है ताकि गलत उद्धरण से बचा जा सके - यह ऐसा तरीका है जो आज भी इस्तेमाल किया जाता है और मान्य है।<ref>Insights Into the Taittiriya Upanishad, Dr. K. S. Narayanacharya, Published by Kautilya Institute of National Studies, Mysore, Page 75 (Glossary)</ref>
  
अधिकांश उपनिषद गुरु और शिष्य के बीच संवाद के रूप में हैं। उपनिषदों में, एक साधक एक विषय उठाता है और प्रबुद्ध गुरु प्रश्न को उपयुक्त और आश्वस्त रूप से संतुष्ट करता है।<ref><nowiki>http://indianscriptures.50webs.com/partveda.htm</nowiki>, 6th Paragraph</ref> इस लेख में उपनिषदों के कालक्रम और डेटिंग का प्रयास नहीं किया गया है।
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अधिकांश उपनिषद गुरु और शिष्य के बीच संवाद के रूप में हैं। उपनिषदों में, एक साधक एक विषय उठाता है और प्रबुद्ध गुरु प्रश्न को उपयुक्त और आश्वस्त रूप से संतुष्ट करता है।<ref><nowiki>http://indianscriptures.50webs.com/partveda.htm</nowiki>, 6th Paragraph</ref> इस लेख में उपनिषदों के कालक्रम को स्थापित करने का प्रयास नहीं किया गया है।
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== व्युत्पत्ति ==
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There are different versions about the meaning of Upanishad as given by many scholars. The term ''Upaniṣad'' term consists of उप (upa) and नि (ni) उपसर्ग-s (Upasargas or Prefixes) and सद् धातुः (Sad dhatu) followed by किव्प् प्रत्ययः (Kvip pratyaya as Suffix) used in the sense of विशरणगत्यवसादनेषु । ''viśaraṇagatyavasādaneṣu'' Shri Adi Shankaracharya explains in his commentary on Taittiriyopanishad about the meanings of Sad (सद्) dhatu thus
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विशरणम् (नाशनम्) to destroy : They destroy the seeds of Avidya causing samsara in a Mumukshu (a sadhaka who wants to attain Moksha), hence this Vidya is called Upanishads.
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* गतिः (प्रपणम् वा विद्यर्थकम्) to obtain or to know : That vidya which leads to or make the sadhaka obtain Brahma, is called Upanishad.
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* अवसादनम् (शिथिलर्थकम्) to loosen or to dissolve : Through which cycles of birth, aging etc painful process are loosened or dissolved (that is bondages of samsara are dissolved allowing the sadhaka to attain the Brahma). His also defines the primary meaning of Upanishad as Brahmavidya (ब्रह्मविद्या । Knowledge of Brahma) and secondary meaning as ब्रह्मविद्याप्रतिपादकग्रन्थः (Brahmavidya pratipadaka granth । texts which teach Brahmavidya). Shankaracharya's commentaries of the Kaṭha and Brhadaranyaka Upanishad also support this explanation.
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उपनिषद के अर्थ के बारे में कई विद्वानों ने मत दिए हैं । उपनिषद शब्द में उप और नि उपसर्ग और सद् धातुः के बाद किव्प् प्रत्यय: का उपयोग विशरणगत्यवसादनेषु के अर्थ में किया जाता है।
