Difference between revisions of "यम एवं नियम (योग दर्शन)"

From Dharmawiki
Jump to navigation Jump to search
(लेख सम्पादित किया)
(लेख सम्पादित किया)
 
(5 intermediate revisions by the same user not shown)
Line 1: Line 1:
{{stub}}
+
{{StubArticle}}
 +
{{ToBeEdited}}
  
 
योग दर्शन में पांच नियम आते हैं- शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय और ईश्वर प्रणिधान। ये पांच नियम जीवन को व्यवस्थित और अनुशासित करने के लिए हैं, जीवन की प्रक्रियाओं को समझने और जानने के लिए हैं। इन पांच नियमों में एक है स्वाध्याय।  
 
योग दर्शन में पांच नियम आते हैं- शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय और ईश्वर प्रणिधान। ये पांच नियम जीवन को व्यवस्थित और अनुशासित करने के लिए हैं, जीवन की प्रक्रियाओं को समझने और जानने के लिए हैं। इन पांच नियमों में एक है स्वाध्याय।  
Line 11: Line 12:
  
 
शास्त्रीय ज्ञान को तो लोग अर्जित कर लेते हैं, लेकिन अपने बारे में, अपने व्यवहार को, अपने मन को, अपनी इच्छाओं को, अपनी महत्वाकांक्षाओं को नहीं जान पाते हैं।अपनी इच्छाओं, कमजोरियों, सामर्थ्यों, प्रतिभाओं और महत्वाकांक्षाओं को जानना, समझना और उन्हें व्यवस्थित करना, यह असली स्वाध्याय है। खुद का अध्ययन करके खुद को व्यवस्थित करना ही स्वाध्याय का वास्तविक अर्थ है।
 
शास्त्रीय ज्ञान को तो लोग अर्जित कर लेते हैं, लेकिन अपने बारे में, अपने व्यवहार को, अपने मन को, अपनी इच्छाओं को, अपनी महत्वाकांक्षाओं को नहीं जान पाते हैं।अपनी इच्छाओं, कमजोरियों, सामर्थ्यों, प्रतिभाओं और महत्वाकांक्षाओं को जानना, समझना और उन्हें व्यवस्थित करना, यह असली स्वाध्याय है। खुद का अध्ययन करके खुद को व्यवस्थित करना ही स्वाध्याय का वास्तविक अर्थ है।
 +
 +
[[Yoga and Its Four Paths|यह लेख]] भी देखें।
 +
==References==
 +
 +
<references />
 +
[[Category:Education Series]]

Latest revision as of 19:25, 16 January 2021

StubArticle.png
This is a short stub article. Needs Expansion.
ToBeEdited.png
This article needs editing.

Add and improvise the content from reliable sources.

योग दर्शन में पांच नियम आते हैं- शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय और ईश्वर प्रणिधान। ये पांच नियम जीवन को व्यवस्थित और अनुशासित करने के लिए हैं, जीवन की प्रक्रियाओं को समझने और जानने के लिए हैं। इन पांच नियमों में एक है स्वाध्याय।

स्वाध्याय[1]

स्वयम् का अर्थ है, स्वयं का अध्ययन, खुद को जानना स्वाध्याय कहलाता है। स्वाध्याय के नाम पर बहुत से लोग कह देते हैं कि आध्यात्मिक ग्रंथ पढ़ने चाहिए, धर्म-शास्त्र पढ़ने चाहिए, उपनिषद् पढ़ने चाहिए, और इस तरह स्वाध्याय का मतलब बाह्य अध्ययन से लगाया जाता है। शास्त्र-अध्ययन को ही स्वाध्याय कहा जाये, यह इसका केवल एक पक्ष हुआ।

असल में स्वाध्याय का अर्थ है - आत्म-परीक्षण, आत्म-निरीक्षण, आत्म-चिंतन और आत्म-शोधन।

शास्त्रीय ज्ञान को तो लोग अर्जित कर लेते हैं, लेकिन अपने बारे में, अपने व्यवहार को, अपने मन को, अपनी इच्छाओं को, अपनी महत्वाकांक्षाओं को नहीं जान पाते हैं।अपनी इच्छाओं, कमजोरियों, सामर्थ्यों, प्रतिभाओं और महत्वाकांक्षाओं को जानना, समझना और उन्हें व्यवस्थित करना, यह असली स्वाध्याय है। खुद का अध्ययन करके खुद को व्यवस्थित करना ही स्वाध्याय का वास्तविक अर्थ है।

यह लेख भी देखें।

References

  1. स्वामी निरंजनानंद सरस्वती, https://www.prabhatkhabar.com/religion/484592 accessed on 23 April 2020