Difference between revisions of "पुण्यभूमि भारत - दक्षिण भारत"
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श्रृंगगिरेि से उद्भूत पवित्र नदी नद नेत्रावती के तट पर धर्मस्थल नामक धर्मक्षेत्र है। यहाँ का प्राचीनतम मन्दिर मंजूनाथेश्वर है। आदि शांकराचार्य ने मंजूनाथेश्वर की प्रतिष्ठा की थी, किन्तु बाद में यहाँ की उपासना पद्धति श्री मध्वाचार्य के ईत मतानुसार होने लगी। कार्तिक मास में यहाँ दीपदानोत्सव धूमधाम से मनाया जाता है और असंख्य यात्री यहाँ दर्शनार्थ आते हैं। इस अवसर पर विभिन्न मतावलम्बी धर्माचायों का सम्मेलन भी होता है। मेष संक्रांति के समय श्री मंजुकेश्वरनाथ की रथयात्रा निकाली जाती हैं। | श्रृंगगिरेि से उद्भूत पवित्र नदी नद नेत्रावती के तट पर धर्मस्थल नामक धर्मक्षेत्र है। यहाँ का प्राचीनतम मन्दिर मंजूनाथेश्वर है। आदि शांकराचार्य ने मंजूनाथेश्वर की प्रतिष्ठा की थी, किन्तु बाद में यहाँ की उपासना पद्धति श्री मध्वाचार्य के ईत मतानुसार होने लगी। कार्तिक मास में यहाँ दीपदानोत्सव धूमधाम से मनाया जाता है और असंख्य यात्री यहाँ दर्शनार्थ आते हैं। इस अवसर पर विभिन्न मतावलम्बी धर्माचायों का सम्मेलन भी होता है। मेष संक्रांति के समय श्री मंजुकेश्वरनाथ की रथयात्रा निकाली जाती हैं। | ||
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पणजी अथवा पंजिम वर्तमान गोवा (गोमान्तक ) प्रदेश की राजधानी व मुख्या नगर है । कई शताब्दियों तक पुर्तगाली अधिकार में रहने के कारण यहाँ ईसाई प्रभाव अधिक है। कुछ पुराने मंदिर है, परन्तु उनकी अवस्था अच्छी नहीं है । पणजी दे कुछ दूर प्रियोल गाँव में श्री मंगेश महादेव मन्दिर है । इसका वास्तविक नाम मांगीश है । ये महाराष्ट्र के पंच गौड़िय ब्राह्मणों में से वत्स ब्राह्मणों के कुल देवता है । मूल रूप से श्री मंगेश महादेव कुशस्थल ग्राम में प्रतिष्ठित थे । किन्तु पुर्तगालियों के उपद्रवों के कारण भक्त उन्हें पालकी में विराजित करके ले आयें और यहाँ प्रतिष्ठित कर दिया । बाद में मंदिर बन गया । भगवन परशुराम द्वारा यहाँ एक यज्ञ कराया गया था । एक शिवभक्त द्वारा आर्त स्वर में "माँ गिरीश पाहि " पुकारने पर शिव स्वयं प्रकट हुए तथा "मांगीश"कहलायें। | पणजी अथवा पंजिम वर्तमान गोवा (गोमान्तक ) प्रदेश की राजधानी व मुख्या नगर है । कई शताब्दियों तक पुर्तगाली अधिकार में रहने के कारण यहाँ ईसाई प्रभाव अधिक है। कुछ पुराने मंदिर है, परन्तु उनकी अवस्था अच्छी नहीं है । पणजी दे कुछ दूर प्रियोल गाँव में श्री मंगेश महादेव मन्दिर है । इसका वास्तविक नाम मांगीश है । ये महाराष्ट्र के पंच गौड़िय ब्राह्मणों में से वत्स ब्राह्मणों के कुल देवता है । मूल रूप से श्री मंगेश महादेव कुशस्थल ग्राम में प्रतिष्ठित थे । किन्तु पुर्तगालियों के उपद्रवों के कारण भक्त उन्हें पालकी में विराजित करके ले आयें और यहाँ प्रतिष्ठित कर दिया । बाद में मंदिर बन गया । भगवन परशुराम द्वारा यहाँ एक यज्ञ कराया गया था । एक शिवभक्त द्वारा आर्त स्वर में "माँ गिरीश पाहि " पुकारने पर शिव स्वयं प्रकट हुए तथा "मांगीश"कहलायें। | ||
Revision as of 15:09, 7 June 2021