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श्री आदि शंकराचार्य तैत्तिरीयोपनिषद पर अपने भाष्य में सद (सद्) धातु के अर्थ के बारे में इस प्रकार बताते हैं<ref name=":0" /> <ref>Sharma, Ram Murthy. (1987 2nd edition) ''Vaidik Sahitya ka Itihas'' Delhi : Eastern Book Linkers</ref><ref>Upadhyaya, Baldev. (1958) ''Vaidik Sahitya''.</ref>
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* विशरणम् (नाशनम्) नष्ट करना: वे एक मुमुक्षु (एक साधक जो मोक्ष प्राप्त करना चाहता है) में अविद्या के बीज को नष्ट कर देते हैं, इसलिए इस विद्या को उपनिषद कहा जाता है। अविद्यादेः संसार बीजस्य विशारदनादित्यने अर्थयोगेन विद्या उपनिषदच्यते। अविद्यादें संसाराबिजस्य विश्राणाद विनाशनादित्यनेन अर्थोगेन विद्या उपनिषदुस्येते।
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* गतिः (प्रपणम् वा विद्र्थकम्) : वह विद्या जो साधक को ब्रह्म की ओर ले जाती है या ब्रह्म की प्राप्ति कराती है, उपनिषद कहलाती है।
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परं ब्रह्म वा गमयतोति ब्रह्म गमयित्त्र्वेन योगाद विद्योपनिषद् । परं ब्रह्म वा गमयतोति ब्रह्म गमयितृत्वेण योगद विद्यापनिषद।
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अनवादनम् (शिथिलर्थकम्) ढीला करना या भंग करना : जिसके माध्यम से जन्म के चक्र, उम्र बढ़ने आदि दर्दनाक प्रक्रिया को ढीला या भंग कर दिया जाता है (अर्थात संसार के बंधन भंग हो जाते हैं जिससे साधक ब्रह्म को प्राप्त कर सकता है)।
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लोकान्तरेपौनपुन्येन प्रवृत्तस्य अनवृत्वेन उपनिषदित्युच्यते । गर्भवासजनमजाराद्युपद्रववृन्दास्य लोकान्तरेपौणपुण्यन प्रवृत्तस्य अवासदपितृत्वेण उपनिषदित्युस्यते।
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उनका उपनिषद के प्राथमिक अर्थ को ब्रह्मविद्या (ब्रह्मविद्या। ब्रह्म का ज्ञान) और द्वितीयक अर्थ को ब्रह्मविद्या प्रतिपादकग्रंथः (ब्रह्मविद्या प्रतिपादक ग्रंथ। ग्रंथ जो ब्रह्मविद्या सिखाते हैं) के रूप में परिभाषित करता है। शंकराचार्य की काठ और बृहदारण्यक उपनिषद की टिप्पणियां भी इस स्पष्टीकरण का समर्थन करती हैं।
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उपनिषद शब्द की एक वैकल्पिक व्याख्या "निकट बैठना" इस प्रकार है [1][2]
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नि (नी) उपसर्ग (उपसर्ग या उपसर्ग) के सामने सद् धातुः (सद धातु) का अर्थ 'बैठना' भी होता है।
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उप (उप) उपसर्ग का अर्थ 'निकटता या निकट' के लिए प्रयोग किया जाता है।
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इस प्रकार उपनिषद शब्द का अर्थ है "पास बैठना"।
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इस प्रकार उपनिषद का अर्थ हुआ 'गुप्त ज्ञान' या ब्रह्मविद्या प्राप्त करने के लिए गुरु (गुरु) के पास बैठना (शब्दकल्पध्रुम के अनुसार: उपनिषदयते ब्रह्मविद्या अन्य इति)
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आम तौर पर, उपनिषद रहस्य (रहस्यम्) या गोपनीयता का पर्याय हैं। उपनिषदों में स्वयं कथनों का उल्लेख है जैसे
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मोक्षलक्षमतायत मोत्परं गुप्तम् इत्येवं। मोक्षलक्षमित्यतत्परं रहस्यं इतेवः। (मैट। उपन। 6.20) [10]
