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| | == मन्दिर == | | == मन्दिर == |
| − | ''जिस प्रकार शास्त्रशिक्षा अथवा ब्रह्मचर्याश्रम में शिक्षा विद्यालय संस्था में केन्द्रित हुई है, संस्कारशिक्षा गृहसंस्था में केन्द्रित हुई है उसी प्रकार से लोकशिक्षा मन्दिर संस्था में केन्द्रित हुई है । मन्दिर सम्प्रदायों के होकर भी सम्प्रदायों से परे जाना सिखाते हैं । मन्दिर लोगों की श्रद्धा के, आस्था के, सत्प्रवृत्ति के केन्द्र हैं। समाज की पवित्रता की रक्षा...''
| + | जिस प्रकार शास्त्रशिक्षा अथवा ब्रह्मचर्याश्रम में शिक्षा विद्यालय संस्था में केन्द्रित हुई है, संस्कारशिक्षा गृहसंस्था में केन्द्रित हुई है उसी प्रकार से लोकशिक्षा मन्दिर संस्था में केन्द्रित हुई है । मन्दिर सम्प्रदायों के होकर भी सम्प्रदायों से परे जाना सिखाते हैं । मन्दिर लोगों की श्रद्धा के, आस्था के, सत्प्रवृत्ति के केन्द्र हैं। समाज की पवित्रता की रक्षा के, सत्प्रवृत्ति के केन्द्र हैं। समाज की पवित्रता की रक्षा करने वाले हैं | सहस्राब्दियों से मन्दिरों ने संस्कृति रक्षा का दायित्व निभाया है। भारत में तो वे शिक्षा के भी संरक्षक रहे हैं । |
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| | + | == सामाजिक संगठन == |
| | + | विगत एक सौ वर्षों से अनेक सामाजिक सांस्कृतिक संगठन भी विकसित हुए हैं जो सीधा सीधा लोकशिक्षा का काम करते हैं। सामाजिक चेतना जागृत करना और उसे सही रूप में ढालना इनका मुख्य कार्य रहा है। ये समाजसेवा का ही कार्य करते हैं । |
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| | + | ८. नुक्कड नाटक आदि |
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| | + | लोकशिक्षा हेतु किसी भी विषय को लेकर नुक्कड |
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| | + | नाटक किये जाते हैं। प्रदर्शनियाँ तैयार कर उन्हें स्थान |
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| | + | स्थान पर लगाई जाती हैं | कुछ भित्तिपत्र सार्वजनिक स्थानों |
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| | + | पर लगाये जाते हैं। नारे या सूत्र बनाकर प्रचलित किये |
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| | + | जाते हैं। किसी एक विचार पर गीत तैयार किय जाते हैं, |
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| | + | नाटकों का मंचन होता है, कीर्तन, नौटंकी आदि का |
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| | + | माध्यम अपनाया जाता है। रामलीला तथा अन्य |
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| | + | लोकनाट्य भी सैंकड़ों वर्षों से लोकशिक्षा का काम करते |
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| | + | आये हैं | कठपुतली जैसे खेल भी कथा ही बताते हैं । |
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| | + | ९. कला और साहित्य 2 ०» |
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| | + | जिनकी रुचि कुछ परिष्कृत है उनके लिये साहित्य, |
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| | + | संगीत और चित्रकला भी शिक्षा का ही माध्यम हैं । रसवृत्ति |
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| | + | निर्माण करना, उसे परिप्कृत करना, चित्तवृत्तियों को |
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| | + | संस्कारित करना साहित्य और संगीत का काम है। अपने |
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| | + | काम के साथ अनेक जातियों ने संगीत को जोड़ा है | नौका |
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| | + | चलाने वाले, पत्थर तोड़नेवाले, धान की कटाई करनेवाले, |
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| | + | काम करते करते गीत जाते हैं। उनके भाव उसमें व्यक्त |
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| | + | होते हैं। गाते गाते, सुनते सुनते, सुनकर सीखते सीखते |
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| | + | अन्य व्यक्तियों के भी भाव परिष्कृत होते हैं। इस |
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| | + | भावपरिष्कृति का परिणाम उत्पादक और उपभोक्ता दोनों के |
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| | + | मानस पर होता है । |
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| | + | यहाँ कुछ प्रचलित माध्यमों का उल्लेख किया गया |
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| | + | है। अन्यान्य लोग अन्यान्य पद्धति से लोकमानस को |
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| | + | प्रभावित करने का, शिक्षित करने का और परिष्कृत करने |
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| | + | का उपाय करते ही हैं। यह एक अत्यन्त व्यापक और |
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| | + | निरन्तर चलने वाला काम है। विद्यालयीन शिक्षा की तरह |
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| | + | यह किसी निश्चित ढाँचे में बँधा हुआ नहीं है यह जीवन की |
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| | + | सभी गतिविधियों के साथ जुडा रहता है । |
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| | + | लोकशिक्षा के अभाव में विद्यालयीन शिक्षा या |
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| | + | कुटुम्ब की शिक्षा व्यक्तित्व के साथ समरस नहीं होती । |
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| | + | साथ ही लोक ही शिक्षा की प्रयोगभूमि भी है । |
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| | ''९. कला और साहित्य'' | | ''९. कला और साहित्य'' |