द्वादश ज्योतिलिंग में अन्तिम घुश्मेश्वर है। घुश्मेश्वर या घुसुणेश्वर (देवगिरि) के पास स्थित वेरूल गाँव में है। यह प्रसिद्ध गुफा-मन्दिर एलोरा से मात्र एक-डेढ़ किमी.पर है। कुछ महानुभाव एलोरा के कैलास मन्दिर को ही घुश्मेश्वर मानते हैं। घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिग की स्थापना पतिपरायणा तथा शिवभक्ति घुश्मा की तपस्या तथा निष्काम भावना के कारण हुई। घुश्मा का अतीव सुन्दर बालक उसकी सौत सुदेहा के षड्यंत्र का शिकार हुआ। सुदेहा ने बालक के शव को एक सरोवर में फेंकवा दिया। घुश्मा सदैव की भांति शिवपूजा में व्यस्त रही तथा पूजा-समाप्ति पर जब पार्थिव लिंग विसर्जित कर लौटने लगी तो उसका पुत्र जीवित होकर उसके चरणों में आ गिरा। परन्तु घुश्मा इस सब को प्रभुलीला मानकर आनन्दमग्न हो गयी। तब शिव स्वयं प्रकट हो गये। घुश्मा ने सुदेहा को क्षमा करने की प्रार्थना की, साथ ही लोक-कल्याण हेतु शिव से वहीं विराजित रहने का वर माँगा। भगवान् शांकर एवमस्तु कहकर वहीं वास करने लगे। उसी स्थान पर मन्दिर बना। महारानी अहिल्याबाई ने यहाँ अति सुन्दर मन्दिर का निर्माण कराया। मन्दिर के पास शिवालय नामक पवित्र सरोवर हैं। पास में ही सहसलिंग, पातालेश्वर व सूर्यश्वर के मन्दिर है। शिवपुराण में घुश्मेश्वर की महिमा का वर्णन इस प्रकार है:
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द्वादश ज्योतिलिंग में अन्तिम घुश्मेश्वर है। घुश्मेश्वर या घुसुणेश्वर नाम से भी इसका वर्णन किया जाता है | घुश्मेश्वर मंदिर दौलताबाद (देवगिरि) के पास स्थित वेरूल गाँव में है। यह प्रसिद्ध गुफा-मन्दिर एलोरा से मात्र एक-डेढ़ किमी.पर है। कुछ महानुभाव एलोरा के कैलास मन्दिर को ही घुश्मेश्वर मानते हैं। घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिग की स्थापना पतिपरायणा तथा शिवभक्ति घुश्मा की तपस्या तथा निष्काम भावना के कारण हुई। घुश्मा का अतीव सुन्दर बालक उसकी सौत सुदेहा के षड्यंत्र का शिकार हुआ। सुदेहा ने बालक के शव को एक सरोवर में फेंकवा दिया। घुश्मा सदैव की भांति शिवपूजा में व्यस्त रही तथा पूजा-समाप्ति पर जब पार्थिव लिंग विसर्जित कर लौटने लगी तो उसका पुत्र जीवित होकर उसके चरणों में आ गिरा। परन्तु घुश्मा इस सब को प्रभुलीला मानकर आनन्दमग्न हो गयी। तब शिव स्वयं प्रकट हो गये। घुश्मा ने सुदेहा को क्षमा करने की प्रार्थना की, साथ ही लोक-कल्याण हेतु शिव से वहीं विराजित रहने का वर माँगा। भगवान् शांकर एवमस्तु कहकर वहीं वास करने लगे। उसी स्थान पर मन्दिर बना। महारानी अहिल्याबाई ने यहाँ अति सुन्दर मन्दिर का निर्माण कराया। मन्दिर के पास शिवालय नामक पवित्र सरोवर हैं। पास में ही सहसलिंग, पातालेश्वर व सूर्यश्वर के मन्दिर है। शिवपुराण में घुश्मेश्वर की महिमा का वर्णन इस प्रकार है:
"ईदुशां चैव लिंग च दूष्ट्रवा पापै: प्रमुच्यते।
"ईदुशां चैव लिंग च दूष्ट्रवा पापै: प्रमुच्यते।
Line 226:
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सुख संवर्धते पुसां शुक्ल पक्षे यथा शशी।"
सुख संवर्धते पुसां शुक्ल पक्षे यथा शशी।"
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घुश्मेश्वर मन्दिर पर श्रावण पूर्णिमा तथा महाशिवरात्रि के अवसर पर मेला लगता है। दूर-दूर से भक्त यहाँआते और धर्मलाभ प्राप्त करते हैं।
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घुश्मेश्वर मन्दिर पर श्रावण पूर्णिमा तथा महाशिवरात्रि के अवसर पर मेला लगता है। दूर-दूर से भक्त यहाँआते और धर्मलाभ प्राप्त करते हैं।