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सैशा शांभवी विद्या कादि-विद्यायेति वा हादिविद्येति वा सादिविद्येति वा रहस्य। साईं शांभावी विद्या कादि-विद्याति वा हादिविद्येति वा सादिविद्येति वा रहस्यम। (बहवरचोपनिषद[11])
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कुछ महत्वपूर्ण सिद्धांतों पर चर्चा करते समय। संभवतः इस तरह के प्रयोग इस ज्ञान को अयोग्य लोगों को देने से रोकने और सावधान करने के लिए दिए गए हैं। [9]
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मुख्य उपनिषदों में, विशेष रूप से अथर्ववेद उपनिषदों में गुप्त या गुप्त ज्ञान के अर्थ के कई उदाहरण हैं। उदाहरण के लिए कौशिकी उपनिषद में मनोज्ञानम् और बीजज्ञानम् (मनोविज्ञान और तत्वमीमांसा) के विस्तृत सिद्धांत शामिल हैं। इनके अलावा उनमें मृत्युज्ञानम् (मृत्यु के आसपास के सिद्धांत, आत्मा की यात्रा आदि), बालमृत्यु डिज़ॉल्विंग (बचपन की असामयिक मृत्यु को रोकना) शत्रु विनाशार्थ गुप्तम् (शत्रुओं के विनाश के रहस्य) आदि शामिल हैं। छांदोग्य उपनिषद दुनिया की उत्पत्ति के बारे में रहस्य बताते हैं, जीव , जगत, ओम और उनके छिपे अर्थ। [9]
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An alternative explanation of the word Upanishad is "to sit near" derived as follows
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* नि (ni) उपसर्ग (Upasarga or Prefix) in front of सद् धातुः (Sad dhatu) also means 'to sit'.
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* उप (upa) Upasarga is used to mean 'nearness or close to'.
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* उपनिषद् term thus means "to sit near".
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Thus Upanishad came to mean as ' to sit near the Guru (preceptor) to obtain the 'secret knowledge' or Brahmavidya (as per Shabdakalpadhruma : उपनिषद्यते प्राप्यते ब्रह्म-विद्या अनया इति)
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Generally, Upanishads are synonymous with Rahasya (रहस्यम्) or secrecy. Upanishads themselves mention statements such as
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when discussing some important siddhantas. Probably such usages are given to prevent and caution against giving this knowledge to the undeserving.
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In the mukhya upanishads, there are many instances of रहस्यम् meaning secret or hidden knowledge especially in Atharvaveda upanishads. Kaushitaki Upanishad for example, contains detailed siddhantas of मनोज्ञानम् and तत्वज्ञानम् (Psychology and metaphysics). Apart from them they also contain मृतकज्ञानम् (siddhantas around death, travel of Atman etc), बालमृत्यु निवारणम् (preventing untimely childhood deaths) शत्रुविनाशार्थ रहस्यम् (secrets about the destruction of enemies) etc. Chandogya Upanishads gives the secrets about the origin of worlds, Jiva, Jagat, Om and their hidden meanings.
  