भक्ति, ज्ञान व वैराग्य की त्रिवेणी, नामदेव, तुकाराम, नारायण गुरु, एकनाथ आदिशंकर जैसे सन्तों की जन्मभूमि, शिवाजी, कृष्णदेवराय, राजेन्द्र चोल आदि पराक्रमी वीरों की शौर्य-स्थली दक्षिण भारत में हिन्दू संस्कृति प्रचुरता से फली-फूली और अपनी यश सुरभि से विश्व को सुवासित करने की क्षमता धारण करने वाली बनी। "हमारी संस्कृति एक है"- इस चिरंतन सत्य के दर्शन यहाँ के कण-कण में होते हैं। आर्य व द्रविड़ का भेद फूट डालने की एक घृणित चालमात्र है। हमारे शास्त्र एक हैं, आचार्य एक हैं और आराध्य देव भी एक ही हैं। दक्षिण भारत के महत्वपूर्ण धार्मिक व ऐतिहासिक स्थलों के पुण्यस्मरण से यह बात और अधिक पुष्ट होगी। दक्षिण भारत में पवित्र तीर्थों की परम्परा अक्षुण्ण रही है। आध्यात्मिक ज्ञान की गांग यहाँ अविरल बहती रही है। मध्य भारत का वर्णन करने के बाद हम आन्ध्र, तमिलनाडु, केरल व कर्नाटक प्रदेश के तथा पाण्ड्यचेरी, द्वीप समूह व श्रीलंका के स्थलों की झलक प्राप्त कर लें।
विजय नगर
महान् विजयनगर साम्राज्य की स्थापना विद्यारण्य स्वामी (माधवाचार्य) के मार्गदर्शन में हरिहर और बुक्कराय नामक दो वीर बंधुओं ने की थी, जिसकी यह राजधानी थी। उन्होंने इसे युगाब्द ४४३८ (सन् १३३६) में बसाया। अपने गुरु विद्यारण्य स्वामी के नाम पर उन्होंने इसे विद्यासागर नाम दिया था, किन्तु बाद में यह विजय नगर नाम से ही प्रसिद्ध हुआ। यह ऐतिहासिक नगर दक्षिण भारत में तुंगभद्रा नदी के तट पर बसा है। उद्देश्य था। विजयनगरमें साम्राज्य-संस्थापक संगमवंश के पश्चात् सालूव वंश औरतुलुव वंश के जैसे प्रतापी राजवंशों का भी आधिपत्य रहा। तुलव वंश के वीर पुरुष कृष्णदेव राय ने विजयनगर साम्राज्य का पर्याप्त उत्कर्ष किया और मुसलमानों द्वारा ध्वस्त किये गये मन्दिरों का जीणोद्धार किया। विजयनगर का साम्राज्य युगाब्द 4438 से 4667 (ई. १३३६ से १५६५) तक उत्कर्ष पर रहा। उसके विदेशों से भी दौत्य सम्बन्ध थे। इसका एक नाम हम्पी भी है। विजयनगर तथा आसपास के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण मन्दिर तथा ऐतिहासिक स्थल हैं। विरूपाक्ष मन्दिर सबसे महत्वपूर्ण मन्दिर हैजो नगर के लगभग मध्य भाग में हैं। स्वामी विद्यारण्य की समाधि भी यहाँ है। भगवान् श्रीराम लक्ष्मण के साथ यहाँ पधारे थे और पास की पहाड़ी में निवास किया। ऋष्यमूक, किष्किन्धा, पप्पा सरोवर, अंजनी पर्वत आदि रामायणकालीन ऐतिहासिक स्थल हैं।
श्रृंगेरी
जगद्गुरु आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित प्रमुख पीठों में से श्रृंगेरी एक है। यह तुगभद्रा नदी के तट पर छोटा सा नगर है। नदी के तट पर पक्के घाट हैंऔर घाट के ऊपर श्री शांकराचार्यजी का पीठ है। एक विशाल मठ के घेरे में श्री शारदा जी और विद्यातिीर्थ महेश्वर के मन्दिर हैं। प्राचीन काल में यहाँ पर श्रृंगी ऋषि के पिता महर्षि विभाण्डक का आश्रमथा। यह स्थान नदी-तट पर एक पहाड़ी के ऊपर है। उनके द्वारा स्थापित विभाण्डकेश्वर शिव आज भी हैं। श्रृंगी ऋषि का जन्म भी यहीं पास की एक पर्वत उपत्यका में हुआ। इसे श्रृंगागिरि नाम से पुकारते हैं। सम्भवत: इसी के कारण इस नगर का नाम श्रृंगेरी हुआ। श्रृंगेरी का आज भी आध्यात्मिक जगत् में महत्वपूर्ण स्थान है।
उडुपी