 
==References==
 
==References==

Revision as of 22:49, 16 June 2021

(अंग्रेजी भाषा में यह लेख पढ़ें)

उपनिषद विभिन्न आध्यात्मिक और धर्मिक सिद्धांतों और तत्त्वों की व्याख्या करते हैं जो साधक को मोक्ष के उच्चतम उद्देश्य की ओर ले जाते हैं और क्योंकि वे वेदों के अंत में मौजूद हैं, उन्हें वेदांत (वेदान्तः) भी कहा जाता है। वे कर्मकांड में निर्धारित संस्कारों को रोकते नहीं किन्तु यह बताते हैं कि मोक्ष प्राप्ति केवल ज्ञान के माध्यम से ही हो सकती है।[1]

वेदान्तो नामोपनिषत्प्रमाणं तदनुसारीणि। शारीरकसूत्राणि च[2]

सदानंद योगिंद्र, अपने वेदांतसार में कहते हैं कि "वेदांत के पास इसके सबूत के लिए उपनिषद हैं और इसमें शरीर सूत्र (वेदांत सूत्र या ब्रह्म सूत्र) और अन्य कार्य शामिल हैं जो इसकी पुष्टि करते हैं"[3]

परिचय

हर वेद को चार प्रकार के ग्रंथों में विभाजित किया गया है - संहिता, आरण्यक, ब्राह्मण और उपनिषद। वेदों की विषय वस्तु कर्म-कांड, उपासना-कांड और ज्ञान-कांड में विभाजित है। कर्म-कांड या अनुष्ठान खंड विभिन्न अनुष्ठानों से संबंधित है। उपासना-कांड या पूजा खंड विभिन्न प्रकार की पूजा या ध्यान से संबंधित है। ज्ञान-कांड या ज्ञान-अनुभाग निर्गुण ब्रह्म के उच्चतम ज्ञान से संबंधित है। संहिता और ब्राह्मण कर्म-कांड के अंतर्गत आते हैं; आरण्यक उपासना-कांड के अंतर्गत आते हैं; और उपनिषद ज्ञान-कांड के अंतर्गत आते हैं ।[4] [5]

सभी उपनिषद, भगवद्गीता और ब्रह्मसूत्र के साथ मिलकर प्रस्थानत्रयी का गठन करते हैं। प्रस्थानत्रयी सभी भारतीय दर्शन शास्त्रों (जैन और बौद्ध दर्शन सहित) के मूलभूत स्रोत भी हैं।

डॉ. के.एस. नारायणाचार्य के अनुसार, ये एक ही सत्य को व्यक्त करने के चार अलग-अलग तरीके हैं, जिनमें से प्रत्येक को एक क्रॉस चेक के रूप में प्रयुक्त किया जा सकता है ताकि गलत उद्धरण से बचा जा सके - यह ऐसा तरीका है जो आज भी इस्तेमाल किया जाता है और मान्य है।[6]

अधिकांश उपनिषद गुरु और शिष्य के बीच संवाद के रूप में हैं। उपनिषदों में, एक साधक एक विषय उठाता है और प्रबुद्ध गुरु प्रश्न को उपयुक्त और आश्वस्त रूप से संतुष्ट करता है।[7] इस लेख में उपनिषदों के कालक्रम को स्थापित करने का प्रयास नहीं किया गया है।

व्युत्पत्ति

There are different versions about the meaning of Upanishad as given by many scholars. The term Upaniṣad term consists of उप (upa) and नि (ni) उपसर्ग-s (Upasargas or Prefixes) and सद् धातुः (Sad dhatu) followed by किव्प् प्रत्ययः (Kvip pratyaya as Suffix) used in the sense of विशरणगत्यवसादनेषु । viśaraṇagatyavasādaneṣu Shri Adi Shankaracharya explains in his commentary on Taittiriyopanishad about the meanings of Sad (सद्) dhatu thus

विशरणम् (नाशनम्) to destroy : They destroy the seeds of Avidya causing samsara in a Mumukshu (a sadhaka who wants to attain Moksha), hence this Vidya is called Upanishads.

  • गतिः (प्रपणम् वा विद्यर्थकम्) to obtain or to know : That vidya which leads to or make the sadhaka obtain Brahma, is called Upanishad.
  • अवसादनम् (शिथिलर्थकम्) to loosen or to dissolve : Through which cycles of birth, aging etc painful process are loosened or dissolved (that is bondages of samsara are dissolved allowing the sadhaka to attain the Brahma). His also defines the primary meaning of Upanishad as Brahmavidya (ब्रह्मविद्या । Knowledge of Brahma) and secondary meaning as ब्रह्मविद्याप्रतिपादकग्रन्थः (Brahmavidya pratipadaka granth । texts which teach Brahmavidya). Shankaracharya's commentaries of the Kaṭha and Brhadaranyaka Upanishad also support this explanation.

उपनिषद के अर्थ के बारे में कई विद्वानों ने मत दिए हैं । उपनिषद शब्द में उप और नि उपसर्ग और सद् धातुः के बाद किव्प् प्रत्यय: का उपयोग विशरणगत्यवसादनेषु के अर्थ में किया जाता है।

श्री आदि शंकराचार्य तैत्तिरीयोपनिषद पर अपने भाष्य में सद (सद्) धातु के अर्थ के बारे में इस प्रकार बताते हैं[1] [8][9]

  • विशरणम् (नाशनम्) नष्ट करना: वे एक मुमुक्षु (एक साधक जो मोक्ष प्राप्त करना चाहता है) में अविद्या के बीज को नष्ट कर देते हैं, इसलिए इस विद्या को उपनिषद कहा जाता है। अविद्यादेः संसार बीजस्य विशारदनादित्यने अर्थयोगेन विद्या उपनिषदच्यते। अविद्यादें संसाराबिजस्य विश्राणाद विनाशनादित्यनेन अर्थोगेन विद्या उपनिषदुस्येते।
  • गतिः (प्रपणम् वा विद्र्थकम्) : वह विद्या जो साधक को ब्रह्म की ओर ले जाती है या ब्रह्म की प्राप्ति कराती है, उपनिषद कहलाती है।

परं ब्रह्म वा गमयतोति ब्रह्म गमयित्त्र्वेन योगाद विद्योपनिषद् । परं ब्रह्म वा गमयतोति ब्रह्म गमयितृत्वेण योगद विद्यापनिषद।

अनवादनम् (शिथिलर्थकम्) ढीला करना या भंग करना : जिसके माध्यम से जन्म के चक्र, उम्र बढ़ने आदि दर्दनाक प्रक्रिया को ढीला या भंग कर दिया जाता है (अर्थात संसार के बंधन भंग हो जाते हैं जिससे साधक ब्रह्म को प्राप्त कर सकता है)।

लोकान्तरेपौनपुन्येन प्रवृत्तस्य अनवृत्वेन उपनिषदित्युच्यते । गर्भवासजनमजाराद्युपद्रववृन्दास्य लोकान्तरेपौणपुण्यन प्रवृत्तस्य अवासदपितृत्वेण उपनिषदित्युस्यते।

उनका उपनिषद के प्राथमिक अर्थ को ब्रह्मविद्या (ब्रह्मविद्या। ब्रह्म का ज्ञान) और द्वितीयक अर्थ को ब्रह्मविद्या प्रतिपादकग्रंथः (ब्रह्मविद्या प्रतिपादक ग्रंथ। ग्रंथ जो ब्रह्मविद्या सिखाते हैं) के रूप में परिभाषित करता है। शंकराचार्य की काठ और बृहदारण्यक उपनिषद की टिप्पणियां भी इस स्पष्टीकरण का समर्थन करती हैं।

उपनिषद शब्द की एक वैकल्पिक व्याख्या "निकट बैठना" इस प्रकार है [1][2]

नि (नी) उपसर्ग (उपसर्ग या उपसर्ग) के सामने सद् धातुः (सद धातु) का अर्थ 'बैठना' भी होता है।

उप (उप) उपसर्ग का अर्थ 'निकटता या निकट' के लिए प्रयोग किया जाता है।

इस प्रकार उपनिषद शब्द का अर्थ है "पास बैठना"।

इस प्रकार उपनिषद का अर्थ हुआ 'गुप्त ज्ञान' या ब्रह्मविद्या प्राप्त करने के लिए गुरु (गुरु) के पास बैठना (शब्दकल्पध्रुम के अनुसार: उपनिषदयते ब्रह्मविद्या अन्य इति)

आम तौर पर, उपनिषद रहस्य (रहस्यम्) या गोपनीयता का पर्याय हैं। उपनिषदों में स्वयं कथनों का उल्लेख है जैसे

मोक्षलक्षमतायत मोत्परं गुप्तम् इत्येवं। मोक्षलक्षमित्यतत्परं रहस्यं इतेवः। (मैट। उपन। 6.20) [10]

सैशा शांभवी विद्या कादि-विद्यायेति वा हादिविद्येति वा सादिविद्येति वा रहस्य। साईं शांभावी विद्या कादि-विद्याति वा हादिविद्येति वा सादिविद्येति वा रहस्यम। (बहवरचोपनिषद[11])

कुछ महत्वपूर्ण सिद्धांतों पर चर्चा करते समय। संभवतः इस तरह के प्रयोग इस ज्ञान को अयोग्य लोगों को देने से रोकने और सावधान करने के लिए दिए गए हैं। [9]