गोकर्ण से दक्षिण में केरल तक समुद्रतट के साथ विस्तृत मैदानी भाग परशुराम क्षेत्र कहलाता है। इसी परशुराम क्षेत्र के अन्तर्गत उडुपि स्थित है। उडुपि का पुरातन नाम उडुपा था जो कालान्तर में उडुपि कहलाया। इसका शाब्दिक अर्थ है(उडु नक्षत्र,पासपालक) नक्षत्रों का पालक अर्थात् हिन्दूधर्म तथा संस्कृति की सुरक्षा और सबंधन विजयनगर साम्राज्य का चन्द्रमा । चन्द्रमा ने यहाँ तपस्या कीऔरभगवान शिव ने चन्द्रमौलीश्वर के रूप में दर्शन दिये। यहाँ प्रसिद्ध एवं भव्य श्री कृष्ण मन्दिर तथा मध्वाचार्य जी के आठ मठ हैं। मध्यवाचार्य जी का जन्म-स्थान उडुपि से मात्र ८-९ कि.मी. पर है। भगवान् परशुराम भी यहाँ पधारे थे।
धर्मस्थल
श्रृंगगिरेि से उद्भूत पवित्र नदी नद नेत्रावती के तट पर धर्मस्थल नामक धर्मक्षेत्र है। यहाँ का प्राचीनतम मन्दिर मंजूनाथेश्वर है। आदि शांकराचार्य ने मंजूनाथेश्वर की प्रतिष्ठा की थी, किन्तु बाद में यहाँ की उपासना पद्धति श्री मध्वाचार्य के ईत मतानुसार होने लगी। कार्तिक मास में यहाँ दीपदानोत्सव धूमधाम से मनाया जाता है और असंख्य यात्री यहाँ दर्शनार्थ आते हैं। इस अवसर पर विभिन्न मतावलम्बी धर्माचायों का सम्मेलन भी होता है। मेष संक्रांति के समय श्री मंजुकेश्वरनाथ की रथयात्रा निकाली जाती हैं।
पणजी (पंजिम )
पणजी अथवा पंजिम वर्तमान गोवा (गोमान्तक ) प्रदेश की राजधानी व मुख्या नगर है । कई शताब्दियों तक पुर्तगाली अधिकार में रहने के कारण यहाँ ईसाई प्रभाव अधिक है। कुछ पुराने मंदिर है, परन्तु उनकी अवस्था अच्छी नहीं है । पणजी दे कुछ दूर प्रियोल गाँव में श्री मंगेश महादेव मन्दिर है । इसका वास्तविक नाम मांगीश है । ये महाराष्ट्र के पंच गौड़िय ब्राह्मणों में से वत्स ब्राह्मणों के कुल देवता है । मूल रूप से श्री मंगेश महादेव कुशस्थल ग्राम में प्रतिष्ठित थे । किन्तु पुर्तगालियों के उपद्रवों के कारण भक्त उन्हें पालकी में विराजित करके ले आयें और यहाँ प्रतिष्ठित कर दिया । बाद में मंदिर बन गया । भगवन परशुराम द्वारा यहाँ एक यज्ञ कराया गया था । एक शिवभक्त द्वारा आर्त स्वर में "माँ गिरीश पाहि " पुकारने पर शिव स्वयं प्रकट हुए तथा "मांगीश"कहलायें।
श्रीकाकुलम (9ीवछुॉम)
यह नगर भारत के पूर्वी तट पर विशाखापत्तनम् से उत्तर की ओर सम्मेलन भी होता है। मेष संक्रांति के समय श्री मंजुकेश्वरनाथ की
रथयात्रा निकाली जाती हैं।
स्थित है। इसके आसपास का क्षेत्र कुर्माचल कहलाता है, अतः इसे श्री
कुर्मम् या श्री काकुलम् कहा जाता है। यहाँ पर एक अति प्राचीन मन्दिर पणजी (पश्चिम)
है। इसमें कुर्माकार (कछुए के आकार की) एक शिला स्थापित है। पास
पणजी अथवा पंजिम वर्तमान गोवा (गोमान्तक)प्रदेश की राजधानी व
में श्री गोविन्दराज (विष्णुजी) का श्री विग्रह है। भूदेवी व श्रीदेवी दोनोंओर
मुख्य नगरहै। कईशताब्दियों तक पुर्तगालीअधिकारमें रहने के कारण
विराजमान हैं। पास के एक गाँव में सूर्य भगवान की प्रभावोत्पादक प्रतिमा
यहाँईसाईप्रभाव अधिक है। कुछ पुराने मन्दिरहैं, परन्तुउनकी अवस्था
हैं ।
अच्छी नहीं है।पणजी से कुछ दूर प्रियोल गाँव में श्री मंगेश महादेव मन्दिर
है। इसका वास्तविक नाम मांगोश है। ये महाराष्ट्र के पंच गौड़ीय ब्राह्मणों