मुख्य उपनिषदों में, विशेष रूप से अथर्ववेद उपनिषदों में गुप्त या गुप्त ज्ञान के अर्थ के कई उदाहरण हैं। उदाहरण के लिए कौशिकी उपनिषद में मनोज्ञानम् और बीजज्ञानम् (मनोविज्ञान और तत्वमीमांसा) के विस्तृत सिद्धांत शामिल हैं। इनके अलावा उनमें मृत्युज्ञानम् (मृत्यु के आसपास के सिद्धांत, आत्मा की यात्रा आदि), बालमृत्यु डिज़ॉल्विंग (बचपन की असामयिक मृत्यु को रोकना) शत्रु विनाशार्थ गुप्तम् (शत्रुओं के विनाश के रहस्य) आदि शामिल हैं। छांदोग्य उपनिषद दुनिया की उत्पत्ति के बारे में रहस्य बताते हैं, जीव , जगत, ओम और उनके छिपे अर्थ। [9]

An alternative explanation of the word Upanishad is "to sit near" derived as follows

  • नि (ni) उपसर्ग (Upasarga or Prefix) in front of सद् धातुः (Sad dhatu) also means 'to sit'.
  • उप (upa) Upasarga is used to mean 'nearness or close to'.
  • उपनिषद् term thus means "to sit near".

Thus Upanishad came to mean as ' to sit near the Guru (preceptor) to obtain the 'secret knowledge' or Brahmavidya (as per Shabdakalpadhruma : उपनिषद्यते प्राप्यते ब्रह्म-विद्या अनया इति)

Generally, Upanishads are synonymous with Rahasya (रहस्यम्) or secrecy. Upanishads themselves mention statements such as

when discussing some important siddhantas. Probably such usages are given to prevent and caution against giving this knowledge to the undeserving.

In the mukhya upanishads, there are many instances of रहस्यम् meaning secret or hidden knowledge especially in Atharvaveda upanishads. Kaushitaki Upanishad for example, contains detailed siddhantas of मनोज्ञानम् and तत्वज्ञानम् (Psychology and metaphysics). Apart from them they also contain मृतकज्ञानम् (siddhantas around death, travel of Atman etc), बालमृत्यु निवारणम् (preventing untimely childhood deaths) शत्रुविनाशार्थ रहस्यम् (secrets about the destruction of enemies) etc. Chandogya Upanishads gives the secrets about the origin of worlds, Jiva, Jagat, Om and their hidden meanings.

References

  1. 1.0 1.1 Gopal Reddy, Mudiganti and Sujata Reddy, Mudiganti (1997) Sanskrita Saahitya Charitra (Vaidika Vangmayam - Loukika Vangamayam, A critical approach) Hyderabad : P. S. Telugu University
  2. Prof. K. Sundararama Aiyar (1911) Vedantasara of Sadananda with Balabodhini Commentary of Apadeva. Srirangam : Sri Vani Vilas Press
  3. Sastri, M. N. Dutt (1909) Vedanta-sara. A Prose English translation and Explanatory notes and Comments. Calcutta : Elysium Press.
  4. Swami Sivananda, All About Hinduism, Page 30-31
  5. Sri Sri Sri Chandrasekharendra Saraswathi Swamiji, (2000) Hindu Dharma (Collection of Swamiji's Speeches between 1907 to 1994)Mumbai : Bharatiya Vidya Bhavan
  6. Insights Into the Taittiriya Upanishad, Dr. K. S. Narayanacharya, Published by Kautilya Institute of National Studies, Mysore, Page 75 (Glossary)
  7. http://indianscriptures.50webs.com/partveda.htm, 6th Paragraph
  8. Sharma, Ram Murthy. (1987 2nd edition) Vaidik Sahitya ka Itihas Delhi : Eastern Book Linkers
  9. Upadhyaya, Baldev. (1958) Vaidik Sahitya.